भारत के आदिवासी

भारत के आदिवासी

भारत के आदिवासी

Indian Tribes in India

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संक्षिप्त परिचय

History of tribes in India “भारत के आदिवासी का इतिहास” देखने से यह स्पष्ट होता है की संस्कृति मानव इतिहास में सबसे प्राचीन और आदर्श रही है एक महान भूगर्भ वैज्ञानिक एडुवर्ड सुएस के अनुसार गोंडवाना क्षेत्र का अस्तित्व 65 करोड़ वर्ष पहले से है अर्थात् आज जहाँ महासागर है पहले वहाँ भूमि हुआ करता था हिमालय केवल 7 करोड़ वर्ष पहले हिमालय पर्वत बना और गोंडवाना क्षेत्र भारत के आदिवासी का क्षेत्र रहा है जहाँ आज भी उनकी संस्कृति और सभ्यता दिखती है|

इस लेख में आप भारत के आदिवासी क्या है? Indian tribes in India” आदिवासी समुदाय क्या होते है? गोंड जनजाति के रीति रिवाज, गोंड जनजाति के त्योहार, आदिवासी का जीवन यापन कैसा होता है?( gond tribe lifestyle)  यानि आदिवासी समाज और उनकी संस्कृति को जानेंगे आदिवासी कानून कैसे काम करता है आदिवासी में कितने जाति आते हैं? इसके अलावा आदिवासी समाज की समस्याओ को समझेंगे और अंत में आदिवासी लोगों का शादी कैसे होता है? (gond tribe marriage) उनके आदिवासी सॉन्ग कैसे होते है इसको जानेंगे कुल मिलकर भारत का इतिहास को समझेंगे Indian tribes in India map के सहायता से|

अपनी बात को साबित करने के लिए Zee tv के editorin-chief  सुधीर चौधरी का यह विडियो देख सकते है देखने के लिए यहाँ Click करें |

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Kalawati photo

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विस्तार से समझें

गोंडवाना का इतिहास हिंदी में पुरे विस्तार से

Tribes history in India

भारत के आदिवासी का इतिहास देखने से यह स्पष्ट होता है की संस्कृति मानव इतिहास में सबसे प्राचीन और आदर्श रही है एक महान भूगर्भ विज्ञानिक एडुवर्ड सुएस के अनुसार गोंडवाना क्षेत्र का अस्तित्व 65 करोड़ वर्ष पहले से है अर्थात् आज जहाँ महासागर है पहले वहाँ भूमि हुआ करता था हिमालय केवल 7 करोड़ वर्ष पहले हिमालय पर्वत बना और गोंडवाना क्षेत्र भारत के आदिवासी का क्षेत्र रहा है जहाँ आज भी उनकी संस्कृति और सभ्यता दिखती है|

प्राचीन भारत के मंथन से यह बात साबित होता है की आदिवासी महापुरुषों के संतान स्वतंत्र पूर्वक निवास करते थे भारत में जब से वर्ण व्यवस्था ऋषियों द्वारा बनाया गया तब से इनकी स्वाधीनता छीन गयी सबसे पहले उनकी शिक्षा बंद की गयी आगे चलके उनकी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक उन्नति का रास्ता बंद किया गया फिर इनका शोषण प्रारम्भ हुआ साथ ही साथ इनको समाज के अन्य प्रशासन व्यवस्था से भी वंचित किया गया उस समय के चतुर और चालाक लोगों द्वारा इन आदिवासी लोगों का दमन और शोषित किया गया|

यह जानकारी भारत के कई लेखकों और अनेकों पुस्तकों का संग्रह है मसलन लोक संस्कृत और साहित्य मध्य प्रदेश: लोक संस्कृत और साहित्य लेखक श्याम परमार, बारह भाई बिंझवार डॉ० ठाकोरलाल झानाभई नायक लेखक है जो की मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी से ली गयी है, बलदेव सिंह गोंड द्वारा लिखित पुस्तक भारत के आदिवासी उतर प्रदेशीय आदिवादी संघ, लेखक उमाशंकर मिश्र और प्रभात कुमार तिवारी द्वारा लिखित “भारतीय आदिवासी” पुस्तक उत्तर प्रदेश हिंदी ग्रंथ आकादमी से लिया गया है| 

इसके साथ-साथ पत्रिका गोंडवाना दर्शन, गोंडवाना आदिम भाषा-साहित्य इतिहास आणि संस्कृति मंडल नागपुर से प्रकाशित लेखक मोतिराम और छतिराम कंगाली द्वारा लिखित है व् अन्य पुस्तकों द्वारा जानकारी प्राप्त किया गया है|

 

Indian tribes “भारत के आदिवासी” के सम्बन्ध में बताया जाता है की समय-समय पर आक्रमणों के कारण आदिवासी सभ्यता को तो नष्ट किया ही गया हिंदुस्तान के धरोहरों को भी नष्ट और विध्वंस किया गया जैसे बड़ी संख्या में मंदिरों को तोडा गया, प्राचीन इमारतों-भवनों को नष्ट किया गया, महलों को तोड़ा गया और खजानों को लुटा गया हमारे संस्कृति को बर्बाद किया गया धर्म परिवर्तन कराया गया|

विदेशी आक्रमण अंग्रेजों द्वारा किया गया बर्बरता का भी सबसे ज्यादा असर आदिवासी लोगों के जीवन पर ही पड़ा जिसको समय-समय पर इतिहास कारकों द्वारा अपने-अपने पुस्तक में दर्शाया गया|

भारत के आदिवासी ही इस देश के असली शासक थे इस लेख में भारत के आदिवासी का इतिहास और आदिवासी लोगों की संस्कृति, इतिहास में उनका रहन-सहन वेशभूषा उनका विवाह, उनके जीवन का सम्पूर्ण विवरण संछिप्त रूप परिचय के साथ प्रस्तुत किया गया है|

Gondwana Land 60yrs ago
World old map

गोंडवाना का नक्शा

भारत के आदिवासी

The Indigenous Colour of India “The Indian Tribes”

भारत के आदिवासी के बारें में इतिहासकारों ने अपने-अपने हिसाब से जानकारियाँ एकत्र की है और उसे अपने लेखन के माध्यम से किताबों में प्रकाशित भी किया है सबने अपने-अपने मतों के अनुसार जिसके पास जो जानकारी उपलब्ध थी उस समय वह हमारे सामने हैं फिर उस जानकारी को अन्य लेखक उसपर और अध्यन कर उसमे जोड़ते चले जाते हैं और इस तरह हमारे पास पर्याप्त जानकारी हासिल हो जाता है|

आदिवासी का अर्थ? या गोंड नाम कैसे पड़ा?

Indian tribes name

आदिवासी यह दो शब्दों के मेल से बना है आदि + वासी = आदिवासी अर्थात् “प्रारंभ या  शुरुआत, आदि या प्राचीन” और वासी का अर्थ है “रहना या निवास करने से है” मतलब जो प्रारंभ से रह रहा हो जिसके पहले यहाँ कोई न हो| पुराने लेखों में आदिवासी को अत्वेका या वनवासी भी कहा गया है| आदिवासी प्रकृति से जुड़े होते है और समूहों में रहते हैं इतिहासकारों ने अपने-अपने शब्दों से अपनी-अपनी पुस्तक में कहा है आदिवासी जंगली जातियों को कहते हैं “जंगल में रहनेवाला” यह सही है इसका एक और अर्थ है “जंग लेने वाला” अर्थात् जो बाहरी आक्रान्ताओं से जंग ले वह जंगली|

इस समय भारत में 705 जनजाति है और सन 2011 जनगणना के मुताबिक इनकी जनसंख्या 10.43 करोड़ है जो भारत के जनसंख्या का 8.6 फीसदी है|

चंदा समिति ने सन 1960 में किसी भी को जाति को जनजाति में शामिल करने के लिए 5 मानक निर्धारित किये – भोगौलिक एकाकीपन, विशिष्ट संस्कृति, पिछड़ापन, संकुचित स्वभाव, अन्य आदिम जाति के लक्षण है|   

 

गोंड जनजाति क्या है? गोंड जनजाति जंगलों में रहनेवाला, पहाड़ों पर रहनेवाला प्रकृति के करीब पेड़ो के पास नदियों के पास जंगली जानवरों के साथ रहने वाले जाति समूह को गोंड जनजाति कहते है|

गोंड का अर्थ क्या है?

गोंड शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द के पृथ्वी और शरीर वाची गो और अंड दो शब्दों से हुई है अर्थात् गोंड लोग पृथ्वी के विशेष मनुष्य हैं| यह एक प्राकृत भाषा है संस्कृत भाषा में गोंड़ को गौड़ बनाया गया|

भारत के आदिवासी के विषय में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवारलाल नेहरु ने अपनी किताब में लिखा है आदिवासियों की सभ्यता और उनके रहने का स्थान मोहनजोदड़ो, हड़प्पा संस्कृति, पंजाब, सिन्धु घाटी सभ्यता ऐसे स्थानों को देखने से पता चलता हैं उनका कला, औजार, रीति-रिवाज, रहन-सहन इन सब चीजो से पता चलता है वह भारत के आदिवासी आदिवासी है यानि जन-जाति हैं| भारत के भूगर्भ वैज्ञानिक ने अपनी खोज में लिखा है की भारत के गोंडों का निवास स्थान और राजसत्ता लगभग पूरे भू-मंडल पर रहा है|

जियोलाजिकल डिपार्टमेंट ने सन 1950 इ० में कलकत्ते अधिवेशन में कहा था 20 करोड़ वर्ष पहले दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया भारत का ही हिस्सा था यानि यह सब एक जमीन हुआ करता था यहाँ हिंद महासागर नहीं था हिन्द भूमि था जिसे “गोंडवाना” कहते थे यहाँ गोंडो का सत्ता था और उनका राज था आज से 6 करोड़ वर्ष पहले किसी देवी आपदा के कारण इस भूभाग पर भूचाल आया और देखते ही देखते जल प्रलय में समां गया समुन्द्र के गर्भ में विलीन हो गया और कई भू भाग में बट गया|

सन 1836 में जनरल ऑफ रॉयल एसियाटिक सोसायटी में एक लेख प्रकाशित हुआ जिसमें कहा गया की गोंडो का राजवंश 14 सौ वर्षों तक अटूट रहा अर्थात पिता-पुत्र, पिता-पुत्र का एकाधी राज पाना और राज करते रहना यह संसार में किसी भी राजवंश के इतिहास में न तो देख गया न ही पाया गया ऐसा वंश मानव जाति में विरल ही देखने को मिलता है सन 358 ई० से गोंड महाराजा यादव राय से लेकर सन 1776 ई० में राजा सुरमेसिंह तक 65 राजों का सफ़र रहा जो अपने आपमें आश्चर्य की बात है|

सन 1976 ई० में एक अनुसन्धान हुआ दिन था 5 सितम्बर और स्थान था नई दिल्ली उस अनुसन्धान में जो बात निकल के सामने आयी उससे यह पता चला की 60 करोड़ वर्ष पहले हिमालय के स्थान पर समुद्र था पिछले 7-8 करोड़ वर्ष से यह पर्वत श्रृंखला थोडा उजागर होने लगा धीरे-धीरे यह उभरते गया और पिछले 1 करोड़ वर्ष से हिमालय अपने पूरे आकर और ऊँचाई के साथ एक भव्य रूप में हमारे सामने उपस्थित है|

गोंडवाना कहां है?

भू-गर्भ वैज्ञानिक के अनुमान के मुताबिक दक्षिण अमेरिका, अंटार्टिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और भारत यह सब जमीन से जुड़े हुये थे और इसे “गोंडवाना लैंड” के नाम से जाना जाता था यह विशाल महदुईप दक्षिण गोलार्ध में स्थित था| एक और महदुईप था जिसे उत्तरी गोलार्थ कहते थे इसमें उत्तरी अमेरिका, ग्रीन लैंड थे जिसे मुख्यतः “यूरेशिया” के नाम से जाना जाता था और दक्षिण गोलार्थ को “गोंडवाना” के नाम से जाना जाता था इन दोनों को विभाजित करने वाली साढ़े पांच हजार किलोमीटर चौड़ा समुद्र था जो दोनों के बीच से गुजरती थी|

वैज्ञानिकों के अनुसार गोंडवाना भूभाग पर सिर्फ गोंडवाना राजसत्ता था इनके अलावा दूसरे और किसी का वंश नहीं था आज जिसे हम काबुल नदी कहते है पहले वह गोंड नदी हुआ करती थी काबुल में 60 पीढ़ी तक 12 वर्षों तक गोंडो का शासन रहा इन्हें शाही वंश के नाम से जाना जाता था|

गोंडवाना क्या है? गोंडवाना गोंडो के शासन क्षेत्र को कहते है जहाँ गोंड जाति के लोग राज करते थे निवास करते थे रहते थे उनके घर को गोंडवाना कहते थे|

Gondwana Alphabet

गोंडवाना भाषा

Indian tribes and their languages

गोंडवाना भाषा एक द्रविड़ भाषा है इस भाषा को बोलने वाले की संख्या लगभग 20 लाख है गोंडी भाषा विकिपीडिया में प्रस्तुत आकड़ा के मुताबिक इस भाषा के बारे में कहा जाता है की जब से पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म हुआ है तभी से मनुष्य अपनी बात को दूसरे तक पहुँचाने और समझने-समझाने के लिए भाषा का प्रयोग करता चला आ रहा है गोंड़ी भाषा दुनिया की प्राचीनतम भाषा भी कही जा सकती है इसको बोलने वालो में भारत के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी लोग भी है हिंदुस्तान में इसे सबसे अधिक मध्य प्रदेश में बोली जाती है फिर छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश के जंगलों में निवास करने वाले जनजाति द्वारा बोली जाती है|

यह भाषा धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोता चला जा रहा है गोंडवाना मुक्ति सेना द्वारा इसको प्रचार-प्रसार करके जीवित रखने का प्रयास किया जा रहा है हम जिस गोंडी लिपि को आपके सामने प्रस्तुत कर रहें वह एक हिंदुस्तान का अनमोल धरोहर है|  

Gond Language Alphabets

गोंड जनजाति की भाषा क्या है?- इनकी भाषा गोंडी है

Gond bhasha gyn
Gondwana Number system
Tribes Alphabets

आदिवासियों का क्षेत्र

लेखक उमा शंकर मिश्र और प्रभात कुमार तिवारी के अनुसार आदिवासियों का क्षेत्र तीन भागों में बांटा गया है:

पहला मध्यवर्ती क्षेत्र– मध्यवर्ती क्षेत्र अंतर्गत उत्तर का पर्वतीय क्षेत्र दक्षिण में कृष्णा, गोदावरी, नर्मदा की सीमाओं का क्षेत्र इसमें मध्य प्रदेश को केंद्र मानते हुये इसके आस-पास का क्षेत्र उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, हैदराबाद, राज स्थान यह स्थान हैं अब इसमें आदिवासियों (आदिवासी गोत्र लिस्ट) के नाम है खोंड, गोंड, गड़वा, वोदो, खरिया, कोरकू, मुरिया, भूमित्त, मुंडा, उरांव, संथाल, कोल, भील आदि प्रमुख जातियां थी|

दूसरा दक्षिण क्षेत्र– यहाँ आदिवासियों की जनसंख्या अधिक मात्र में थी इनका बहुत बड़ा क्षेत्र है जैसे आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, कोचीन, तमिलनाडु आदि इन क्षेत्र में रहनेवाले आदिवासी लोग हैं चेंचू, ईरुला, पनिका, मलपन्तण आदि प्रमुख जातियां हैं|

दूसरा उत्तरी और पूर्वी क्षेत्र– पूर्वी क्षेत्र के अंतर्गत मुख्य रूप से असम, मणिपुर के आदिवासी हैं इसमें नागा, खटमी, सिंहयों आदि प्रमुख हैं| उत्तरी क्षेत्र के अंतर्गत कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के आदिवासी आते हैं इनमें लेपचा प्रमुख हैं साथ ही साथ भोटिया, थारू, खम्पा, कनकोता, जौनसारी आदि प्रमुख आदिवासी लोग हैं|

Important Indian Tribes

Indian tribes in India map

आदिवासियों द्वारा बोली जाने वाली भाषा

आदिवासियों द्वारा बोली जाने वाली प्रमुख भाषा गोंडी भाषा हैं यह भाषा आदिवासियों में प्रमुख भाषा हैं इसे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश प्रमुख रूप में बोली जाती थी|

गोंडवाना का किला कहां है?

गोंडवाना का किला तो वैसे बहुत सारे है लेकिन महकदुमपुर, कुडवा, कनेरी लिंक रोड, बरगंव, यह एक महत्त्वपूर्ण किला है उत्तर प्रदेश में|

गोंडवाना किस राज्य में है? और गोंडवाना क्या है?

गोंडवाना तो आधा विश्व था भू-गर्भ वैज्ञानिक के अनुमान के मुताबिक दक्षिण अमेरिका, अंटार्टिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और भारत यह सब जमीन से जुड़े हुये थे और इसे “गोंडवाना लैंड” के नाम से जाना जाता था लेकिन वर्तमान में यह मध्य प्रदेश में है|

गोंडवाना कोयला किस राज्य में है?

भारत में बिजली बनाने के लिए कोयले की आवश्यकता होती है और कोयले की प्रचुर मात्रे में खपत होती है भारत का कोयला उत्पादन राज्य है पश्चिम बंगाल, झारखण्ड और ओड़िशा| इन राज्यों के पहाड़ी और जंगली क्षेत्र जहाँ आज भी पुराने गोंड जनजाति रहते है इन जगहों पर बड़े-बड़े खदानों से कोयला निकला जाता है और अनपरा बिजली घर और अन्य जगहों पर इनकी आपूर्ति की जाती है| यह गोंडवाना क्षेत्र विशाल रूप से फैला है|

गोंडवाना समुदाय किस राज्य से संबंधित है?

गोंडवाना समुदाय के लोगों का संबंध मध्य प्रदेश, झार खण्ड, ओड़िशा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश के पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों से है|

गोंडवाना का युद्ध

इतिहास में इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिलते है की गोंड लोगों ने दिल्ली पर आक्रमण कर उनपर कब्ज़ा कर लिया या अंग्रेजों को, वानस्पत बाहरी लोगों ने गोंडो पर आक्रमण कर उनको क्षति पहुंचाई मुगलों द्वारा गोंडवाना राज्य पर उनके किले पर आक्रमण कर ध्वस्त किया गया यह तो स्थानीय लोग थे और सीधे लोग थे|

गोंड जाति का धर्म क्या है?

वर्तमान में यह लोग सभ्य हैं और हिन्दू हैं लेकिन भूतकाल में यह लोग निश्चित रूप से राक्षस कुल के थे यह लोग देवी-देवता को नहीं मानते थे भूत-पिशाच, तांत्रिक, टोना- टोटका आदि में विश्वास करने वाले लोग थे|

गोंड जनजाति की समस्या क्या है?

वर्तमान में गोंड जनजाति की सबसे बड़ी समस्या उनके अस्तित्व और उनकी संस्कृति की है आज यह दोनों ही विलुप्त होने के कगार पर है| गोंड लोगों को सरकार के तरफ से भी कुछ सुविधा प्राप्त है लेकिन इनके पूरे जाति को बचाने के लिए पर्याप्त नहीं है आज भारत बहुत तेजी से विकास कर रहा है इस दौरान जंगलों का सफाया हो रहा और यह जातियाँ मुख्यता जंगलों में निवास करती है इसलिए इनके अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है| अतः हमें अपने प्रकृति के प्रति संवेदनशील होना होगा|

Gondwana Dress

गोंड जनजाति के गहने

आदिवासियों की पहचान

Major Tribes of India

इनकी पहचान निम्न तरीकों से होती है:

  • भारत के आदिवासी का इतिहास के अंतर्गत गोंडों की अपनी खुद की पंचायत होती है जिसको चौधरी और नायब को न्यायाधीश मानते थे यह ही लोगों के आपसी झगड़े निपटाने का काम करते थे हुक्का-पानी बंद करना, बहिष्कार करना, प्रायश्चित्त या दण्ड देना व आपसी सहमति और बहुमत के आधार पर फैसला सुनाते थे|
  • भारत के आदिवासी में वर्णित आदिवासी जातियों का विवाह और संस्कार गोंडों के बुजुर्गों द्वारा ही कराया जाता हैं इनका अपना ही अलग ढंग का कपोल कल्पित मंत्र होते है|
  • आदिवासी जातियों के स्त्री द्वारा बनाया गया भोजन ब्राह्मण, क्षत्रिय, अग्रवाल, मारवाड़ी आदि उच्च वर्ग ग्रहण नहीं करते|
  • भारत के आदिवासी लेख में आदिवासी जाति के लोगों को किसी भी बड़े मंच पर से बोलने का अधिकार नहीं है जैसे हिंदी-साहित्य मंच, वैदिक मंत्र अनुष्ठान समारोह या किसी अधिकारी या गणमान्य के मंच पर जाने या बोलने का अधिकार प्राप्त नहीं उन्हें आदिवासी की संतानें कहते हैं|
  • आदिवासी का इतिहास अगर देखा जाए तो जन जाति में देखादेखी बारात निकलने की प्रथा हो दूसरों को देखकर अपनाने का प्रथा हो जैसे डोली निकलना, छुटा-छूटी, मृत भोज देना आदि प्रथा को अपना लेते थे उन्हें आदिवासी की संतानें कहते थे|
  • उच्च वर्गों जैसे क्षत्रिय ब्राह्मण आदि बड़े वर्गों द्वारा जिन जातियों को गाँव के बाहर बसाया जाता था प्रायः उत्तर-दक्षिण के तरफ बसाया जाता है उन्हें आदिवासी कहते हैं|
  • ऐसी जाति जिनको खेत में काम करने के लिए हल जोतना, निराई करना, खेत बोना, काटना, सिंचाईं करने में हिचक और शर्म नहीं, उन जातियों को भारत के आदिवासी के इतिहास के पन्नों में दर्ज है की यह ही असली आदिवासी हैं|
  • ऐसी जन जाति जिनको भगवान शिव के शिवलिंग का पूजा करने का अधिकार तो है भगवान श्री राम का पूजा अर्चना करने का अधिकार तो है लेकिन करते नहीं अपने ही कुल देवी देवता का पूजा अर्चना करते हैं ऐसे लोगों को आदिवासी कहते हैं|
  • ऐसी जातियाँ जिसमें देवी-देवता का पूजा, नाग की पूजा वृक्ष, नदी, आकाश भुईयां-भवानी की पूजा की जाती हैं यह आदिवासी की पहचान है यह है भारत के आदिवासी का इतिहास|
  • ऐसी जन जातियाँ जिनको गाय-भैस, भेड़, सूअर पलना, दूध-दही, बनाना इस तरह के पेशा करने वाले लोग आदिवासी वर्ग में आते हैं|
  • ऐसी जातियाँ जो खेतों में काम करना खटिया बनाना, सूत बनाना, सब्जी बेचना, मजदूरी करना, बाग लगाना, कुआँ बनाना, मकान बनाना, छप्पर छाजना, लकड़ी काटना, औजार बनाना आदि मेहनत का काम करना यह सब आदिवासी की श्रेणी में आते हैं|
Gondwana Hut

आदिवासी का रहन-सहन खान-पान

गोंडो का रहन-सहन

lifestyle of gonds tribe

गोड़िया या भूमिया आदिवासी में एक “महुआ” के फल को भोजन के काम में लेते है और साथ ही साथ शराब बनाने के भी काम में लेते है इनमे एक कहावत प्रचलित है (साजा की चाली, महुआ का लासा, नारायण करी मन का आसा) अर्थात साज वृक्ष की छाल और महुआ के फूल प्राप्त हो जायें, तो नारायण के मन में शराब की इच्छा होती है|

गोंड लोग महुआ के पेड़ के नीचे एक गड्ढा बना के उसमें महुआ का फूल डाल देते थे और उसको सड़ने के लिए छोड़ देते थे कई दिनों के बाद जब उस पर से ढक्कन हटाया जाता है और उस पर सूर्य यानि “नारायण देव” की किरण पड़ती है और वह उसको चखते है तो यह और मीठा हो जाता है यानि उनको(भगवान सूर्य नारायण) और पसंद आ गया इसलिए गोंड लोग इस शराब को सूर्य देव को चढ़ाते है यह भारत के आदिवासी के कुछ रोचक तत्व थे|

Gondwana Pots

gond tribe food

आदिवासी का रहन-सहन खान-पान

आदिवासी का रहन-सहन और उनके क्रिया कलाप बहुत ही विचित्र होते थे उनके बर्तन आपको अति दुर्लभ चित्रों के माध्यम से दिखाया जा रहा है उनका खेतों में इस्तेमाल करने वाला हल, टांगी लकड़ी काटने वाला एक धारदार हथियार, आराम करने के लिए खटिया साथ में उसमें जो रस्सी का प्रयोग होता है उसको बनाने का तरीका भी दिखाया गया है उसको “डेरी” कहते है तस्वीर में आपको साफ दिख सकता है|   

गोंड जाति का इतिहास

भारत के आदिवासी के इस सन्दर्भ के अंतर्गत गोंड लोग कौन थे? या गोंड गोत्र क्या है? गोंड- दैत्य, दानव, असुर सत युग में शासक थे| आर्य यानि देवताओं के आने से पहले से इनकी उपस्थिति थी गोंड लोग नहीं चाहते थे की देवता उनके देश में आ के बसे बल्कि वे उनसे द्वेष करते थे| इतिहासकारों ने गोंड असुर, दत्य, दानव को ही आदिकाल के भारत का शासक माना है|

इनके समय में सोने के बर्तन का प्रचलन था रत्नों का भरमार था सिक्को का प्रचलन था यह धार्मिक, तपस्वी, ज्ञानी-ध्यानी और दानी थे नदियाँ जल से पूर्ण थी पृथ्वी हर जगह से परिपूर्ण थी किसान एक बार कोई भी फसल बोता था तो नौ बार कटता था| एक प्रश्न आता है गोंड जाति का भगवान कौन है? गोंड जाति के लोग प्रकृति को ही अपना भगवान मानते हैं वह पेड़, पर्वत, नदी को पूजते है| गोंड जनजाति के सामाजिक रीति रिवाज वाकई में बड़े अजीब और विचित्र होते है  

गोंड राजाओं के नाम इस प्रकार हैं- हिरण्याक्ष, हिरन्यकशिपू, नन्दक, भैरव, विक्रम, प्रहलाद, बलि, कपिलासुर, सहस्त्रबाहु, त्रिपुर, जलंधर आदि राजाओं के कुछ नाम थे|

गोंडवाना का इतिहास

गोंडवाना रियासत का इतिहास बहुत विस्तृत रूप से फैला है सम्राट अकबर के ज़माने से पहले गोंडवाना प्रान्त ही था और यहाँ भारत के आदिवासी लोगों का शासन था| गोंडवंश के महाराज दलपतिशाह और उनकी धर्म पत्नी दुर्गावती की वीरता की कहानी से पूरा भारत भली भाती परिचित है|

विक्रमी सम्वत पंचम शताब्दी में मेवाड़ राजपुतानो में गोंडों के राज्य करने का वर्णन शिला लेखों द्वारा प्राप्त होता है|

महाराणा प्रताप के समय काल में असंख्य धन से सहायता करने वाले गोंड वंश के राजमंत्री भामाशाह और राजसिंह के रणवाकुर दीवान दलालशाह सभी ने अपने बहुबल से दुश्मन के दांत खट्टे कर दिया उस समय औरंगजेब का शासन था|

गोंड भारत के वीर शासक जातियों में से एक थी इसका वर्णन कवि चंदवरदाई ने अपनी “पृथु राजरासो” कविताओं के माध्यम से गोंडों की वीरता का वर्णन किया है बंग देश का गोंड “मालदह” नाम इसी गोंड जाति के राजा थे इस बात का वर्णन कर्नल टांड अपनी राजस्थान के इतिहास में किया है|

सम्राट अकबर के इतिहासकार अबुफजल ने अपनी पुस्तक “अकबरनामा” में लिखा है की जब से मुसलमानों का भारत में आगमन हुआ है तब से अभी तक गोंडों को न तो कोई दबा सका और न ही गोंडवाने के किसी भी हिस्से को अपने राज्य में मिलाने में सफलता मिली हो|

कर्नल जेम्स टांड अपने राजस्थान इतिहास में गोंडो की वीरता और उनकी वीरता का वर्णन करते हुए कहा कि मुसलमान युग में गोंड राजपूतों ने अपनी स्वाधीनता को 700 वर्षो तक अटूट रखा यह है भारत के आदिवासी के इतिहास में गोंड कभी राजपूताने के अधिकारी थे|

मध्यप्रदेश में त्रिपुरी अब तेवर के नाम से जाना जाता है त्रिपुरी किसी समय एक वैभव शाली विरत नगर था आदि काल में यहाँ गोंड राजपूतों का शासन था| गोंड कई शाखा में विभक्त होकर महाकोशल यानि गोंडवाना में राज कर रहे थे जिनमे त्रिपुरी, गढ़मंडला, चांदा और खजुराहों है जबलपुर, बिलासपुर और रायपुर यह तीन पुरो के कारण त्रिपुरी बना और चन्देल शाखा की राजधानी खजुराहों में थी इन प्रान्तों में गोंडो का एकाधिकार था|

गोंडवंश के त्रिपुरी के वीर चूडामणि यादव राय को गढ़मंडला में एक रूपवती कन्या रत्नावली से शादी कराई गई फिर आगे वंशावली चली| सर्वप्रथम अमेरिका के पुरातत्व विभाग द्वारा सन 1860 ई० में खुदाई कराया गया तब यह बात प्रकाश में आया और पता चला की यहाँ से जो शिलालेख प्राप्त हुआ है उसमें महाराजा संग्राम शाह तथा महारानी दुर्गावती की वीर गाथाएँ वर्णित है उन शिलालेख में संवत् 415 (यादव राय) से लेकर सन 1764 तक 53 राजाओं के नाम उसमे उल्लिखित है| इधर गोंडवाना उधर राजपुताना यह दो महाशक्तिशाली प्रान्त थे|

राजपुताना घरानों में जैसे तेवर, तंवर, तोमर, तुम्मन, तुर, तुरहिया, तुवर आदि यह सब गोंडों के ही रूपांतरण रूप हैं इनमें और गोंडो में आज भी शादी विवाह होता है राजा अनंगपाल तंवर वंश के अंतिम राजा थे पांडवों के पश्चात उजड़ी हुई दिल्ली को इसी वंश ने फिर से बसाया था|

Gondwana Net

गोंड जनजाति के गहने

क्या गोंड जन्म से क्षत्रिय थे?

दिनांक 22/12/1927 के गोंड क्षत्रिय महासभा की रिपोर्ट में लिखा है की मध्य प्रदेश में गोंड ही यहाँ के मूल निवासी हैं| और यह जन्म से क्षत्रिय है “gond tribe history” इन्हें क्षत्रिय बनने की आवश्यकता नहीं यह लोग सिंह के समान विचरते थे तीर-धनुष, भाला-तलवार में तो इनको महारत हासिल हैं| इनके बच्चे खेल-खेल में शेर का शिकार तीर, भाला, फरसा, कुल्हाड़ी से चलते-चलते ही कर लेते थे ऐसे बहादुर जाति की झलक किसी दूसरे जाति में सुनने में नहीं आता|

गोंड वंश की वीर रानियाँ

1 – लिंगालो पालों    2- वल्लार वेदी    3- अंगार मोती    4- पुगारपुसे    5- जालावेली कन्या    6- रानी श्याम सुन्दर    7- रानीहीरो    8-रानी कमलापति     9-महारानी दुर्गावती    10- कंचन कुवरिन ठकुराइन|     आदि अनेक रानियाँ हो चुकी हैं जो गोंडवंश की गौरव थी|

गोंड वंश की मुख्या वीर रानियाँ

रानी तिलका – रानी तिलका लांजी की रानी थी एक मजबूत शासक आसफ खान से लोहा लिया और उसको युद्ध में हराया और एक मजबूत शासिका के रूप में अपने आपको स्थापित किया उनके बारे में बहुत से लोक गीत भी बने हैं|

सती रानी सिंगरो देवी – गोंड राजवंश दो प्रतापी राजा थे रजवा और चंदवा| इन दोनों का लोधी राज घरानों से घनघोर युद्ध हुआ जिसमे राजा चंदवा वीरगति को प्राप्त होते है उनकी दो रानी थी रानी सिंगारों देवी अपने पति राजा चंदवा का शव ले के अपने मायके कोरवा जिला बिलासपुर को चल पढ़ी लगभग 20 मील चलने के बाद उनका शव ख़राब होने के लक्षण दिखने लगा| 

तो उन्होंने तुरंत यह फैसला लिया मैं शव के साथ ही सती हो जाऊँगी और अपने छोटी रानी सिंगारो देवी जो की गर्भवती थी उसे सती होने की आज्ञा नहीं दी और वह सती हो गई इस प्रकार वह अपने दुश्मन के हाथ नहीं लगी| भारत के आदिवासी रानियों के कुछ अमर अमर गाथाएँ| छोटी रानी के गर्भ से जो पुत्र का जन्म हुआ वह आगे चल के इमलाई क्षेत्र जो की जबलपुर का एक प्रान्त था वहाँ पर अपना राजवंश स्थापित किया|

भीलवाड़ा की राज कन्या – मध्य प्रदेश के प्रेमपुर भीलवाड़ा क्षेत्र में एक गरीब गोंड राजा राज करते थे राजा मर जाते है लेकिन राजा का पिता जीवित था दिल्ली के मुग़ल शासक ने उनके राज्य पर आक्रमण करके राजा को हरा के उनकी लड़की को जबरदस्ती डोली में बैठा कर दिल्ली ले जा रहें थे तभी उसने उनसे कहा की मुझे तो अब वापस आना नहीं है तो अपने पिता का अंतिम दर्शन कर लेने दो फिर वहीं पर उसने अपनी तलवार निकली और कहा गोंडी एक क्षत्रिय है| 

तुम मेरा धर्म नष्ट नहीं कर सकते उसने अपनी तलवार से अपने सिर को काट कर स्वर्ग सिधार गई इससे पता चलता है की भारत के आदिवासी नारियाँ ही असली क्षत्राणी थी| लेकिन दिल्ली नहीं गई राज्य कन्या के माता-पिता भी वहीं पर स्थित तालाब में डूब कर अपनी जान दे दी |

ठकुराइन रानी कंचन की अमर कथा – मध्य प्रदेश के फुलझर प्रान्त के दो भाइयों की बात है बड़ा भाई अद्लिशाह और छोटा भाई दलशाह थे इन दोनों में बनती नहीं थी दोनों में दुश्मनी थी एक दिन आदिलशाह अपने दो सो आदमियों के साथ दलशाह का सिर काटने को गया वह दलशाह का सिर काट कर वापिस जा रहा था| 

तभी वीर ठकुराइन घोड़े पर सवार हो के चंडी का रूप बना के रास्ते में ही उनके तीन लोगों को मर दिया आगे चलके और चार लोग रास्ते मिले उनपर ऐसे तलवार भांजी की चारों का सिर कलम कर दिया फिर अचल विरहा मिला उसका भी सिर काट डाला भारत के आदिवासी गोंडवंश में ऐसी साहसी, वीर और पवित्र रानियाँ हुई है जिनके सामने सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है|

Rani Durgawati

वीर महारानी दुर्गावती की अमर कहानी

भारत के आदिवासी गोंडवंश के महत्वपूर्ण रानियों में दुर्गावती का नाम सर्वोपरि आता है भारत की ऐसी बहुत सी रानियों हुई है जो अपने स्वाभिमान के लिए बड़े-बड़े योद्धा के छक्के छुड़ा दिया जैसे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, चित्तौड़ की रानी पद्मिनी, मांडू की रानी रूपमती वह अन्य रानियों ने अपने आदम्य साहस का परिचय दिया है उन्हीं में से एक है वीरांगना रानी दुर्गावती उन्होंने अपने शौर्य प्रताप से सिर्फ गोंडवाना का ही नहीं वरन पूरे भारत का नाम गर्व से उज्जवल किया|

रानी दुर्गावती का जन्म महोबा मध्य प्रदेश में हुआ था उनके पिता का नाम चन्देल शालिवाहन था जो उस क्षेत्र के राजा थे दुर्गावती के यौवन काल में उनका रूप सौन्दर्य और प्रतिभा निकलकर सामने आने लगा था उस समय गोंड जनजाति मध्यप्रदेश के ही गोंडवंश के राजपूत दलपति शाह राज्य करते थे अपने पिता के जल्दी मृत्यु होने के कारण वह राजा बने वह तेजस्वी, प्रतापी और निति-कुशल व्यक्ति थे दलपत शाह दुर्गावती की चर्चा सुन चुके थे और वह उसे अपनी रानी बनाना चाहते थे ईधर दुर्वावती भी चाहती थी की उसकी शादी एक बड़े और प्रतापी राजा दलपति शाह से हो वह उन्हें मन से मान चुकी थी|

आगे चल के उन दोनों में शादी होती है और वह अपने पति के साथ दक्षिण गोंडवाना चली जाती है एक वर्ष के पश्चात उनको एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम रखा वीर नारायण| पुत्र के तीन वर्ष के आयु में सन 1551 ई० को एक दिन दलपति शाह बीमार हुए और कुछ दिनों के बाद चल बसे दुर्गावती सती होना चाहती थे लेकिन बच्चे का मोह ऐसा नहीं करने दिया वीर नारायण को सिंहासन पर बैठाया गया लेकिन शासन रानी चलाने लगी|

रानी ने अपने मंत्री आधार सिंह जो की कायस्थ था ईमानदार था उसके साथ मिल के अपने राज्य का विस्तार किया राज्य में सुख-सुविधा और व्यवस्थायों का प्रबंध किया और देखते ही देखते गोंडवाना चमक उठा और दुर्गावती का ख्याति दूर-दूर तक होने लगी|

दुर्गावती एक स्त्री थी और अकबर एक पुरुष था यही सोचकर वह दुर्गावती का राज्य समाप्त कर देना चाहता था

अकबर एक दिन मौका देखकर कायस्थ अधार सिंह को नज़रबंद कर दिया लेकिन मौका देखकर वह भागने में कामयाब हो जाता है

एक दिन अकबर अपने शासक आसफ खां को 10000 हजार सैनिको और तोपों के साथ गोंडवाना पर आक्रमण करने का आदेश देता है|

यह समाचार सुनते ही अपने सैनिकों के साथ रानी दुर्गावती भी अपने सफ़ेद घोड़े पर सवार होकर आसफ खां के सेना के सामने जा खड़ी हो गई आसफ खां दुर्गावती के इस रूप को कभी नहीं देखा था और उसे यह उम्मीद भी नहीं था उसके होश फाकता हो गए रानी ने देखा की इतने विशाल सेना से मुकाबला उसके पास इसका आधा सैनिक भी नहीं थी हार निश्चित है| 

अतः उसने अपने सैनिकों का मुख मंडला क्षेत्र की तरफ मोड़ दिया यहाँ पीछे नदी थी और आगे घना जंगल यहाँ जंग लड़ना ज्यादा सुरक्षित स्थान था यहाँ गोंडो की सेना मुग़ल सेना का संहार कर रही थी यह देख आसफ खां दंग रह गया अपनी सेना को हारते देख वह वहां से अपनी सेना के साथ भाग खड़ा हुआ उसका मुख-मंडल पीला पड़ गया था|

भारत के आदिवासी रानी के हाथ शिकस्त हुई थी लेकिन उसी समय पीछे से दिल्ली से मुगलों की सहायता के लिए और सेना और तोप आ गई यह देख आसफ खां में उत्साह आ गया और दम के साथ लड़ा भीषण युद्ध हुआ रानी स्वयं अपने खूनी तलवार से यवनों को मौत के घाट उतार रही थी भयंकर युद्ध हुआ गोंड क्षत्रियों ने अपने आदम्य साहस का परिचय दिया और रानी दुर्गावती को पुनः सफलता मिली|

पं० आत्माराम ने अपनी पुस्तक “वीर दुर्गावती” में लिखा है आसफ खां कुल तेरह बार वीर दुर्गावती से हारा था चौदवी बार आपस में फूट के कारण रानी दुर्गावती को हार का सामना करना पड़ा|

एक बार जब रानी दुर्गावती अपने जीत का जश्न माना रही थी तो मुगलों द्वारा आक्रमण का समाचार मिलने पर अपने चौदह वर्ष के बालक वीरनारायण को प्रधान सेनापति बनाकर युद्ध के लिए भेजी इससे बहुत से लोग नाराज हो गए इसका परिणाम यह हुआ की मुग़ल सेना गोंडों को बकरी की तरह मारते चली आ रही थी दुर्ग के दीवार को तोड़ दिया गया यह देख रानी दुर्गावती समझ गई अब गोंडो का अंत आ गया है|

वह अपनी तलवार उठाई कवच पहनी और निकल गई मुगलों का सामना करने के लिए इस लड़ाई में उनका लड़का घोड़े से गिरने के कारण छटपटाने लगा यह देख माता का ह्रदय द्रवित हो गया उसे तुरंत चौरागढ़ पहुंचा दिया गया रानी पुनः मुगलों से लोहा लेने लगी, तलवार से तलवार बजने लगी इस समय रानी दुर्गावती साक्षात् चंडी का रूप धारण कर शत्रुओं का संहार कर रही थी अचानक एक तीर रानी के आंख में आकार लगाती है| 

वह अपने आप को संभालती उसके पहले दूसरी तीर उनकी गर्दन पर आकर लगाती है अब उसका साहस जवाब दे दिया था वह अपने शरीर को कलंकित होने से बचाने के लिए हमावत से कटार छिनकर अपने छाती में भोंक ली उसका शव वही धरती पर गिर पड़ा यह देख गोंडो का खून खौल गया|

भीषण युद्ध हुआ लेकिन अंत में मुगलों की जीत हुई मुगलों द्वारा खूब लूटपाट किया गया वीर नारायण को भी मुग़ल सैनिक उसको हाथी के पैरों के नीचे कुचलकर मार दिये थे कुछ इतिहासकार कहते है वीर नारायण की मृत्यु लड़ाई में हुई थी लेकिन अंत में गोंडो का अंतिम दीपक भी बुझ गया और इस तरह सन 1564 ई० में गोंडवाना मुगलों के आधीन हो गया|

नर्वदा प्रसाद खरे अपनी पुस्तक “वीरांगना दुर्गावती” में कहते है की रानी दुर्गावती के पास 20 हजार घुड़सवार थे, एक हजार हाथी थी, 23 हजार गाँव उनके राज्य का हिस्सा था जिसमें 12 हजार गाँव स्वयं अपने से विलय हुआ था इस तरह से एक भरापूरा राज्य रानी दुर्गावती का था जिसको मुगलों द्वारा नष्ट और तबाह कर दिया|

रानी दुर्गावती पर लिखी कविता

दुष्ट दनुज दल दलन को, लिए तीक्षण तलवार|

देश शक्ति दुर्गावती, दुर्ग की अवतार||

रक्षा हित स्वदेश की, जिसने तन मन वारा|

लिया खंग रून बीच, शत्रु को था ललकारा||

जिसका सुन्दर कुंवर, वीर नारायण प्यारा|

लड़ता-लड़ता गया युद्ध में रिपु से मारा||

यश गाते हैं वीर नार तथा नारियां भी सती|

वह दुर्गा की प्रति मूर्ति है देवी दुर्गावती||

Gond Symbol
Gondwana Raj Chinha

गोंडवाना राज्य चिन्ह (gond tribe symbol)

गोंडों को शाह की उपाधि कब और कैसे प्राप्त हुआ

भारत के आदिवासी इतिहास के लेखों से प्राप्त होता है की महाराजा संग्राम शाह गोंड गोंडवंश के सबसे प्रतापी राजाओं में से एक थे उनका अनेक ऐतिहासिक प्रमाण मिलता है इनका शासन काल 1500 ई० से 1541 ई० तक रहा|

दिल्ली का बादशाह इब्राहीम लोदी महाराज संग्राम शाही का मित्र था|

जलालुद्दीन लोदी और इब्राहीम लोदी में शत्रुता था जलालुद्दीन इब्राहीम लोदी के विरुद्ध बगावत कर दिया था जब यह बात महाराज संग्राम गोंड को पता चला तो उन्होंने जलालुद्दीन को पकड़कर दिल्ली इब्राहीम लोदी के पास भेज दिया इससे इब्राहीम बहुत ज्यादा खुश हुआ क्योंकि उसके राज्य का काटा निकल गया था वह महाराज संग्राम साही के अहसान से दब गया| उसने महाराजा संग्राम गोंड को अपने बराबर “शाह” की उपाधि दे दी| 

महाराज की सेना में अफगानों ने नौकरी की तभी से इतिहास में दर्ज हो गया की (गोंडवाने के लोग) अपने आगे “शाह” लिखने लगे| यहीं से शुरू होता है गोंड लोग अपने नाम के आगे शाह लिखने लगे या (लिखने का सिलसिला)| कई इतिहासकारों ने भारत के आदिवासी के बारे में अपने-अपने पुस्तकों में भी बताया है और शिलालेखों से भी यह बात साबित होता है|

महाराजा संग्राम साही के दो पुत्र 1) दलपति साही और 2) चंद्र साही

दलपति साही(1541-1548) का विवाह महोबागढ़ के राजा शालिवाहन चन्देल(1564-1576) वंशी राजपूत की पुत्री दुर्गावती से होता है और उन्हें युवराज पद अपने पिता से प्राप्त हुआ इससे दुखी और खिन्न होकर चन्द्रसाही भाग गए और चांदा में अपना राज्य स्थापित किया रानी दुर्गावती को मुगलों द्वारा पराजित करने के बाद चन्द्र साही को गढ़मंडला का राजा बनाया गया|

राजा वीर नारायण(1548-1564)

रानी दुर्गावती के पुत्र वीर नारायण तीन वर्ष की उम्र में ही राजा बन गए थे और 12 वर्षों तक राज्य किया और 15 वर्ष के किशोर अवस्था में ही मुग़ल शासक के आसफ खां से लड़ते हुआ वीरगति को प्राप्त हुए| कहना गलत न होगा की वीर नारायण गोंडवंश का अभिमन्यु था इससे किसी को ऐतराज न होगा|

राजा हिरदै साहि(1634-1678)

राजा हिरदै साहि ने 44 वर्षों तक राज्य किया गढ़मंडला में| भारत के आदिवासी इतिहास में इनका सबसे सफल शासन रहा इसके प्रमाण शिलालेखों से प्राप्त होते है इसमें सन 1668 ई० लिखा हुआ है|

ऐसा माना जाता है की उनके राज्य में प्रजा बहुत ही सुखी और प्रसन्न थे सब के पास अनाज-कपड़े और भी जरूरी सामान उपलब्ध थे राजा हिरदै साहि कृषि की उन्नति पर ज्यादा जोर देते थे उन्होंने कृषि के क्षेत्र में क्रांति ही ला दी थे प्रजा अति प्रसन्न थी अन्य जगहों से लोग आ के बसने लगे और उन्नत खेती किया धान और गेहूँ का खेती करने लगे और आज भी इन क्षेत्र में सर्वोत्तम किसान राठौर ही है इस क्षेत्र का विकास बहुत तेजी से होने लगा|

गोंड राजाओं का राजपूतों से विवाह

राजाओं का कई शादियों का रिवाज है वह कई-कई  रानियाँ रखते थे| गुजरात के राजा व्याघदेव की पुत्री कर्णवती का विवाह गढ़मंडल गोंड राजावंश में हुई थी वैरीगढ़ के राजा वीरशाह के पुत्र इन्द्रशाह का विवाह परमाल की लड़की चन्द्रावती से हुई थी और आज भी शादियाँ होती है|

राजा निजाम साहि(1742-1776)

राजा निजाम साहि गोंडवाना राज्य का अंतिम शासक रहें है उनके शासन में किसान बहुत खुश थे क्योंकि उन्होंने कृषि क्षेत्र में बहुत विकास किया उनके शासन काल में स्वच्छता और प्रगति पर विशेष ध्यान रहा बगीचे-फुलवारी  अलगे लगे निजामशाह के समय में गोंड वंश के साथ-साथ अन्य बिरादरी भी संपन्न और सुखी थे|

राजा निजाम शाह के शासन काल में नागपुर और सागर क्षेत्र की सेना आपस में ही लड़ते थे निजाम शाह ने दोनों में समझौता कराया और दोनों को 50-50 हजार रुपए देकर विदा किया दोनों में सुलह हो गई क्षेत्र में अमन और शांति कायम हुआ| राजा ने कई लोगों को अपने राज्य में बसाया और बहुत से क्षेत्रीय उपद्रव करने वाले राजाओं को सुलह या अन्य प्रकार से शांत किया और अपना प्रभुत्व कायम किया इसलिये इनके शासन काल को स्वर्ण युग भी कहा जाता है|

मंडला किले से सीतालामाई स्थान के पश्चिम तरफ गोंड राजाओं का श्मशान है इसके बाद छोटे-छोटे राजाओं का अल्प-अल्प समय के लिए शासन रहा| सन 1818 ई० के बाद अंग्रेजों का शासन आ गया लेकिन उसके पहले ही गोंडवंश का पतन हो चूका था अब केवल छोटे-छोटे ही शासक रह गए थे|

गोंडवाना का धार्मिक स्थल और ऐतिहासिक स्थल

पुराने ग्रंथों, लेखकों और मौजूदा स्थल के मुताबिक 130 स्थल है|

  • कबीर चबूतरा – यह एक ऐसा स्थान हैं जहाँ कबीर साहब ने तपस्या किया था समाज की सेवा किया, गरीबों का सेवा किया उनका उद्धार किया, यहाँ से उन्होंने कबीर पंथ की स्थापना किया बहुत से ग्रंथों का निर्माण किया और उन्होंने गरीबों को जीने का राह भी दिखाया|
  • अविवाहित गाँव – दुनिया में एक ऐसा गाँव भी है जिसमें कोई भी व्यक्ति विवाह नहीं किया है किसी ने भी गृहस्थाश्रम नहीं अपनाया गोंडों में इसी गाँव में से एक गोत्र कुमरा है इसका गढ़ लांजी है इस गढ़ लांजी वालो की नौकरी में यादव राय थे गोंडों का वंश यादव राय से ही शुरू होता है|
  • गढ़ा – मध्य प्रदेश का गढ़ा गोंड राजाओं की पहली राजधानी थी भारत के आदिवासी यादव राय द्वारा गोंड वंश स्थापित किया था गढ़ के गोंड राजाओं का मरावी गोत्र है|
  • मुग़ल इतिहासकारों ने समय-समय में गढ़ कंटगा, गढ़ कनौज, गढ़ पुरवा, गढ़ मंडला का नाम लिखा है गढ़ का बावन तालाब, चार सौ चौरासी कुएँ हैं| गढ़ के पास जैन मूर्तियों का प्राचीन स्थान हैं जिसे पिसनहारी कहते हैं, मदनमहल, घुड़सवार, हथिखाना में 1400 हाथी रखने की व्यवस्था थी|
  • संग्राम सागर – संग्राम सागर एक ऐसा स्थान है जिसे आम खास कहते हैं आम खास में तंत्र पूजा का मंदिर है जहाँ बलि और असात्विक पूजा होती है इसका मतलब एक विशेष प्रकार की पूजा की जाती है जो रात में होती है| संग्राम सागर के पास एक भैरव मंदिर है जिसको बाजना मठ के नाम से जाना जाता है इसको भी तंत्र-मंत्र की साधना का स्थान माना जाता है| भैरवनाथ के आशीर्वाद से ही राजा संग्राम शाह ने बावन गढ़ का साम्राज्य स्थापित किया| मदन महल के नीचे एक भव्य मंदिर बना हुआ है जिसमें माता शारदा देवी की मूर्ति स्थापित है जहाँ सावन में भव्य मेला लगता है|
  • नर्मदा नदी – भारत के आदिवासी इतिहास में नर्मदा नदी एक पवित्र स्थान है हिन्दुयों के लिए नर्मदा नदी उनकी प्राण है पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है “नर्मदा पुराण” “नर्मदा रहस्य” आदि ग्रंथों में नर्मदा नदी का महत्व मिलता है नर्मदा के उत्तरी तट में विन्ध्याचल पर्वत है और दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत है इन दोनों पर्वतों और नर्मदा का परिक्रमा 1800 मील की यात्रा पैदल किया जाता है नर्मदा में उपस्थित गोल पत्थरों को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है इनके शिवलिंग का विशेष महत्व है नर्मदा नदी सबसे अधिक रोमांचकारी मानी जाती है अगर भूगर्भ शास्त्री को माने तो नर्मदा नदी गंगा नदी से काफी पुरानी है|

ऐसा माना जाता है और पुराणों में वर्णित है की नर्मदा का उद्गम स्थल भगवान शिव से हुआ है उनके शरीर से हुआ है अमर कंटक को शिव का रूप माना जाता है ऐसे कई स्थान और भी है जैसे नर्मदेश्वर, शम्भुधारा, ओमकारेश्वर, जलेश्वर आदि स्थान मौजूद है नर्मदा अपने आप में एक महत्वपूर्ण स्थान है|

  • निगोगढ़ – यह एक ऐसा स्थान है जहाँ महादेव जी का पुरे संसार में सबसे अधिक विशाल शिवलिंग है भारत के आदिवासी इस विशाल शिवलिंग होने के कारण इस स्थान को लिंगोगढ़ भी कहा जाता है| बस्तर में दो गोंड जाति थे एक माड़िमा गोंड जनजाति और दूसरा मुड़िया गोंड जनजाति यह दोनों ही जनजाति अपने आराध्यदेव भगवान शिव को घोटुल प्रथा को जोड़कर देखते थे| सन 1866 ई० में सर रिचर्ड हेम्प्ल ने एक लेख प्रकाशित किया जिसको आगे चल के सर्वे ऑफ़ इंडिया में भी प्रकाशित किया गया| इतिहासकारों ने भी अपने अलग-अलग लेखों के माध्यम से गोंड जाति पर कई लेख प्रकाशित किए हैं| निगोगढ़ का संबंध धुरिया गोत्र के गोंडों से भी है निगोगढ़ को गोंड साक्षात् बड़ादेव यानी महादेव शिव मानते है उनका मानना है की संसार की उत्पत्ति शिवलिंग से हुई है| गोंडों द्वारा मान्यता हैं की महादेव जी यानि बड़ादेव ने धुर से गोंडों को पैदा किया इसलिए अपने को धुर गोंड कहते थे धुर का अर्थ सृष्टि करता, जगत का स्वामी होता है|
  • गोंडों को नाग कहना – विदेशी आक्रमणकारी जब गोंडों को देखे तो उन्होंने गोंडों को उनके गुण-कर्म-रंग-भेद के कारण उनको नाग नाम दिया क्योंकि यह रंग से काले होते थे नंगे होते थे आगे चल के उन्हें नागा भी कहने लगे पहले इस गढ़ का नाम नागागढ़ फिर निंगोगढ़ शुद्ध रूप आज हम इसी नाम से जानते हैं|   
  • भोपाल का नाम – भोपाल का नाम कैसे पड़ा? आज यह मध्यप्रदेश की राजधानी है लेकिन पूर्व में गोंड राजा भोपाल साहि हुआ करते थे उन्हीं का इस क्षेत्र पर आधिपत्य था इसलिए इस प्रान्त का नाम भोपाल पढ़ा| यह भारत के आदिवासी के लिए गर्व की बात है|
  • मांद – मध्य प्रदेश का एक ऐसा गाँव जहाँ मल्ले तिवारी ने “मलसागर तालाब” का निर्माण कराया था जो आज एक खूबसूरत स्थल है “तिवारी” नाम गोंडों में बहुत प्रचलित हैं यही टाइटल ब्राह्मणों में भी है|

गोंड के गोत्र

गोंडों में इतने गोत्र हैं की गणना करना मुश्किल है भारत के आदिवासी इतिहास में यह सबसे ज्यादा इन्हीं गोंड जाति में है| गोंड “पाड़ी” शब्द का इस्तेमाल करते थे  गोंडों के गोत्र उनके गुण, कर्म और रहन-सहन पर रखा गया था वही अगर आप ब्राह्मणों के गोत्र की तुलना करें तो ब्राह्मणों का गोत्र ऋषियों के नाम पर रखा गया है यहाँ तक की देवताओं के नाम पर भी रखा जाता है|

गोंड गोत्र नाम लिस्ट (gond caste list & list of tribes in india) के तहत बहुत से गोत्र है| यह गोंड जाति उपनाम भी कहलाते है|

गोंडो के कई गोत्र है जैसे मकराम गोत्र, मरावी गोत्र, नेताम गोत्र, राजगोंड गोत्र गोंडवाना गोत्र विवाह भी इसी के तहत होता है|

गोंडों में “कुमरा गोत्र” बकरा से तालुक रखने वाले लोग कुमरा गोत्र के होते हैं यह अहिंसक होते है ऐसा ही एक गोत्र “कबीर पंथ” में भी है जिसे “दुर्रियाम गोत्र” कहते है| “धुमकेती गोत्र” अधिक धूम और हुड्दंड मचाने वाले लोग हैं|

धुरवे यानि धुरिया गोत्र इसको चार भागों में विभाजित किया जा सकता है पहला “उददे गोत्र” इनको बिछिया भी कहते है दूसरा है पुट्टे तीसरा-“खरवार” और चौथा है “तेंदु गढ़िया”|

“धुरवा गोत्र” के सात देवता होते थे यह नागागढ़ से आते हैं| “पट्टा गोत्र” के छः देवता होते हैं और यह सुक्कमगढ़ से आते हैं| “नेति गोत्र” को लोहमकोट कहते है और यह सुंदर गढ़ से आते है| “मरकाम गोत्र”के तीन देवता होते हैं और यह धमधागढ़ से आते है| “मरावी गोत्र” के सात देवता होते थे और यह गढ़ा गढ़ से आते हैं “सरसाम गोत्र” के सात देवता होते हैं और यह सिरसागढ़ से आते हैं| “करछ गोत्र” के छः देवता और यह सिंगागढ़ से आते हैं| 

अतः इस प्रकार गोंडों के कम से कम 350 गोत्र हुआ करते थे इससे उनके कुटुम्ब चिन्ह, निर्माण स्थान, रहन-सहन, व्यवसाय और पूर्वजों का पता चलता है|

गोंड एक द्रविड़ परिवार के लोग एक ही है| भारत के आदिवासी विकिपीडिया के मुताबिक|

The Gondi or Gond or Koitur are a Dravidian ethno-linguistic group. They are one of the largest groups in India. They are spread over the states of Madhya Pradesh, Maharashtra, Chhattisgarh, Uttar Pradesh, Telangana, Andhra Pradesh, Bihar and Odisha.

सन 1921 के आसपास गोंडों की संख्या लगभग 5 करोड़ 70 लाख थी| यह भारत के सबसे बड़ी आबादीवाले लोग थे आगे चलके बहुत से लोग अपना धर्म बदल लिए अपना पेशा बदल लिए अपनी जाति बदल लिए और इस प्रकार से उनकी संख्या का सही अनुमान लगाना काफी मुश्किल है|

गोंड वंश की शाखायें

“gond caste category” गोंडों में प्रधान गोंड ही था आगे चलके इनके गुण-कर्म-व्यवसाय-(रहन-सहन) के हिसाब से अलग-अलग शाखा बनी जैसे – गोंड, राज गोंड, ओझा, मान, माना, हलवा, कोहरी, मनु, मारिया, धुरवे, धुर, धुरिया, रावणवंशी, माडिया, अमायत, कोयतर, गया, करचुली, परिहार, वेदवंशी, बलकरिया, वेसरा, कुरेठिया, परिहार, धीमर, बाथम, भोंड़, माहर, खरवार, रैकवार, तुरह, तोमर, तंवर, जायसवाल, सोंधिया, वोट(भोट), वटौला, गोड़िया, गोंडी, रवानी, नागवंशी, नायक आदि…हैं|

गोंडवाना का राजा कौन था?

गोंडवाना की वंशावली या गोंड समाज की वंशावली बैतूल जिले के बानूर गाँव से प्राप्त ताम्रपत्र

यादवराय गोंड 1370-1422 ई०

गोराव गोंड 1422-1448 ई०

अर्जुन गोंड 1448-1480 ई०

संग्राम शाह 1480-1543 ई०

दलपत शाह 1543-1549 ई०

दुर्गावती 1549-1564 ई०

चन्द्र शाह 1564-1576 ई०

मधुकर शाह 1576-1586 ई०

प्रेम शाह 1586-1634 ई०

ह्रदय शाह 1634-1675 ई०

छत्र शाह 1675-1684 ई०

केसरी शाह 1684-1685 ई०

हरी सिंह 1685-1686 ई०

पहाड़ सिंह 1686-1687 ई०

नरेन्द्र शाह 1687-1739 ई०

महाराज शाह 1739-1742 ई०

शिवराय शाह 1742-1789 ई०

दुर्जन शाह 1749-1749 ई०

निजामशाह 1742-1776 ई०

महिपाल सिंह 1776-1776 ई०

नरहरी शाह 1776-1780 ई०

सुमेह शाह 1782-1784 ई०

यहाँ से भारत के आदिवासी (गोंडों) का शासन पूरी तरह से पतन के तरफ जा रहा था मुग़ल उनका सफाया कर रहें थे|

Gondwana Rajwansh

गोंडों की रियासत

गोंडों की रियासत इस प्रकार हैं-

list of tribes in india state wise pdf

  • रायगढ़ – रकबा 1486 वर्गमील तक फैला था
  • मकराई –   540
  • उदयपुर –   1052
  • सारंगगढ़ –   540
  • सक्ति –     138
  • खैरागढ़ –     931
  • कवर्धा –     798
  • सरगुजा –   6089
  • बस्तर – 13062
  • नंदगाँव –  5871
  • कोरिया –  1631
  • छुइखदान – 154
  • कांकेर – 1429
  • जसपुर – 1948
  • चम्भाकर – 904

how many tribes in india (State wise List)

भारत में कितनी जनजातियां हैं

भारतीय संविधान के मुताबिक “List 5” के अनुसार भारत में आदिवासी समुदायों को भारत में मान्यता दी गई है| संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त जनजातियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में जाना जाता है| आज भारत में लगभग 645 अलग-अलग जन-जातियाँ पाया जाता है|

List of Scheduled Tribes in India

आंध्र प्रदेश:

अंध, साधु अंध, भगत, भील, चेंचस (चेंचावर), गदबास, गोंड, गौंडु, जटापुस, कम्मारा, कट्टुनायकन, कोलावर, कोलम, कोंडा, मन्ना धोरा, परधान, रोना, सावरस, डब्बा येरुकुला, नक्काला, धूलिया , थोटी, सुगालिस, बंजारा, कोंडारेड्डी, कोया, मुख धोरा, वाल्मीकि, येनाडिस, सुगालिस, लम्बाडीस|

अरुणाचल प्रदेश:

अपातनिस, अबोर, डफला, गैलॉन्ग, मोम्बा, शेरडुकपेन, सिंगफो, न्यिशी, मिश्मी, इडू, तारोआन, टैगिन, आदि, मोनपा, वांचो|

असम:

चकमा, चुटिया, दिमासा, हाजोंग, गारो, खासी, गंगटे, कार्बी, बोरो, बोरोकाचारी, कचहरी, सोनवाल, मिरी, राभा, गारो|

बिहार:

असुर, बैगा, बिरहोर, बिरजिया, चेरो, गोंड, परैया, संथाल, सावर, खरवार, बंजारा, उरांव, संताल, थारू|

छत्तीसगढ़:

अगरिया, भैना, भट्टरा, बयार, खोंड, मवासी, नागासिया, गोंड, बिंझवार, हल्बा, हल्बी, कवार, सावर|

गोवा:

ढोडिया, दुबिया, नाइकडा, सिद्दी, वर्ली, गावड़ा|

गुजरात:

बरदा, बामचा, भील, चरण, ढोडिया, गमटा, पाराधी, पटेलिया, धानका, दुबला, तलविया, हलपति, कोकना, नैकड़ा, पटेलिया, राठवा, सिद्दी|

हिमाचल प्रदेश:

गद्दी, गुज्जर, खास, लांबा, लाहौल, पंगवाला, स्वांगला, बेटा, बेदा भोट, बोध|

अंडमान और निकोबार:

उरांव, ओंगेस, सेंटिनलीज, शोम्पेन|

पश्चिम बंगाल:

असुर, खोंड, हजोंग, हो, परहैया, राभा, संथाल, सावर, भूमिज, भूटिया, चिक बरैक, किसान, कोरा, लोढ़ा, खेरिया, खरियाम, महली, मल पहाड़िया, उरांव|

मणिपुर:

नागा, कूकी, मैतेई, ऐमोल, अंगामी, चिरू, मरम, मोनसांग, पैते, पुरुम, थडौ, अनल, माओ, तांगखुल, थडौ, पौमई नागा|

महाराष्ट्र:

भैना, भुंजिया, ढोडिया, कातकरी, खोंड, राठवा, वार्ली, धनका, हलबा, कथोड़ी, कोकना, कोली महादेव, पारधी, ठाकुर|

मध्य प्रदेश:

बैगा, भील, भारिया, बिरहोर, गोंड, कातकरी, खरिया, खोंड, कोल, मुरिया, कोरकू, मवासी, प्रधान, सहरिया|

केरल:

अदियान, अरंदन, एरावलन, कुरुंबस, मलाई अरायन, मोपला, उरालिस, इरुलर, कनिकरण, कट्टुनायकन, कुरिच्छन, मुथुवन|

कर्नाटक:

अदियान, बरदा, गोंड, भील, इरुलिगा, कोरगा, पटेलिया, येरवा, हसलारू, कोली ढोर, मराती, मेदा, नैकडा, सोलिगारू|

झारखंड:

बिरहोर, भूमिज, गोंड, खरिया, मुंडा, संथाल, सावर, बेदिया, हो, खरवार, लोहरा, महली, परैया, संथाल, कोल, बंजारा|

जम्मू और कश्मीर:

बकरवाल, बाल्टी, बेदा, गद्दी, गर्रा, सोम, पुरिगपा, सिप्पी, चंगपा, गुज्जर|

उत्तर प्रदेश:

भोटिया, बक्सा, जौनसारी, कोल, राजी, थारू, गोंड, खरवार, सहर्या, परहिया, बैगा, अगरिया, चेरो|

उत्तराखंडः

भोटिया, बुक्सा, जनसारी, खास, राजी, थारू|

त्रिपुरा:

भील, भूटिया, चामल, चकमा, हलम, खसिया, लुशाई, मिज़ेल, नमते, मग, मुंडा, रियांग|

तेलंगाना:

चेंचस|

तमिलनाडु:

अदियान, अरनादन, एरावलन, इरुलर, कादर, कनिकर, कोटा, टोडस, कुरुमान, मलयाली|

सिक्किम:

भूटिया, खास, लेप्चा, लिंबू, तमांग|

राजस्थान:

भील, डमरिया, धानका, मीना (मिनास), पटेलिया, सहरिया, नायकड़ा, नायक, कठोड़ी|

ओडिशा:

गडाबा, घारा, खरिया, खोंड, मत्या, उरांव, राजुआर, संथाल, बथुडी, बथुरी, भोट्टाडा, भूमिज, गोंड, जुआंग, किसान, कोल्हा, कोरा, खैरा, कोया, मुंडा, परोजा, सावरा, शाबर, लोढ़ा|

नागालैंड:

अंगामी, गारो, कचहरी, कुकी, मिकिर, नागा, सेमा, आओ, चखेसांग, कोन्याक, लोथा, फोम, रेंगमा, संगतम|

मिजोरम:

चकमा, दिमासा, खासी, कुकी, लखेर, पावी, राबा, सिंटेंग, लुशाई|

मेघालय:

चकमा, गारोस, हाजोंग, जयंतियास खासिस, लखेर, पवई, राबा, मिकिर|

क्या गोंड आदिवासी ही असली राजपूत हैं?

भारतीय राजपूत राजाओं में चारण और भाट राजाओं के द्वारा अपनी वंशावली बतलाई इन वंशावली में राजपूत की उत्पत्ति सूर्य और चंद्र वंशी से उत्पत्ति हुई है|

राजपूतों की उत्पत्ति अग्निकुंड से उत्पन्न हुआ है ऐसा माना जाता है और अनुश्रुति के मुताबिक जब भगवान परशुराम ने रामायण कल से पूर्व जब पृथ्वी से सम्पूर्ण क्षत्रियों का विनाश और संहार कर दिया था तब पृथ्वी पर कोई शासक न होने के कारण सब व्यवस्था अस्त-वेस्त हो गई थी ऐसी स्थिति में सभी देवता गण या ब्राह्मण आबू पर्वत गए जहाँ ऋषि निवास करते थे और वहाँ एक अग्निकुंड था फिर उस अग्निकुंड से सबने आह्वान कर क्षत्रियों के चार जातियों को उत्पन्न किया परिहारों “पवारों”, सोलंकी “चालुक्यों”, चौहानों और परमार को उत्पन्न किया|

लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता है ऐसा माना जाता है की सोलहवीं से पूर्व इस अनुश्रुति का कोई उल्लेख नहीं मिलता न कोई ग्रंथ ही मिलता है यह मात्र ब्राह्मण और पंडितों की मस्तिष्क की उपज मात्र थी अनश्रुति नाम की न तो कोई ग्रंथ है ना ही कोई अवशेष ही मिलते हैं|

डॉ स्मिथ के अनुसार राजपूत गोंड जाति के वंशज थे गोंड जाति से ही चन्देल, राठौर, गहड़वाल आदि राजवंशों की उत्पति हुई है सभी राजपूतों ने अपनी उत्पत्ति सुर्यवंश और चन्द्रवंश से जोड़ी है राजपूतों के रीति-रिवाज़ों की विषमताओं से भी इसी धारणा की पुष्टि होती है की राजपूत लोग भिन्न-भिन्न जातियों के वंशज थे|

कर्नल टांड ने अपनी पुस्तक “राजस्थान का इतिहास” में कहा की पूर्व में यहाँ कोई राजवंश नहीं था बल्कि सुर्यवंश और चंद्रवंशी के पहले गोंड़, भील, मीणा आदि जातियों के लोग यहाँ रहते थे और इन्हीं जातियों के लोग क्षत्रिय के वंशज हैं| कर्नल टांड महोदय के लेख से यह सिद्ध होता की भारत के आदिवासी गोंड़ ही सूर्य वश और चन्द्र वंश है राजस्थान में अलगाव के कारण एक अलग से क्षत्रिय जाति का निर्माण किया गया लेकिन फिर भी यह मूल गोंड़ जाति के ही वंशज थे|

हिंदी लेखक और साहित्यरत्न श्री सुधाकर रायबहादुर के अनुसार गोंडों का राज्य श्रावस्ती, घाघरा, कौशल की राजधानी, रामगढ़, गोरखपुर, बस्ती उत्तर भारत के अधिकांश भाग गोंड जाति के लोगों से बसा हुआ था| गोंड लोग अपना शासन बहुत कुशलता से करते थे इसलिए उनके राज्य का नाम कौशल पड़ा होगा इसी तरह दक्षिण भारत में भी गोंडों का राज्य था सम्पूर्ण भारत गोंडो का ही शासन थे|

World old map

भू-गर्भ शास्त्री का मानना है की आज से 60 करोड़ वर्ष पहले पूरा विश्व दो भागों में बटा हुआ था एक गोंडवाना और दूसरा लवलेशिया| जिसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, अमेरिका का दक्षिण भाग यह एक भाग था जिसको गोंडवाना कहते थे और इन पर गोंडों का शासन था इन्हीं गोंड से हजारों जातियों का जन्म हुआ|

और दूसरा भाग “लौरेशिया” या “यूरेशिया”था जिसके अंतर्गत उत्तरी अमेरिका, ग्रीन लैंड था| इन दोनों को विभाजित करने वाली साढ़े पांच हजार किलोमीटर चौड़ा समुद्र था जो दोनों के बीच से गुजरती थी| इन दोनों जगहों पर सिर्फ जमीन ही जमीन था सिर्फ एक ही महासागर था जो दोनों को अलग करता है उसके बात देवी आपदा के कारण पृथ्वी 7 भागों में खंडित हो गया|

शाश्त्रो के मुताबित गोंड जाति

ऋग्वेद में आर्य(ब्राह्मण-देवता) और अनार्य(असुर-गोंड) के बारे में विस्तार से बताया गया है|

प्रो० अर्जुन चौबे कश्यप, बनारस से अपनी पुस्तक “आदिभारत के इतिहास” के पेज न०66,67 में उन्होंने लिखा है यह बात (सन 1953 की है) इसमें उन्होंने लिखा है की आर्य और अनार्य में भीषण और बहुत घमासान युद्ध हुआ था उस भयंकर लड़ाई में अनार्य(असुर- भारत के आदिवासी (गोंडों)) को हार का सामना करना पड़ा आर्यों द्वारा असुरों का दुर्गों को विध्वंश कर दिया गया उनके सभ्यता को नष्ट कर दिया गया गांवों को उजाड़ वाटिका कर दिया गया और जो बचे उनको दक्षिण के पर्वतों के तरफ धकेल दिया गया|

आज भी उनके वंशजों में (गोंड मुख्य है) खोंड़, कोल, भील, संथाल, उरांव, मुंडा आदि प्रमुख प्रजाति आज भी विद्यमान है इन में से बहुतो को पकड़ लिया गया और दास बना लिया गया यह अति निम्न स्तर के गुलाम घोषित किये गए वर्ण व्यवस्था में इन्हें शूद्र कहते हैं इन्हें दास दस्यु नाम से भी पुकारते हैं इन दासों का वर्णन इस प्रकार हैं यह काले रंग के होते हैं, नाटे होते हैं, नाके चिपटी होती है, देखने में बदसूरत होते हैं, यह देवताओं को नहीं मानते है, यह भूत-पिशाच आदि जादू-टोना-टोटका और तांत्रिक विद्या में विश्वास करते थे, यह मदिरा पान करना, शराब और कबाब इनका भोजन है यह सब अनार्य(असुर-गोंडों) के लक्षण थे|

अनार्यों द्वारा आर्यों के पवित्र यज्ञों को विध्वंश कर दिया जाता था साधुओं को परेशान करना उनके दैनिक कर्मकांड को न करने देना इन्हीं सब लक्षणों के कारण का उल्लेख पुराणों और ऋग्वेद में भी मिलता है जिससे भी यह स्पष्ट होता है की उनकी उपस्थिति आदि से हैं|

आर्यों से युद्ध हुआ जिसमें गोंड राजाओं का हर हुआ और उनको दक्षिण के तरफ जाना पड़ा यानि पीछे हटना पड़ा|

आर्यों से युद्ध लेने वाले में गोंड राजाओं के राजा सुदास, राजा मेद थे इसके अलावा सिम्यू, पिचाश, कीकट, चुमुरी, धुनि आदि असुरों राजाओं के कुछ नाम हैं|  

क्या गोंडों में कहार जाति एक प्रमुख जाति है?

भारत के प्रमुख आदिवासी गोंडों में कहार एक बहुत ही प्रचलित जाति है इस जाति के लोग हर प्रान्त में पायें जाते है इसे विस्तार से समझते हैं|

कहार शब्द का अर्थ – कहार शब्द का अर्थ (कहां – अरि) का अपभ्रंश प्रतीत होता है जिसका अर्थ होता है दुश्मन कहाँ है? कहर का अर्थ होता है “जुल्म” इस प्रकार कहार का अर्थ हुआ जुल्म करने वाला|

कहार के गुण-कर्म-स्वभाव – कहार जाति के समुदाय स्वभाव से ही निडर वीर और साहसी होते थे उनके बच्चे खेल-खेल में शेर का शिकार कर लेते थे यह जाति अपने इन्हीं गुणों के कारण पत्थर काटने का काम करते थे और दाना-भुजा भुजने का काम करते हैं इस बात का प्रमाण “भारत के आदिवासी” “भारत की जातियों का इतिहास” में डब्लू कुक ने कहा है|

गोंड (कहार) भगवान नारद के गुरु कैसे? – गोंडों में कहार को नारद ऋषि गुरु मानते हैं एक बार नारदजी ने भगवान श्री राम से अपने लिए गुरु बनने का आग्रह किया इस पर श्री राम ने कहा अगली सुबह जो भी व्यक्ति तुम्हें सबसे पहले तुम्हारे सामने पड़े उसे तुम गुरु मान लेना अगली सुबह उनके सामने एक धीवर (गोंड) जो कि भारत के आदिवासी जाति का था जाल लिए नदी जा रहा था नारद जी ने उसको दण्डवत प्रणाम किया और उन्हें गुरु कहकर संबोधित किया फिर उनके मन में यह उत्सुकता जागा की यह किस जाति का है और पता चला की यह तो कहार जाति का है|

मैं इसको गुरु कैसे मानु यह भाव मन में आते ही आकाशवाणी हुई तुमने अपने गुरु पर शंका की है अतः तुम्हें चौरासी लाख योनियाँ भोगनी पड़ेगी यह सुन कर नारद तुरंत श्री राम के पास इस समस्या के समाधान के लिए पहुंचे उन्होंने वापस उनके गुरु के पास भेज दिया| नारद ने अपनी समस्या अपने गुरु से कहा उन्होंने कहा इसमें कौन सी बड़ी बात है आप चिता न करें जमीन पर चौरासी लाख योनि बनाकर जिसमें पशु-पक्षी, सांप, कीड़े-मकोड़े, हर प्रकार का जानवर बनाकर कहा की आप इसपर लोट जाए उन्होंने ऐसा ही किया|

इस प्रकार नारद जी 84 लाख योनियों के श्राप से मुक्त हो गए फिर नारद बड़े श्रद्धा भाव से अपने कहार गुरु के पास गए और प्रार्थना की आप ही मेरे गुरु है मुझे क्षमा करें मुझे पहचाने में भूल हुई| तब से कहार ब्राह्मणों के गुरु हैं और यह लोग ब्राह्मणों को अपना गुरु नहीं मानते है| कहार ब्राह्मण से शादी-विवाह भी नहीं करवाते यह खुद ही पंडित बनकर आपस में ही कर लेते है इनका अपना मंत्र शास्त्र है जिसका न कोई सुर है न ताल|

कहार, मल्लाह क्या यह लोग गोंड है? – कहार और मल्लाह भी गोंड ही है सन 1891 में सरकार की जनगणना की एक रिपोर्ट के मुताबिक गोंड नाम की दो शाखा थी एक पहाड़ी हिस्से में निवास करने वाली और दूसरा नदी या जलधारा के पास निवास करने वाले लोग जिसमे मल्लाह यानि मछली मरने वाले भी है इसका अन्य पेशा है दाना भुजना, पत्थर काटना था भारत सरकार के मुताबिक इन दोनों जातियों को भारत के आदिवासी गोंड जाति ही माना गया है|

Gond in Madhya pradesh

Under the name Gond two quite distinct class of people seem to be mixed up, The true Gonds of Central India Hill country and the Gond of the Eastern Districts of these provinces (N.W. provinces and Oudh) who is usually classed with fishing tribes of Kahars and Mallah and is domestic servants, stone cutters, grain parchers, in the detailed census reports the sections of these two tribes are inextricably mixed up together and defy analysis.

(Tribes and Castes of N. W. Provinces and Awadh by W. Crooke Voll II & IV Page 431.)

कहार नाम कैसे पड़ा?

Tribes & Castes of Central Provinces of India 1816(Vol.III page 295 Para I) में कहार की उत्पत्ति का वर्णन बताया गया है – हालांकि गोंड एक स्वतंत्र जाति थी मुगलों ने जब सन 1774 में उत्तर भारत पर आक्रमण किया तो इन गोंड जाति को पूरी तरह तबाह कर दिया और इनको गुलाम बना लिया तभी से इनका नाम कहार पड़ा मुग़ल इनसे अपने घरेलु काम करवाने लगे|

यादव(अहिर) का राजवंश (यादव जाति)

यादव को कई नामों से जाना जाता है यादव मुख्य है जाट, यौधेय, आभीर, जिट, पाल, गोवाल, गोंड, गुवारी, गोपाल, यदुवंशी, नंदवंशी, गड़ेरिया, भाट्टी, शूर, वीर, सवर कोलर जाति के है|

अहिर शब्द की उत्पत्ति अहि से है अहि का अर्थ होता है नाग| नाग का पर्यायवाची होता है अहि अतः अहि नाग वंश से ही संबंध है|

यह पहले ही बताया गया है की पूरा भारत नाग वंश से ही चला आ रहा है सम्पूर्ण प्रजातंत्र और गणतंत्र राज्य सब इसी से चला आ रहा है यह देश इन्हीं का है यह ही भारत के मूल निवासी आदिवासी है जिन्हें भारत के आदिवासी कहते है|

यदुवंशियों का सम्पूर्ण ब्यौरा डॉ०सरहनरी इलियट ने यदुवंशी का ब्यौरा लिखते हुए कहते है सम्पूर्ण भारत पर इनका शासन था|

दक्षिण में आशा अहिर का असीरगढ़ का किला छिंदवाडा जिला मध्य प्रदेश में स्थित यह एक ऐसा किला जिसमें 360 फाटक लगें हुए है ऐसा सम्पूर्ण विश्व में दूसरा कोई नहीं है इसपर इनका शासन था वरार का नरनाला, देवगढ़, गविलगढ़ यह यह सब अहीरों के शासन काल के थे ऐसा माना जाता था की अहिर किसी समय में नेपाल राज्य के शासक थे|

अहीरों में तीन महान विभाजन हुआ पहला नंदवंशी दूसरा यदुवंशी और तीसरा ग्वालवंशी यह तीन ही मुख्य विभाजन है अहीरों के| डॉ०सरहनरी इलियट के मुताबित यह तीनो ही अहिर है और धर्म परिवर्तन होने पर घोसी, मुसलमान कहलाये| झाँसी और ग्वालियर के बीच अभीर लोगों का शासन थे इस भूभाग को आज भी अहिरवाडा कहा जाता है| इसी प्रकार बुंदेलखंड का नैगावा रिवाई रियासत को भी अहिर के नाम से ही जाना जाता है|

मध्य प्रदेश और वरार का इतिहास के संबंध में लेफ्टिनेंट योगेन्द्रनाथ शील के मुताबिक अहिर भी रंग भेद से नाग वंश के है इनमें अहिर, यादव, मालव, भारशिव जिसे आज राजभर या भरद्वाज के नाम से भी जानते है यह सब देश भेद से भारत के आदिवासी गोंड राजवंश के अति प्राचीन आदिवासी मूल निवासी है|

गड़ेरिया(पाल या सेन) का राजवंश (गडरिया जाति)

यह शब्द गुड रक्षायाम धातु से बना है जिसका अर्थ है पालन करना, रक्षा करना, सेवा देना| गड़ेरिया में सेन शब्द का ताल्लुक सैनिक से है सेना से है सेना का अर्थ होता है “रक्षा करना” यानी पाल वंश के लोग रक्षा दल के थे इनका काम अपने मालिक का रक्षा करना होता था जब भी उनके (मालिक को) कोई मुसीबत आती है तो पाल वंश के लोग उस राज्य का या अपने मालिक का शासन अपने हाथ में लेकर उनकी रक्षा करते थे इसलिए भी इनका नाम सेन वंश पड़ा|

सन 312 में पाल वंश ही सेन वंश थे गुहिल और हर्ष ने गोंड (पाल) सम्राट की पराजय में प्रतिहार शासक की सहायता की थी|

डॉ०नेत्र पाण्डेय “भारत का वृहद् इतिहास” पुस्तक सन 1950 में प्रकाशित पेज नंबर 223 में लिखते हैं की अभीर (अहिर) ही गड़ेरिया है|

कर्नल तांड के मुताबिक “राजस्थान का इतिहास” में लिखते है पेज नंबर 541 में की भाटी जाति यदुवंशी राजपूतों की शाखा है|

लेफ्टिनेंट राम भरोस अग्रवाल अपनी पुस्तक “गढ़ा मंडल के गोंड राजा” में लिखते है पेज नो० 160 में गोंडी अहीर और गोंडी लोहार यह दोनों जातियाँ पूरी तरह से गोंड ही है आज भी कहा जाता की अहिर, गड़ेरिया, कुर्मी सब एक है| यह भारत के आदिवासी की शाखा हैं|

कुम्हार का राजवंश (कुम्हार जाति)

कुम्हार शब्द कुम्भकार का अपभ्रंश है इसके अंतर्गत दो शब्द है एक कुम्भ और दूसरा कार कुम्भ शब्द कुभी धातु से बना है और इसका अर्थ है आच्छादन| कुभि धातु के कृत प्रत्यय द्वारा प्रतिपादित बनती है कृन्त द्वित समासश्च से फिर इसकी प्रातिपदिक संज्ञा हो जाती है इस प्रकार दोनों को मिलकर कुम्भकार बना है अर्थात जो लोगों को प्रकट करता हो उनको सामने लाता हो एक नये रूप में सामने लाना ही कुम्हार कहलाया|

यह रणनीति कार होते थे इनका काम है आपसी समझ पैदा करना नीति बनाकर फिर धावा बोलना| कुम्भ कार गोंडों की फ़ौज की सूझ-बुझ तथा संगठन का परिचायक है बिना इनकी सहायता के किसी को भी पराजित करना यह बिलकुल संभव नहीं है| यह जाति भी भारत के आदिवासी गोंडों की एक शाखा ही थी|

इनकी कुछ प्रजातियाँ है जैसे खाटेर, वंदा, माल, जटिया, मेवाड़, पूर्विया इनके तहत कुछ मुसलमान हो गए इनको मोइला कहते थे|

राजभर या भर (राजभर जाति)

चाहे राजभर कहे या भर कहे दोनों एक ही है और इनका सीधा संबंध गोंडो से है गोंडों की एक शाखा भरिया नाम से जानी जाती है| राजभर शब्द दो शब्द से बना है राज और भर जिसमें राज का बोधक राज्य से है भर शब्द मूल धातु से बना है जिसका अर्थ होता है भरणे करने वाला या पूरा करने वाला|

मध्य प्रदेश में सरकारी गज़ट्स में गोंडों की शाखा में “भरिया” को भी सम्मिलित किया गया है जिसका सीधा से अर्थ है राजभर से है| राजभर, भर, भरिया, भैरिया यह सब एक ही है जब तक इनका भारत पर प्रभुत्व रहा तब तक यह भरतजन कहलाये जब यह सत्ता से विहीन हुए तो राजभर ही कहलाये जब यह और गिरते चले गए तो इनके आगे से राज शब्द भी चला गया केवल भर रह गया या भरिया ही बच पाया परन्तु अभी भी इस जाति के लोग अपने आपको राजभर ही बतलाते हैं| यह जाति भी भारत के आदिवासी गोंडों की एक शाखा ही थी|     

भरभूज या भरभूजा (bharbhunja caste)

इस जाति की उत्पत्ति मिस्टर विलसन के मुताबिक कहार जाति से हुई है राजस्थान में भरभूज जाति यदुवंशी राजपूत से उत्पन्न हुई है यह मुख्यतः हलवाई का व्यवसाय करते थे|

भरभूज के चार गोत्र है यदुवंशी अहिर गोत्र के, सक्सेनी कायस्थ गोत्र के, वासुदेव ब्राह्मण गोत्र के और भटनागर भी कायस्थ गोत्र से ही संबंधित है| कायस्थ के बारे में कहा जाता है एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है पढ़ लिए तो कायस्थ नहीं तो भट्ठी झोकने लायक|

भरभूज के कुछ उप जाति हैं भाटी, भटनागर, कन्नोजिया(धोबी), किशंगोमती(यदुवंशी), सुखसेजिया, धनकुट्टा आदि प्रमुख उप जातियाँ हैं|

मल्लाह या केवट (मल्लाह जाति)

मल्लाह शब्द दो शब्दों से बना है मल्ल + आह = मल्लाह अर्थात वीरता की दहाड़| इसी प्रकार केवट = क + वट यहाँ “क” का अर्थ होता है पानी, प्रतिष्ठा, तेज, मान सम्मान और वट का अर्थ होता है रास्ता अर्थात जिन लोगों ने अपने वंश का मान-प्रतिष्ठा के साथ अपने देश का स्वतंत्रता कायम रखा वह लोग केवट या मल्लाह के नाम से जाने जाते थे|  

गोंडों की एक प्रमुख जाति में एक मल्लाह जाति है इनका राजसत्ता में सीधा संबंध रहा है इस वंश के लोग भारत के आदिवासी गोंडों के प्रमुख सेनापति हुए हैं या महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहे है|

जायसवाल (जाति)

यह गोंडों के वीर आदिवासी लोग थे यह इनका नवीन नाम है इनका पुराना नाम है “जैसवार या जयसवार” था मिर्ज़ापुर जिले में आज भी इन नामों का प्रयोग किया जाता है अपने संबोधन में यह गोंडों की ही एक शाखा है इनका अन्य जिलो में भी उपस्थिति है रायबरेली, प्रतापगढ़ आदि जिले में|

यह नाम पड़ा कैसे? इसके पीछे एक बात है यह जाति लड़ाके होते थे तो जब भी यह लोग किसी युद्ध को जीत जाते थे और ख़ुशी मनाते हुए अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए अपनी सेना जिस रास्ते से गुजरते थे तो वहाँ के लोग उन्हें जैसवार कहकर पुकारते थे आदिवासी लोग डर जाते और डर से वह जय-जय कार करने लगते थे और कहते जैसवार-जैसवार| अर्थात जो रण जीता हो युद्ध जीता हो| रायबरेली जिले में इनका एक विशाल किला भी बना है जिसे जैसवार गढ़ कहते है|   

माली का राजवंश (माली जाति)

माली शब्द माल शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है पहलवान या योद्धा इसी से मालव बना यह लोग पंजाब क्षेत्र में निवास करते थे मालवों का सिकंदर से मुकाबला भी होता रहता था मालव लोग शक्तिशाली होते थे यह शरीर से काफी मजबूत होते थे इन लोगों का निवास स्थान मरुभूमि बताया गया है| 

यह राजपूत होते है इनका क्षेत्र पंजाब से जयपुर तक था और वहीं अपना राज्य और शासन करते थे इन्हें मारवाड़ भी कहते थे| यौधेय समुदाय के लोग उनके पड़ोसी थे और सिन्धु घाटी सभ्यता तक इनका क्षेत्र था इनके सिक्के पूरी तरह नाग वंश की ही तरह मिलते-जुलते थे यौधेय यादव या अहिर पर्यायवाची भी कहते है इसी तरह मालव, माली, वीर, पहलवान, मालवीय, शूर (वीर) आदि यह सारे ही एक के ही अनेक रूप हैं और इनका हर जगह समानताएं हैं| 

साथ ही साथ निकट संबंध भी है इससे यह जान पड़ता है की माली, मालव, यादव सब एक ही प्रमुख जाति नागवंश से संबंध है और जिसका सीधा संबंध है भारत के आदिवासी गोंडवंश से है| यह सरे लोग (भारत के आदिवासी) मूल निवासी थे और प्रजातंत्रीय समाज के हिस्सा थे|

लोहार या बढई का राजवंश (लोहार जाति)

इनका वंश ज्यादातर कश्मीर में रहा| कश्मीर के राजा अनन्त का शासन काल सन 1028 ई० में था उनकी रानी एक योग्य महिला थी उनका नाम था सुर्यमती वह निरंतर अपने राज्य का कोष सुधारने के लिए लगातार मंत्री का भी कार्यभार संभालती थी उनके राज्य पर लगातार हमले और आक्रमण होते रहते थे जिस कारण उन्होंने अपने पुत्र (कलश) को सारा कार्यभार राजा बना के सौंप दिया लेकिन वह देशद्रोही निकला इससे दुखी होकर उनके पिता ने आत्महत्या कर लिया और माता सती हो गई इससे उसके चरित्र में बदलाव आया और उसने फिर से कश्मीर का खोया हुआ मान सन्मान दुबारा हासिल किया|

इसके बाद हर्ष का शासन का समय आया जो की कलश का पुत्र था उसने स्थिति को सुधरने के लिए जनता पर भारी भरकम कर लाद दिया जिससे जनता में विद्रोह प्रारम्भ हुआ मंदिरों और मठों को लुटा गया आगे चल के यह एक विशाल रूप लिया और उनका वध कर दिया गया|

उच्छल को तब कश्मीर का राजा बनाया गया उसका भी वध कर दिया जाता है उसके बाद एक और आक्रान्ता आता है यह कश्मीर के इतिहास का अंधकार युग था|

सन 1123 ई० में सुस्सल के पुत्र जयसिंह राजा बने उन्होंने कश्मीर में अपने शासनकाल में 30 वर्षों तक शांति के साथ शासन किया उसने अपनी शक्ति अपनी सूझबूझ और मुसलमानों की सहायता से उनके विरोध में उठने वाले आवाज को दबा देते थे और समाप्त कर देते थे|

राजा जयसिंह के बाद कश्मीर का फिर वही पूरा अंधकार युग फिर से प्रारम्भ हो गया कोई भी राज्य का सही ढंग से संचालन करने में सफलता नहीं पाई धीरे-धीरे लोहार जाति का शासन काल समाप्त हो गया और इन लोगों ने अपनी जीविका चलाने के लिए लोहा, लकड़ी तथा अनेक प्रकार का व्यवसाय शुरू कर लिए और अपने राजपूत समुदाय से अलग हो गए मूलतः यह भी भारत के प्राचीन मूल निवासी आदिवासी से ही ताल्लुक रखने वाले लोग थे जिनका सीधा संबंध भारत के आदिवासी गोंड से था|

गुर्जर का राजवंश (गुर्जर जाति)

गुर्जर का अर्थ होता है गर्जर करने वाला, तड़पाने वाला, भयंकर आवाज करने वाला, सिंघनाद करने वाला|

गुर्जर एक ऐसी जाति है जो युद्ध में प्रथम पंक्ति में चलती थी यह राजवंश युद्ध में काफी शक्तिशाली हुआ करते थे इनके नाम से दुश्मन के छक्के छूट जाते थे| इतिहासकारों के अनुसार यह पंजाब से दिल्ली आये यहाँ से इन्होंने आसपास के सरे क्षेत्र और राज्य पर कब्ज़ा कर लिया| 

ऐसा माना जाता है की भाट की उत्पत्ति और गुजरों की उत्पत्ति राजपूत गोत्र से ही हुआ है ब्राह्मणों में गुजर गौड़ के रूप में प्रचलित थे पठानों में पठाना से प्रसिद्ध थे इनकी अन्य जातियाँ अन्य जगहों में और अन्य प्रान्तों में भी पायीं गई और रह सारे छोटे-छोटे जातियों का संबंध (गहन अध्ययन के बाद पुरानी पुस्तकों के अध्ययन के बाद) यह पता चला की इन सबका संबंध भी कहीं ना नहीं भारत के आदिवासी गोंड राजवंश से मिलता है|

बरई राजपूत वंश (बरई जाति)

बरई शब्द यह दो शब्द के मेल से बना है बर + ई बर का अर्थ होता है “श्रेष्ठ या प्रधान” और ई का अर्थ है “यह” इसको एक साथ समझने पर अर्थ निकलता है श्रेष्ठ व्यक्ति, प्रधान या स्वामी|

यह अपने समय में प्रधान शासक थे कुशलता से शासन करनेवाला इन्सान| इनका शासन समाप्त होने पर इन लोगों ने अपनी जीविका चलाने के लिए पान बेचने का काम प्रारम्भ किया इनको तमोली या पनेरी कहे जाने लगे इनमे 84 उप जाति होती है इनमें यशवल प्रजाति को सबसे श्रेष्ठ मानते है अन्य शाखा का नाम है मोरभात, कुम्भावत, पिपलिवाल, धोमियां, मुनरीवाल यह राजस्थान के नागौड़ गोंड से है|

इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में इनको जायसवाल, चौरसिया, नागवंसी, कटिहार, कन्हरावत, साहू, मोदी, मंडल, भगत, गुप्ता, शर्मा, वर्मा, बरुई, भरद्वाज, मजुमदार, गोंड इन सबका संबंध सीधे तौर पर गोंडवाना वंश के गोंड जाति जो की भारत के आदिवासी (मूलनिवासी)  है इसी से सबका संबंध है और यह सब राजपूत राजबंश गोंड कहलाये|

Gond Male & Female

महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

भारत के आदिवासी “भारत के मूल निवासी हैं” इनको Scheduled Tribes “अनुसूचित जनजाति” कहा जाता है भारत के आदिवासी में सबसे प्रमुख जाति गोंड, कोल, संथाल, भील, खरवार आदि आतें है|  

भारत में वनों में बसने वाले को वनवासी या आदिवासी कहते है| भारत में रहनेवाले सभी लोग 200-300 पीढ़ियां पूर्व हर लोग जंगलों में ही रहा करते थे धीरे-धीरे लोगों में समझ आने लगी और लोग कस्बे में रहने लगे गाँव बसने लगे फिर शहर बनने लगे इस तरह प्रगति होती गई और आज आधुनिक भारत बन गया|   

असली आदिवासी – गोंड, भील, संथाल, मुंडा आदि बहुत सी आदिवासी है जिसका उपरोक्त में विस्तार से वर्णन किया गया है|

भारत के “जारवा जनजाति” आज भी वनों में रहते हैं और यह पूरी तरह दुनिया से कटे हुए है यह लोग अंडमान निकोबार के जंगलों में रहते है जहाँ आम जनता का जाना पूरी तरह प्रतिबंधित है क्योंकि यह बाहरी लोगों को देखना पसंद नहीं करते और देखते ही उनपर तीर चलाना शुरू कर देते हैं| इसलिए भारत सरकार द्वारा इस क्षेत्र को मनुष्यों के लिए प्रतिबंधित कर रखा है|  

आदिवासी प्रकृति को अपना देवता मानते हैं और वह पेड़, पर्वत, नदी, पत्थर को अपना आराध्य देव मानते हैं| यह लोग भगवान शिव और सूर्य को पूजते हैं|

आदिवासी कहीं से नहीं आये हैं यह यहाँ के मूल निवासी है जो पहले जंगलों में रहते थे लेकिन अब यह शिक्षित हो गए हैं और समाज का एक हिस्सा है| इन्हें सरकार  “अनुसूचित जनजाति” के वर्ग में आरक्षण दी हुई है|

आदिवासी को अगर हम संधि विच्छेद करें तो पाएंगे ‘आदि’ यानी आरंभ, प्रारम्भ, शुरुआत से है| और ‘वासी’ का अर्थ होता है निवास करनेवाला, रहनेवाला| दोनों को मिलाने पर यह निकलकर आता है जो पहले से निवास कर रहा है यानी ‘मूल निवासी’| भारत के मूल निवासी हमारे आदिवासी ही हैं|   

पहले लोग आदिवासी को हिन्दू नहीं मानते थे क्योंकि यह लोग जंगल में निवास करते थे इनका रहन-सहन पूरी तरह जंगली था लेकिन समय के साथ यह लोग समाज के मुख्य धारा से जुड़ गए है और यह हिन्दू है|

“मध्य प्रदेश” भारत में सबसे ज्यादा आदिवासी वाला राज्य है यहाँ के मुख्य आदिवासी गोंड कहलाते हैं|

आदिवासी का धर्म – हिन्दू धर्म है इनकी अपनी परंपरा और सांस्कृतिक मान्यताएं हैं जिनका वह पालन करते हैं|

एनपीआर रिपोर्ट के अनुसार खोई-खोई, सैन या खोइसन जनजाति (आदिवासी) को दुनिया का सबसे पहला आदिवासी माना जाता है जो समूह में रहते थे और इनका मुख्य काम शिकार करना था| इनका वजूद 22,000 वर्ष पूर्व से है|

आदिवासी को सन 1951 की जनगणना में हिन्दू धर्म मान लिया गया और इन्हें अनुसूचित जनजाति के श्रेणी में रखा गया ताकि यह लोग सरकारी सेवा का लाभ ले सके और अपना जीवन बेहतर बना सकें|

आदिवासी गोंड का भगवान “बड़ादेव” हैं यह प्रकृति के पुजारी है, नारायण देव सूर्य को मानते हैं, शिव को मानते हैं|

आदिवासी लोग अपने पुरखों की पूजा करते हैं इसके अलावा प्रकृति (नदी, पर्वत, पेड़) आदि की पूजा करते हैं|

आदिवासी लोग मुख्य रूप से (पूर्व में) पूरी तरह जंगलों के फलों और मांस या जंगल में पाये जाने वाले अन्य प्रकृति चीज पर निर्भर थे इनको जडी-बुटी की अच्छी पहचान थी महुआ का शराब इनको बहुत पसंद है यह लोग सबसे पहले महुआ को अपने देवी-देवता को चढ़ाते हैं फिर सेवन करते हैं| 

पूर्व में आदिवासी लोग समूहों में रहते थे अपने घरों को पेड़ो के लकड़ी और बांस के सहायता से अपने घरों का निर्माण करते थे जिन्हें झोपड़ी कहते हैं| इनके दीवार मिट्टी के होते हैं दरवाजा बांस के होते हैं और ऊपर छप्पर होते हैं|

आदिवासी के जनक “पारी कुपार लिंगों गोंड” माने जाते हैं| इसका प्रमाण नेताम गोंड राजाओं के किले से प्राप्त मूर्ति से मिलता है|

गोंड जाती का गोत्र क्या है?

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निष्कर्ष

उपरोक्त वर्णित तमाम साक्ष्यों, प्रमाणों, किताबों, ग्रंथों, इतिहास कारकों, शिलालेखों और अलग-अलग जातियों के चिन्ह, मुद्राओं, रंग-रूप, वेश-भूषा, रहन-सहन खेती, जीविका लोगों का सोच संस्कृति अगर सब कुछ का गहराई से अध्ययन करें तो पता चलता है की सब में समानता है सब की उत्पत्ति का केंद्रबिंदु भारत के आदिवासी ही है|

हमने देखा “20 Major Tribes in India” की अलग-अलग जातियों के लोग अपने-अपने क्षेत्र में शासन किए बाद में जब सब का शासन समाप्त हो गया तो सभी लोग अपनी जीविका चलाने के लिए अपने गुण के मुताबिक व्यवसाय कार्य करने लगे| यह सब लोग भारत के आदिवासी ही थे फिर लोग उनके कार्य के मुताबिक उनको जाति से संबोधित करने लगे|

फिर यहाँ से शुरू हुआ एक नए दौर का प्रारम्भ… लोग मेहनत करने लगे और अपने-अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने लगे फिर लोग शादी विवाह में अपने स्तर के रहन-सहन के मुताबिक ही वर-वधु का चयन करने लगे| लोग अपने व्यवसाय से जुड़े लोगों को ज्यादा पसंद करने लगे इस तरह से उनका एक समूह बांटता चला गया लोग अपने बुद्धि विवेक से विकास करने लगे अब यह सब आदिवासी भारत के आदिवासी विकास के पथ पर चल दिये|

यही लोग अपने को उच्च वर्ग का बताने लगे और यही हकीकत भी है|

यह सारे लोग एक ही है अब लड़ाई अपने प्रतिभा को निखारने की थी जो बुद्धि विवेक से आगे निकला वह ब्राह्मण-पंडित कहलाया जो अपने बाहु बली अपने आप को साबित किया वह क्षत्रिय कहलाया जो गाय-भैंस से जुड़ा दूध का काम करने लगा वह यादव ग्वाल कहलाया जो अस्त्र-शस्त्र निर्माण का कार्य करने लगा वह लोहार कहलाये जो बर्तन का निर्माण कार्य करने लगे वह प्रजापति कहलाये|

इस तरह से जो व्यापार करने लगे वह व्यापारी बनिया वर्ग कहलाये लेकिन सबका एक ही सूत्रधार है भारत के आदिवासी से संबंध है| अब अंतर अमीर-गरीब का आ गया अब लोगों की पहचान उसके कार्य से होने लगा है|

भारत के आदिवासियों का इतिहास

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