
बोधगया और गया क्यों प्रसिद्ध है
हिन्दू शास्त्र के मुताबित “गया” सभी तीर्थो मैं श्रेष्ठ है क्योकि यह प्रमुख पितृमुक्ति तीर्थ है शाश्त्रो के मुताबित प्रयागराज, काशी और गया तीनो को त्रिस्थली कहते है परलोक मैं मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान का विधान है और गया पितृमुक्ति स्थान है| यह स्थान भारत के बिहार मैं स्थित फल्गु नदी के तट पर बसा एक खुबसूरत शहर है|
बोधगया और गया की दुरी मात्र 17 km है इसलिए जो भी शद्धालू गया आता है वो बोध गया का दर्शन जरुर करने आता है वायु पुराण के अनुसार गयासुर ने तपस्या से यह सिद्धि प्राप्त की थी उसे स्पर्श करनेवाला सीधा स्वर्गलोग को प्राप्त हो इससे यमराज और देवताओं को चिंता होने लगी भगवान के समझाने के बाद गया अपना प्राण त्यागने के लिए तैयार हुआ|
बोधगया और गया के कुछ रोचक तत्व – गया का सिर उत्तर की और पैर दक्षिण की ओर करके लेटाया गया लेकिन उसका सिर कांपता रहा ब्रम्हा के द्वारा एक चट्टान उसके सिर पर रखा गया फिर भी उसका सिर कांपता ही रहा तब सारे देवता मिलके उस चट्टान पर चढ़ गए तब जाके उसका प्राण निकला तब भगवान विष्णुजी ने उसे वरदान दिया और कहा की यह स्थान संसार का सबसे पवित्रतम स्थान होगा देवता लोग यहाँ विश्राम करेंगे और जो भी इस स्थान पर दाह-संष्कर या पिण्ड दान करेगा वो अपने पूर्वजो सहित ब्रम्ह्लोक जायेगा|
महाबोधि मंदिर कहाँ है?
“बोधगया और गया” से पटना यानि महाबोधि मंदिर भारत के बिहार राज्य के राजधानी पटना से 101 किलोमीटर दूर गया जिला में स्थित है|
बोधगया कहाँ है और किस राज्य में स्थित है?
“बोधगया और गया” बिहार राज्य के गया जिले में स्थित है यहीं पर भगवान बुद्ध बोधि वृक्ष के नीचे निर्वाण प्राप्त किये थे यह एक धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी है| यहाँ से ज्ञान प्राप्त कर उत्तर प्रदेश के सारनाथ में उन्होंने अपने पांच शिष्यों को पहला उपदेश दिया था|
गया जी का मंदिर
ऐसा कहा जाता है की यहाँ पितृ देवता के रूप में “बोधगया और गया” भगवान विष्णु का वास है पितृ को श्राद्ध करने बाद यहाँ स्थित भव्य विष्णुपद मंदिर स्थित है जो फल्गु नदी के तट पर स्थित है इस मंदिर में भगवान विष्णु जी का पदचिन्ह मौजूद हैं इसे धर्मशीला कहा जाता है इसके दर्शन से हजारों जन्मो का पुन्य प्राप्त होता है इसका निर्माण इंदौर के शाशिका अहिल्या बाई ने सन 1787 में फल्गु नदी के तट पर बनवाया था|
गया का इतिहास
बोधगया और गया का इतिहास के नज़र से देखा जाये तो गया मौर्या काल में एक महत्त्व का स्थान रहा है चन्द्रगुप्त मौर्य सम्राट अशोक से सम्बंधित बहुत से चिन्ह, निशानी, बर्तन, पुस्तक, औजार, पूजा स्थल आदि पाये गये यह सारे चीज खुदाई में पाए गए क्योंकि मौर्य काल के बाद मुगलों ने भारत पर आक्रमण करके भारत को बहुत लूटा, मंदिरों को नुकसान पहुँचाया और लोगो का धर्म परिवर्तन करने लगे|
आज भी जो भारत के मुश्लिम लोग है बोधगया और गया में वो हिन्दू से मुश्लिम बने है क्योंकि पहले भारत हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था मुगलों के पतन के बाद अंग्रेजो का राज आया अंग्रेज शुरू से ही “फूट डालो और राज करो” की पोलिशी पर लोगो में मतभेद पैदा करके भारतियों पर राज करने लगे इस तरह भारतीय संस्कृति को अलग-अलग काल में अलग- अलग शाशकों द्वारा नष्ट और विध्वंश करने का काम किया गया| गया जिस वजह से प्रसिद्ध है वो है पितरों के श्राद्ध के अलावा स्वयं का भी श्राद्ध किया जाता है|

बोधगया में महाबोधि मंदिर किसने बनवाया
इतिहास के अनुसार बोधगया और गया में उस समय पाली भाषा चलता है आज भी पाली भाषा को पढ़ाया जाता है भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के 250 वर्षो के बाद इस स्थान पर मंदिर का निर्माण सम्राट अशोक के द्वारा कराया गया आगे चलके 19 वीं शताब्दी में सर अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा मंदिर जोकि जर्जर हो चूका था उसका फिर से मरम्मत कराया और उसको फिर से उसी स्थिति में पुनः स्थापित किया|
बोधगया का इतिहास
यहाँ से कुछ दुरी पर बौद्ध गया है बौद्ध गया भगवान बुद्ध की तपोस्थली है भगवान बुद्ध मर्यादा पुरोषोत्तम भगवान श्रीराम के ही पूर्ववती सूर्यवंशी राजाओं के इक्ष्वाकु वंश से आते है| बौद्ध गया जहाँ भगवान सिद्धार्थ गौतम को ज्ञान की प्राप्ति हुई यहाँ स्थित पीपल के वृक्ष के नीचे तपस्या करते-करते ज्ञान प्राप्त हुआ|
मोक्ष तो उन्हें कुशीनगर में प्राप्त हुआ और साथ ही साथ जिस पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध ध्यान किया करते थे वो पीपल का पेड़ भी अमर हो गया वो बोधिवृक्ष आज भी अपने पूर्ण रूप में उपस्थित है और इसीलिए बौद्ध भिछुयों के लिए यह एक आस्था का केंद्र है| यहाँ बौद्ध भिछुयों द्वारा बहुत से आश्रम बनाये गया है ध्यान केन्द्र, विपश्यना केन्द्र और नालंदा विश्वविद्यालय है जहाँ पुरे विश्व से लोग अध्यन करने और अपने आध्यात्मिक उन्नति के लिए आते है|
बोधगया का प्राचीन नाम क्या था?
बोधगया और गया को कई प्राचीन नामो से जाना जाता है जैसे नालंदा, जैन तीर्थस्थल, वैशाली, राजगीर, राजगृह, पावापुरी यह प्रमुख नाम है|
गया शहर किस लिए प्रसिद्ध है
गया शहर अपने बोधगया मंदिरों, गयाजी मंदिर, भगवान विष्णु, पितृ-श्राद्ध, शिव मंदिर, जैन तीर्थस्थल, नालन्दा विश्वविद्यालय और भगवान बुद्ध के लिए प्रसिद्ध है|
फल्गु नदी का इतिहास
फल्गु नदी को सदेही विष्णु गंगा नदी कहते है यह नदी माता सीता के श्राप के लिए प्रसिद्ध है और माता सीता बालू का पिंड देकर इसे अमर भी बना दिया है यानि यह श्राप और अमर दोनों लिए प्रसिद्ध है|
बौद्ध मंदिर का निर्माण किस शैली में किया गया है
बौद्ध मंदिर का निर्माण वास्तुकला के शास्त्रीय शैली में किया गया है इसे सम्राट अशोक द्वारा निर्मित कराया गया इसमें शिल्पकारों द्वारा पत्थरों पर कटघरा, पत्थर की स्तम्भ और स्तूप पिरामिड के आकर में बनाया गया जिसका प्रमाण आज भी दिखता है| ***ध्यान को गहराई से समझने के लिए click here
निरंजना नदी, पुनपुन नदी और कर्मनाशा नदी में महत्व
निरंजना नदी
निरंजना नदी फल्गु नदी की सहायक नदी है और उसके पास से ही बहती है जिसका नाम बदल के “नीलांजना नदी” रख दिया गया है इस नदी का सम्बन्ध भगवान बुद्ध से भी जुड़ा है इस नदी का साहित्यिक महत्व है|
पुनपुन नदी
पुनपुन नदी को गंगा की सहायक नदी कहते है यह बिहार के मध्य पहाड़ों से या इसे कह सकते है की यह झारखण्ड के छोटानागपुर के पठार से निकलती है और पटना के फतुहा गंगा नदी में मिलती है इस नदी को इस लिए पवित्र माना जाता है क्योकि यहाँ लोग अपना सिर मुण्डन करवाते हैं|
कर्मनाशा नदी
पौरोणिक मान्यता के अनुसार महादानी राजा हरिश्चंद के पिता त्रिवंधन के पुत्र राजा सत्यव्रत (त्रिशंकु) उनके लार से यह नदी का जन्म हुआ है जो आगे जाके बक्सर के पास मौजूद गंगा नदी में मिलती है|
गया जी कहाँ पर है?
गयाजी गया में फल्गु नदी के तट पर बसा प्राचीन शहर है यहाँ देश-विदेश से हजारों लोग पिंडदान करने के लिए आते है यहाँ मोक्षधाम गयाजी में आके अपने पितरो को तर्पण यानि पिंडदान किया जाता है जिससे माता-पिता का उद्धार होता है|
गया में पिंडदान का खर्च?
पिंडदान में आनेवाला खर्च कुछ इस प्रकार है अगर आप एक आदमी के पिंडदान कराते है तो इसका खर्च 12,330 रूपए और बाकि खर्च लेके 15,000 रूपए प्रति व्यक्ति पढता है इसमें भी कई कैटगरी बना है अपने हिसाब से इन्सान चुन सकता है|
गया में पिंडदान में कितना समय लगता है?
महाभारत के अनुसार फल्गु नदी में स्नान के उपरान्त जो मनुष्य श्राद्धपक्ष में भगवान विष्णु का पुरे विधि विधान से पूजा अर्चना करते है और पितर्रों का विधि विधान से कर्मकांड करते है उनकी उस योनि से मुक्ति निश्चित है और वह स्वर्ग में जाते है ऐसा माना जाता है|
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