शिव ही गुरु क्यों?

भगवान शिव को गुरु बनाने की विधि

शिव ही गुरु क्यों
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संक्षिप्त परिचय

सवाल उठता है देवों के देव महादेव शिव ही गुरु क्यों? कोई और क्यों नहीं, क्यों शिव को महादेव कहा जाता है और शिव को गुरु के रूप में कैसे स्वीकार करें हरेंद्र भैया ने शिव को क्यों गुरु माना इसके पीछे क्या कारण है इन सब सवालों को जानेंगे और समझेंगे|     

मुझे विश्वास है इस लेख को पढ़ने के बाद आपको यह समझने में आसानी होगी की आदि गुरु शिव ही हमारे गुरु है वह ही प्रथम गुरु है और अंतिम भी न भूतो न भविष्यति अर्थात् न मेरे जैसा कभी कोई आया न आ सकेगा| शिव ही आदि हैं शिव ही अंत हैं शिव स्वयं-भू हैं|

अलग-अलग किताबों और ग्रंथों के अध्ययन से यह सिद्ध होता है की शिव ही हमारे गुरु है अपने ध्यान के अनुभव के आधार पर आधारित यह लेख आपको सत्य से कुछ प्रतिशत परिचित जरुर करा देगा संभावना तो असीम है खोज निरंतर जारी है|

मेरा अध्यात्म के तरफ लगाव होने के कारण इस विषय पर मैंने बहुत से लेख लिखा है|

अप्रैल 2020 को मुझे Google Digital Unlocked Certificate प्राप्त हुआ जिसके बाद मैं एक professional की तरह website developer, content writer, animated and photo और video editor के क्षेत्र में काम करने लगा अब मेरे लिए यह बहुत आसान काम है लेकिन पहले यह बिलकुल भी आसान नहीं था|

आखिर शिव ही गुरु क्यों? ओर कोई देवता गुरु क्यों नहीं? क्यों भगवान शिव को “शिव ही गुरु क्यों” माना गया है क्यों शिव को देवो के देव महादेव कहा गया हैं|

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विस्तार से समझें

नमः शिवायः कहने के चमत्कारी फायदे:

ख़ुशी उमड़ पड़ती है

मन हल्का हो जाता है

मानसिक बल मिलता है

नकारात्मक विचार नहीं आते

मोक्ष और मुक्ति मिलती है

हर सपने साकार होते हैं

गम कोसो दूर चले जाता है

बिगड़े काम बनते हैं

पीड़ा शांत हो जाती है

जीवन का हर सपना पूरा होता है

शिव कथा

आदि काल से ही मनुष्य अपने आपको कल्याणकारी और विनाशकारी शक्तियों से घिरा पाया है| मनुष्य दोनों ही शक्तियों की पूजा करता रहा है सात्विक और तामसिक दोनों ही रूपों में, लेकिन मनुष्य पर अनचाही घटनाओं के होने के कारण उसे यह सोचने पर विवश कर दिया की क्या मानव जीवन मात्र अंधकार में रहने के लिए बना है? क्या मनुष्य मरने के लिए ही पैदा हुआ है? क्या इससे निकलने का कोई रास्ता नहीं है- मैं कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? कहाँ जाना है? जिंदगी का उद्देश्य क्या है? आदि…  

इन सब प्रश्नों का जवाब  शिव ही गुरु क्यों इस लेख में आपको पता चलेगा| हमारे ऋषि-मुनियों ने गहन चिन्तन-मनन और शोध के आधार पर इस जगत में दो सत्तायें के बारे में बताया है एक नित्य दूसरा अनित्य एक क्षणभंगुर जो अस्थाई दुखात्मक है और दूसरा नित्य है जो आनंद है सुख है हमें अपने आपको  शिव ही गुरु क्यों को समझने में लगाना चाहिए| 

मानव अनित्य के आकर्षण में लिप्त होकर निरंतर दुःख भोगने को विवश है एक बात समझ ले अज्ञान के नाश से ही ज्ञान संभव है और यह ज्ञान कहाँ से मिलेगा यह ज्ञान गुरु से मिलेगा गुरु ही अपने शिष्य के मन में जाग्रति लाने का काम करते है गुरु अपने शिष्य के मन में यह समझ पैदा करते है की वह मूल करता नहीं है अज्ञानतावश मनुष्य स्वयं को मूल कर्ता समझ बैठा है और अपने आप को ही श्रेष्ठ समझता है|

ईसी वजय से वह अच्छे-बुरे दोनों कर्मो के फल को भोगता है मनुष्य भोग की इच्छा के कारण भोगता ही रहता है इसी भोगता यानि कर्म-अकर्म के समझ को गुरु की कृपा से हि समझा जा सकता है

मतलब गुरु ही हमें कर्मो के बंधन से मुक्त करा सकते हैं (शिव चर्चा करके) जब तक हम अपने इच्छाओं का अंत नहीं करते है तब तक हम भोगते है और बंधन में बंधते चले जाते है हमारा अनंत इच्छा तो शिव होना चाहिए परमात्मा होना चाहिए तभी मानव जीवन सफल और पूर्ण सिद्ध माना जायेगा|

हम इस जगत के आकर्षण में फँसते चले जाते है जिसे हम सुख समझ बैठे है वह तो सिर्फ दिखावा है, क्षण भंगुर है, नश्वर है, क्षणिक है, अल्प है| ग्रंथो के मुताबित ऐसा मान्यता है की भारत में 33 करोड़ देवी-देवता है इनमे से भी सबसे श्रेष्ठ देवो के देव महादेव शिव को माना गया है चूँकि शिव का अर्थ ही कल्याण है, सुन्दर है सत्य है| दुनिया की सबसे प्राचीनतम शहर वाराणसी है इसका वर्णन पुराणों में भी मिलता है कहा जाता है भगवान शिव वाराणसी को अपने त्रिशूल के नोक पर बसाया था|

उपनिषदों में महादेव शिव को श्वेताश्वतर कहा गया है इन्हें परमसत्ता के रूप में भी महिमा मंडित किया गया है|

अंग्रेजी में GOD शब्द का अर्थ है G for Generation O for Observation & D for Destroy अर्थात् सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित है ब्रम्हा को श्रृष्टि करता, विष्णु को पालनकर्ता, महेश को संहारकर्ता कहा गया है|

अथर्ववेद में रूद्र को महादेव, शिव, शम्भू कहा गया यजुर्वेदः में शिव को रौद्र और कल्याणकारी दोनों कहा गया उपनिषद में शिव को गुरु और जगतगुरु कहा गया है ऋग्वेद में भी शिव को रूद्र कहा गया है 18 में से 6 पुराणों में शिव का चरम-उत्कर्ष देखने को मिलता है|

अन्य पुराणों में शिव को परमेश्वर और जगतगुरु कहा गया वाल्मीकि रामायण में भी शिव को परमगुरु की उपाधि दी गयी है| यानि शिव का अर्थ सिर्फ कल्याण ही नहीं है इनका असली अर्थ सूक्ष्मता है यानि परमचैतन्य आत्मतत्व है| उन्ही को अलग-अलग धर्मो और सम्प्रदायों में खुदा-अल्लाह, गॉड आदि अन्य शब्दों का प्रयोग किया गया है|

ईश्वर तो अपनी इच्छा से दृश्य और अदृश्य होते है परमात्मा इसी जगत के पाँचों तत्वों के मदत से यह जीव बनाये| फिर चाहे वो हिन्दू, हो मुस्लिम हो, सिख-इसाई कोई भी हो सब उसी के आधीन है इसलिए उपरोक्त वर्णित सरे बातों को ध्यान से समझे तो यह समझ में आता है की शिव ही हम सब के निर्विवाद गुरु है अतः महादेव शिव को गुरु मानना ही सत्य है प्रमाणित है|

कहा गया है|

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ।

शास्त्रों में ‘गु’ का अर्थ ‘अंधकार’ होता है और ‘रू’ का अर्थ है ‘निरोधक’ अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला, अज्ञान को मिटाकर ज्ञान का मार्ग दिखाने वाला ‘गुरु’ कहलाता है। इसलिए गुरु को भगवान से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है।

शिव-ही-गुरु-क्यों

हरेंद्र भैया का शिव चर्चा

भगवान श्री राम सत्य के प्रतीक है कृष्ण प्रेम के प्रतीक है और भगवान शिव करुणा के प्रतीक है जो सब पर करुणा करें वह हैं देवो के देव महादेव शिव इनको गुरु मानने के सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं है|

शिव ही गुरु क्यों इसको अच्छी तरह समझ लेने पर ही हमें ज्ञान प्राप्त हो सकता है सामान्य ज्ञान आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है आध्यात्मिक ज्ञान तो मानव को महामानव बना देता है यह संभव है सिर्फ शिव को गुरु बनाने से, शिव गुरु है शिव आदि गुरु है शिव ही जगत गुरु है शिव गुरु हरिन्द्रानन्द भैया ने भी भगवान शिव को गुरु के रूप में स्वीकार किया और अपना जीवन धन्य किया उसी तरफ आप भी शिव को गुरु रूप में माने और अपने जीवन को सफल करें इस प्रकार शिव गुरु चर्चा बहुत ही आसानी से किया जा सकता है|

शिव आज भी गुरु है

श्री हरिन्द्रानन्द गुरु भैया ने भगवान शिव को गुरु रूप में स्वीकार किया और एक संकल्प लिया की सीखेंगे तो आप ही, ज्ञान प्राप्त करेंगे तो सिर्फ और सिर्फ आपसे ही करेंगे अन्य किसी से नहीं ऐसा मन में शिव के प्रति श्रद्धा और विश्वास रखकर संकल्प करें विश्वास करें यह संकल्प मात्र से ही आपके जीवन की दिशा और दशा दोनों बदलने लगेगी|

आपको करना क्या है आपने शिव को शिष्यता के लिए विचार करें कि ‘हे शिव आप मेरे गुरु हैं मैं आपका शिष्य हूँ मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये इसी भाव से शिव को अपना गुरु माने और यह भाव मन में हमेशा बना रहे|

स्मरण रहे शिव चर्चा में शिव गुरु का चर्चा करें उनका कथा सुने भजन सुने वंदना करें इसे अपने अंतरात्मा से करें ताकि यह एक परिणामपरक, अंतहीन व अविरल आत्मानुभूति है| शिव-शिष्य होने की मनोदशा का यह संवाद- ‘जाग….जाग… महादेव’ (Jaga Jaga Mahadev) के उद्घोष से अन्तरिक्ष को प्रषित किया जाता है|

भगवान शिव को गुरु बनाने की विधि यह एक पूर्ण विज्ञान है इस प्रकार ध्वनि करने से इसके संप्रेषण से प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से जीवात्माओं को सूचित करने के विज्ञान पर आधारित है| Harinder bhaiya ka Charcha का प्रथम सोपान है – साधना, आराधना, उपासना आदि का परिणाम गुरुदया पर आश्रित होता है| आप शिव गुरु हरींद्रानंद का चर्चा करके आप अपने जीवन को सफल बनायें इन्हीं शब्दों के साथ हर हर महादेव|

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शिव चालीसा

                  ।।दोहा।।

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देउ अभय वरदान॥

जय गिरिजापति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नाग फनी के ॥

अंग गौर सिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहै । छवि को देख नाग मुनि मोहे ॥

मैना मातु की हुई दुलारी । वाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नंदी गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा । तबहीं दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ । लव निमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा । सुयश तुम्हारा विदित संसारा ॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भरी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तब गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई । नीलकंठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस्र कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नैन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भय प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सबके घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावैं । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवैं ॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन का मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥

माता-पिता भ्राता सब कोई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु मम संकट भारी ॥

धन निर्धन को देत सदाहीं । जोई कोई जांचें वो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करौं तिहारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन । विघ्न विनाशन मंगल कारन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । नारद शारद शीश नवावैं ॥

नमो नमो जय नमो शिवाये । सुर ब्रह्मादिक पार न पाए ॥
जो यह पाठ करे मन लाई । तापार होत हैं शम्भु सहाई ॥

ऋषियों जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥

पंडित त्रयोदशी को लावै । ध्यान पूर्वक होम करावें ॥
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा । तन नहीं ताके रहे कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावै । शंकर सम्मुख पाठ सुनावै ॥
मन क्रम वचन ध्यान जो लावें | जन्म जन्म के पाप नसावे ॥

अन्त वास शिवपुर में पावे | वो नर सीधो स्वर्ग को जावें ||

कहै अयोध्या आस तुम्हारी | जानि सकल दुःख हरहु हमारी ||

                   ॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही  पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना  पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमंत ॠतु  संवत् चौंसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि  पूर्ण कीन कल्याण ॥

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निष्कर्ष

आपने उपरोक्त बातों को ध्यान से समझा और जाना होगा – क्यों शिव ही गुरु क्यों हैं? जिसको हमने अलग-अलग शिव कथाओं के माध्यम से समझाने का प्रयास किया| हरेंद्र भैया का शिव चर्चा के माध्यम से भी हमने बताने का प्रयास किया उन्होंने शिव को गुरु बनाने की विधि के बारे में विस्तार से बताया साथ ही साथ शिव गुरु के गीत, गाना व् भजन के माध्यम से भी बताने का प्रयास किया गया| उम्मीद है उनके बताएं रास्ते पर चलके कोई भी शिव भक्ति को प्राप्त कर पायेगा – सबका मंगल हो! सबका कल्याण हो!  

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