शिव चर्चा क्यों किया जाता है?
संक्षिप्त परिचय
लोग यह जानना चाहते हैं की शिव चर्चा क्यों किया जाता है? क्यों मनाया जाता है शिव चर्चा? इसी विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे गुरु भैया श्री हरीन्द्रानंद जी के अनुसार क्यों शिव चर्चा किया जाता है इसको जानने का प्रयास करेंगे|
जैसा की हम सभी जानते है शिव देवों के देव महादेव है अर्थात् देवताओं में भी पूज्य है मुझे आशा है अगर आप इस लेख को पूरा पढ़ेंगे तो आप एक निष्कर्ष पर पहुंचेंगे की शिव क्यों महान देवता है और उन्हें क्यों आदिगुरू कहा जाता है इसके पीछे का रहस्य आप जान पाएंगे| क्यों उन्हें गुरुओं के गुरु आदिगुरू, सद्गुरु, प्रथम गुरु आदि नामों से जाना जाता है|
तमाम किताबों और ग्रंथों के अनुसन्धान करने के बाद और शिव चर्चा का अनुभव के आधार पर मैं पुरे विश्वास से यह कह सकता हूँ की यह लेख आपको अच्छा लगेगा और आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा|
विस्तार से समझें
शिव चर्चा होने का श्रेय गुरु भैया श्री हरीन्द्रानंद जी को जाता है उन्ही के कारण शिव चर्चा शरू किया गया इसके पीछे का वजय बहुत ही विचित्र है|
शिव चर्चा क्यों किया जाता है? इसके पीछे एक लम्बी कहानी है| श्री हरीन्द्रानंद जी सहरसा के एक इंटर कॉलेज विद्यालय के विद्यार्थी थे बगल में ही सहरसा जेल के निकट ही स्थित श्मशान में रात को वह साधना करने जाते थे उस स्थान पर माँ तारा का मंदिर भी स्थित था और बगल में एक नदी भी बहती थी| यह बात सन 1965 की है मैं उस मंदिर में साधना करने नियमित रूप से जाया करता था साधना के द्वारन मेरा परिचय वहाँ उपस्थित कुछ लोगों से हुआ था|
मेरी साधना जारी रही और सन 1974 में मैं भोजपुर जिले के आरा जिले में स्थित “गांगी शमशान” स्थान में मैंने भगवान शिव को “गुरु” के रूप में यानि ”शिव गुरु” के रूप में स्वीकार किया| शुरू में मुझे लगा “गुरु” तो शरीरधारी होता है यह मैंने किसे गुरु मान लिया है लेकिन धीरे-धीरे समय बितता गया मेरी यह कल्पना यथार्थ रूप लेने लगी मैंने मात्र चमत्कार सीखने के लिए शिव को गुरु बनाया था और अब चमत्कारी घटना अपने आप घटित होने लगाती है| तो शिव चर्चा क्यों किया जाता है यही से शरू होता है|
क्यों मनाया जाता है शिव चर्चा?
शिव चर्चा क्यों किया जाता है? इस सवाल को आगे बढ़ाते है – सन 1977 में श्री हरीन्द्रानंद जी को बिहार सरकार में नौकरी लगी लेकिन इसके बाद भी उनका आध्यात्मिक सफ़र और साधना जारी रहा और 5 साल के बाद मुझे ऐसा एहसास होने लगा की भगवान शिव मेरे लिए गुरु का काम कर रहे हैं एक गुरु की भांति मेरा मार्ग-दर्शन कर रहें है इसके बाद मेरे निवास स्थान मधेपुरा में अपने कुछ मित्रों से इस विषय पर चर्चा की थोड़े तर्क-वितर्क के बाद उन सारें लोगों ने भगवान शिव को “गुरु” के रूप में स्वीकार कर लिया|
मेरे एक मित्र ने बताया की शिव तो सदियों से हमारे गुरु है फिर मैंने कुछ ग्रंथो को उनके सामने प्रस्तुत कर साक्ष्य और प्रमाण रखा और अपनी बात को स्पस्ट किया लेकिन बचपन से मैं शिव को भगवान ही मानता था मुझे भी विश्वास नहीं था| लेकिन उस बातचीत में बहुत-सी चित्र स्पष्ट और साफ हो गया था| मैंने शिव को “गुरु” के रूप में मानने और अपनाने के लिए मुझे अन्दर से प्रेरणा आई एक उमंग, एक उल्लास मन में उठा बस अपना लिया भगवान शिव को “गुरु के रूप” में|
यहीं से शिव चर्चा का “शिव चर्चा क्यों किया जाता है?” का शुरुआत होता है| फिर “शिव चर्चा” प्रारम्भ कर दिया जाता है और लगातार मेरे द्वारा “शिव चर्चा” किया जाने लगा| धीरे-धीरे लोग जुड़ते गए – जुड़ते गए और देखते ही देखते एक विशाल जन-समुदाय ने शिव को गुरु के रूप में अपना लिया सन 1986 तक मेरे द्वारा “शिव चर्चा” किया जाता रहा फिर लोग इसमें भाग लेने लगे और मास्टर हो गए अब वह भी “शिव चर्चा” खुद से करने लगे|
शिव का पूजा कैसे करें?
जितने भी लोग “शिव चर्चा” करते हैं उनको मेरे द्वारा यह स्पष्ट सलाह था की वह प्रतिदिन कम से कम 21 मिनट तक सिद्धासन या सुखासन में बैठकर अपने मूलाधार चक्र से आज्ञां चक्र फिर सहस्त्र चक्र तक जायें और ‘नमः शिवाय’ का ध्यान करें यहाँ शिव को हजारों श्वेत कमल पर विराजमान होता हुआ देखें मन ही मन ‘नमः शिवाय’ का जाप भी करते रहें फिर वापस उसी क्रम से वापस आयें एक तो यह करना है|
दूसरा आपको हर आते-जाते साँस में ‘नमः शिवाय’ कहना है|
और तीसरा अपने रुद्राक्ष के माला से 108 बार ‘नमः शिवाय’ का जाप करना है| इस तरह से शिव का ध्यान करने से शिव हमें गुरु के रूप में प्राप्त होते हैं|
श्री हरीन्द्रानंदजी के जीवन की अद्भुत घटना
एक दिन हरीन्द्रानंद जी अपने सरकारी काम से पटना जा रहे थे उनके साथ उनका एक मित्र दण्डाधिकारी और उनका ड्राईवर साथ में था रात अधिक होने के कारण उनका मित्र दण्डाधिकारी और उनका ड्राईवर अपने बेगुसराय निवास चले गए और मैं अपने अन्य दण्डाधिकारी मित्र के घर पर रुक गया यह मित्र माँ भगवती का बहुत बड़ा भक्त था| मध्य रात्रि तक उससे पूजा-पाठ पर खूब चर्चा होती रही फिर हम सोने चले गए मेरा मित्र प्रातः ही जग गया और ऊँचे स्वर में दुर्गा-सप्तमी पाठ प्रारम्भ कर दिया जिससे मेरी नींद खुल गयी हालांकि मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन फिर कर भी क्या सकता था तो मैं घर के बाहर बरामदे में कुर्सी पर जाके बैठ गया|
अब जो घटना मेरे साथ घटित हुआ वह अविश्वसनीय और अकल्पिनीय थी परन्तु 100% सत्य था बिलकुल भोर का समय था लोग अपने घरों से निकलना प्रारम्भ कर ही रहे थे एक-दो लोग सड़क पर दिख भी रहे थे मैं बिलकुल शांति से बैठा था तभी अचानक से एक आवाज़ आई –
“तुम जो करते हो, कहते नहीं हो”| यह एक पुरुष का आवाज़ था मुझे डर नहीं लगा लेकिन सहम गया, मैंने उत्तर दिया – “मैं जो करता हूँ, वह कहता हूँ”|
आवाज़ ने तुरंत प्रत्युक्तर दिया – “असत्य बोलते हो”|
मैंने कहा – “मैं असत्य नहीं बोलता”|
आवाज़ ने कहा – “क्या करते हो?”
मैंने कहा – “दूसरों को शिव शिष्य बनाता हूँ”|
प्रश्न आया – “करने को क्या कहते हो?”
मैं चुप हो गया मैं समझ गया मैंने अपनी गलती पकड़ ली मैं चुप हो गया मेरे चुप होने पर फिर आवाज़ आई…
आवाज़ ने फिर कहा “जो करते हो दूसरों को करने को कहो”|
मैंने अपने उग्र स्वाभाव के कारण तुरंत कहा – “क्या महादेव को प्रचार की जरुरत है”|
आवाज़ ने प्रतिउत्तर में तुरन्त एक वाक्य कहा जिसे मैं एक मिनट के बाद भूल गया मैंने उस वाक्य को याद करने का बहुत प्रयास किया किन्तु याद नहीं आया लेकिन उस वाक्य ने मेरी सोई हुई जिंदगी को फिर से जगा दिया जीवन में पहली बार किसी अदृश्य आवाज से साक्षात्कार हुआ|
और अब मुझे एक दिशा मिल गया था फिर शुरू हुआ “शिव-शिष्य” बनाने का प्रक्रिया यह सब मेरे स्वानुभूति है जो मुझे अदृश्य जगत से समय-समय पर प्राप्त होता रहता है| शिव चर्चा क्यों किया जाता है? इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण, सहयोग और साथ साक्षात् शिव गुरु ही दे रहे थे|
शिव शिष्यता के तीन सूत्र क्या है?
श्री हरीन्द्रानंद जी के अनुसार पहला सूत्र अपने गुरु शिव से दया की याचना करना है|
जो परिणाम मुझे तीस सालों में नहीं मिला वो मुझे मात्र शिव से दया मांगने से मिल गया|
दूसरा सूत्र है दूसरों से “शिव चर्चा करवाने को कहना है”|
जिससे सबका कल्याण हो!
और तीसरा सूत्र है ‘नमः शिवाय’ से अपने गुरु यानि शिव को प्रणाम करना चाहिए|
नमः शिवाय और ओम नमः शिवाय में क्या अंतर है
क्यों “नमः शिवाय” बोला जाता है “ॐ नमः शिवाय” के जगह इसके पीछे एक दिलचस्प घटना है सन 1975 में मेरे पिता मुजफ्फरपुर जिले के एक महाविद्यालय के प्राचार्य थे वह अपने सरकारी आवास पर रहते थे मैं भी सामने ही एक कमरा किराये पर लेकर रहता है एक दिन शाम को मैं पान खाके अपने पिता के सरकारी आवास के आंगन में स्थित कुर्सी पर चुप-चाप बैठ गया मेरे आस पास कोई नहीं था केवल एक गाय बंधी हुई थी|
शांत वातावरण था मेरा चित भी बिलकुल शांत था अचानक मेरे अन्दर आने वाली साँस पर “नमः” चढ़ा और निकलने वाली साँस पर “शिवाय” निकला| अकस्मात् मेरे मुंह से बहुत ज़ोर से निकला “रे रे एकरे त खोजत रहनी ह”| मैं पहले कभी “नमः शिवाय” के बारें में कभी नहीं सुना था केवल “ॐ नमः शिवाय” के बारे में सुना था लेकिन उस अनुभव ने मुझे एक रूप और दिशा दिखा दिया था|
शांत वातावरण था मेरा चित भी बिलकुल शांत था अचानक मेरे अन्दर आने वाली साँस पर “नमः” चढ़ा और निकलने वाली साँस पर “शिवाय” निकला| अकस्मात् मेरे मुंह से बहुत ज़ोर से निकला “रे रे एकरे त खोजत रहनी ह”| मैं पहले कभी “नमः शिवाय” के बारें में कभी नहीं सुना था केवल “ॐ नमः शिवाय” के बारे में सुना था लेकिन उस अनुभव ने मुझे एक रूप और दिशा दिखा दिया था|
तो इस प्रकार “शिव गुरु का चर्चा” का चलन चल पढ़ा और लोगों का एक कारवाँ बन गया| पूर्व में बहुत सी घटनाओं के क्रम ने मेरे मन को पूरी तरह बोध करा दिया की भगवान शिव जो की घट-घट में व्याप्त है वे ही सही रूप में “गुरु” है हजारों वर्षों से शाश्त्रों में शिव को गुरु कहा गया इस जगत में जो ज्ञान है वह शिव के ही कारण है देवो के देव महादेव शिव ही है गुरुओं के गुरुओं महागुरु शिव ही है अर्थात् सबसे श्रेष्ठ और सबके पालनहार शिव ही है वह ही सत्यम शिवम् सुन्दरम् हैं|
शिव चर्चा क्यों होता है?
शिव चर्चा होने का सबसे बड़ा कारण है शिव देवों में, गुरुओं में सबसे श्रेष्ठ हैं| जब भी बात आती है पूजा-पाठ की तो “शिव” का नाम आएगा ही वेदों में, शाश्त्रों में, ग्रंथो में, कहानियों में हर जगह उनकी महिमा व्याख्या और उपस्थिथि मिलती ही है| भगवान शिव, देवों के देव महादेव समस्त ज्ञान के श्रोत हैं हर चीज उन्हीं से उत्पन्न हुई है वह ही ज्ञान के सागर है वह ही इस ब्रम्हांड के कण-कण में व्याप्त है उनके बिना इस श्रृष्टि की कल्पना भी करना बेईमानी है भगवान शिव स्वयं ही गुरु है हमें सिर्फ इस बात को समझना और मानना है|
पहले तो हमें खुद समझना है की शिव हमारे “गुरु” है फिर चर्चा के माध्यम से लोगों को भी बताना है की शिव मेरे गुरु हैं आपके भी गुरु हो सकते है उनको अपना गुरु बनाइये जिज्ञासा के तहत सामने वाला इंसान आपसे कई प्रशन पूछेगा क्रमशः उनका उत्तर देते रहने से सामने वाला तो समझने लगता ही है साथ ही साथ हम खुद भी उनके प्रति असीम प्रेम-भक्ति का भाव जाग्रित होता है और उनके प्रति चित्र और भी साफ़ होने लगता है और फिर यहीं से “शिव गुरु चर्चा” का लाभ आपको मिलना प्रारम्भ हो जाता है|
कई बार आपके साथ छोटी-बड़ी घटना होने लगाती है कभी आपका मन करेगा “शिव चर्चा” जारी रखा जाये तो कभी मन करेगा यह मैं क्या कर रहा हूँ? इसको छोड़ दिया जाये मन डगमगाएगा आदि अड़चन आएगी लेकिन आपको स्थिर रहना है अगर हमारे जीवन में कोई मुसीबत आती है तो इसका मतलब है यह हमारे कर्मो का फल है न की गुरु हमें दण्ड दे रहें है वो तो हम सबके पिता है वह क्यों हमारा बुरा चाहेंगे|
आपको यह बात समझा चाहिए की कर्मो का फल तो भोगना ही है “शिव गुरु” को अपनाने के बाद हमारी मुसीबत और समस्या और कम ही होगी साथ ही साथ जीवन में स्थिरता आएगी इसलिए भी हमें शिव को “गुरु” के रूप में स्वीकार करना चाहिए|
तो शिव चर्चा क्यों किया जाता है? इन्हीं कारणों से शिव चर्चा किया जाता है|
शिव चर्चा करने के लाभ और हानि
- शिव चर्चा करने का सबसे बड़ा लाभ यह है की आपका मन इधर-उधर नहीं भागता|
- मन स्थिर और एकाग्र हो जाता है|
- आपके मन को यह पता होता है की आप क्या काम कर रहे है इसलिए हर काम पूरी लगन और मेहनत से करते है और सफलता प्राप्त करते है|
- भगवान के रूप में “शिव गुरु” आपकी हर मनोकामना पूरी करतें है|
- जब आप ध्यान कर रहें होते है तो आपका मन भटक जाता है लेकिन “शिव चर्चा” के द्वारन भी आपका मन शिव पर केंद्रित और एकाग्र रहता है|
- हमारे कष्टों और दुखो का कारण हमारा मन है अतः यह हमारे मन पर विजय प्राप्त करता है|
- शिव चर्चा क्यों किया जाता है? क्योंकि इसके फायदे और लाभ-लाभ है नुकसान का सवाल ही नही उठता|
शिव चर्चा करने के फायदे और नुकसान
- शिव चर्चा के न करने पर घर में परेशानी आती है|
- शिव चर्चा करने का सबसे बड़ा नुकसान हमारा समय का होता है|
- शिव चर्चा में हमारा लगभग 3 घंटे का समय लग ही जाता है|
- दुष्ट प्रवित्ति के लोगों की दुष्टता दूर होती है जो उनके लिए ठीक नहीं है|
- शिव चर्चा के बताए नियम से पूजा नहीं करने पर लाभ कम और नुकसान ज्यादा होता है|
- शिव चर्चा का एक नियम और सूत्र है जिसका पालन करना अनिवार्य है अन्यथा हानि होता है|
- मंत्रोच्चार सही ढंग से होना चाहिए अन्यथा हानि निश्चित है|
- पूजा हमेशा पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की ओर मुख रखकर ही करनी चाहिए|
- पूजा स्थान का वातावरण स्वच्छ, शांत और पवित्र होना चाहिए गन्दे स्थान पर पूजा करने से दरिद्रता आती है|
- शिव चर्चा के लिए शुभ दिन का चयन करें जैसे शिवरात्रि, सावन, पूर्णिमा, नवरात्रि आदि अन्यथा इच्छित फल प्राप्त नहीं होता है|
- विशेष परिस्तिथि में किसी भी दिन, किसी भी रात, किसी भी समय 365×7 दिन किया जा सकता है सबकुछ “शिव गुरु” का ही बनाया हुआ है लेकिन शाश्त्रो को मानना भी जरुरी है|
- और अंत में “शिव चर्चा” करने से सिर्फ और सिर्फ फायदा ही है नुकसान नहीं है|
शिव को गुरु बनाने पर लोगों का अनुभव
शिव चर्चा क्यों किया जाता है? और लोगों के शिव को गुरु बनाने का अनुभव :
- झारखण्ड राज्य के गढ़वा के रहने वाले अंकित का कहना है की शिव को गुरु बनाने से पहले में बहुत विचलित रहता था छोटी-छोटी समस्यओं से विचलित और परेशान हो जाता था शिव को गुरु बनाने के बाद अब मैं बड़ी से बड़ी समस्याओं का डट कर सामना करने में समर्थ हो गया हूँ| न जाने कहाँ से मेरे अन्दर आत्मबल और आत्मसम्मान आ गया अब में लोगों को आगे बढ़ने में मदत करता हूँ और उनको साहस देता हूँ|
- झारखण्ड राज्य के देवघर के लालबाबू का कहना है की परमात्मा हमारे कर्मो के आधार पर हमारी तक़दीर लिख देते है जैसा हम कर्म करते है वैसा फल हमें मिलता है हम बुरे कर्म करते है लेकिन अच्छे फल की आशा करते है| जब परमात्मा हमारे कर्मो के आधार पर हमारी तक़दीर लिख देते हैं तो हम बौखला जाते हैं| जीवन अंधकारमय हो जाता है लेकिन “शिव गुरु” के सानिध्य में जाने से हमारे कर्म फल धीरे-धीरे सुधरने लगते है हम आर्थिक उन्नति के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर चल पढ़े हैं| मेरे साथ भी बिलकुल ऐसा ही हुआ|
- बिहार राज्य के औरंगाबाद के संजयजी का कहना है की शिव को गुरु बनाने से पूर्व में एक चिडचिडा, बदमाश और शराबी लड़का था मेरे घर के लोग और समाज के लोग सभी मेरे इन हरकतों से परेशान रहते थे लेकिन शिव को गुरु मानने फिर बनाने के बाद मेरा वक्त शिव चर्चा में बीतने लगा| शिव चर्चा करने वाले गुरु भैया लोगन के साथ रहते रहते मैं अन्दर और बाहर दोनों तरफ से चमत्कारी रूप से परिवर्तन आने लगा शराब पीना आदि अन्य गन्दी आदत कब का छुट गया अब तो समाज के लोग भी मुझे भला इन्सान कहते है मेरे लिए तो यह ही सबसे बड़ी उपलब्धि है|
निष्कर्ष
जैसा की हम यह जानते हैं की शिव चर्चा का श्रेय गुरु भैया श्री हरीन्द्रानंद जी को जाता है क्योंकि इसके पहले लोग शिवजी को भगवान के रूप में पूजते थे शिव को गुरु के रूप में नहीं पूजते थे इसके साथ उन्होंने ॐ नमः शिवायः में थोड़ा परिवर्तन करके इसको नमः शिवायः कर दिया था क्योंकि उनके मत के अनुसार ॐ में पुरे देवी-देवता आ जाते है उन्हें सिर्फ और सिर्फ शिव का पूजा अर्चना करना है इसलिए उन्होंने ओम को हटा दिया और उन्होंने लोगों को आदिगुरू शिव को “शिव गुरु” के रूप में पूजने की प्रेरणा दी|
Aaj Mai sham 6 baje So rha tha pata nhi kyu puranai vichar samnai aya
jo log kamyab hai un ka khyal pata nhi kyu aya par mai abhi kmyab nhi hu
par mujh pura vishbas hai ki mai kamyab jarur houga Par purani yaad sota hu kab hatagi taki mujhi ache parkar sai need aygi
om नमः शिवाय
ईश्वर आपको कामयाब करें यही कामना है|
हर हर महादेव 🙏🙏🙏
Shiv mere guru hai mai shiv ka sisye hu
Namah shivay 🤗❤️