वाराणसी के घाट
संक्षिप्त परिचय
भारत का सबसे पुराना आध्यात्मिक शहर वाराणसी यानि काशी ही है जो 5000 हजार वर्ष पुराना है जहाँ श्री विशेश्वर जोतिर्लिंग विराजमान है बनारस का अपना खुदका रेलवे स्टेशन है जहाँ पुरे विश्व से लोग दर्शन के लिए आते है|
ऐसा कहा जाता है की प्रलय काल मैं भी इसका लोप नहीं होता है क्योंकि इसको भगवान शिव ने अपने त्रिशूल मैं धारण किये है यही नहीं ‘काशी’ इस स्थान को आदि “शिष्टि स्थान” भी कहा जाता है इस स्थान को “ब्रम्हा स्थान” भी कहा जाता है जहाँ से पुरे संसार की रचना हुई है इस स्थान को सर्वथिर्त्मयी मोक्षदायानी काशी भी कहा जाता है|
ऐसा मन जाता है की यहाँ पर प्राण त्यागने के बाद प्राणी को पूर्ण रूप से मुक्ति प्राप्ति होती है इसका भी इन्तेजाम यहाँ पर है यहाँ पर कई सारे वृद्ध आश्रम बनाये गए है जहाँ पर कोई भी अपनी अंतिम सांस गिन रहा है वो यहाँ आके रह सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है कहा भी गया है विषयासक्त अधर्म्निरत व्यक्ति भी यदि इस क्षेत्र मैं मृत्यु को प्राप्त करता है तो उसे पुनः संसार के बंधन मैं आना नहीं पड़ता है यहाँ गंगा के घाटो पर प्रतिदिन शाम को भव्य आरती का भी आयोजन किया जाता है|
बनारस मैं दर्जोनो प्रसिद्ध घाट है जैसे अस्सी घाट, मणिकणिका घाट, दशाश्वमेध घाट, वाराणसी गंगा घाट, हरिश्चंद्र घाट वाराणसी आदि है|
Sarnath monk image
Varanasi Sarnath image
विस्तार से समझें
बनारस का पुराना नाम
इस पवित्र वाराणसी को काशी नगरी भी कहा जाता है इसकी महिमा अपरम्पार है सदियों से यह नगरी हिन्दुओ के धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है वैसे भी हिन्दू धर्म में इस नगरी की विशेष महत्ता है| यहाँ सैकड़ो लोग मोक्ष प्राप्त करने आते है अपने जीवन का अंतिम साँस यहाँ बिताना चाहते है यहीं पर अंतिम संस्कार हो जिससे उनका मोक्ष का द्वार खुल जाये और इसके लिए बाकायदा यहाँ कमरे भी बने हुए है इसके अलावा बनारस में अन्य देशो से लोग आकर साधू संत बनते है, संस्कृत पढते है, वेदों का अध्यन करते है और स्वाध्याय करते है|
Varanasi ganga ghat photo
Ganga ghat images
वाराणसी में कुल कितने घाट है
बनारस में वैसे तो छोटे बड़े मिलके लगभग 90 घाट है जिसमे अस्सी घाट, मणिकणिका घाट, दशाश्वमेध घाट प्रमुख है दो श्मशान घाट है | ऐसा माना जाता है की गंगा घाट स्नान करता है और यहीं अपना प्राण त्यागता है तो व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है|
वाराणसी की गंगा आरती
वाराणसी की गंगा आरती (शाम का) बहुत ही प्रसिद्ध है प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और कई गणमान्य लोग गंगा आरती में शरीक हो चुके है| इसका ऑनलाइन कार्यक्रम भी चलता है साथ ही बाबा विश्वनाथ जी का ऑनलाइन दर्शन और दान का भी प्रबन्ध किया गया है|
बनारस का नाम वाराणसी कब पड़ा
24 मई 1956 को आधिकारिक तौर पी बनारस का नाम वाराणसी किया गया पौराणिक ग्रंथो में भी वाराणसी नामका जिक्र आता है पुराने ग्रंथो जैसे मत्स्य पुराण, शिव पुराण आदि|
Sarnath temple photos
वाराणसी के प्रमुख मंदिर
वाराणसी (काशी) मैं देखने लायक बहुत से स्थान है जैसे श्री विशेश्वर, कालभैरव (जिने बनारस का कोतवाल भी कहते है) गुहा, गंगा, अन्नपूर्ण माता का स्थान, मनिकरिका घाट, नेपाली मंदिर, दशाश्वमेध, बिन्धुमधाव, केशव आदि तीर्थ स्थान है काशी मैं उत्तर की ओर ओमकारखण्ड, दक्षिण मैं केदारखण्ड और बीच में विश्वेवरखण्ड है जहाँ बाबा विश्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है|
ऐसा माना जाता है की भगवान शिव ने अपने अवतार आद्य शंकराचार्य के कर कमलों द्वारा करवाई थी कालांतर मैं मुगलों द्वारो इसको नष्ट और तोड़-फोड़ किया गया और मंदिर के बगल मैं एक मस्जिद भी बनाया गया बिलकुल अयोध्या की तरह मुगलों ने सिर्फ बरनास, अयोध्या ही नहीं पुरे भारत के मंदिरों को तोड़ने-फोड़ने का काम किया| वाराणसी के हर चौराहे पर एक मंदिर जरुर मिल जायेगा इसलिए इसे है “मंदिरों का शहर” कहा गया है|
वाराणसी के काशी विशेश्वर जोतिर्लिंग के लाइव दर्शन के लिए https://shrikashivishwanath.org/ जायें साथ ही साथ donation भी दें सकते है|
sarnath buddha temple
निष्कर्ष
वाराणसी दुनिया का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल माना गया है यहाँ स्वयं भगवान शिव-पार्वती निवास करते हैं भोलेनाथ ने बनारस को अपने त्रिशूल पर बसाया है यहाँ की महिमा अपने आप में महान है यहाँ देश-दुनिया के साधू-संत ज्ञान प्राप्ति करने आते है शोध करते है व् आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते है|
सारनाथ में भगवान बुद्ध ने पहला उपदेश दिया था गोस्वामी तुलसीदास जी ने काशीवासियों को श्री राम कथा सुनाई थी संत कबीर दास का जन्म इसी काशी नगरी में हुआ था आदि अन्य महान लोगों का जन्म व् आगमन समय-समय पर वाराणसी में होता रहा है|