शिव गुरु कथा और लीला

शिव गुरु कथा और लीला

शिव गुरु कथा और कहानी
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संक्षिप्त परिचय

शिव अपने आपमें पूर्ण है उनमे हर गुण है- अच्छा भी और बुरा भी जगत के सारे गुण भगवान शिव से ही है शिव गुरु कथा और लीला अपने आप में लोगों को जीने की प्रेरणा देती है एक अच्छा जीवन जीने के लिए उनकी लीलाएँ अद्भुत और जीवनोपयोगी है यहाँ हम शिव गुरु की कथा और उनकी लीला को समझेंगे|

भगवान महादेव के बारे में जो जानकारी यहाँ दी जा रही है वह अद्भुत और अनोखी है जिसको पढ़ने के बाद हर कोई इन्सान मंत्र-मुक्त हो जायेगा ऐसा हमारा विश्वास है|

इसलिए इस बेहतरीन रचना को ध्यानपूर्वक पढ़े यह शिव गुरु कथा बहुत ही दुर्लभ है जिनको सुनने मात्र से इन्सान के सारे कष्ट से मुक्ति हो जाती है इसलिए यह रचना अलग-अलग ग्रंथो से लिया गया है और बहुत ही स्पष्ट रूप से काम शब्दों और साधारण भाषा में बतलाया गया है इसलिए उनका आत्मसार करने से जीवन में पूर्णता आती है मन स्थिर और शांत होता है और शिव के प्रति झुकाव बड़ता है यह बात एक रिसर्च से सिद्ध होता है|    

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विस्तार से समझें

कहानियाँ जिसे आप अपने शिव चर्चा में बोल सकते है – यह हैं शिव गुरु की अमर कथायें

श्रृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुई

शिव की लीला

हाँ ऐसा कहना बहुत आसान है लेकिन समझना बहुत ही कठिन की इस जगत के गुरु इस पुरे ब्रम्हाण्ड के रचियता हैं, जगत के मालिक देवाधिदेव महादेव आज स्वयं गुरु का काम करते हैं वैसे देखा जाये तो हर घर में भगवान शिव की पूजा होता ही है लेकिन किसी ने उनको गुरु के रूप में नहीं देखा न ही कभी मन में ख्याल ही आया लेकिन जिन लोगों ने भी भगवान शिव को शिव गुरु कथा और लीला के रूप में पूजा जैसे अघोरी, तांत्रिक या अन्य तो उसका परिणाम उनके सामने है|

दुनिया के प्रारम्भ में जब चारों तरफ केवल अंधकार ही अंधकार था न सूर्य न चन्द्रमा न ग्रह न नक्षत्रों किसी का कुछ अतापता नहीं था न दिन का पता न रात का पता था- हवा, पानी, अग्नि, वायु, पृथ्वी, आकाश कुछ भी नहीं था सब अस्त-व्यस्त अवस्था में था उस समय सदाशिव भोलेनाथ ने इस जगत को व्यवस्थित किया वेदों-पुराणों उपनिषदों का निर्माण किया और इस श्रृष्टि को मनुष्य के जीने लायक बनाया जिससे इस जगत में जीव फल-फूल सके और शिव गुरु कथा और लीला का विज्ञान का भरपूर लाभ ले सके जैसे कंप्यूटर, मोबाइल, हवाई-जहाज, राकेट आदि का भरपूर लाभ ले सके|

शिव गुरु के कहानी

महादेव की लीला

शिव गुरु कथा और लीला” एक बार भगवान शिव के मन में सृष्टि रचना की इच्छा हुई उनके मन में एक विचार आया की क्यों न मैं एक से अनेक हो जाऊं फिर उन्होंने तुरंत अपनी पराशक्ति अम्बिका को प्रकट किया और उनसे कहा की हमें श्रृष्टि की रचना के लिया आदमी और औरत का निर्माण करना होगा फिर जीवजन्तु भी बनाना होगा, पर्वत नदी-नाला बनाना होगा लेकिन उसके पहले हमें एक ऐसे आदमी का निर्माण करना होगा जो श्रृष्टि संचालन का महान कार्य का भार अपने ऊपर उठा सके और हम अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के तरफ ध्यान दे सके|

ऐसा निश्चित कर शक्ति सहित परमेश्वर आदि योगी शिव अपने वाम अंग के दसवें भाग पर अमृत मल दिया जिससे तत्काल एक दिव्य पुरुष प्रकट हुआ उसका सौन्दर्य अद्भुत और अतुलनीय था सद्गुणों से युक्त वह परम शांत और गंभीर था उनका मुखमंडल चार मुखवाला चार भुजावाला शंख, चक्र, गदा और वेद उनके हाथो में सुशोभित हो रहा था रेशमी पीताम्बर युक्त उनकी आभा मंडल प्रकट हो रही थी|

इस जगत में प्रकट होते ही उस दिव्य पुरुष ने सबसे पहले शिव गुरु को परिणाम करके कहा भगवान मेरा नाम और काम सुनिश्चित करिए तब भगवान ने कहा वत्स! यह जगत सर्वत्र व्याप्त होने के कारण तुम्हारा नाम विष्णु होगा और तुम्हारा काम इस श्रृष्टि का पालन करना होगा| इसके प्रश्चात शिव का आदेश प्राप्त कर विष्णु कठोर तपस्या करने चले गए तपस्या के प्रभाव से उनके शरीर से जल धारा बहने लगी इसके पश्चात वह इसमें स्नान किया फिर थककर उसी जल में शयन किया अर्थात् ‘नार’ में शयन करने के कारण ही श्रीविष्णु का नाम “नारायण” पढ़ा|

विश्राम करते हुए नारायण के नाभि से एक कमल प्रकट हुआ उसी समय भगवान शिव ने अपने दाहिने अंग से चतुर्मुख ब्रम्हा को उस कमल के फूल पर प्रकट कर दिया इसके बाद आकाशवाणी हुई तपस्या करने की आपको तपस्या करना है| 12 वर्षो की कठोर तपस्या करने के पश्चात् उनको उनके जन्मदाता का दर्शन हुआ| परमेश्वर शिव भी वहाँ प्रकट हो गए और उनके बीच (शिव की लीला) एक विवाद के रूप में छेड़ दिया|

भगवान शिव उन दोनों के मध्य एक दिव्य अग्निस्तम्भ प्रकट हुआ और कहा की आप दोनों को इस अग्निस्तम्भ के छोर का पता लगाना है बहुत प्रयास के बाद भी विष्णु उसके अंत का पता नहीं लगा सके थककर भगवान विष्णु ने कहा हे महाप्रभो! हम आपके रूप को नहीं जन पायें आप जो भी है हमें दर्शन दीजिये| ब्रम्हाजी ने कहा हमें इसके छोर का पता लग गया है जो की गलत था अग्निस्तम्भ अनन्त है उसका कोई छोर नहीं है न हो सकता है|

यह एक उत्कृष्ट उदहारण है भोलेनाथ की लीला का- इसके उपरांत भगवान शिव वहाँ प्रकट होके दोनों सुरश्रेष्ठगण से कहा में तुम दोनों के ताप से अति प्रसन हूँ उन्होंने ब्रम्हाजी से कहा आप मेरी आज्ञा से इस श्रृष्टि का निर्माण करो और वत्स विष्णु आप इस जगत का पालन करो इसके उपरांत भगवान शिव दोनों को आशीर्वाद प्रदान कर अंतर्धान हो गए इसलिए शिव ही देवो के देव – महादेव है गुरु हैं तो शिव को गुरु बना ले| इसे आप शिव गुरु चर्चा की कहानी या शिव लीला अमृत ग्रंथ भी कह सकते हैं|

शिव गुरु की कहानी

शिव गुरु की कहानी

शिव भक्ति की शक्ति

रमेश नमक एक सदाचारी वैश्य जो की भगवान शिव का अनन्य भक्त था पूजा-पाठ आराधना में ही तल्लीन रहता था शिव गुरु कथा और लीला का एक और उदहारण उस वैश्य की शिव भक्ति से दारुक नमक राक्षस बहुत ही क्रुद्ध रहता था एक दिन की बात है रमेश किसी व्यापारिक काम से कहीं जा रहा था मौका देखकर राक्षस के सिपाही उसको पकड़ लेते हैं और बंदी बनाकर जेल में डाल देते है रमेश जेल में भी शिव शंकर की नित्य आराधना करता था और दूसरों को भी प्रेरित किया करता था|

एक दिन राक्षसराज स्वयं उससे मिलने आ गया आकर देखता है की वैश्य ध्यान में तल्लीन है वो झल्लाते हुए कहा यहाँ कौन सा षड्यंत्र रच रहा है इस पर भी जब उसका समाधी भंग नहीं हुई तो तत्काल राक्षस क्रोध में अपने सिपाहियों को आदेश दिया की इसका वध कर दिया जाये|

दूसरी तरफ वैश्य भगवान शिव से अपने लिए और अन्य बंदियों के लिय प्रार्थना करने लगा उनकी प्रार्थना सुन नाथो के नाथ भोलेनाथ तुरंत वहाँ एक ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए उन्होंने रमेश को दर्शन दिया और अपना पशुपति अस्त प्रदान किया जिससे वैश्य उस राक्षस का वध कर दिया फिर सबको मुक्त कराया और अंत में स्वयं शिव धाम चले गये और भगवान शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम “नागेश्वर” पड़ा|

शिव गुरु लीला

शिव गुरु का चर्चा कहानी

देवताओं में गणेश क्यों श्रेष्ट है?

भगवान शिव गुरु कथा और लीला का एक उत्कृष्ट उदहारण भगवान शंकरजी के दो पुत्र थे एक “गणेश” और दूसरा स्वामी “कार्तिकेय” एक दिन दोनों विवाह के लिए आपस में ही झगड़ने लगे दोनों का ही कहना था की पहले मेरा विवाह किया जाए दोनों को आपस में इस प्रकार लड़ते देख भगवान शंकर और जगदम्बा माँ भवानी ने कहा तुम दोनों में से जो पहले इस पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर हमारे पास आएगा उसी का विवाह पहले किया जायेगा|

माता-पिता के बातों को सुनकर स्वामी कार्तिकेय तो तुरंत तैयार हो गए और पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए दौड़ पड़े| लेकिन समस्या तो गणेशजी के लिए था एक तो उनका शरीर भारी है और दूसरा मोटा भी है और उनका सवारी मुसे(चुहा) जो बहुत ही छोटा सा है उनके लिए विश्व भ्रमण असंभव है ऐसी स्तिथि में गणेशजी के लिए तो यह कार्य बड़ा ही कठिन था उनका शरीर भले ही स्थूल था लेकिन बुद्धि अतंत ही सूक्ष्म और विलक्षण थी|

श्री गणेश अविलम्ब पृथ्वी की परिक्रमा का एक सुगम और सुलभ रास्ता निकला उन्होंने सोचा इस जगत के मालिक तो मेरे माता-पिता है अगर में उनकी प्रतीक्षिणा कर ली तो पुरे पृथ्वी का प्रतीक्षिण पूर्ण हो जायेगा अतः बिना विलंभ किये उन्होंने सामने बैठे अपने माता-पिता का पूजन करने के पश्चात् उनका सात बार फेरा लगाया और प्रणाम करके खड़े हो गए और उन्होंने कहा लीजिये मैंने पूरी पृथ्वी का प्रतीक्षिणा कर ली|

उसके बाद माता-पिता उनके इस कार्य से प्रसन्न हुए और गणेशजी का विवाह रिद्धि-सिद्धि कन्याओं के साथ कर दिया उनके इस विलक्ष्ण प्रतिभा को देखकर सारे देवी-देवताओं ने उन्हें वर और आशीर्वाद दिया इस प्रकार देवताओं में श्री गणेश को सबसे श्रेष्ट माना गया है|

शिव कथा

शिव कथा

पांच वर्ष के गोप बालक पर शिव गुरु की कृपा

उज्जैन राज्य में राजा चंद्रसेन राज्य करते थे वह भगवान शिव के अनन्य भक्त थे| एक दिन राजा भगवान शिव का पूजापाठ पुरे विधि-विधान से कर रहें थे और उसी समय एक पांच वर्ष का नन्हा सा बालक अपनी माँ के साथ उधर से गुजर रहा था राज्य के राजा का शिवपूजन देखकर बालक के मान में जिज्ञासा उठा बालक भी राजा की तरह भगवान का पूजन उसी प्रकार करने का इच्छा जताया अपने घर वापसी के द्वारन उसने कुछ सामग्री जुटाई और रास्ते से एक पत्थर शिवलिंग मानकर घर ले आया|

बालक अपने घर आकर बड़े प्रेम और श्रद्धा से (पत्थर) शिव रूप में स्थापित किया पुष्प चढ़ाया, दीप जलाया फल आदि चन्दन से पुरे श्रद्धापूर्वक उनकी पूजन करने लगा भोजन के समय माता उसको बुलाने आयी लेकिन वह पूजा छोड़कर नहीं उठा इससे माँ क्रोधित होके उस पत्थर को फेंक दिया जिससे उसका दो टुकड़ा हो गया माँ के द्वारा पत्थर फेंके जाने पर बालक बहुत ही दुखी हुआ और अपने भगवान शिव को बुलाने लगा बुलाते-बुलाते वह बेहोश होके उसी स्थान पर गिर गया|

भोलेनाथ जो सब पर दया-करुणा बरसाने वाले परम दयालु शिव अपने प्रति ऐसी प्रेम और भक्ति देखकर अत्यंत प्रसन हुए, खुश हुए भगवान अपने भक्तो पर करुणा और दया के सागर है जैसे ही बालक को होश आया उसकी आंखे खुली उसने अपने सामने एक भव्य शिवलिंग स्वर्णरत्नों से बना मंदिर खड़ा देखा और उस शिवलिंग से प्रकाश निकल रहा है बालक यह देख अविलंभ भगवान आशुतोष की स्तुति करने लग|

जब बालक की माँ को यह समाचार मिला की उनके घर के स्थान पर महल और एक भव्य शिव मंदिर बन गया है जिसको देखकर वह स्तब्ध हो गई और अपने बच्चे को गले लगा लिया और जब राजा चंद्रसेन को इस बात का पता चला तो वह भी बच्चे के घर पहुँचकर बच्चे की भक्ति और शक्ति को सराहा|

फिर वहाँ हनुमानजी प्रकट हुए और कहा (शिव गुरु कथा और लीला) की इस जगत में भगवान शंकर शीघ्र और जल्दी फल देनेवाले देवता हैं वह देवो के देव महादेव है आगे उन्होंने कहा इस बालक की भक्ति से प्रसन होकर उन्होंने एक कुटिया को महल में परिवर्तित कर दिया बड़े-बड़े ऋषि मुनि हजारों वर्षो की घोर तपस्या से जो नहीं प्राप्त कर पाते वह उन्होंने कुछ ही समय में प्रदान कर दिया|

इस गोप बालक की आठवीं पीढ़ी में नन्द गोप का जन्म होगा आगे चलके द्वापर युग में भगवान विष्णु का कृष्ण अवतार होगा और वह तरह-तरह की कलाओं से युक्त होंगे| फिर उस स्थान पर शिव शम्भू की स्तुति करते हुए धर्मात्मा गोप और राजा चंद्रसेन शिवधाम को चले गए|

शिव पुराण

शिव पुराण

महाप्रतापी राक्षस भीम का वध

एक और उत्कृष्ट उदहारण शिव गुरु कथा और लीला की प्राचीनकाल की बात है कामरूप प्रदेश में एक महाप्रतापी राक्षस रहता था वह कुम्भकरण का पुत्र था लेकिन उसने कभी अपने पिता को देखा नहीं था क्यूंकि सीता हरण लड़ाई में भगवान राम द्वारा उसका वध कर दिया गया था उसने अपनी माँ से यह बात सुना था की राम भगवान विष्णु के अवतार थे उसको यह बात हमेशा चुभती थी की विष्णु ने ही मेरे पिता का वध किया है इसलिए वह भगवान विष्णु का वध करने के लिए उसने ब्रम्हाजी का एक हजार वर्ष तक कठोर तपस्या किया और ब्रम्हाजी से लोक विजय होने का वरदान प्राप्त किया|

वर प्राप्त करते ही वह राक्षस जगत के प्राणियों को प्रतारित करने लगा उसने देवलोक पर आक्रमण कर इन्द्र के साथ सरे देवताओं को वहाँ से भगा दिया फिर उसने श्रीहरी को भी युद्ध में पराजित किया फिर वह शिव भक्त सुदक्षिण पर हमला कर सबको बंदी बना लिया जिससे वेद, शाश्त्र, पुराण आदि सब लोप होने लगा और चारों तरफ अधर्म का राज स्थापित होने लगा|

राक्षस के इस कृत्य से ऋषि-मुनि देवता मनुष्य सभी लोग भयभीत थे फिर सभी शिव के शरण में गए उनको सब बात बताई उनकी प्रार्थना सुन भगवान शिव ने सबको आश्वासन दिया की जल्द ही मैं उसका संहार करूँगा आप सभी लोग अपने-अपने स्थान को लौट जाएँ|

दूसरी तरफ राक्षस भीम के बंदीगृह में कैद सुदक्षिण अपने सामने स्थित शिवलिंग का ध्यान करने लगा जिसको देख राक्षस भीम अपने तलवार से उस शिवलिंग पर वर किया लेकिन अभी उस तलवार का स्पर्श उस लिंग से हुआ ही नहीं की उस शिवलिंग के भीतर से साक्षात् भूतनाथ प्रकट हुए और अपने हुंकार मात्र से उस राक्षस को जलाके भस्म कर दिये इस प्रकार भोलेनाथ अपने भक्त के साथ-साथ सबको मुक्त कर सबका कल्याण किये|    

मुक्ति दाता शिव गुरु की महिमा

यह कथा महर्षि गौतम ऋषि और उनकी धर्म पत्नी अहल्या से जुड़ा जो की शिव गुरु कथा और लीला शिव पुराण से लिया गया है|

एक बार आश्रम में रहने वाली ब्राम्हणों की पत्नींयां किसी कारण से माता अहिल्या से नाराज़ हो गई सबने मिलकर श्री गणेश की आराधना कर उनको प्रसन्न कर लिया भगवान गणेश ने ब्राम्हणों से कहा वर मांगों तो सबने एक स्वर में कहा यदि आप हमसे प्रसन्न है तो ऋषि गौतम को इस आश्रम से बहार निकल दें यह बात सुनकर गणेशजी ने ऐसा न करने की सलाह दिया लेकिन सब अपने बात पर अडिग रहें अंततः विवश होकर गणेशजी ने उन लोगों को तथास्तु कह दिया|

अपने भक्तों का मान रखने के लिय एक दुर्बल गाय का रूप धारण कर ऋषि गौतम के खेत में चरने लगे गाय को चरते देख ऋषि गौतम बड़े प्यार से हाथों में घास लेकर उसे हांकने के लिए उसके तरफ गए जैसे ही घास का स्पर्श गाय से हुआ वह वहीं मर गई फिर हाहाकार मचा सरे ऋषिगण उनकी भर्त्सना करने लगे और सरे ऋषियों ने एक स्वर में कहा आपको यह आश्रम छोड़कर जाना होगा गौ हत्या करने वाले के निकट रहने से हमें भी इसका पाप लगेगा अतः आप यह आश्रम छोड़ दें|

महर्षि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ आश्रम छोड़कर दूर जाने का फैसला कर लेते है फिर वह अपना आश्रम अन्य स्थान पर बना लेते हैं लेकिन वहाँ भी उन्हें वेद-पाठ, यज्ञ आदि का कार्य करने का अधिकार उन ब्राम्हणों ने नहीं करने दिया| महर्षि ने बड़े प्यार और आदर भाव से कहा आप लोग मेरे प्रायश्चित का कोई उपाय बताइए तब उन्होंने कहा:

पहला – आपको अपने पाप को (सबको) बताते हुए पृथ्वी का तीन बार परिक्रमा करना होगा|

दूसरा – एक महीने का व्रत करना होगा|

तीसरा – ब्रम्हागिरी का 101 परिक्रमा करने के बाद आपकी शुद्धि होगी या यहाँ गंगाजी को लाके उसमे स्नान करके एक करोड़ शिवलिंग स्थापित करके पुनः गंगाजी में स्नान करना होगा

चौथा – ब्रम्हागिरी का 11 बार परिक्रमा करो| और अंत में

पाँचवाँ – आपको 100 घरों में शिवलिंग स्थापित कर उनको गंगा से स्नान कराएं तब जाके आप इससे उतरीण होंगे|

ब्राम्हणों के बताए सारे कर्मो को पूर्ण करने के बाद ऋषि गौतम अपने पत्नीं के साथ भगवान शिव की आराधना करने लगे भगवान शिव प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा उन्होंने कहा इस पर उन्होंने कहा कृपया आप मुझे गौ हत्या से मुक्त कर दें भगवान ने कहा तुम सदा सर्वथा से निष्पाप हो गौ हत्या तुम्हारे ऊपर छल पूर्वक लगाया गया था फिर भगवान ने कहा मैं ऐसे ब्राम्हणों को दण्ड देना चाहता हूँ इसपर महर्षि गौतम ने कहा नहीं प्रभु उन्हीं के निमित्त से ही तो मुझे आपके दर्शन का फल प्राप्त हुआ है अब आप उन्हें मेरा परम हित समझकर उनपर क्रोध न करें बल्कि उन्हें माफ़ कर दें|

शिव गुरु की कृपा का फल

शिव गुरु की कृपा का फल

यह कथा शिव गुरु कथा और लीला शिव पुराण से लिया गया है|

भारत के दक्षिण में स्थित देवगिरी पर्वत है जहाँ सुधर्मा एक तेजस्वी ब्राह्मण और उनकी पत्नी सुदेहा दोनों सुखपूर्वक रहते थे उनके पास कोई संतान नहीं थी ज्योतिष के मुताबित उनको संतान नहीं हो सकती लेकिन उसे संतान की बहुत इच्छा थी अतः उसने अपनी छोटी बहन का विवाह अपने पति से करवा दिया| पहले तो उन्हें यह बात पसंद नहीं थी लेकिन अपनी पत्नी के जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा|

ब्राह्मण सुधर्मा पत्नी की छोटी बहन घुश्मा को ब्याह कर घर ले आये घुश्मा अत्यंत सीधी-सरल सदाचारिणी और परम शिव भक्त थी रोज 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनका पूजन करती थी भगवान शिव की आशीर्वाद से उसको बहुत सुन्दर और स्वस्थ पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई दोनों ही बहन उस बालक से अत्यंत प्रेम करती और उसका पालन पौषण करती इस तरह दिन बीतता गया|

एक दिन सुदेहा जो पहली पत्नी थी (सुधर्मा का) उसके मान में संदेह पैदा हुआ की छोटी बहन इस घर पर और मेरे पति दोनों पर कब्ज़ा कर चुकी है संतान भी उसी का है अब यह विचार उसके मान में धीरे-धीरे जगह बनाने लगी| समय बीतता गया बालक का शादी हो गया लेकिन सुदेहा का विचार नहीं बदला बल्कि वह और प्रगाढ़ होता गया फिर एक दिन वह घुश्मा के पुत्र को रात में रोते हुए मार डाला फिर उसके शव को उसी तालाब में फेंक दिया जिसमे घुश्मा रोज शिवलिंग पूजन के बाद डाल देती थी|

अगले दिन रोना-पीटना शुरु हो गया कोहराम मच गया सारे लोग शोक में डूब गये लेकिन घुश्मा नित्य की भांति अपना पूजा अर्चना करने लगी हमेशा की भांति पूजन के बाद शिवलिंग को तालाब में प्रवाहित कर जाने लगी तो उसी समय उसका पुत्र तालाब से निकलकर बाहर आता है अपनी माँ का चरण छूता है सदा की भांति जैसे कुछ हुआ ही नहीं|

उसी समय भगवान शिव भी प्रकट होकर घुश्मा से वर मांगने को कहते है वह सुदेहा के इस कृत्य के लिए दण्डित करना चाहते थे और अपना त्रिशूल चलाने ही वाले थे की घुश्मा ने भगवान शिव से प्रार्थना कि की प्रभु! यदि आप मुझपर प्रसन्न है तो मेरी बहन को माफ़ कर दो निश्चित रूप से यह एक घिनौना काम है लकिन आपके कृपा से मुझे मेरा पुत्र वापस मिल गया इसलिए आप उसपर दया करें और उसको माफ़ कर दें|   

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निष्कर्ष

अगर जीवन को सही मायने में जीना है तो शिव की तरह जाओ उनको देखकर हम बहुत कुछ सीख सकते है जीवन में स्थिर रहना सीखो जीवन में समता बनाये रखे जीवन में न्याय और अन्याय को चुनना हो तो न्याय का पक्ष लें अपने जीवन में “शिव गुरु कथा और लीला” लेख से बहुत कुछ सीखा जा सकता है और उसपर अमल किया जा सकता है शिव ही पूर्ण स्थिर है देवता है उनके लीलाओं को रचने का कारण लोगों को प्रेरणा देना है ताकि लोग इन घटनाओं को अपने जीवन में उतारे और अपना जीवन सफल करें|  

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