NASA-ISRO SAR (NISAR)
NASA-ISRO SAR (NISAR) यह मिशन पृथ्वी पर होने वाले हलके बदलाव को भी मापने में सक्षम NISAR
भारत और अमेरिका द्वारा सन 2014 में एक समझौत समझौता हुआ की दुनिया का पहला पृथ्वी अवलोकन उपग्रह को दो अलग-अलग राडार के साथ संयुक्त रूप से विकसित किया जाये और इस पर हस्ताक्षर हुए जिसमे एक उच्च रिज़ॉल्यूशन की छवियों का उत्पादन किया जाये|
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। एस-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) बनाकर उसे नासा अन्तरिक्ष अनुसंधान यूएस एजेंसी द्वारा विकसित किए जा रहे एल-बैंड पेलोड के साथ एकीकरण के लिए नासा को भेज दिया।
यह एक महत्वपूर्ण संयुक्त सहयोग दो देशो भारत और अमेरिका NASA-ISRO SAR (NISAR) जो की पृथ्वी अवलोकन के लिए दोहरी आवृत्ति L और S- बैंड SAR है|
NASA-ISRO
नासा के कथन के अनुसार, NISAR एक ऐसा उपग्रह रडार आवृत्तियों (L & S Band) का उपयोग करने वाला पहला उपग्रह है जो हमारे ग्रह की सतह में एक सेंटीमीटर से भी कम है।
ISRO ने NISAR के सहयोग और प्रक्षेपण के लिए 30 सितंबर 2014 को एक साझेदारी पर हस्ताक्षर किया था अमेरिका के नासा अन्तरिक्ष संगठन से।
मिशन को चेन्नई से लगभग 100 किमी दूर आंध्र प्रदेश के इसरो के श्रीहरिकोटा अंतरिक्षयान से 2022 के January-February के आसपास भेजे जाने का लक्ष्य है।
नासा मिशन के (L-band) एसएआर प्रदान कर रही है जिसका काम है डेटा, जीपीएस रिसीवर, ठोस रिकॉर्डर एवं पेलोड डेटा सबसिस्टम के लिए एक उच्च-दर संचार उपतंत्र तकनीक देना है|
वहीं इस मिशन के लिए इसरो स्पेसक्राफ्ट बस, (S-Band) राडार, लॉन्च वाहन और संबंधित लॉन्च सेवाएं प्रदान कर रहा है, जिसका लक्ष्य उन्नत रडार इमेजिंग का उपयोग करके भूमि की सतह पर होने वाले परिवर्तनों के कारणों और परिणामों का जानना और इसका विश्लेषण करना है।
NISAR उपग्रह के एस-बैंड एसएआर पेलोड को अंतरिक्ष विभाग के सचिव और इसरो के अध्यक्ष के सिवन द्वारा वर्चुअल मोड के माध्यम से 4 मार्च को ही रवाना कर दिया गया था।
इसरो चीफ़ के मुताबित पेलोड को इसरो के अहमदाबाद स्थित स्पेस सेंटर से नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी को भेजा दिया गया है।
इसरो चीफ़ ने कहा, “निसार हिमालय क्षेत्र में बर्फ की चादर ढहने, भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी और भूस्खलन सहित प्राकृतिक खतरों का साधन प्रदान करेगा”|
नासा ने कहा कि मिशन पृथ्वी के बदलते परिस्थिति व् गतिशील सतहों और बर्फ की चादर को मापेगा, बायोमास, प्राकृतिक खतरों, समुद्र के स्तर में वृद्धि और भू-जल के बारे में जानकारी प्रदान करेगा, और अन्य महत्वपूर्ण चीजो का अनुसंधान करेगा।
नासा के अपने वेबसाइट पर कहा गया की NISAR वैश्विक रूप से 12 दिवसीय नियमित के साथ आरोही और अवरोही पासों पर पृथ्वी की ज़मीन और बर्फ से ढकी सतहों का विश्लेषण व् अवलोकन करेगा साथ ही साथ यह मिशन पृथ्वी की प्रक्रियाओं की एक विस्तृत श्रृंखला का निरीक्षण करने की अनुमति भी देता है हिम क्षेत्र जैसे ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों की प्रवाह का दर और भूकंप व् ज्वालामुखियों की गतिशीलता का भी विश्लेषण करेगा।
NISAR एक परिष्कृत सूचना प्रसंस्करण तकनीक का उपयोग करता है जिसे एसएआर के रूप में भी जाना जाता है यह एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियों और चित्रों का उत्पादन करता है। सबसे बड़ी खूबी इस NISAR प्रणाली की यह है की यह एक इतना शक्तिशाली रडार सिस्टम है की बादलों और अंधेरे में प्रवेश करके भी चित्रों को ले सकता है निसार किसी भी मौसम में दिन-रात डेटा एकत्र करने की क्षमता से युक्त है।
इमेजिंग कक्षा की लंबाई के साथ एकत्रित डेटा की पट्टी की चौड़ाई लगभग 150 मील यानि 240 किलोमीटर है यानि पुरे 12 दिनों में यह पूरी पृथ्वी की छवि बना सकता है|
कई लेयेर्स के कक्षाओं के दौरान रडार तस्वीरों को क्रॉपलैंड्स और खतरनाक साइटों में बदलावों को ट्रैक करने साथ ही साथ DATA एककृत कर सकता है साथ ही पहाड़ों में ज्वालामुखी विस्फोटों (लावा) जैसे चल रहे भयंकर संकटों की निगरानी करने की सुविधा देगा। जो चित्र उपग्रह द्वारा प्रदान किया जायेगा और डाटा हमें मिलेगा वह क्षेत्रीय रुझानों को मापने के लिए पर्याप्त होंगे।
NASA-ISRO SAR (NISAR) या नासा के अनुसार जैसा कि हमें मालूम है मिशन वर्षों से जारी है भूमि की सतह के परिवर्तनों के कारणों और परिणामों की बेहतर समझ व् संसाधनों का प्रबंधन करना और वैश्विक जरूरतों को देखते हुए अपनी क्षमता को बढ़ाना। for information you can go to indian space website isro
नासा और इसरों को अपनी-अपनी आवश्यकता के मुताबित नासा को तीन के लिए इसकी आवश्यकता है और वही इसरो को भारत और दक्षिण हिन्द महासागर में निर्दिष्ट लक्षित क्षेत्रों के लिए पांच साल के संचालन की आवश्यकता है|