रक्षा बंधन पर सम्पूर्ण जानकारी आदिकाल से वर्तमान तक
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संक्षिप्त परिचय
सबसे बड़ा सवाल है रक्षाबंधन क्या है रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है? रक्षाबंधन का महत्व क्या है? रक्षा बंधन कब से शुरू हुआ? रक्षा बंधन का इतिहास क्या है? रक्षाबंधन मनाने का कारण, इसके अलावा रक्षा बंधन पर सम्पूर्ण जानकारी आदिकाल से वर्तमान तक सब आप आगे पढ़ सकते हैं|
यहाँ हम आपको आदिकाल में रक्षा बंधन कब, कैसे मनाया जाता है और कैसे इसकी शुरुआत हुई इसपर प्रकाश डालेंगे साथ ही वर्तमान में यह किस रूप में आज हमारे सामने मनाया जाता है इस पर भी विस्तार से बताएंगे|
जैसे-जैसे आप आगे पढ़ते जायेंगे रक्षा बंधन से जुड़ी सारी जानकारी आपको प्राप्त होती जाएगी| जैसे रक्षाबंधन कब मनाया जाता है? रक्षाबंधन कैसे मनाया जाता है? रक्षाबंधन किसकी रचना है? इसपर एक विस्तृत लेख आपको मिलेगा हमें विश्वास है हमारा यह खोज आपके हर प्रश्न को शान्त करने में सफल होगा और आपको सही और सटीक जानकारी प्राप्त हो सकेगा यानि Raksha Bandhan रक्षाबंधन का इतिहास को जानेंगे|
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विस्तार से समझें
![Raksha Bandhan Cartoon Photo](https://ilovemyhindi.com/wp-content/uploads/2021/06/Raksha-Bandhan-Cartoon-images.gif)
हमारे देश में राखी का क्या महत्व है?
हमारे देश में राखी या रक्षाबंधन का एक विशेष महत्व है इस दिन को हम भारतवासी रक्षाबंधन भाई-बहन के पर्व के रूप में मानते हैं यह एक भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक है इस रिश्ते को और अधिक मजबूती प्रदान करने के लिए इसे हर साल मनाया जाता है यह पर्व न केवल भाई-बहन के स्नेह को मजबूती प्रदान करता है वरन हमारे सामाजिक सम्बन्धों को भी मजबूती प्रदान करता है|
इस मौके पर बहन अपने भाई के कलाई पर राखी बंधती है और भाई अपने बहन के रक्षा का वचन देते है जो सबसे महत्वपूर्ण है|
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रक्षा बंधन कब से और क्यों मनाया जाता है?
इस पर सम्पूर्ण जानकारी विस्तृत रूप से आदिकाल से वर्तमान काल तक के बारे में विस्तार से बताई गयी है इन्हीं घटनाओं से राखी के बारे में और उसका महत्व हमें समझ में आता है| इसे रक्षा बंधन का इतिहास भी कह सकते है|
रक्षाबंधन का पर्व कब मनाया जाता है?
रक्षा बंधन हर साल श्रावण महीने की पूर्णिमा के दिन (सावन में पड़ता है) पूरे हर्षा उल्लास से मनाया जाता है| इस दिन बहन अपनी रक्षा का वचन भाई के हाथ पर राखी बांधकर मांगती है राखी और कुछ नहीं सिर्फ एक धागा होता है जिसे रक्षा कवच भी कह सकते है|
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![Image of Raksha Bandhan](https://ilovemyhindi.com/wp-content/uploads/2021/06/Image-of-Raksha-Bandhan-Photo.jpg)
Image of Raksha Bandhan Photo
रक्षा बंधन कब से शुरू हुआ?
रक्षा बंधन पर सम्पूर्ण जानकारी और यह त्योहार कब से शुरू हुआ यानि आदि काल से शुरू हुआ और आज तक चला आ रहा है रक्षा बंधन देवासुर संग्राम से ही चला आ रहा है देवताओं के गुरु बृहस्पति ने इन्द्र की पत्नी को एक लाल-पीले रंग का सूत का धागा अभिमंत्रित करके दिया था और कहा जाओ इन्द्र के कलाई पर बांध देना यह उसकी रक्षा कवच का काम करेगा मेरा आशीर्वाद भी देना कुछ दिन में सब ठीक हो जायेगा और बिलकुल ऐसा ही हुआ| देवतागण कुछ दिनों में ही असुरों पर विजय प्राप्त कर लिये|
![रक्षाबंधन फोटो डाउनलोड](https://ilovemyhindi.com/wp-content/uploads/2021/06/रक्षाबंधन-फोटो-डाउनलोड.png)
पौराणिक या आदि काल से रक्षा बंधन का सम्बन्ध
सत्युग की बात है पौराणिक कथा रक्षा बंधन पर सम्पूर्ण जानकारी के विषय पर भी प्रमाण मिलता है वामन-पुराण के मुताबित इन्द्र को स्वयं पर राजाओं के राजा होने का अभिमान था उन्हें अपने अस्त्र-शस्त्रों से अधिक शक्तिशाली और कुछ नहीं दिखाई देता था सभी देवतागण अपने-अपने अस्त्रों के महारथी थे लेकिन फिर भी इन्द्र के सामने सिर झुका के ही रहते थे| देवता अपनी विनम्रता और मर्यादाशील होने के कारण अपनी सीमा लाँघते नहीं थे|
देवता विनम्र होते हैं और राक्षस उद्दण्ड जब भी राक्षस द्वारा आक्रमण किया जाता तो इन्द्र अपने किसी भी देवतागण से बिना सलाह लिए ही, यहाँ तक की अपने गुरु से भी कोई विचार-विमश नहीं करते उनकी अवहेलना करते थे और स्वयं निर्णय ले लेते| इस तरह से उनका अहंकार भाव बढ़ता ही गया गुरु बृहस्पति ने इन्द्र की पत्नी शचि को इंद्र को समझाने को कहा तो इंद्र ने अपनी पत्नी का अपमान कर उसे चुप करा दिया इससे दुखित होकर भगवान ने असुरों को प्रेरणा देकर इंद्र पर हमला करवा दिया|
भयंकर युद्ध हुआ कई वर्षो युद्ध चलता रहा प्रारम्भ में राक्षस मरते-कटते रहें परन्तु पुनः हर बार जीवित हो जाते इंद्र बहुत हैरान होते की प्रतिदिन सैकड़ो राक्षस को मौत के घाट उतारने के बाद भी अगले दिन पुनः उतने ही राक्षस फिर से आ पहुँचते है अपने गुप्तचरों को भेजकर उन्होंने पता लगवाया की राक्षस गुरु शुक्राचार्य अपनी संजीवनी विद्या का प्रयोग करके इन्द्र द्वारा मारे गए मृत राक्षसों को पुनः जीवित कर देते थे इस प्रकार इन्द्र को अपने दिव्य अस्त्रों का अहंकार धीरे-धीरे कम होने लगा और वे निराश हो गए|
निराशा के कारण उनकी शक्ति क्षीण होने लगी उनको देखकर सेना का भी मनोबल कम होने लगा और देवता हताश होने लगे जबकि राक्षस मरते थे लेकिन पुनः अगले दिन जीवित होके आ जाते थे लड़ने| युद्ध के समाप्ति पर इन्द्र की पूरी सेना उनके पास आकर कही राजन इस तरह तो यह युद्ध कभी समाप्त ही नहीं होगा|
ऐसे में हमारे पास दो विकल्प है या तो युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दें या कोई दूसरा उपाय सोचा जाये इसपर इन्द्र ने कहा हे कायर देवताओं इतनी छोटी सी बात से घबड़ाकर आप लोग युद्ध बंद करवा देना चाहते हैं अभी युद्ध का निर्णय नहीं हुआ है आप घबड़ा गए है में अकेले ही सारे राक्षस का संहार करने में सक्षम हूँ – यह उनके घमण्ड को दर्शाता है|
अपने राजा की ऐसी अहंकार युक्त बात सुनकर सभी देवता स्तब्ध रह गए और पुनः युद्ध करने लगे लेकिन कुछ दिनों के बाद देवताओं का मनोबल कमजोर पड़ने लगा इन्द्र भी कमजोर और शिथिल पड़ने लगे आखिरकार अब इन्द्र को आभास होने लगा की कुछ न कुछ भूल उनसे अवश्य हुई है जिससे वह हार रहे है|
उन्होंने तुरंत मन को शांत किया अहंकार और घमण्ड को निकला और शांत भाव से प्रभु के चरणों में ध्यान लगाया तो उन्हें अपनी भूल स्पष्ट दिखाई देने लगी उन्होंने गुरु का अपमान किया पत्नी का अपमान किया अपने सहयोगियों का बात नहीं मानी इसी वजह से उनको सफलता नहीं मिल रही है अंत में उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ|
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“Raksha Bandhan Essay in Hindi” के रूप में भी आप इसको लिख सकतें है|
इन्द्र ने मन ही मन अपने गुरु से क्षमा याचना मांगी फिर अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना भी की| दूसरी तरफ जब पत्नी को उनके युद्ध में कमजोर पड़ने की बात सुनी तो अपनी पति की रक्षा के लिए अपने गुरु बृहस्पति जी के पास पहुँची और हाथ जोड़कर उनसे अपने पति के जीत के लिए प्रार्थना करने लगी अब बृहस्पति देव तो सब पहले से ही जानते थे उन्होंने कहा इन्द्र ने अहंकार त्याग दिया है|
अतः उन्होंने एक लाल-पीले रंग का सूत का धागा अभिमंत्रित करके दिया और कहा जाओ इन्द्र के कलाई पर बांध देना यह उसका रक्षा कवच का काम करेगा मेरा आशीर्वाद भी देना कुछ दिन में सब ठीक हो जायेगा|
अगले दिन शचि ने सच्चे मन से अपने पति के कलाई पर उस धागे को बांध दिया और गुरु का आशीर्वाद भी सुनाया रक्षा का प्रतीक वह धागा अपना असर दिखाना शुरु किया|
जो अस्त्र-शस्त्र पहले बेकार हो जा रहे थे वाही अस्त्र-शस्त्र अब अपना असर दिखाना शुरु कर दिया और देखते ही देखते कुछ ही दिनों के युद्ध के बाद इन्द्र को विजय प्राप्त हुई|
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इस तरह रक्षा बंधन की विशेषता यह भी है कि युद्ध के समाप्ति के बाद इन्द्र ने अपने सभा में सभी देवताओं का उचित सम्मान किया गुरु को शीश झुकाके यथोचित सम्मान किया अपनी पत्नी को भी उचित स्थान दिया उसके बाद उन्होंने अपने सभा में बतलाया की वह इस युद्ध में कैसे जीते उन्होंने जीत का पूरा श्रेय इस रक्षा-बंधन को दिया तभी से रक्षा-बंधन का त्योहार गुरु द्वारा दिये रक्षा कवच को बताया पत्नी द्वारा अपने पति की रक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इस तरह से राखी बांधने का यह त्योहार मनाये जाने लगा|
![Cartoon-Raksha-bandhan2](https://ilovemyhindi.com/wp-content/uploads/2021/06/Cartoon-Raksha-bandhan2.png)
रक्षाबंधन कैसे मनाया जाता है?
रक्षा बंधन का दिन खुशियों का दिन होता हैं मिठाइयाँ खाने और खिलाने का दिन है भाइयों द्वारा उपहार देने का दिन होता है और साथ ही साथ खेलने और पकवान खाने का दिन भी होता है इस दिन का इंतेजार बहन कई दिनों से करती है|
रक्षाबंधन के दिन प्रातःकाल से ही बहन स्नान आदि कर्म से निर्वृत होके भगवान की पूजा अर्चना करती है थाली में रोरी, अक्षत, कुमकुम, दीप प्रज्वलित कर भाई के हाथ पर राखी बांधती है थाली से पूजा अर्चना करती है फिर मिठाइयाँ खिलाती है इसके उपरांत भाई अपने बहन को गिफ्ट और रक्षा का आशीर्वाद देते है सुख-दुःख में साथ देने का वादा भी करते हैं|
रक्षाबंधन कैसे बनाया जाता है?
एक सुई, सफ़ेद मोती, मोली को मिलकर राखी बनाई जाती है काग़ज का फूल बनाकर भी उसपर चिपका सकते है शादी कार्ड से गणेश का फोटो (प्लास्टिक का) निकलकर भी लगा सकते है चावल के दानो को लाल, हरा, पीले रंग में रंगकर भी उसपर चिपका सकते है|
![Cartoon-Raksha-bandhan](https://ilovemyhindi.com/wp-content/uploads/2021/06/Cartoon-Raksha-bandhan.png)
रेशम की राखी भी बना सकते है इसके लिए रेशमी धागे का इस्तेमाल किया जाता है उसमे कई प्रकार के गांठे बनाया जाता है प्लास्टिक के छोटे-छोटे शंख चिपकाया जाता है, स्पंज और रूई का भी इस्तेमाल किया जाता है|
सतयुग से रक्षा बंधन का सम्बन्ध
सतयुग में रक्षा बंधन की कहानी हिरण्यकश्यप से शरू होती होती है वह एक शक्तिशाली राजा था उसने अपने कठोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया जब भगवान भोलेनाथ ने वर मांगने को कहा तो उसने कहा हे भगवन! आप मुझे ऐसा वरदान दीजिये कि मैं न मनुष्यों के द्वारा मरुँ न पशुओं द्वारा, न मेरी मृत्यु दिन में हो न रात में हो, न शस्त्रों से, न अस्त्रों से और न मन्त्रों से ही मेरी मृत्यु हो इस पर शिवजी ने “तथास्तु” कहकर चले गए|
![Raksha-bandhan](https://ilovemyhindi.com/wp-content/uploads/2021/06/Raksha-bandhan3.jpg)
वरदान पाकर हिरण्यकश्यप में घमण्ड आ गया अब मुझे कोई नहीं मार सकता न देव, न दानव, न मनुष्य, न पशु न ही मै दिन में मर सकता हूँ न रात में, मै अमर हो गया हूँ मैं स्वयं भगवान हो गया हूँ उसमे अहंकार आ गया वह अपनी पूजा लोगों से राक्षसों से करवाने लगा और जो भी राक्षस ऐसा नहीं करता उसको वह मौत के घाट उतार देता|
![रक्षा बंधन पर सम्पूर्ण जानकारी](https://ilovemyhindi.com/wp-content/uploads/2022/08/रक्षा-बंधन-पर-सम्पूर्ण-जानकारी.gif)
एक समय हिरण्यकश्यप के घर में उसका पुत्र जन्म लिया नाम रखा गया प्रह्लाद छोटी उम्र में ही नारद भगवान आ के उस बच्चे को शिक्षा-दीक्षा और भगवान की महिमा बता के चले गए बड़े होने पर उसे आश्रम में भेजा गया जहाँ उसे हिरण्यकश्यप को भगवान के रूप में जपने को कहा गया जिस पर उसने साफ़ इंकार कर दिया उल्टे वह अन्य बच्चो को भी प्रभु नाम सिखाने लगा इसको राजा के आज्ञा का अवहेलना मानते हुए उसकी शिकायत राजा से कर दी गयी|
हिरण्यकश्यप अपने ही पुत्र को कई प्रकार से कष्ट देने लगा कभी उसे पहाड़ पर से फेंकवा देता था तो कभी समुन्द्र में फेंकवा देता था तो कभी जलते हुए आग में फेंक देता था परन्तु हर बार भक्त प्रह्लाद हरी नाम के जपने से बच जाता था अंत में हिरण्यकश्यप अपने ही दरबार में एक लोहे का स्तम्भ खूब गर्म करवाया फिर अपने पुत्र को कहा अगर तुम्हारा भगवान सच्चा है तो जरुर आएगा फिर उसने प्रह्लाद को आदेश दिया की तुम इस खम्बे को दोनों हाथो से पकड़ लो बच्चे ने वैसा ही किया स्तम्भ को पकड़ते ही वो फूट गया और उसमे से एक नृसिंह का अवतार हुआ|
नृसिंह देव ने हिरण्यकश्यप को अपने जांघ पर लेटा लिया और कहा न मै आदमी हूँ, न पशु, इस समय न दिन है, न रात, इस समय तुम न जमीन पर हो न आसमान पर और मेरे पास कोई अस्त्र-शास्त्र नहीं है मैं तुम्हे अपने नाखुनो से चीर कर मरूँगा और फिर देखते ही देखते मार डाला भक्त प्रह्लाद को राजा बनाकर अंतर्ध्यान हो गए|
प्रह्लाद की माँ ने अपने पुत्र का समय पर विवाह किया समय पर उनके एक संतान हुई उसका नाम विमोचन रखा गया वह भी अपने पिता कि ही तरह बहुत बलशाली था वह भी आगे चलके एक लम्बे अर्से तक शासन किया फिर समय पर उसकी भी शादी हुई और फिर पुत्र हुआ जिसका नाम बलि (बाली) रखा गया| बलि बचपन से ही वीर और धर्मात्मा था|
राजा बलि में अपने पूर्वजो के सारे गुण मौजूद था उसने अपने कुल गुरु शुक्राचार्य को भी प्रसन्न कर लिया था और उनकी अपार कृपा प्राप्त कर लिया था जिससे वह अजय हो गया था गुरु की कृपा से बलि विश्व विजयी यज्ञ संपन्न करने वाला था जिसके पूर्ण होने पर वह देव और दानव दोनों पर विजय प्राप्त कर सकता है|
देवताओं को इस बात की चिंता होने लगी तब सब देवतागण मिलके भगवान विष्णु के शरण में गए भगवान विष्णु ने कहा में बौना रूप धारण कर वामन अवतार लेकर बलि के यज्ञ को भी संपन्न करूँगा और आप सबका मान भी रखूँगा|
राक्षस के गुरु शुक्राचार्य जिनको सबकुछ पहले से ज्ञन्त हो जाता था उन्होंने राजा बलि को सचेत किया की स्वयं विष्णु तुमसे भिक्षा स्वरुप तुमसे तुम्हारा जीवन मांगेंगे लेकिन तुम उनको भौतिक वास्तु ही देना|
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राजा का यज्ञ संपन्न होने के उपरांत वहाँ भगवान विष्णु एक ब्राम्हण वेष में आ पहुँचे जिनको देख सभी लोग सम्मोहित हो गए उन्होंने हाथ जोड़कर राजा से दान स्वरुप केवल तीन पग भूमि दान में चाहिए ऐसा कहा जिसपर राजा बलि हँसते- हँसते कहा तुम्हारे पाँव इतने छोटे है तुम कुछ और मांग लो इस पर विष्णु जी ने 3 पग की बात दौराई राजा बलि के हाँ कहने पर भगवान विष्णु ने एक पग में पूरी पृथ्वी नाप डाली, दूसरी में पूरी आकाश अब तीसरा पग रखने के लिए स्थान ही नहीं बचा|
उन्होंने बलि से पूंछा तीसरे पग को कहाँ रखु? इस पर बलि ने झट से अपने सिर प्रभु के सामने रख दिया और कहा हे प्रभु आप तीसरा पग मुझ पर रखें मेरा सर्वस्य आपका हुआ|
जिसपर भगवान विष्णु जो की वामन रूप में आये थे बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बलि से कहा – राजन! तुम्हारा कल्याण हो! मैं तुम्हारे समर्पण भाव से बहुत प्रसन्न हूँ अब तुम वरदान माँगों इसपर बलि ने भक्ति और मुक्ति का वर माँगा जिससे भगवान विष्णु ने “तथास्तु” कहकर पूरा किया|
यहाँ पर एक और घटनाचक्र होता है उसी समय वहां बलि की पत्नी पहुँच जाती है और हाथ जोड़कर कहती हे प्रभु मेरी भी मनोकामना पूर्ण कीजिये भगवान के हाँ कहने पर बलि की पत्नी वहाँ रखा सूत का धागा रक्षा-बंधन के रूप में विष्णुजी की कलाई पर बांध दी और कहाँ हे प्रभु! आज से आप मुझे भाई बना लीजिये इस वजय से आप मेरे पति की रक्षा करेंगे| इस पर भगवान ने “तथास्तु” कहकर स्वीकार कर लिया|
ऐसा कहा जाता है की तभी से रक्षा-बंधन का त्योहार मनाया जाने लगा और सबसे बड़ी बात यह है की यह त्योहार पति-पत्नी से हटकर भाई-बहन का त्योहार हो गया| इस तरह से रक्षा-बंधन का त्योहार मनाये जाने लगा| इस तरह रक्षा बंधन मनाने का कारण यह भी है|
वर्तमान काल में रक्षा बंधन का त्योहार बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है आदिकाल से वर्तमान काल तक आते-आते इसमें काफी बदलाव भी आ गया है डिजिटल राखी हो गई है भाई अपने बहन को डिजिटल तरीके से पेमेंट और गिफ्ट भी दिया करते है समय से साथ इसमें और भी बदलाव की उम्मीद है| इन लेखों को आप अपने रक्षा बंधन निबंध में भी इस्तेमाल कर सकते है इस तरह से रक्षा बंधन पर सम्पूर्ण जानकारी हमें प्राप्त होता है।
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निष्कर्ष
हमारा यह हमेशा से कोशिश रहा की आपको रक्षा बंधन पर सम्पूर्ण जानकारी दिया जाए इसी क्रम में हमने उपरोक्त लेख में समस्त बिंदु पर विस्तार से चर्चा किया है हमने रक्षा बंधन कब से और क्यों मनाया जाता है इसको जाना इसके अलावा “रक्षा बंधन पर निबंध in hindi” के रूप में भी विस्तार से बताया है यानि रक्षाबंधन का निबंध में क्या-क्या लिखा जाए इसपर प्रकाश डाला है आप इनमें से रक्षा बंधन पर 10 लाइन निबंध के रूप में लिख सकते है|
उपरोक्त हमने देखा की रक्षा बंधन कब मनाया जाता है| यह भाई-बहन के प्यार का प्रतीक त्योहार कैसे बनाया जाता है रक्षा बंधन की तैयारियां कैसे होती है रक्षा बंधन का महत्व के अलावा रक्षा बंधन का पौराणिक प्रसंग, रक्षा बंधन का साहित्यिक प्रसंग, रक्षा बंधन का सामाजिक प्रसंग और रक्षा बंधन का ऐतिहासिक प्रसंग यह सब हमने देखा साथ ही साथ रक्षाबंधन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य को जाना|
उपरोक्त लेख में आपने देखा कैसे रक्षाबंधन की शुरू से शुरुआत हुई यानि श्रृष्टि के प्रारंभ से ही रक्षाबंधन मनाया जाता है जब देव-दानव इस पृथ्वी पर राज करते थे तभी से रक्षाबंधन की शुरुआत हुई आज रक्षाबंधन (राखी) अपने नये रूप में हमारे आपके सामने हैं जो कि डिजिटल रूप ले लिया है|
महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
रक्षा बंधन का अर्थ meaning of raksha bandhan- यह भाई-बहन का पर्व है इसमें बहन भाई के कलाई पर राखी बांधती है और भाई रक्षा बंधन यानि बहन की रक्षा का वचन (गारंटी) देते हैं और बहन भाई की लम्बी उम्र की कामना करती है|
एक मान्यता राजा-रानियों से जुड़ी हैं पुराने समय में जब राजा युद्ध पर जाते थे तो वह युद्ध पर जाने से पहले रानियाँ उनके माथे पर तिलक और हाथ में कलावा या राखी बंधती थी और उनकी आरती करती थी और उनकी विजय की कामना करती थी ताकि वह सकुशल वापस लौटे|
एक मान्यता के अनुसार इसकी शुरुआत देव-दानव काल से ही प्रारम्भ हो चुकी थी| मुगलों के काल में भी इसका प्रमाण देखने को मिलता है और वर्तमान काल में तो यह बहुत ज्यादा प्रचलित है इस प्रकार हर काल में इसका प्रमाण उपलब्ध है| यह परंपरा आदि से वर्तमान तक चला आ रहा है|
बात सतयुग की है जब असुर देवतागण पर आक्रमण कर दिए थे तो इन्द्र अकेले ही उनसे युद्ध करने निकाल पड़े उन्होंने न तो अपने गुरु का आशीर्वाद लिया और ना ही अपने पत्नी शचि से कोई विचार-विमर्श किया उल्टा दोनों का ही अपमान कर दिया जिस कारण वह युद्ध हारने लगे तो बाद में उनको अपने भूल का एहसास हुआ| उन्होंने दोनों से माफ़ी मांगी गुरु का आशीर्वाद लिया पत्नी का सम्मान किया उसके बाद उन्हें विजय प्राप्त हुआ|
रक्षा बंधन पर बहन अपने भाई के कलाई पर राखी बांधती है माथे पर तिलक लगाती है और भाई की लम्बे उम्र की कामना करती है| भाई अपनी बहन की सुरक्षा का वचन देते हैं|
राखी का आविष्कार एक छोटी महाभारत की घटना से होती है| एक बार श्री कृष्ण का ऊँगली कट गया था तो द्रौपदी तुरंत अपने साड़ी का पल्लू फाड़कर कृष्णजी के कटे हुए स्थान पर बांध देती है आगे चलकर यह साड़ी का छोटा सा टुकड़ा महाभारत में द्रपादी के चीरहरण के समय भगवान श्री कृष्ण उनकी सहायता करते है| उस समय ऊँगली पर बंधा गया छोटा सा साड़ी का कपड़ा आज एक पवित्र धागा बन गया यहीं से राखी का आविष्कार माना गया है|
रक्षाबंधन में माँ लक्ष्मी और श्री नारायण जी की पूजा होती है|
इसका पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त में बंधना चाहिए अगर किसी को इसकी कोई जानकारी ना हो तो सूर्योदय से लेकर शाम तक बांधा जा सकता है|
राखी हमेशा दाहिने हाथ के कलाई पर ही बंधनी चाहिए|
इसको भाई-बहन का त्योहार राखी के नाम से भी जाना जाता है|
रक्षाबंधन मुख्य रूप से भाई-बहन के प्यार के रूप में मनाया जाता है लेकिन फैशन के तौर पर बहन आपस में राखी धागे के रूप में बांधने लगी है यह सिर्फ शौक या ख़ुशी के रूप में ही इसे देखा जाता है|
रक्षाबंधन के पर्व में लड़कियां ही लड़के को राखी बांधने का रिवाज है लेकिन लड़के लड़कियां को राखी नहीं बांधते हैं प्यार से बांध सकते हैं लेकिन ऐसा कोई रिवाज या चलन नहीं है|
रक्षाबंधन में बहन भाई को राखी बांधती है और यह राखी कई प्रकार की होती है जैसे साधारण राखी, डिज़ाइन राखी, मोर वाली राखी, जरी की राखी, कार्टून राखी, स्पोंग राखी, पन्नी वाली राखी, मौली, धागा राखी, चन्दन की राखी, कछुआ वाली राखी, नग वाली राखी, खंडा राखी, ॐ राखी, भगवान वाली राखी, टेक्नोलॉजी वाली राखी अन्य धर्मो की डिजाईन वाली राखी हर प्रकार की राखी होती है अपना-अपना पसंद है|
रक्षाबंधन का यह त्योहार हर साल अगस्त के महीने में आता है इस दिन भाई के कलाई पर बहनें राखी बांधती है इस पर्व में दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं| यह त्योहार भाई-बहन के मिलन का है, प्यार का है, सुरक्षा करने का है, भरोसा का है, आपसी मेलजोल का है और यह सब एक धागे से शुरू होता है जिसे राखी रहते है|
रक्षाबंधन कब है 2023 में- यह 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार है
रक्षाबंधन कब है 2024 में- यह 19 अगस्त 2024 दिन सोमवार होगा|
रक्षाबंधन का पवन पर्व सावन महीने के अंत में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है 2023 में यह 30-08-2023 सुबह 11:00 बजे से शाम के 7:00 तक मनाया जायेगा|