रत्नों के फायदे और नुकसान

Advantage and disadvantage of gem

रत्नों के फायदे और नुकसान

संक्षिप्त परिचय

यह संसार अजीबोगरीब घटनाओं, प्राकृति उपहारों और खजानों से भरा पड़ा है प्रकृति ने हमें कई उपहार दिए हैं जैसे खनिज-गैस-धातु है आदि लेकिन उनमें से रत्नों का उपहार सबसे महत्वपूर्ण है| इन रत्नों का अपना एक आभा होता है जो किसी को भी अपनी और आकर्षित कर लेता है| यहाँ हम रत्नों के फायदे और नुकसान के बारे में समझेंगे|

रत्न केवल आभूषणों की ही शोभा नहीं बढ़ाते बल्कि ऐसा विश्वास किया जाता है की उनमें देवी शक्ति भी होती है| दूसरी बात इसमें रोग निवारण की भी शक्ति होती है सबसे बड़ी बात यह है की यह रत्न एक अमूल्य पुष्प की तरह होता है जो कभी मुरझाता नहीं है ऋतुओं के परिवर्तनशीलता का भी इनपर कोई प्रभाव नहीं होता|

उदाहरण के लिए प्राणिज रत्न – जैसे हाथी दंत, मोती आदि, खनिजात्मक रत्न – जैसे हीरा, पुखराज, मूंगा आदि, वानस्पतिक रत्न – जैसे तृणमणि आदि|

रत्नों के श्रेष्ठता के पीछे उनके गुण है जैसे उनका सौंदर्य, दुर्लभता और स्थायित्व है इन तीनों गुणों के वजह से ही रत्नों का महत्व है भारत रत्नों के अलावा अपनी आध्यात्मिक सम्पदा के लिए भी विख्यात है ऋषि-मुनि, ब्राह्मण और पंडित हमारी आध्यात्मिक धरोहर है सदियों से भारतीय भूमि ने अपनी गर्भ से अमूल्य उज्जवल रत्न प्रदान किये हैं|

वैदिक काल में रत्नों के प्रयोग का उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन वे धातुओं का प्रयोग किया करते थे दुनिया का सबसे प्राचीन ग्रन्थ “ऋग्वेद” है ऋग्वेद के अनुसार ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों में ‘रत्नों’ को ‘रत्नधातमम’ कहा गया है|

(ॐ अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम् ॥) अथर्ववेद में मणियों का जिक्र अवश्य मिलता है|

हमारे प्राचीन ग्रंथों में जिनमें रामायण-महाभारत है उनमें भी रत्नों का जिक्र है| आचार्य वराहमिहिर ने ‘बृहत्संहिता’ में रत्नों के गुण दोषों का स्पष्ट विवरण दिया गया है| संस्कृत के महाकवि कालिदास व अन्य कवियों ने रत्नों के रूप-वैभव का वर्णन किया है| कौटल्य के ‘अर्थशास्त्र’ के अध्ययन से मालूम होता है की उस समय रत्नों का प्रयोग होता था जनसाधारण को इसका ज्ञान था ऐसा उल्लेख मिलता है|

‘कामसूत्र’ में चौंसठ कलाओं में रत्न-परीक्षा भी एक श्रेष्ठ कला माना गया था| ‘बाइबिल’ में भी रत्नों का स्थान-स्थान पर उल्लेख मिलता है|

जैसे-जैसे इन्सान विकसित होता गया उसको रत्नों की समझ आती गई उसका रत्नों के प्रयोग की चाह बढ़ती गई|

रत्नों के विभाजन में मुख्यतः तीन बातों का ध्यान रखा जाता है पहला पारदर्शक, दूसरा अल्प पारदर्शक, तीसरा अपारदर्शक हैं|

पारदर्शक इनमें से प्रमुख है इनमें भी दो भाग है पहला रंगीन और दूसरा रंगविहीन| रंगविहीन पारदर्शी रत्नों में हीरे का स्थान सर्वोपरि है| रंगीन रत्नों में पारदर्शक जिनका रंग गहरा न हो और न ही अधिक हल्का हो अधिक गहरा रंग होने से वह रत्न अपारदर्शक हो जाता है जैसे नीलम, पुखराज, पन्ना आदि आते हैं|

रत्नों का दूसरा गुण है उसका आसानी से प्राप्त ना होना (दुर्लभता)| मनुष्य की यह प्रकृति है की जो वस्तु आसानी से प्राप्त नहीं होता उसकी और आकर्षित होना मिल जाने पर अति खुश हो जाना|

रत्नों का तीसरा गुण है इनका टिकाऊपन, रत्न रगड़ खाने पर घिसे नहीं न ही खरोच आयें इसी गुण के कारण यह रत्न कहलाते हैं|

रत्नों को वैज्ञानिक दृष्टि कोण से देखें तो जो रत्न बालू के कण से भी ज्यादा कठोर होते हैं वह ज्यादा अच्छा माना जाता है जैसे हीरा, पन्ना, पुखराज आदि|

अगर हम रत्नों के फायदे और नुकसान को बगैर समझे इनका इस्तेमाल करते हैं तो निश्चित रूप से लाभ के जगह हानि होना तय है|

रत्नों की कुछ विशेषता ऐसी है जिनका सम्बन्ध नए ज़माने के फैशन से है जैसे माणिक, हीरा, पन्ना, मोती, पुखराज इनका मांग हमेशा से रहा है और यह जौहरियों के दुकान का शोभा हमेशा से बना रहा है|

रत्न विज्ञान में रंगों का विशेष स्थान रहा है जैसे मूंगा गहरे लाल रंग का होता है अन्य रंग के मूंगे भी पाए जाते हैं लेकिन मंगल लाल रंग का ही होता है ज्योतिष के अनुसार|

रत्न आकर से छोटे होते हैं भार में कम होते हैं इसलिए इनको अंगूठी में धारण किया जाता है बाजू में भी धारण किया जाता है| इसे गले में भी पहना जाता है और यह हमेशा से खासकर महिलाओं के सौंदर्य का प्रतीक रहा है| इस प्रकार हम रत्नों के फायदे और नुकसान के बारे में आगे और विस्तार से जानेंगे…

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विस्तार से जाने

रत्न

प्रकृति ने हम इंसान को रत्न के रूप में मूल्यवान उपहार दिये है| आज इंसान रत्नों को कई तरह से इस्तेमाल करता है रत्नों को अपने आभूषणों में इस्तेमाल करता है उसको सजावट में इस्तेमाल करता है| अपने भाग्य में वृद्धि में इस्तेमाल करता है इसके अलावा रोग निवारण में भी इस्तेमाल किया जाता है|

कुछ रत्न के नाम “रत्न ज्योतिष इन हिंदी/अंग्रेजी में दिया गया”

1-लालड़ी(Spinel), 2-जिरकन(Zircon), 3-पुखराज(Topaz), 4-हरितमणि(Jade), 5-नीलमणि(Amethyst), चन्द्रकान्त(Moonstone), पेरिडाट(Tourmaline) आदि|

यह सब बहुमूल्य पत्थर हैं जो काफी कठोर, सुन्दर और चमकीले होते हैं दुर्लभ होने के कारण बहुत कीमती होते हैं| इन पत्थरों को परखने और इनकी दक्षता सिर्फ जौहरी ही कर सकता है|

मूल्यवान होने का साथ-साथ इनकी तीन श्रेणियाँ और भी हैं 1-संश्लिस्ट और 2-कृत्रिम रत्न और 3-युग्म| इन्हें प्रकृति से प्राप्त नहीं किया जाता है इन्हें मिश्रण द्वारा बनाया जाता है ताकि यह देखने में बिलकुल असली जैसा लगे लेकिन यह असली नहीं होते| जब यह बन के तैयार हो जाते है तो उसका संघटन यानि कम्पोजीशन बिलकुल असल जैसा लगता है यह दो तरह से बनते हैं पहला इनको प्लास्टिक से बनाया जाता है दूसरे यह कांच के द्वारा बनाया जाता है जो बिलकुल असली जैसा देखने में लगते हैं| युग्म रत्न को दो पत्थरों को मिलकर बनाया जाता है|

वैज्ञानिकों द्वारा भी इस तरह के रत्न बनाये जाते हैं मोपसन नामक वैज्ञानिक द्वारा लैब में हीरा बनाने में सफलता प्राप्त हुआ| उन्होंने लोहे और शुद्ध कार्बन को मिलकर 4000 डिग्री तक गर्म किया गया उसके बाद उसमें एक दम से उसको पानी डालकर ठंडा किया गया तो पानी के ऊपर कार्बन हीरे का रूप ले लिया| इस तरह भी हीरे तैयार किये जाने लगे|

इसी प्रकार माणिक्य, पुखराज और नीलम को भी बनाया जाता है लैब में| सन 1904 में एक मशहूर केमिस्ट वर्निल द्वारा अपनी प्रयोगशाला में संश्लिष्ट प्रक्रिया से इनको तैयार किया था|

लेकिन जौहरी प्रकृति द्वारा निर्मित रत्न और मनुष्यों द्वारा निर्मित रत्नों को पहचान लेते हैं इस तरह रत्नों के फायदे और नुकसान को समझा जा सकता है|

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रत्नों को कैसे पहचाने

  • संश्लिष्ट रत्न रासायनिक पदार्थ के जर्रे वक्रता के बने होते हैं प्रकृति रत्नों में जर्रे छोटे-बड़े होते हैं आकर टेड़े-मेढे होते हैं|
  • असली रत्नों में धारियां टेढ़े-मेढे होते हैं लेकिन संश्लिष्ट में धारियाँ सीधे होते हैं|
  • संश्लिष्ट रत्नों में हवा (बुलबुले) दिखाई देते है लेकिन प्राकृतिक रत्नों में पहली बात तो बुलबुले नहीं होते हैं अगर होते भी है तो क्रम से बिलकुल भी नहीं होते हैं इधर-उधर होते हैं|
  • यदि प्राकृतिक रत्न और संश्लिष्ट दोनों को मेथिलिन आयोडाइड के घोल में डाला जाये तो प्रकृति रत्न डूब जायेंगे लेकिन वहीं संश्लिष्ट (कृतिम) रत्न तैरने लगेंगे|
  • संश्लिष्ट रत्नों का चमक कांच की तरह होती है लेकिन प्रकृति रत्नों का चमक अलग ढंग का होता है|
  • संश्लिष्ट रत्नों में बनावटी कांच का चमक ज्यादा होता है|
  • संश्लिष्ट रत्नों का आकर लगभग एक समान होते हैं लेकिन प्रकृति रत्नों का आकर भिन्न-भिन्न प्रकार और बड़े छोटे होते हैं आकर निश्चित नहीं होता है|
  • कृषिम रत्नों का चमक कुछ समय के उपरांत कम होने लगता है लेकिन प्रकृति रत्नों का चमक हमेशा बना रहता है|
  • कृषिम रत्न को छूने से चिकने होते हैं लेकिन प्रकृति रत्नों में कोई चिकनाई नहीं होती है|

रत्नों को समझकर कुंडली के हिसाब से कौन सा रत्न पहने इसके बारे में जानकारी जुटाकर रत्नों के फायदे और नुकसान को समझा जा सकता है|

84 Gems

रत्नों को कैसे पहचाने “Jyotish ratna” रत्नों के नाम और फोटो

रत्न सूची “चौरासी रत्न और उनके उपरत्न”

  • हीरा (Diamond) – यह सफ़ेद, पीला, गुलाबी, लाल तथा काले रंग का होता है|
  • मूंगा (Coral) – इसका रंग लाल या सिन्दुरिया होता है अन्य रंग का भी होता है|
  • पन्ना (Emerald) – यह हरे रंग का होता है|
  • नीलम (Sapphire) – नीलम मोर के गर्दन के रंग का होता है जो नीला तो होता है साथ ही उसमें कई रंगों का मिश्रण भी होता है|
  • मोती (Pearl) – मोती लाल, सफ़ेद, पीले तथा काले रंग के होते है|
  • माणिक्य (Ruby) – यह गहरे लाल रंग का होता है| यह एक बहुमूल्य रत्न है|
  • लहसुनिया (Cat’s) – यह रत्न बिल्ली की आँखों के समान चमकदार होता है|
  • पुखराज (White Yellow Saphire) – यह मुख्यतः पीला रंग का होता है इनके ओर भी रंग होते है जैसे नीला और सफ़ेद भी होता है|
  • उपल (Opal) – यह सब रंगों में मिलते है और इस पर सब रंगों का असर भी पड़ता है|
  • पुरमाली (Tourmaline) – यह एक नरम पत्थर होता है और कई रंगों में होता है|
  • नरम (Spinel Ruby) – यह रत्न लाल, जर्दपन तथा श्यामपन लिये होता है|
  • मरगज (Jade) – यह बिना पानी का, हरे रंग का होता है|
  • गोमेद (Zircon) – यह लाल रंग का होता है इसके अलावा यह कई रंग होते है| 
  • रोमनी – यह गहरे लाल रंग का श्यामलता लिए होते है|
  • अहवा – यह गुलाबी रंग का होता है और उस पर बड़े-बड़े छींटे जैसा होता है|
  • बेरूज (Aquamarine) – इसका रंग हरा होता है|
  • लालड़ी – यह गुलाब के फूल के रंग के समान है|
  • फिरोजा (Turquoise) – आसमानी नीला रंग का है|
  • जबरजद्द (Peridat) – यह हलके रंग का होता है|
  • सुनेहला (Citrine) – सोने के रंग के समान हल्का होता है|
  • कटैला (Amethyst) – यह बैंगनी रंग नीले रंग में धुएं जैसा होता है|
  • सितारा (Gold Stone) – गेरुआ रंग का जिसपर सोने के छींटे पड़े होते हैं|
  • तामड़ा (Garnet) – काले रंग में लाली लिए होता है|
  • मकनातीस (Load Stone) – इसे चकमक पत्थर कहते हैं|
  • मरियस – यह सफ़ेद रंग का होता है और बहुत चिकना होते है|
  • सिन्दुरिया – यह गुलाबी और सफ़ेद रंग का होता है|
  • नीली – यह नीलम जाति का है और थोड़ा नरम होता है|
  • आबरी – यह काले रंग का पत्थर होता है|
  • बासी – यह हलके हरे रंग का नरम पत्थर है दूसरी बात यह चिकना होता है|
  • जजेमानी – यह भूरे रंग का होता है यह सुलेमानी प्रजाति का होता है|
  • लाजवर्त (Lazis Lazuli) – यह नीले रंग का नरम पत्थर होता है|
  • मकड़ा – यह हल्का काला और ऊपर से मकड़ी का जाला होता है|
  • लूधया – मजीठ के समान लाल रंग का होता है|
  • फिटक – सफटिक (Rock Crystal) – इसे सफेद बिल्लौर कहते हैं|
  • गौदन्ता (Moon Stone) – गाय के दांत के समान थोड़ा जर्दपन लिए होता है|
  • धुलेना (Smoky Quartz) – सोने के रंग का कुछ धुआंपान लिए होता है|
  • पितौमिया (Blood Stone) – यह हरे रंग का पत्थर होता है जिसपर लाल रंग के बिंदी होते है|
  • दुर्वेनजक – कच्चे धान के समान होता है इस पर पॉलिश अच्छी होती है|
  • सुलेमानी (Onyx) – काले और हलके भूरे रंग का पत्थर होता है और इसपर सफ़ेद रंग का डोरा होता है|
  • सावोर – वह हरे रंग का होता है और इसपर भूरे रंग का डोरा होता है|
  • तुरवासा – यह बहुत नरम गुलाबी पत्थर होता है|
  • आलेमानी – यह पत्थर सुलेमानी जाति का है इसका रंग भूरा होता है|
  • पारस – इसको लोहे से स्पर्श करने से लोहा भी सोना बन जाता है यह बहुत ही दुर्लभ पत्थर है|
  • कुदूरत – यह काले रंग का होता है और उसके ऊपर सफ़ेद जर्द दाग होता है|
  • संगसन (White Jode) – यह सफ़ेद अंगूरी रंग का होता है|
  • चित्ती – यह काले रंग का होता है उसके ऊपर सोने का डोरा होता है|
  • लारू – जात मारवर की तरह होता है|
  • मारवर – यह बांस जैसे रंग का होता है इसके अलावा सफ़ेद और लाल रंग का होता है|
  • दाना फिरंग (Kidney Stone) – इसका रंग पिस्टे के समान होता है|
  • कसौटी – इस पत्थर को सोने की परीक्षा के लिए उपयोग में लिया जाता है|
  • दारचना – यह दारचना के समान होता है|
  • हकीक कल बहार – यह जल में उत्पन्न होता है और उसकी माला बनाई जाती है|
  • सीजरी – यह सफ़ेद रंग का होता है इस पर काले रंग के वृक्ष का रूप बना होता है|
  • मुबेनज्फ – यह सफेद रंग का होता है इसमें बाल के रंग के समान रंगदार रेखा होती है|
  • हालन – यह गुलाबी रंग का होता है और हिलाने पर इसका रंग भी हिलता है|
  • कहरुवा (Amzer) – यह लाल रंग का होता है जिससे माला बनता है|
  • संगबसरी – आँखों के लिए सुरमा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है|
  • झना – मटिया इसमें पानी देने से झड जाता है|
  • दांतला – पीलापन लिए जूना शंख के समान|
  • संगीया – शंख के समान सफेद होता है इसके घड़ी के लाकेट बनते हैं|
  • कामला – रंग हरा सफेदी लिए हुए|
  • गुदड़ी – यह कई प्रकार के होते है और उसे फकीर लोग पहनते हैं|
  • हरीद – काला और भूरापन लिए हुए होता है यह वजन में भारी होता है|
  • गौरी – सब रंग का होता है और यह सफेद सूत होता है|
  • सिफरी – रंग आसमानी हरापन लिए होता है|
  • हवास – यह हरे रंग का कुछ सुनहला-सा होता है|
  • सींगली – यह माणिक्य जाति का रत्न होता है और यह लाल रंग का होता है|
  • ठेडी – यह काले रंग का होता है|
  • हकीक (Agalic) – यह लगभग सभी रंगों में मिलता है|
  • सीया – यह काले रंग का होता है इससे मूर्तियाँ बनाई जाती है|
  • सीमरक – यह लाल रंग का पीलापन लिए हुआ होता है|
  • मूसा – सफेद मटिया रंग का होता है इससे प्याले बनते है|
  • डूर – कत्थे के रंग का होता है|
  • खारा – काला हरापन लिए होता है तथा इसके खरल बनाये जाते है|
  • सीर खड़ी (Gypsum) – रंग मिट्टी के समान होता है और इसका खिलौना बनता है|
  • पारा जहर – यह सफेद बांस जैसा होता है घाव या विषैले घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता है|
  • पनघन – यह काले रंग का कुछ हरापन लिए हुए होता है| इससे खिलौना बनता है|
  • अमलिया – थोड़ा कालापन लिए गुलाबी रंग का होता है|
  • लिलियर – यह काले रंग पर सफेद छीटे होते है|
  • सोहन मक्खी – यह सफेद मिट्टी के समान होता है यह मूत्र रोग में लाभ पहुँचता है|
  • सुरमा – यह काले रंग का होता है|
  • हजरते ऊद – यह काले रंग का होता है और इसका प्रयोग आंख की औषधि में किया जाता है|
  • रवात – यह लाल-नीले रंग का होता है इसका प्रयोग रात्रि में ज्वर आने पर कमर में बांधने से लाभ होता है|
  • जहर मोहरा – कुछ हरापन लिए हुए सफ़ेद रंग का होता है|
ज्योतिष और रत्न

विद्वानों के अनुसार अगर कोई इन रत्नों को महीनों और सालों पहने रहे अपने हाथों में या धारण करें अपने शरीर पर तो इसके चमत्कारी लाभ दिखने लगते हैं रत्नों का असर धीरे-धीरे होता है शर्त यह है की यह(रत्न) हमारे शरीर से छूते रहने चाहिए यह तो पहली बात है|

दूसरी बात यह है की रत्नों को अपने राशि के अनुसार ही धारण करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि स्वाभाविक रूप से होगी इसमें कोई दो राय नहीं है इसलिए रत्नों का चयन किसी अनुभवी ज्योतिषाचार्य के सलाह से ही करना चाहिए|

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जो ग्रह हमें प्रभावित करते हैं उसी ग्रह से सम्बंधित रत्न पहनने चाहिए ऊपर आसमान में जो चाँद-सूरज या अन्य ग्रह दिखते हैं उनका हमारे जीवन पर गहरा असर पड़ता है और हर ग्रह का अलग-अलग प्रभाव होता है कम ज्यादा के रूप में इसलिए मात्रा का विशेष ध्यान रखना चाहिए|

तीसरी बात रत्नों को मंत्रोचारित करके किसी शुभ मूर्त में ही धारण करना चाहिए इससे लाभ में वृद्धि होती है और जीवन सुखमय हो जाता है| इस तरह रत्नों के फायदे और नुकसान को जाने|

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राशि के अनुसार कौन सा रत्न पहनना चाहिए

 

कौन सा राशि किसको पहनना चाहिए

उपाय

1

मिथुन राशि वालों को कौन सा रत्न पहनना चाहिए   

इस राशि का स्वामी बुध है यह लोग बेहद मिलनसार होते हैं इनको मधुर वाणी और अच्‍छी नौकरी प्राप्‍त होती है। अतः ऐसे लोगों को पन्‍ना धारण करना चाहिए।

2

कर्क राशि वालों को कौन सा रत्न पहनना चाहिए

इस राशि का स्वामी चन्द्रमा है जो मानसिक परेशानियाँ लाता है इसलिए चन्द्रमा को मजबूत करने के लिए कर्क राशि के जातक को मोती धारण करना चाहिए|

3

सिंह राशि वालों को कौन सा रत्न पहनना चाहिए

इस राशि का स्वामी सूर्यदेव है अपने मान-सम्मान में कमी आना मेहनत करने के बाद भी फल नहीं मिलता इसलिए कुंडली में सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक धारण करना चाहिए|

4

मेष राशि वालों को कौन सा रत्न पहनना चाहिए

इस राशि का स्वामी मंगल है जो साहस, पराक्रम और अपने शौर्य का प्रतीक है इसलिए इन्हें मूंगा धारण करना चाहिए|

5

वृषभ राशि वालों को कौन सा रत्न पहनना चाहिए

इस राशि का स्वामी शुक्र ग्रह है जो धन, वैभव, ऐश्वर्य, सुख के कारक माने गए है इसलिए इन्हें हीरा या ओपल धारण करना चाहिए|

6

कन्या राशि वालों को कौन सा रत्न पहनना चाहिए

इस राशि का स्वामी बुध है बुध को प्रसन्न करने के लिए आपको पन्ना या पुखराज को धारण करना चाहिए|

7

तुला राशि वालों को कौन सा रत्न पहनना चाहिए

इस राशि का स्वामी शुक्र है दांपत्य जीवन में सुख शांति, मजबूत रिश्ते के लिए हीरा को धारण करना चाहिए|

8

वृश्चिक राशि वालों को कौन सा रत्न पहनना चाहिए

इस राशि का स्वामी मंगल है जो मंगल के अशुभ कार्यों को, बिगड़े कार्यों को टूटे दांपत्य को बेहतर करने के लिए मूंगा धारण करना चाहिए|

9

धनु राशि वालों को कौन सा रत्न पहनना चाहिए

इस राशि का स्वामी गुरु बृहस्पति है यह हमें करियर में सफलता प्राप्ति के लिए गुरु को मजबूत करना चाहिए|

10

मकर राशि वालों को कौन सा रत्न पहनना चाहिए

इस राशि का स्वामी शनिदेव है ऐसे लोग बेहद मेहनती होते हैं अगर मेहनत का उचित फल न मिले तो इन्हें नीलम धारण करना चाहिए|

11

धन प्राप्ति के लिए कौन सा रत्न धारण करें

रत्न शास्त्र के अनुसार “जेड स्टोन” को धारण करने से धन की प्राप्ति होती है पन्ना भी धारण कर सकते हैं|   

12

नौकरी के लिए रत्न

रत्न शास्त्र के अनुसार “माणिक्य” को धारण करना चाहिए इसके अलावा व्यापार में सफलता के लिए कौन सा रत्न धारण करें? इसके लिए पन्ना पहनना चाहिए|

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ग्रहों और रत्नों से सम्बन्ध

ग्रहों तथा रत्नों में भी सम्बन्ध होता है|

 

ग्रह

रत्न

अंग्रेजी नाम

1

सूर्य

माणिक्य

Ruby

2

चन्द्र

मोती

Pearl

3

मंगल

मूंगा

Coral

4

बुध

पन्ना

Emerald

5

बृहस्पति

पुखराज

Topaz

6

शुक्र

हीरा

Diamond

7

शनि

नीलम

Sapphire

8

राहु

गोमेद

Hessonite

9

केतु

लहसुनिया

Cat’s eye

 

रत्न

संस्कृत नाम

अंग्रेजी नाम

फारसी नाम

1

मोती

मुक्तक

पर्ल

मोतिया

2

मूंगा

विद्रक प्रवाल

कोरल

मिरजान

3

पन्ना

मरकत

एमराल्ड

जमुरन

4

हीरा

वज्रमणि

डायमण्ड

अलिमास

5

गोमेद

गोमेदक

झिरकन

भेदक

6

नीलम

इन्द्रनील

सेफायर

नीला बिल

7

माणिक

पद्मराग

रूबी

याकूत

8

पुखराज

पुष्पराग

टोपाज

जर्द याकूत

9

लहसुनिया

वैदुर्य

कैट्स आई

स्टोन वैदुर्य

 

लग्न राशि

स्वामी ग्रह

अनुकूल रत्न

1

मेष

मंगल

मूंगा

2

वृष

शुक्र

हीरा

3

मिथुन

बुद्ध

पन्ना

4

कर्क

चन्द्र

मोती

5

सिंह

सूर्य

माणिक्य

6

कन्या

बुध

पन्ना

7

तुला

शुक्र

हीरा

8

वृश्चिक

मंगल

मूंगा

9

धनु

गुरु

पुखराज

10

मकर

शनि

लोहा, नीलम

11

कुम्भ

शनि

लोहा, नीलम

12

मीन

गुरु

पुखराज

 

अंग्रेजी महीना

सम्बंधित नाम

1

जनवरी

मूंगा

2

फरवरी

एमेथिस्ट

3

मार्च

एकवामरिन

4

अप्रैल

हीरा

5

मई

पन्ना

6

जून

सुलेमान

7

जुलाई

माणिक

8

अगस्त

गोमेद

9

सितम्बर

नीलम

10

अक्तूबर

चन्द्रकान्त

11

नवम्बर

पुखराज

12

दिसम्बर

वैदूर्यमणि

 

ग्रह

धातु

1

सूर्य

स्वर्ण

2

चन्द्रमा

चांदी

3

मंगल

स्वर्ण

4

बुध

स्वर्ण, कांसा

5

बृहस्पति

चांदी

6

शुक्र

चांदी

7

शनि

लोहा, सीसा

8

राहु

पंच धातु

9

केतु

पंच धातु

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रत्न और चिकित्सा

रत्नों का मुख्य रूप से दो कारणों से उपयोग किया जाता है पहला सुन्दर होने का कारण उसका प्रयोग गहने के रूप में किया जाता है दूसरा इन रत्नों का इस्तेमाल चिकित्सा के रूप में भी किया जाता है खासकर मानसिक बीमारियों के रूप में इनका इस्तेमाल किया जाता है बेशक इस पद्धति में रोग धीरे-धीरे ठीक होते हैं और इसमें कई महीने लग जाते हैं लेकिन रोग पूर्णता पूरे जड़ से ठीक हो जाते हैं| यही “रत्न चिकित्सा” की खासियत है|

यह पूरा ब्रम्हाण्ड रहस्यों और अलौकिक चमत्कारों से भरा पड़ा है|   

रात चिकित्सा की दृष्टि ………………

ब्रह्मांड में व्याप्त सात रंग के नाम निम्न है:

लाल, नीला, पीला, हरा, आसमानी, बैंगनी और नारंगी

“रत्न चिकित्सा” में रंग और रत्न

 

रंग

रत्न

1

लाल

माणिक्य

2

पीला

मूंगा

3

हरा

पन्ना

4

बैगनी

नीलम

5

नीला

हीरा

6

नारंगी

मोती

7

आसमानी

पुखराज

 

Name

नाम

V

Violet

बैगनी

I

Indigo

नीला

B

Blue

आसमानी

G

Green

हरा

Y

Yellow

पीला

O

Orange

नारंगी

R

Red

लाल

प्रकाश, रत्न और रोग

रोग एवं उससे सम्बंधित प्रकाश के बारे में जानकारी निम्न है:

  • (नीलम-शनि-बैगनी) – नपुंसकता लिंग, लिंग रोग, गैस्टिक, यानि, गुदा, विषपान, वायु रोग, मूर्छा, हिस्टीरिया आदि में लाभ होता है|
  • (हरा-नीला-शुक्र) – मुख रोग, गला, वीर्य, गले के रोग, जलघात आदि|
  • (लाल-सूर्य-माणिक्य) – अंधता, ह्रदय रोग और हार्टअटैक आदि में लाभ होता है|
  • (हरा-पन्ना-बुध) – यह चर्मरोग, हकलाना, वाणी से सम्बंधित रोग में लाभ|
  • (पुखराज-आसमानी-बृहस्पति) – यह मोटापा कम करना, शरीर को सुडौल बनने में सहायक, जिगर की बीमारी, चर्बी, पैर के रोग, स्तन रोग आदि|
  • (मूंगा-मंगल-पीला) – यह सिर रोग, सिर में दर्द, अधकपारी, पागलपन में दौरा पड़ना, हड्डियों में भी सहायक होना|
  • (मोती-चन्द्रमा-नारंगी) – यह खून की कमी, खून का खराब होना, आँखों की समस्या जैसे- रतौंधी, मोतिबिंध, सीने का दर्द, कमजोरी आदि|

जन्म की तारीख के अनुसार रत्न का चुनाव

आज इंसान अपने जन्म तारीख के अनुसार रत्नों को धारण करके अपने जीवन को बदल सकता है तारीख के मुताबिक रत्नों को धारण करने को
बर्थ स्टोन” कहा जाता है| यह उनके लिए लाभदायक है जिनको उनका जन्म कुंडली नहीं मालूम है ऐसे लोग अपनी तारीख के मुताबिक रत्नों को धारण कर लाभ ले सकते है| इस तरह रत्नों के फायदे और नुकसान का लाभ ले सकते है|

जन्म और नाम की तारीख के अनुसार रत्न

 

जन्म तारीख

सूर्य की राशि

उपयुक्त रत्न

1

15 अप्रैल से 14 मई तक

मेष

मूंगा

2

15 मई से 14 जून तक

वृषभ

हीरा

3

15 जून से 14 जुलाई तक

मिथुन

पन्ना

4

15 जुलाई से 14 अगस्त तक

कर्क

मोती

5

15 अगस्त से 14 सितम्बर तक

सिंह

माणिक्य

6

15 सितम्बर से 14 अक्तूबर तक

कन्या

पन्ना

7

15 अक्तूबर से 14 नवम्बर तक

तुला

हीरा

8

15 नवम्बर 14 दिसम्बर तक

वृश्चिक

मूंगा

9

15 दिसम्बर 14 जनवरी तक

धनु

पुखराज

10

15 जनवरी से 14 फरवरी तक

मकर

नीलम

11

15 फरवरी से 14 मार्च तक

कुम्भ

गोमेद

12

15 मार्च से 14 अप्रैल तक

मीन

लहसुनिया

जन्मांक के अनुसार सौभाग्य देने वाले रत्न (नामांक कैसे निकाले)

 

जन्म तारीख

जन्मांक

अंक का स्वामी ग्रह

उपयुक्त रत्न

1

10, 19, 28

1

सूर्य

माणिक्य

2

11, 20, 29

2

चन्द्रमा

मोती

3

12, 21, 30

3

बृहस्पति

पुखराज

4

13, 22, 31

4

युरेनस

गोमेद

5

14, 23

5

बुध

पन्ना

6

15, 24

6

शुक्र

हीरा

7

16, 25

7

नेपचून

लहसुनिया

8

17, 26

8

शनि

नीलम

9

18, 27

9

मंगल

मूंगा

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रत्नों से औषधि कैसे बनाया जाता है?

रत्नों में अद्भुत गुण होते हैं और यह अमूल्य होते है रत्नों से औषधि बनाने का तरीका बहुत ही आसान है| सबसे पहले रत्नों को अच्छी तरह साफ करें फिर उसको एक शीशे के ड्रम में डाले (जो अल्कोहल से भरा है) उस ड्रम को अच्छे से बंद करें (हवा का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है) उसके बाद उस पानी को 7 दिन और 7 रात तक अँधेरे कमरे में रखें|

फिर अँधेरे से निकल कर उसको पांच मिनट तक लगातार हिलाया जाता है (रत्न निकालने के बाद) उसके बाद इन जल को दुग्ध के शर्करा की छोटी-छोटी गोलियों में रखा जाता है ताकि जल इन गोलियों में पूरी तरह सोख ले फिर इन गोलियों को अलग-अलग रंग के शीशे में डालकर रख लिया जाता है और अलग-अलग रोगों में प्रयोग किया जाता है|

इन रत्न औषधि से अलग-अलग प्रकार की बीमारियाँ दूर की जाती है| इससे पुराने से पुराने असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं इन सब प्रक्रिया में महीनों और सालों लग जाते है लेकिन लाभ जरूर होता है|

एक दूसरा तरीका है जिसे भस्म कहा जाता है इसके अंतर्गत रत्नों का भस्म बनाया जाता है इसका प्रक्रिया थोड़ा जटिल जरूर है लेकिन यह प्रक्रिया उपरोक्त प्रक्रिया से ज्यादा कारगर है| इस तरह रत्नों के फायदे और नुकसान को अलग-अलग तरीकों से समझकर लाभ उठाया जा सकता है|   

रत्नों और प्रतिनिधि

  • चन्द्रमा – चन्द्रमा एक महत्वपूर्ण ग्रह है यह हमारी भावनाओं से जुड़ा है इसके अलावा यह स्मरणशक्ति, मनोविकास से जुड़ा है| यह फेफड़े, छाती, यश, मन, बुद्धि, कवि का भाव, निंदा करना, कीर्ति, ललित कलाओं के प्रति प्रेम आदि को प्रभावित करता है| इसके अलावा यह ग्रह औषधि-दवाइयों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है व्यापारिक क्षेत्र जैसे अनाज से सम्बंधित आयात-निर्यात, व्यापार, नमक, पानी, सिंचाई से सम्बंधित चीजें देखने को मिलता है|
  • शुक्र – इस ग्रह को राक्षसों के गुरु के रूप में देखा जाता है यह ग्रह सौंदर्य, पुष्प, इत्र का कारक है| यह रत्न मुख्य रूप से यौवन, वशीकरण, प्रेमी, विवाह, मधुरवाणी, कामेच्छा, हंसी-मजाक, स्त्री, प्रेम, शराब, संतान, व्यापार, जुआ आदि का करक शुक्र ग्रह है|
  • गुरु – यह ग्रह देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है यह नौकरी, व्यवसाय, न्यायाधीश, लेखक, प्रकाशक, काव्य, राज्य-कृपा आदि महत्वपूर्ण पद का कारक यह गुरु ग्रह है| यह ग्रह शिक्षा, तीर्थयात्री, धार्मिकता, वेद-पठान, यंत्र-तंत्र, स्वर्ण, ज्ञान, पुत्र, शरीर, भक्ति, उच्च अधिकारी, सचिव, सहायता की भावना, सादा जीवन उच्च विचार ही यह ग्रह का मुख्य उद्देश्य है|
  • सूर्य – यह ग्रह नेतृत्त्व का प्रतिक है यह दवाइयां, हीरे-मोती जवाहरात, कपड़े का व्यापार, ऊनि वस्त्र, इंजीनियर, विद्युत, ज्ञान, आत्मा, आरोग्य, मन की शुद्धता, ह्रदय, पीठ, नाडी, हड्डियाँ यह सब सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है|
  • बुध – बुध बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है यह ग्रह हस्त-रेखा ज्ञान, ज्योतिष कार्य, विद्या-विद्यार्थी, परीक्षा, खेल-कूद, वायुरोग, भुत-प्रेत बाधाएं, सिरदर्द, पागलपन, मस्तिष्क रोग, अभिमान, श्वास रोग, दमा, शेयर बाजार, बैंक-बीमा, वाणिज्य कार्य, कम्पनियाँ आदि यह सब बुध को दर्शाते हैं|
  • शनि – यह ग्रह चोरी, ठगी, जेबकतरा, जहर देना, झगड़ा, जहर से मृत्यु, तलाक, नपुंसकता, व्यापार करना जैसे भगंदर, पत्थरों का व्यापार, लोहे का व्यापार, तेल का व्यापार, वकालत, काला रंग, योगी, सन्यासी, दार्शनिक, मशीनरी व्यापार, पेट्रोल, चमड़े का व्यापार आदि|
  • राहु – राहु का सम्बन्ध यात्रा से हैं दूसरों को गालियाँ देने से हैं, भ्रम-अफवाह फ़ैलाने से हैं, प्रचार करने से हैं, लॉटरी, आकस्मिक लाभ, जमीन के नीचे गड़े धन से है, गबन-भ्रष्टाचार, कमीशन, जादूगर, भूत, गांजा, विधानसभा, लोकसभा, जिला परिषद्, तार्किक स्वाभाव, नींद न आना आदि सब राहु से जुड़े कार्य हैं|
  • केतु – राहु और केतु दोनों को भाई माना जाता है दोनों का सम्बन्ध नकारात्मक कार्यों से जुड़ा है जैसे स्मगलिंग, चोरी, बलात्कार, अनैतिकता, बेतुका बात करना, चरम रोग, दुबलापन, कठिन कार्य, समुद्री कार्य, जासूसी करके जानकारी प्राप्त करना|

मित्र और शत्रु रत्न को कैसे जाने

रत्नों को धारण करने से पहले यह ध्यान रखना चाहिए की दो रत्नों का विपरीत प्रभाव तो नहीं है क्योंकि रत्नों में भी मतभेद होते हैं परस्पर तालमेल न होने के कारण इनके विरोधाभास भी होते है इसलिए रत्न पहनने से पहले इनके गुण-दोष को समझ लेना चाहिए यह भी जान लेना चाहिए की कौन सा रत्न किसका शत्रु है तथा किसका मित्र है| इनको जाने बगैर अगर इनको धारण किया गया तो लाभ के विपरीत नुकसान ज्यादा होगा| इस तरह रत्नों के फायदे और नुकसान को अलग-अलग तरीकों से समझे और मित्र रत्न और शत्रु रत्नों को जाने|

निम्नलिखित चार्ट से जाने मित्र और शत्रु रत्नों को:

रत्न

मित्र

शत्रु

सम (न मित्र, न शत्रु)

हीरा

पन्ना, नीलम

माणिक्य, मोती

मूंगा, पुखराज

मोती

माणिक्य, पन्ना

 

हीरा, मूंगा, पुखराज, नीलम

मूंगा

माणिक्य, मोती, पुखराज

पन्ना

हीरा, नीलम

पन्ना

माणिक्य, हीरा

मोती

मूंगा, पुखराज

नीलम

पन्ना, हीरा

माणिक्य, मोती, मूंगा

नीलम, पुखराज

माणिक्य

मोती, मूंगा, पुखराज

हीरा, नीलम

पन्ना

गोमेद

पन्ना, नीलम, हीरा

माणिक्य, मोती, मूंगा

पुखराज

लहसुनिया

पन्ना, नीलम, हीरा

माणिक्य, मोती, मूंगा

पुखराज

रत्नों को जाने

आइए जानते है रत्नों के फायदे और नुकसान को गहराई से…  

रत्न और ज्योतिष यह दोनों एक दूसरे के पूरक है| रत्नों का उपयोग खासकर ज्योतिष के लिए ही प्रयोग किया जाता है रत्न हमारे जीवन को बेहतर बनाने में सहायक होते हैं इसीलिए इनको धारण किया जाता है| हम पर रत्नों का प्रभाव उन ग्रहों के रंगों के कारण होते है| विद्वानों के गहन अध्ययन, प्रयोग और अनुभव के कारण जो जानकारी सामने आया है वह आश्चर्यचकित करनेवाला है|

विद्वानों के गहन अध्ययन और दिव्यदृष्टि के कारण ही हमें रत्नों के बारे में अभूतपूर्व जानकारी प्राप्त हो सका है| उनके अनुसार ग्रहों के रंगों और उनके प्रकाश की किरणों और उनकी कंपन क्षमता से मनुष्यों के जीवन में बेहतर जीवन जीया जा सकता है| विद्वानों ने यह जाना की किस ग्रह की कौन सा रंग किस रोग का उपचार कर सकता है किन समस्याओं का समाधान कर सकता है यह जाना|

विद्वान यह जानते थे की हमारा शरीर कई रंगों के मिश्रण का मेल है जब इनमें कमी आती है तो शरीर में असंतुलन आता है और रोगों को दावत देते है दूसरे शब्दों में यह मानव शरीर में उन किरणों की आवश्कतानुसार हानि और लाभ पहुंचता है| इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही एक कुशल ज्योतिषाचार्य जन्म-कुंडली का विश्लेषण करके उपयुक्त रत्नों को धारण करने की सलाह देता है|

एक ज्योतिषाचार्य यह तय करता है की कौन सा रत्न उपयुक्त है और कौन सा नहीं लेकिन इस बात पर विद्वानों का अलग-अलग मत और विचार है जैसे:

  • कुछ विद्वानों के अनुसार रत्न को समय के अनुसार धारण करना चाहिए|
  • अशुभ फलदायक रत्नों को धारण नहीं करना चाहिए|
  • शुभ रत्नों को रत्ती के हिसाब से धारण करना चाहिए|
  • कुंडली के अनुसार ही रत्नों को पहनना चाहिए न की उसकी सुन्दरता के मुताबित|
  • अशुभ ग्रह फलदाता ग्रह के रत्न को धारण नहीं करना चाहिए इससे लाभ की अपेक्षा हानि ही होती है|
  • जो ग्रह शुभ है केवल उसी ग्रह का रत्नों को धारण करना चाहिए|
  • एक उदाहरण के अनुसार सूर्य और उसका सहयोगी चन्द्र, बृहस्पति, और मंगल है दूसरे समुदाय में सूर्यपुत्र शनि और उनके सहयोगी जैसे बुध, शुक्र, राहु, केतु हैं इन दोनों ही मामलों में जिस समुदाय का ग्रह लग्न का स्वामी हो उसके सहयोगी ग्रहों के रत्नों को मात्रा और आवश्यकतानुसार धारण करना चाहिए| यहाँ समझने की बात यह है की विपक्षी दल के रत्न उस कुंडली के लिए हानिप्रद होते हैं|
  • जो भी ग्रह किसी महादशा का स्वामी हो तो ऐसे स्थिति में उस ग्रह का रत्न धारण करना चाहिए| चाहे वह अशुभ ही क्यों न हो|
  • जन्म कुंडली देखने से पहले उसके अशुभ ग्रह जरूर देख लेने चाहिए|
  • अशुभ ग्रहों के रत्न जातक को धारण नहीं करने चाहिए|
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कौन सा रत्न किसको धारण करना चाहिए

1 – माणिक्य     

2 – मोती           

3 – मूंगा           

4 – पन्ना             

5 – पुखराज       

6 – हीरा           

7 – नीलम         

8 – गोमेद         

9 – लहसुनिया  

1 – माणिक्य

माणिक्य

माणिक्य रत्न सूर्य का रत्न है जिसके जन्म-कुंडली में सूर्य शुभ भाव में हो उसके प्रभाव को और अधिक बढ़ने के लिए माणिक्य रत्न को धारण करना चाहिए इससे लाभ होता है| 

माणिक्य की जातियाँ

1-    पद्मराग

2-    करबिन्द

3-    निलगंधी

4-    सौगन्धिक

5-    जामुनिया

माणिक्य उत्पत्ति स्थान

1-    बर्मा

2-    श्रीलंका

3-    अफगानिस्तान

4-    भारत

5-    चीन

माणिक्य की परीक्षा

1)    गुनगुने गर्म दूध में माणिक्य को डालने से दूध लाल दिखाई दे तो वह माणिक्य उत्तम माना जाता है|

2)    प्रातःकाल माणिक्य को सूर्य के सामने और दर्पण के सामने रखने पर यदि छाया के जगह लाल रंग दिखाई दें तो यह माणिक्य असली माना जाता है|

3)    माणिक्य को पत्थर पर घिसने से पत्थर न घिसे बल्कि माणिक्य में और चमक आ जाये तो वह शुद्ध माणिक्य माना जाता है|

4)    माणिक्य पारदर्शक होना चाहिए|

5)    अन्धकार में माणिक्य को रखे और उस पर रोशनी डालने पर अगर उसमें से रोशनी निकले तो वह श्रेष्ठ माणिक्य माना गया है| 

माणिक्य धारण करने के नियम

1)    यदि सूर्य 3, 6, 11 भाव में हो तो माणिक्य पहनना शुभ होता है|

2)    यदि जन्म कुंडली में सूर्य लग्न हो तो इसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए इसको धारण करना चाहिए|

3)    अष्ठम स्थान में हो तथा अष्टमेश हो तो माणिक्य पहनना चाहिए|

4)    सप्तम भाव में सूर्य के रहने से भी इसको धारण किया जाता है|

5)    जन्म कुंडली में 5,9 भाव में रहने से भी इसको धारण करना शुभ माना जाता है|

 

माणिक्य के दोष (रत्नों के फायदे और नुकसान)

  • यह बात ध्यान रखना चाहिए की दोषयुक्त माणिक्य को ही धारण करना चाहिए|
  • जिस माणिक्य पर आड़ी-तिरक्षी लकीरे हो मकड़ी की जाले हो तो वह दोषयुक्त है|
  • अगर माणिक्य में दो रंग दिखाई दें तो वह अशुद्ध माना जाता है|
  • जिस माणिक्य में चमक नहीं होता है वह दोषयुक्त होता है|
  • अगर माणिक्य का रंग दूध के समान हो या उसके ऊपर दूध के समान छींटे हो तो वह दोषयुक्त होता है|
  • अगर माणिक्य पर त्रिकोण, त्रिभुज या त्रिशूल का निशान हो अशुद्ध माना जाता है|
  • अगर माणिक्य पर धुआँ जैसा रंग दिखाई दें तो वह अशुद्ध माना जाता है|
  • सफ़ेद माणिक्य का उपयोग नहीं करना चाहिए|
  • मटमैला माणिक्य का भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए|
  • टूटा और गड्ढा माणिक्य को कभी न पहने|
  • अगर माणिक्य खुरदुरा हो या बालू के समान किरकिरा हो तो वह माणिक्य अशुद्ध होता है|
  • साफ सुथरे दोषमुक्त माणिक्य को ही धारण करना चाहिए

माणिक्य कि पहचान

  • माणिक्य सिर्फ एक रंग का हो तो वह शुद्ध माना जाता है|
  • हर प्रकार के दाग-धब्बे से मुक्त शुद्ध माणिक्य सही होता है|
  • माणिक्य में किसी प्रकार के बुलबुले का निशान नहीं होने चाहिए|
  • असली माणिक्य को आँखों पर रखने पर ठंडक महसूस होता है|
  • शीशे का माणिक्य शुद्ध नहीं नकली होता है|
  • असली माणिक्य का वजन नकली से ज्यादा होता है|
  • असली माणिक्य टेड़े-मेढे होते है उसमें सफाई नहीं होती है|
  • माणिक्य और इमीटेशन में परत होता है और उसमें भेद होता है|
  • माणिक्य की परत सीधी होती है और इमीटेशन अर्धव्लायाकर होती है|

माणिक्य कि मणि

माणिक्य की मणि को लालड़ी कहते है जो इन्सान माणिक्य को न पहन सके उसे लालड़ी अवश्य पहनना चाहिए यह दस रंग के होते हैं जो निम्न है:

मोतिया, गेरुआ, अनार, जमे हुए फूल, गुलाब, निर्मल, गुलाबी, सिंदूरी, कनेर, कबूतर के रंग के समान होते है इन्हें धारण कर सकते हैं| इसके परीक्षण के लिए आप शुद्ध मणि या लालड़ी को साफ़ रूई के ऊपर रखे तेज धूप में रखे कुछ समय के बाद उसमें आग लग जाएगी अगर वह शुद्ध होगा तो, इस प्रकार हम इनका परीक्षण कर सकते हैं|

माणिक्य से रोगों को कैसे ठीक करें

  • घाव के ऊपर माणिक्य को 3-4 बार घुमाने से घाव सड़ता नहीं है साथ ही साथ उसमें टिटनस होने का खतरा नहीं रहता|
  • खुनी दस्त आने पर माणिक्य के जल का सेवन करना चाहिए आराम मिलता है|
  • पीलिया रोग में माणिक्य का सेवन किया जाता है|
  • नपुंसकता में माणिक्य भस्म का प्रयोग रामबाण औषधि है|
  • स्मरण-शक्ति में माणिक्य का इस्तेमाल लाभप्रद होता है|
  • ऐसा माना जाता है की रोगी के सिहराने माणिक्य रखा जाये तो उसकी रश्मियों से कीटाणु स्वतः नष्ट हो जाते हैं|
  • क्षयरोग, हर्निया, दुर्बलता और रक्त प्रवाह जैसे बीमारी में अगर माणिक्य की गोलियां दी जाएँ तो इससे अत्यंत लाभ मिलता है|

2 – मोती

मोती

मोती रत्न चन्द्रमा का रत्न है जिसके जन्म-कुंडली में चन्द्रमा शुभ भाव में हो उसके प्रभाव को और अधिक बढ़ने के लिए मोती को धारण करना चाहिए इससे लाभ होता है| 

मोती की कटाई अन्य रत्नों की तरह नहीं होता है इसको सुन्दर बनाने के लिए इसके ऊपर पॉलिश की जाती है मोतियों का इस्तेमाल सबसे ज्यादा आभूषणों में किया जाता है जैसे अंगूठी में, चूड़ियों में, इयर रिंग आदि नेकलेस में पिरोये जाते हैं इससे मोती बहुत सुन्दर लगते हैं|

मोती अन्य रत्नों की अपेक्षा कोमल होते हैं इसमें आसानी से खरोच आ जाते है आसानी से टूट भी जाते है|     

मोती को किन-किन नामों से जाना जाता है

  • अंग्रेजी – Pearl
  • लेटिन – मार्गरिटा
  • पंजाबी – मोती
  • उर्दू, फारसी – मुखारिद
  • संस्कृत – मुक्ता, नीरज, तारका, सौम्या, तारा, शशिरत्न, मौक्तिक, जीवरत्न, इन्दुरत्न, शशिप्रिय, बिंदुफल, शुक्तिमणि, रसाईभव आदि|

मोती कहाँ पाया जाता है

सर्वश्रेष्ठ मोती जिदाह और कोशिट के किनारे पायें जाते हैं, गैम्बियर द्वीप के मोती ताम्र वर्ण के होते है|

ईरान के फारस की खाड़ी, श्रीलंका के मनार की खाड़ी, ऑस्ट्रेलिया के समुद्रीय तट, वेनिज्युला जापान, लाल सागर, पनामा, पेसिफिक सागर के द्वीपों पर मोती पाया जाता है| लेकिन फारस की खाड़ी में पाए जाने वाले मोती अत्यंत कीमती होते हैं|

श्रीलंका में मोती का काम सरकार के आधीन किया जाता है यहाँ के मोती छोटे दाने के होते है लेकिन उतम प्रजाति के होते हैं|   

ऑस्ट्रेलिया में मोती का काम आधुनिक तरीकों से किया जाता है|

जापान के वेनिज्युला के मोती काले रंग के होते हैं कुछ मोती श्याम रंग लिए होते हैं और हरे रंग की आभा होती है यह बहुत ही दुर्लभ श्रेणी की मोती है जो अत्यंत दुर्लभ और मूल्यवान होते है|

दक्षिण भारत में मद्रास के तमिलनाडु में भी मोती पाया जाता है यह बसरे से मिलता-जुलता है|

दरभंगा का मोती बंगाल की खाड़ी से मिलता-जुलता है यहाँ के मोती गोमती नदी में भी पाया जाता है|

मोती धारण करने के नियम (रत्नों के फायदे और नुकसान)

  • चन्द्रमा के पंचमेश होकर 12 भाव में हो तभी मोती को धारण करना शुभ माना गया है|
  • अगर दूसरे भाव का स्वामी चन्द्रमा हो (कुंडली के कहीं भी) तो मोती पहनना श्रेयस्कर माना गया है|
  • यदि चन्द्रमा राहु, केतु, मंगल के ऊपर दृष्टि हो मोती पहनना लाभदायक होता है|
  • जिसकी कुंडली में चन्द्र वृश्चिक राशि का हो और कैसे भी स्थिति में हो उसको मोती अवश्य पहनना चाहिए|
  • चन्द्रमा नीच का हो वक्री राहु के साथ हो या चन्द्रमा की अन्तर दशा में हो तो ऐसे स्थिति में मोती जरूर पहने|

मोती का जाँच कैसे करें

मोती खरीदते समय पूरी सतर्कता रखना चाहिए| अशुद्ध और खंडित मोती को पहनने से लाभ के जगह हानि ज्यादा होता है इसलिए इनको खरीदने से पहले अच्छी तरह जाँच-परख कर लेना चाहिए| इसके लिए कुछ दोष है जिनको जरूर देख लेना चाहिए जो निम्न है:

जरठ, मत्स्याक्ष, शुक्ति लग्न, कृश, आवृत, धब्बा, छाल, लहर, त्रास, गरज मोती, ताम्र, चोंच, सुन्न, काग, लव, मसा, अतिरिक्त भी है|  

मोती के गुण

दुनिया में हर प्रकार के मोतिया पायें जाते है जिनकी चमक असली मोतिया के समान इन्द्र जैसा इन्द्रधनुषीय होती है|

मोतियों के गुण कुछ इस प्रकार है:

सुतार मोती, निर्मल मोती, सुछा, मुक्तक, स्निग्ध मोती, अस्फुटिक मुक्तक, धन मौक्तिक

मोतियों की परीक्षा कैसे करें (रत्नों के फायदे और नुकसान)

  • चावल के छिलकों में मोतियों को रखकर खूब रगड़ें फिर उसको गौमूत्र से धो दे, जो नकली होंगे वह टूट जायेंगे और जो असली होगा वह और निखर जायेगा|
  • असली मोती आसानी से टूट जाते हैं लेकिन नकली मोती आसानी से नहीं टूटते|
  • शीशे के गिलास में मोती को डाल दें फिर ध्यान से देखें अगर पानी से हल्की-हल्की किरनें दिखाई दे तो वह असली माना गया है|
  • सबसे आसन तरीका है मोती को गाय के मूत्र को मिट्टी के बर्तन में डाल दें (पूरी रात के लिए) सुबह देखें अगर नकली होगा तो टूट जायेगा और असली होगा तो और साफ़ हो जायेगा|

मोती किसे पहनना चाहिए

  • यदि जन्म कुंडली में सूर्य और चन्द्रमा एक साथ हों तो मोती को पहन सकते हैं|
  • यदि राहु-केतु और मंगल की दृष्टि चन्द्रमा पर हो तो मोती अवश्य पहने ताकि संकट को टाला जा सके|
  • यदि कुंडली का स्वामी चन्द्र हो तो मोती अवश्य पहने|
  • यदि चन्द्रमा अपनी राशि के 6,8,12वें स्थान में हो तो मोती पहने|
  • यदि चन्द्रमा पंचमेश से बारहवें भाव में हो तो मोती पहनना चाहिए|
  • यदि चन्द्रमा नीच, वक्री राहु के साथ या अष्टम भाव में हो तो मोती पहने|
  • कुंडली में चन्द्रमा वृश्चिक राशि का हो और कहीं पर भी स्थित हो तो उसे मोती पहनना चाहिए|
  • अगर चन्द्रमा की उपस्थिति केंद्र में हो तो इसको कमजोर माना गया है ऐसे में मोती अवश्य पहने|

चन्द्र यत्न का पूजा (प्रयोग) कैसे करें

अगर जन्म कुंडली में चन्द्र ज्यादा प्रबल ना हो तो ऐसे स्थिति में आपको चन्द्र यंत्र बनवाना चाहिए तदोपरान्त उसकी विधिवत षोडशोपचार पूजा करवाना चाहिए किसी जानकर (पंडित से) ताकि घर में लक्ष्मी स्थाई रूप से बनी रहे इसके अलावा जातक का भयंकर से भयंकर रोग भी ठीक हो जाते हैं और घर में सुख-शांति और सम्पति आती है| एक बात का और ध्यान रखना चाहिए कि इस यंत्र को हर साल नियमित रूप से प्राणप्रतिष्ठ करवाते रहना चाहिए|

3 – मूंगा

मूंगा

मूंगा रत्न मंगल का रत्न है जिसके जन्म-कुंडली में मंगल शुभ भाव का स्वामी हो तो ऐसे जातक को मोती को धारण करना चाहिए इससे लाभ होता है|

मोती को किन-किन नामों से जाना जाता है (रत्नों के फायदे और नुकसान)

  • अंग्रेजी – Coral, Red Coral
  • हिंदी – मूँगा
  • रत्न मराठी – पोले
  • संस्कृत – लतामणि
  • फारसी – मिरजाना, मिरंगा
  • चीनी – सहुहोची
  • बर्मा – टाडा
  • गुजराती – परबाला, परबाली
  • बंगला – मूंगा, पला
  • तेलुगु – प्रवालक

मूंगा कहाँ पाया जाता है (मूंगा उत्पत्ति स्थान)

मूंगा समुद्र के अन्दर पाया जाता है मूंगा को रत्नों के श्रेणी में  मोती से काफी नीचा स्थान मिला है| मूंगा भूमध्यसागर में और उसके आसपास के द्वीपों में बहुतायत में पाया जाता है और मूंगा समुद्र के अन्दर 80 फैदम की गहराई में पाया जाता है|

कुछ स्थान जहाँ मूंगा पाया जाता है जैसे एल्जीरिया, ट्यूनीसिया, कारसिका, सारडीनिया, सिसली, स्पेन, जापानी द्वीपों आदि जगहों में पाया जाता है| मूंगा मुख्यता अर्द्धपारदर्शक होता है|

मूंगा की जाति

1 – ब्राह्मण मूंगा

2 – क्षत्रिय मूंगा

3 – वैश्य मूंगा

4 – शूद्र मूंगा

मूंगे के गुण

1 – मूंगा कोणदार होते है|

2 – मूंगा चमकदार होते है|

3 – मूंगा यह चिकना होते है|

4 – मूंगा में फिसलन होते है|

5 – मूंगा भारी होते है|

मूंगे के दोष

1 – अगर मूंगे में गड्ढा हो तो यह प्राण घातक होता है|

2 – काले धब्बेवाले मूंगे पहनने से स्वास्थ्य हानि होता है|

3 – जिस मूंगे में सफ़ेद दाग हो वह लक्ष्मी का नाश करता है|

4 – कटा और दरार मूंगा से पुत्र की हानि होती है|

5 – अगर मूंगा दो या दो से अधिक रंगों का हो इससे सम्पति हानि होती है|

मूंगे का उपरत्न

मूंगा एक कीमती रत्न है जो व्यक्ति मूंगा नहीं खरीद सकते उनको मूंगे की मणि धारण करने चाहिए जिसे विद्रुम मणि या संघ मुंगी कहते है| मूंगे के जड़ को मुंगी कहते है इसको भी इस्तेमाल किया जाता है यह मूंगा से थोड़ा सस्ता होता है और यह मूंगे से थोड़ा हल्का भी होता है लेकिन असर में कोई कमी नहीं|

मूंगे का प्रयोग कैसे करे

मूंगा को मंगलवार के दिन धारण किया जाता है क्योंकि इसको हनुमानजी से जुड़ा जाता है किसी भी शुभ दिन हो मंगलवार का दिन हो इसको धारण किया जा सकता है| मूंगे को सोने की अंगूठी में जड़ के पहना जा सकता है|

प्रातः 11 बजे भौम यज्ञ करें मंत्रौचरण के साथ पूजा अर्चना करना चाहिए तांबे का त्रिकोण बनवाकर उस पर मंगल यंत्र बनवाना चाहिए| मंत्र “ॐ भौम भौमाय नमः” का जाप करना चाहिए और आहुतियाँ भी देनी चाहिए|

4 – पन्ना

पन्ना

पन्ना रत्न बुध का रत्न है| जिसके जन्म-कुंडली में बुध भावों का आधिपत्य हो ऐसे लोगों को पन्ना पहनना चाहिए जिससे उसके व्यक्तित्व में निखर आये|

पन्ना धारण करने के नियम

  • पन्ना हरे रंग का होता है| यह बैरुज जाति का होता है|
  • पन्ना गुलाबी और पीले रंग का भी पाया जाता है यह हलके किस्म के होते है लेकिन असली पन्ना हरे घास के समान मखमली रंग का होता है|
  • पन्ने में सबसे बड़ा गुण यह है कि यह उत्तेजना और मादक भाव पैदा करता है|
  • पन्ना को बुधवार के दिन धारण किया जाता है पूरे विधि-विधान से मंदिर में शिव की आराधना करने के बाद|

पन्ना को किन-किन नामों से जाना जाता है

  • अंग्रेजी – Emrald
  • हिंदी – पन्ना
  • मराठी – पांचू
  • संस्कृत – मरकत, पाचि, गुरुत्मत, हरिन्मणि, गरुडंकित गरतारीर, बुधरात्न
  • फारसी – जमुइर्द
  • गुजराती – पीलू
  • बंगला – पाना
  • कन्नड़ – पाचिपलाई

पन्ना की खूबी

पन्ना बैरुज जाति का होता है इसका रंग हरा होता है यह हरा रंग मखमली घास के समान होता है| अन्य रंगों के भी पन्ना पाया जाता है लेकिन श्रेष्ठ पन्ना हरे रंग को ही माना गया है| पन्ने की सबसे बड़ी खूबी यह होती है की इसको जितना भी गर्म किया जाये परन्तु यह तडकता नहीं है यह रत्न बहुमूल्य होता है जिसका कीमत लाखों रुपयों में चला जाता है|

इसका दूसरा सबसे बड़ा खूबी होता है की यह उत्तेजना और मादक भाव पैदा करता है राईस लोग पन्ने के प्याले में शराब पीना पसंद करते हैं जिससे उनको शराब का नशा कई गुना ज्यादा प्राप्त होता है|

पन्ना कितने रंगों में पाया जाता है

  • मयूर
  • हरा
  • सरेस के पुष्प रंग
  • शेनडुल के पुष्प
  • तोते के पंख के रंग

पन्ना कहाँ पाया जाता है (पन्ना उत्पति स्थान)

पन्ना कई जगह पाया जाता है कई देशो में पाया जाता है:

भारत के अजमेर, उदयपुर, रूस, पाकिस्तान, अमेरिका, अफ्रीका, ब्राजील, मिश्र, अफ्रीका के सेंड़ेवाना, कोलंबिया आदि देशो और जगहों पर पाया जाता है|

पन्ने की पहचान कैसे करें

1 – पन्ने को हल्दी के साथ पत्ते पर घिसने से हल्दी लाल हो जायेगा|

2 – पन्ने में सफ़ेद मुनके होते है|

3 – इमीटेशन में जर्दी नहीं होती है|

4 – इमीटेशन की चीर शीशे की चीर के समान होती है|

5 – पन्ने को अगर एक शीशे के पानी के गिलास में डालने से हरी किरण निकले|

6 – सफ़ेद कपड़े पर पन्ना रखने से और रोशनी पड़ने पर वह भाग हरा दिखाई देने लगा है|

पन्ने के दोष

1 – जिस पन्ने में लाल छेड़ा हो वह सुख-सम्पति नष्ट करने वाला होता है|

2 – जिस पन्ने का रंग मधु के समान हो वह माँ-बाप के लिए प्राण घातक होता है|

3 – जिस पन्ने में दो रंग हो यह बहुत ही घातक होता है|

4 – जिस पन्ने में आड़ी-तिरछी लकीर है तो बहुत ही नीरस है|

5 – खुरदुरा पन्ना, फटा रंग हो ऐसा पन्ना हानिकारक होता है|

6 – जिस पन्ने में सीधी रखा हो ऐसा पन्ना लक्ष्मी का नाश करता है|

7 – जिस पन्ने में काले धब्बे हो ऐसा पन्ना स्त्री के लिए घातक होता है|

पन्ने का उपरत्न

  • संग पन्ना
  • पीत मणि
  • मरगज

पन्ना खरीदते समय क्या-क्या सावधानी रखना चाहिए (रत्नों के फायदे और नुकसान)

  • नकली पन्ने को लकड़ी पर रगड़ने से उसकी चमक ज्यादा हो जाता है|
  • असली पन्ना हल्का होता है वानस्पत कांच के पन्ने के जिसे नकली कहते है|
  • प्लास्टिक का पन्ना नकली पन्ना होता है|
  • प्लास्टिक के पन्ने को गर्म पानी में डालने से वह स्वतः ही गलने लगता है|
  • पन्ने को खरीदने से पहले उसको पानी में गर्म करें यह सबसे अच्छा उपाय है जाँचने का|

5 – पुखराज

पुखराज

राशि रत्न पुखराज बृहस्पति का रत्न है जिसके जन्म-कुंडली में बृहस्पति शुभ भाव में हो उसके प्रभाव को और अधिक बढ़ने के लिए पुखराज को धारण करना चाहिए|

पन्ना को किन-किन नामों से जाना जाता है

  • अंग्रेजी – Topaz
  • हिंदी – पुखराज, पोखराज
  • बर्मी – आउटफिया
  • संस्कृत – पुखराज, गुरुरात्न, गुरु वल्लभ, पुष्पराग, पितमणि
  • फारसी – याकूत
  • गुजराती – पिलूराज
  • बंगला – पोखराज
  • कन्नड़ – पुष्पराज
  • पंजाबी  – फोकाज

पुखराज धारण करने के नियम (रत्नों के फायदे और नुकसान)

  • पुखराज पीले रंग का होता है सफ़ेद भी पाया जाता है|
  • यह रत्न (पुखराज) देवताओं के गुरु के रूप में भी जाना जाता है|

पुखराज कहाँ पाया जाता है (पुखराज कहाँ मिलता है)

1 – ब्राज़ील

2 – यूराल

3 – बर्मा

4 – सीलोन

 

पुखराज कितने रंगों में पाया जाता है

1 – केसर

2 – स्वर्ण

3 – सफ़ेद

4 – हल्दी

5 – नीबू

 

पुखराज के गुण

1 – यह स्थूल होता है

2 – यह पारदर्शी होता है

3 – पुखराज भारी होता है

4 – यह पीले कनेर रंग का होता है

5 – पीताभ वर्ण के होता है

6 – यह चिकना होता है

पुखराज के दोष

1 – जिस पुखराज में खाड़ी लकीर दिखे इसको धारण करने से मित्रों का नाश होता है|

2 – लाल धब्बों से युक्त पुखराज के धारण करने से धन-धन्य का नाश होता है|

3 – काले धब्बों से युक्त पुखराज के धारण करने से गृहस्थ जीवन में परेशानी आती है|

4 – जिस पुखराज में गड्ढा दिखाई दें उससे लक्ष्मी का नाश होता है|

5 – दो रंगों का पुखराज से रोग में वृद्धि होता है|

पुखराज की परीक्षा

1 – यदि इस पर चोट मारा जाये तो यह एक दिशा से टूटेगा अन्य दिशा से नहीं

2 – सफ़ेद कपड़े पर पुखराज रखकर सूर्य की धूप में देखने से पुखराज के पीले रंग का परछाई दिखाई देगा|

3 – पुखराज को 24 घंटे शुद्ध दूध में रखें अगर कोई बदलाव न दिखाई दे तो समझना चाहिए वह असली पुखराज है|

4 – जहरीले सांप के काटने पर पुखराज को रगड़ने से जहर का असर कम होने लगता है|

पुखराज के उपरत्न

·         करू

·         घीया

·         केसरी

·         सोनल

·         सोनेला

 

पुखराज किसको पहनना चाहिए

1 – जिसके जन्म कुंडली में गुरु कारक ग्रह हो उसे पुखराज पहनना चाहिए|

2 – धनु और मीन लग्न वाले को पुखराज जरूर पहनना चाहिए|

3 – जिस लड़की का विवाह नहीं हो रहा है उसको पुखराज धारण करना चाहिए शीघ्र विवाह होगा|

4 – पुखराज धारण करने से पाप-विचारों से मुक्ति मिलती है|

6 – हीरा

हीरा

हीरा रत्नों का रत्न है इसका ताल्लुक राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य जी से है| जिसके जन्म-कुंडली में शुक्र शुभ और अच्छे भाव में हो उसके प्रभाव को और अधिक बढ़ने के लिए हीरा को धारण करना चाहिए| 

हीरा केवल खनिजों और रत्न प्रदार्थ में ही नहीं बल्कि पूरे संसार में इसका कोई मुकाबला नहीं यह बेजोड़ है, यह अमूल्य है, यह रत्नों का रत्न है|

अंग्रेजी में हीरा को diamaond कहते हैं यह सबसे शक्तिशाली रत्न है यह एक लैटिन शब्द “एडमास” से बना है एडमास का अर्थ अजेय से होता है|

हीरा वह रत्न है जो अपने विशेष गुण के कारण यह रत्नों का राजा कहलाया| कोई भी रत्न अपने तीन गुणों के कारण श्रेष्ठ बनता है:

पहला: सौंदर्य, दूसरा: दुर्लभता और तीसरा: टिकाऊपन हीरा में यह तीनों ही गुण मौजूद है इसकी सुन्दरता अनुपम है हर कोई इसको पसंद करता है| दुर्लभ- यह अति दुर्लभ है हजारों वर्षों के रासायनिक प्रक्रिया से गुजरने के बाद धरती के अन्दर इस तरह का कठोर कार्बन का निर्माण होता है और हीरा कहलाता है| तीसरा इसका टिकाऊपन यह इतना कठोर होता है की लोहा, शीशा तक को काटने के काम आता है इसे दुनिया का सबसे कठोर रत्न भी कहा जाता है|

हीरा को किन-किन नामों से जाना जाता है

  • अंग्रेजी  – Diamond
  • हिंदी   – हीरा
  • अरबी   – अलयास
  • संस्कृत – हीरक, वज्र, भार्गव-प्रिय, मणिवर, पवि, अभेद्य, कुलिष, विद्युत, अर्क भिदुर आदि
  • मराठी   – छोटा हिनरा
  • कन्नड़   – वज्र
  • बंगला – हीरक

विश्व के प्रसिद्ध हीरे (दुनिया का सबसे प्रसिद्ध हीरा)

1- कोहिनूर हीरा – यह संसार का सबसे श्रेष्ठ हीरा है कोहिनूर हीरा महाभारत के कर्ण के पास था उनके पास से होता हुआ बाबर के पास गया बाबर से घूमते-घूमते यह इंग्लैंड (ब्रिटेन) के महारानी विक्टोरिया के पास गया आज भी यह ब्रिटेन में है लेकिन निकट भविष्य में यह रत्न वापस भारत में देखेंगे| यह प्रारम्भ में 785 कैरट का था (महाभारत काल में) अब यह केवल 102 का ही रह गया है|

2- हार्लफ़ – कुछ लोग यह मानते है की यह कोहिनूर का ही हिस्सा है लेकिन यह कावेरी नदी से निकला गया था फिर यह नादिर शाह के पास चला गया वहाँ से होते हुआ यह रूस चला गया|

3- पिंट – पिंट को सबसे पहले मद्रास के गवर्नर ने 20 हजार पौंड में ख़रीदा था फिर यह हीरा नैपोलियन के पास चला गया आज यह हीरा ब्रिटेन के संग्रहालय में सुरक्षित है यह 410 कैरट का है| 

4- कलिनन – ललिनन दुनिया का सबसे बड़ा हीरा है यह हीरा भी ब्रिटेन में ही है|

हीरा धारण करने के नियम

  • हीरा सफ़ेद होता है लेकिन उसमें कई रंग पाए जातें है|
  • यह एक चमकीला ग्रह है और चमकीला पत्थर|

हीरे की विशेषता (रत्नों के फायदे और नुकसान)

  • हीरा दुनिया का सबसे कठोर रत्न है|
  • हीरे को अगर पत्थर पर रगड़े तो पत्थर पर निशान पड़ जायेगा|
  • हीरा एक बेहतरीन कुचालक है यदि हीरा पहना जाये तो बिजली का झटका काम लगता है|
  • एक पुरानी मान्यता के अनुसार बकरी के ताजे दूध में हीरे को डाल दें अगर नकली होगा तो वह टूट जायेगा न टूटे तो असली|
  • हीरा कई रंग का होता है लेकिन सफ़ेद सर्वाधिक मूल्यवान माना गया है|
  • हीरा की चमक निरंतर बना रहता है|
  • एक कीमती हीरा में एक पुस्तक को आसानी से पढ़ा जा सकता है|

हीरे के दोष

1 – जिस हीरे का रंग गन्दा लगे, धूमिल लगे वह हीरा पशु धन के नाश करता है|

2 – बिना चमकने वाला हीरा को पहनने से लक्ष्मी का नाश करता है|

3 – गड्ढा लिए हुआ हीरा पहनने से रोग आता है|

4 – दाग-धब्बे वाले हीरा मृत्यु का कारक बनता है|

5 – लकीर वाला हीरा चित्त की शांति को भंग करता है|

हीरे के उपरत्न

1 – कुरंगी

2 – द्तला

3 – सिम्मा

4 – कैसला

5 – तुर्क

 

7 – नीलम

नीलम

नीलम शनि का रत्न है जिस इन्सान के जन्म-कुंडली में शनि भाव का अधिपति हो उनको नीलम रत्न जरूर पहनना चाहिए|

नीलम दुरुन्दम समूह का रत्न है माणिक्य भी इसी समूह का रत्न है|

नीलम को किन-किन नामों से जाना जाता है

1-    अंग्रेजी – Sapphire

2-    हिंदी    – नीलम, नील मणि

3-    फारसी  – याकूत

4-    संस्कृत   – नील, महानील, शनिरात्न, नील रत्न, निलोपान, शोरि रत्न, इन्द्रनील, तृणशाही आदि

5-    गुजराती  – नीलम

6-    बंगला – इन्द्रनील

7-    मराठी   – नील रत्न

नीलम का दोष

·         दुरंगा

·         सुन्न

·         धब्बे

·         चीरी

·         सफेद डोर

·         ललाई

·         दुधिया

·         खड्डा

·         जाला

 

नीलम धारण करने के नियम

  • नीलम नीले रंग का होता है|
  • इसको शनिवार के दिन किसी शनि मंदिर (ना हो) तो हनुमान मंदिर में विधिवत पंडित के द्वारा पूजा अर्चना या स्वयं से पूजा करके धारण करना चाहिए|

नीलम कहाँ से प्राप्त होता ही (नीलम प्राप्ति स्थान)

  • श्री लंका, बर्मा के नीलम में हरापन कम होता है तथा सुन्दर नीला रंग होता है, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, भारत के कश्मीर से प्राप्त नीलम सर्वश्रेष्ठ माना गया है|

नीलम के गुण (रत्नों के फायदे और नुकसान)

  • नीलम एक पारदर्शी रत्न है|
  • नीलम कोण सुडौल हो|
  • छूने से चिकना लगता है|
  • नीलम का रंग गढ़ा होता है|
  • हाथ में लेने से मुलायम लगता है|

नीलम का परीक्षण कैसे करें

  • नीलम अपने आकर से हल्का होता है (वजन के हिसाब से)|
  • अगर साफ़ शीशे के पानी में नीलम डाल दे तो उसमें से नीली किरण निकले वह असली है|
  • नीलम को धूप में रखने पर उसकी चमक में वृद्धि होती है तो वह असली|
  • असली नीलम में रंगों की सीधी पट्टियां दिखाई देता है|
  • पूर्णिमा के दिन नीलम को दूध में डालने से पूरा दूध नीला प्रतीत होने लगता है|

नीलम के उपरत्न

जमुनिया – यह जामुन के रंग का होता है| 

लीलिया – यह नील रंग का होता है|

नीलम से रोग कैसे ठीक करें (रोगों पर नीलम का प्रभाव)

  • पागलपन की बीमारी में नीलम का भस्म एक बेहतरीन औषधि माना गया है|
  • नीलम को पहनने से खांसी, उलटी आदि रोग स्वतः ही ठीक होते है|
  • आँखों से सम्बंधित रोग में बहुत फायदेमंद होता है|

8 – गोमेद

नीलम

गोमेद रत्न राहु का माना गया है| राहु की कोई राशि नहीं होती है यह एक छाया ग्रह है| राहु लग्न 4, 5, 7, 9, 10 भाव में हो तो व्यक्ति को भूलकर भी गोमेद नहीं पहनना चाहिए|

अभी तक जितने भी गोमेद प्राप्त हुए हैं उसमें सबसे बड़ा गोमेद (जिरकन) जिसका वजन 25 पाउंड है|

गोमेद को किन-किन नामों से जाना जाता है

1-    अंग्रेजी – Zircon

2-    हिंदी    – गोमेद, गोमेद मणि

3-    गुजराती  – गोमूत्रजंबू

4-    संस्कृत   – स्वर भानु, पीत रत्न, राहु रत्न, गोमेद, गौमेदक, त्रणवर, तापोमणि

5-    चीनी  – पीसी

6-    बंगला – लोहित मणि

7-    मराठी   – गोमेद मणि

8-    बर्मी     – गोमेक

9-    अरबी   – हजार यमनी

नीलम का दोष

·         चीर

·         छाल

·         धब्बा

·         श्याम

·         सुन्न

·         रक्त बिंदु

·         रुखा

·         गड्ढा

·         रक्तिम

·         सफेद बिंदु

 

गोमेद धारण करने के नियम (रत्नों के फायदे और नुकसान)

गोमेद के साथ मूंगा, माणिक्य, मोती व पुखराज को धारण करना भी नुकसानदायक है|

गोमेद कहाँ से प्राप्त होता है (गोमेद प्राप्ति स्थान)

ज्यादातर गोमेद रत्न हिमालय के पर्वतों से प्राप्त होता है इसके अलावा शिमला, कश्मीर, कुल्लू-मनाली के अलावा सिन्धु नदी भी है गोमेद का उद्गम स्थान|

कोयंबटूर, बिहार के हजारीबाग में भी गोमेद पाया जाता है|

गोमेद विदेशों में भी मिलता है इसके अलग-अलग स्थल हैं जैसे बर्मा, सीलोन, न्यूज़ीलैंड, चाइना आदि स्थलों पर भी गोमेद पाए जाते हैं|

गोमेद एक ऐसा पत्थर है जो लगभग सभी मोहक रंगों में मिलता है|

गोमेद की परीक्षा

गोमेद को खरीदने से पहले हमेशा इसका जाँच लेना चाहिए इसके लिए निम्न प्रक्रिया से जाँच सकते है:

  • अगर लकड़ी की बुरादे से गोमेद को रगड़ा जाये तो उसकी चमक घट जाएगी|
  • गोमेद को गोमूत्र में 24 घंटे रखे तो गोमूत्र का रंग बदल जाता है|

गोमेद के उपरत्न

  • साफी
  • तुरसा

9 – लहसुनिया

लहसुनिया

यह केतु का रत्न है| केतु भी एक छाया ग्रह है राहु की तरह इसका भी अपना कोई राशि नहीं होता है|

लहसुनिया को किन-किन नामों से जाना जाता है

  • अंग्रेजी – Cat’s eye
  • हिंदी – लहसुनिया
  • गुजराती – लसनियों
  • संस्कृत – विदुराज, वैदूर्य, केतुरात्न, विडालाक्ष, वायज, अम्ररोह, राष्टुक, मेघखरानकुर, बालसूर्य
  • अरबी – एन अलहिर
  • बंगला – सूत्र मणि, वैदूर्य मणि

लहसुनिया धारण करने के नियम (रत्नों के फायदे और नुकसान)

  • लहसुनिया जन्म-कुंडली में केतु लग्न में 3, 4, 5, 7, 9 एकादश भाव में हो तो कभी भी अपनी अंगुली में लहसुनिया नहीं जुडवाना चाहिए|
  • केतु रत्न के साथ माणिक्य, मोती, मूंगा या पीला पुखराज जुडवाना शुभ नहीं रहता|

लहसुनिया कितने प्रकार के होते है

·         शिशुपाली

·         कांच वैदूर्य

·         गिरिकांच वैदूर्य

·         स्फटिक वैदूर्य

लहसुनिया के उपरत्न

·         गोदन्त

·         संघीय

·         गोदन्ती

 

लहसुनिया (वैदूर्य) के गुण

1 – यह एक पुष्प है जो आकर में हल्का होता है|

2 – यह चिकना तथा फिसलने वाला होता है|

3 – एक अच्छा लहसुनिया दाग-धब्बे से रहित होता है|

4 – लहसुनिया से हल्के-हल्के रश्मियाँ बाहर निकलती है

5 – लहसुनिया चमकदार, सुन्दर और मनमोहक होते है|

6 – एक श्रेष्ठ लहसुनिया का रंग बिल्ली के आंख के जैसा होता है|

 

लहसुनिया के दोष

1 – धब्बा – धब्बा वाला लहसुनिया रोग को लाता है|

2 – सुन्न – सुन्न लहसुनिया से धन का नाश होता है|

3 – खण्डित – खंडित लहसुनिया में अगर छेद हो तो वह शत्रु भय लाता है|

4 – रक्त बिन्दु – रक्त बिंदु वाला लहसुनिया भविष्य में कारावास लाता है|

5 – सफ़ेद छींटे – अगर लहसुनिया में सफ़ेद छींटे हों तो यह प्राण घातक होते है|

6 – क्रोस – यह निशान होने पर शत्रु का भय लगा रहता है|

लहसुनिया का रोगों पर प्रभाव

  • लहसुनिया को अगर सिर के बाल में बंध लिया जाये तो इससे प्रसव पीड़ा में आराम मिलता है|
  • बच्चों के गले में बांधने से श्वांस सम्बंधित रोग से आराम मिलता हैं|
  • लहसुनिया को धारण करने से मधुमेह जैसे रोगों को नष्ट किया जा सकता है|
  • लहसुनिया के भस्म के साथ शहद इस्तेमाल करने से खुनी दस्त में आराम मिलता है|
  • लहसुनिया के भस्म के साथ दूध का इस्तेमाल करने से गर्मी, सुजाक आदि रोगों से आराम मिलता है|  
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निष्कर्ष

“ज्योतिष रत्न विज्ञान” जौहरियों, व्यापारियों, विद्वानों, ज्योतिषाचार्यों को “रत्न ज्योतिष शास्त्र” हमेशा से ही मनुष्यों को अपनी तरफ आकर्षित करते रहें हैं चाहे भूतकाल हो वर्तमान काल हो रत्न हमेशा से लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते रहें हैं|

रत्न आभूषणों के रूप में शरीर की शोभा तो बढ़ाते ही रहते हैं साथ ही साथ यह हमारे जीवन को भी बेहतर करते है चाहे वह देवीय शक्ति के प्रभाव के रूप में हो या हमारे ग्रहों को नियंत्रित करके सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करना हो या हमारे रोगों में सहायक होकर हमें बेहतर जीवन देना हो इसमें ज्योतिष और रत्न विज्ञान का अपना विशेष महत्व है क्योंकि ज्योतिषाचार्य के मार्ग दर्शन में राशि रत्न की पहचान आसान हुआ है साथ ही साथ “रत्नों के फायदे और नुकसान” यह समझने में भी आसानी हुई है|    

रत्नों के लाभ के पीछे उनके सकारात्मक गुण है एक बहुत बड़े विद्वान हुए है ज्योतिषाचार्य श्री राधाकृष्ण श्रीमाली और  रत्न ज्योतिष नारायण दत्त श्रीमाली उनके अनुसार “ज्योतिष के आधार  पर रत्नों का चयन और उनकी धारण विधि बहुत ही महत्वपूर्ण है| जो प्रकृति विष बनाती वही अमृत भी बनाती है| अतः कौन-सा रत्न धारण करना उपयोगी और फलदायी है, कौन-सा कष्टकारक बन सकता है, यह ज्योतिष विज्ञान की सहायता से पता लगाया जा सकता है| कौन-सी राशि का व्यक्ति कौन-सा रत्न धारण करें|”

इसी तरह  ज्योतिष रत्नमाला ग्रंथ किसने लिखा? ज्योतिषरत्नमाला के संपादक और व्याख्याकार डॉ० श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ है| उन्होंने इस विषय पर गहराई से लिखा है यह सब ज्योतिष रत्नागिरी है|   

इसी तरह सबसे शक्तिशाली रत्न कौन सा है? या नौकरी के लिए रत्न का चयन कैसे करें? या मुझे कौन सा रत्न पहनना चाहिए? या कुंडली के हिसाब से कौन सा रत्न पहने? यह सब कुछ ऐसे प्रश्न है जिनका उत्तर आपको उपरोक्त लेख में मिल गया होगा|

इस तरह रत्न हमारे जीवन में एक बहुमूल्य उपहार भगवान के द्वारा दिया हुआ है जो सिर्फ मनुष्यों के कष्ट ही नहीं वरन जीवन के हर क्षेत्र में काम आते हैं यह रोजगार के भी अच्छे साधन है लोग व्यापार करके लाभ अर्जित करते हैं शादी-विवाह में गहनों के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है

वैज्ञानिक रत्नों का प्रयोग अलग-अलग तरह से करते आयें है|  

और अधिक “रत्नों के फायदे और नुकसान की जानकारी के लिए click करें|

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