बद्रीनाथ के दर्शन
संक्षिप्त परिचय
बद्रीनाथ मंदिर के दर्शन हमारे चार धाम में से सबसे महत्वपूर्ण है बिना इसके चार धाम यात्रा पूर्ण नहीं माना जाता पुराणों के अनुसार यह सबसे प्राचीन स्थान माना जाता है यानि इसकी स्थापना सतयुग मैं हुई थी बदरी अर्थात बेर के घने वन होने के करण इसका नाम बदरी-वन पड़ा|
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने बदरीनाथ में ही शांति प्राप्त कर धर्म और संस्कृति के सूत्र पिरोये यह स्थान अलकनंदा नदी के तट पर बसा है जो की इस समय भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है| बद्रीनाथ धाम ऊँचे हिमालय पर्वतो के मध्य स्थित है इसे गढ़वाल क्षेत्र कहा जाता है| यह मंदिर वर्ष के 6 महीने बंद ही रहता है इसका करण है बर्फ पड़ना|
विस्तार से समझें
बद्रीनाथ की कथा
बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु की पूजा बद्रीनारायण के रूप में होती है पुराणों के अनुसार नर और नारायण दो ऋषि धर्म और कला के पुत्र थे और भगवान के चतुर्थ अवतार थे इसी स्थान पर उन्होंने शांति प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की उनकी तपस्या के करण इन्द्र को अपने अपनी गद्दी जाने का डर सताने लगा तो उन्होंने उनके तपस्या को भंग करने के लिए कुछ अप्सरायें भेजी|
इससे नारायण बहुत क्रोधित हो गए और श्राप देने लगे तो नर ने उन्हें शांत किया फिर नारायण ने उर्वशी को इंद्र की सेवा में भेट कर दिया और अन्य अप्सराएँ जब नारायण से विवाह करने का अनुरोध किया तो उन्होंने अपने अगले अवतार यानि कृष्णा अवतार में विवाह करने का वचन दे दिया यही बद्रीनाथ की कहानी भी है और कथा भी है|
बद्रीनाथ मंदिर
यह क्षेत्र कई पर्वतशंखलाओ से घिरा है जिनमे से एक है नारायण पर्वत इस पर्वत से प्राय भारी-भरकम हिम् शिलाएं खिसकती रहती है और नय-नय आकर लेती रहती है परन्तु जो सबसे विचित्र बात यह है की बद्रीनाथ मंदिर के बारे में यह आदि से आज तक मंदिर को कोई क्षति नहीं पहुँची| इस स्थान पर कई कुण्ड और तीर्थ है ऋषि गंगा, कूर्मधारा, प्रह्लादधारा, ताप्तकुण्ड, नारदकुण्ड इसके साथ-साथ कुछ पर्वत शिलाए है नारद शिला, मार्कंडेय शिला, नृसिंह शिला और गरुण शिला आदि|
बद्रीनाथ मंदिर किस शैली में बना है
यह हिन्दू शैली की मंदिर है इसे बद्रीनारायण मंदिर कहते है इसके निर्माता आदि शंकराचार्य थे यह उत्तराखण्ड के चमोली जिले के अलकनंदा नदी के तट पर बसा है इस मंदिर का कई बार पुनः निर्माण हुआ है यह सत्य सनातन धर्म का प्रमुख जैन तीर्थस्थल है|
बद्रीनाथ किस राज्य में है
यह उत्तराखण्ड राज्य में है| लेकिन बद्रीनाथ कहाँ है? तो यह चमोली जिले के अलकनंदा नदी पर बसा है यह एक छोटा शहर है इसे जैन धाम भी कहते है क्योकि यह स्थान भगवान आदिनाथ को समर्पित है|
बद्रीनाथ मौसम
यहाँ का मौसम अत्यधिक ठण्ड और बर्फबारी के कारण 6 महिना बंद रहता है और 6 महिना खुला रहता है केदारनाथ धाम और बद्रीनाथ धाम दोनों एक साथ ही शुभ मुहूर्त में खोले जाते है| एक सवाल यह उठता है की बद्रीनाथ का न्यूनतम तापमान कितना रहता है? भगवान विष्णु के इस धाम में तापमान -20 डिग्री तक पहुँच जाता है और बर्फ की 9-10 फीट की ऊँची चादर जमा हो जाती है|
बद्रीनाथ धाम का रास्ता
बद्रीनाथ धाम जाने के लिए तीन रास्ते है:
1 ) पहला हल्द्वानी रानीखेत से होकर जाया जा सकता है
2 ) दूसरा कोटद्वार – पौड़ी गढ़वाल से होकर जाया जा सकता है
3 ) तीसरा हरिद्वार- देवप्रयाग होकर जाया जा सकता है|
यह तीनो ही रास्ते रुद्रप्रयाग में जाके मिलते है जो अलकनन्दा और मन्दाकिनी का संगम है इसे अलकनंदा नदी पर बद्रीनाथ धाम बसा है|
निष्कर्ष
भगवान बदरीनाथ को बदरीनारायण भी कहते है क्योंकि यहाँ श्री विष्णु स्वयं वास करते है|
बदरीनाथ के बारे में कहा जाता है की जिस किसी ने भी बदरीनाथ धाम के दर्शन कर लिए उसे फिर माँ के गर्भ में आना नहीं होता है|
गोमुख धाम जहाँ माँ गंगा की निर्मल धारा बहती है इनके दर्शन से मन निर्मल होता है|
अलकनंदा के बारे में कहा जाता है की यहाँ रहनेवाले हर मनुष्य साधू-संत सबको भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुए हैं अगर क्षीर सागर श्री विष्णु जी का पहला निवास स्थान है तो बदरीनाथ दूसरा|
यमुनोत्री मंदिर में हमेशा एक दिया जलता ही रहता है यहाँ तक की 6 महीने बर्फ बरी के बाद जब दरवाजा खुलता है तो एक दिया जलता ही रहता है|
नृसिंह मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है जिस दिन नृसिंह भगवान एक एक बाजू टुटके गिर जायेगा उसी दिन नर नारायण पर्वत के टूटने से बदरीनाथ के दर्शन अपने वर्तमान स्थान पर ही हो जायेंगे ऐसी मान्यता है|
सरस्वती मंदिर का अपने विशेष महत्व है यह नदी प्रकट होते ही कुछ दूर जाके अलकनंदा नदी में विलीन हो जाती है| कुल मिलाके बदरीनाथ धाम मंदिरों और नदियों का खुबसूरत स्थान है|
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