दुर्वासा धाम आजमगढ़

दुर्वासा धाम आजमगढ़

दुर्वासा ऋषि रामायण

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संक्षिप्त परिचय

“दुर्वासा ऋषि आश्रम मंदिर या दुर्वासा धाम आजमगढ़” अपने आप में एक ऐतिहासिक स्थल है जहाँ गुरुनानक जयंती पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु और दर्शनार्थी आते है और तीन दिनों का भव्य मेला और स्नान की व्यवस्था प्रशासन द्वारा किया जाता है|

महर्षि दुर्वासा ऋषि कर बारे में यहाँ सम्पूर्ण विवरण आपको प्राप्त होगा महर्षि दुर्वासा रामायण काल से भी पूर्वकालीन के समय के ऋषि थे उनके जन्म का विवरण, तपस्या, माता-पिता उनके भाइयों के बारे में जानकारी दिया हुआ है साथ ही साथ दुर्वासा ऋषि का श्राप और दुर्वासा ऋषि ने कुंती को क्या वरदान दिया था इसको भी जानेंगे जो बहुत ही रोचक और प्रसिद्ध है|

जैसे-जैसे आप महर्षि दुर्वासा धाम आजमगढ़ के बारे में पढ़ते जायेंगे उनके इतिहास के बारे जानकारी प्राप्त करते जायेंगे आपके मन के सारे प्रश्नों का समाधान होता जायेगा और आप दुर्वासा ऋषि की तपस्या, दुर्वासा ऋषि आश्रम, दुर्वासा ऋषि मंत्र उनके स्वभाव के बारे में समझते जायेंगे|

हमारे द्वारा तमाम ग्रंथों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जो भी जानकारी दी जा रही है वह बहुत ही स्पष्ट और बहुत ही साधारण भाषा में बताने का एक सफल प्रयास किया गया है जिससे कोई भी आसानी से इसे समझ सकें|

दुर्वासा का मेला कब है? यह मेला हर साल गुरुनानक जयंती के दिन पड़ता है तिथि आगे-पीछे हो सकती है लेकिन पड़ता गुरुनानक जयंती के दिन ही| इस दिन स्नान का विशेष महत्व है श्रद्धालु लोग एक दिन पहले से दुर्वासा धाम आजमगढ़ उत्तर प्रदेश  में एकत्रित होने लगते है और दुकानदार एक हफ्ते पहले से आने लगते है झूले वाले 10-15 दिन पहले से ही अपना माल लगाने लगते है| यह एक भव्य मेला है जिसमें शासन-प्रशासन-जिला परिषद् सबके सहयोग से लगता है|

Durvasa
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विस्तार से समझें

दुर्वासा ऋषि रामायण

महर्षि दुर्वासा आश्रम रामायण काल से प्रसिद्ध है उस समय यहाँ घनघोर जंगल हुआ करता था 84 लाख ऋषियों की तपस्थली थी यह धरती जिनमें से महर्षि दुर्वासा जी महाराज को ही सर्वार्थ सिद्धि प्राप्त हुई अन्य ऋषियों को अलग-अलग सिद्धियाँ प्राप्त हुई और वह भी अपने-अपने  दिव्य लोकों को पधारे दुर्वासाजी के स्वभाव के बारे में कहा जाता है की वह बहुत क्रोधित स्वभाव के थे किसी पर भी अगर रुष्ट हो गए तो श्राप देने और कठोर से कठोर सजा देने में  विलंब नहीं करते थे दुर्वासा ऋषि को भगवान शिव का अंश या अवतार भी माना गया है चुकी शिव रुद्र रूप है उनका अंश होने के करण क्रोध उनके स्वभाव में झलकता था|

दुर्वासा शिवलिंग

दुर्वासा ऋषि की तपस्या

एक पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्माजी के मानस पुत्र महर्षि अत्री मुनि और उनकी पत्नी माता अनुसुइया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने ले लिए तीनों देवों ने (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) चित्र कूट स्थित अत्री मुनि के आश्रम में शिशु रूप में उपस्थित हुए ब्रह्माजी चन्द्रमा के रूप में, भगवान विष्णु दत्तात्रेय के रूप में और भगवान शिव दुर्बासा के रूप में उपस्थित हुए |

माता अनुसुइया इन तीनों शिशुओं को पाकर बहुत प्रसन्न हुई और वह इन्हें पुत्रों के रूप में पाकर अति प्रसन्न हुई और कहा यह तीनों पुत्रों के रूप में मेरे पास ही रहेंगे जब आप अपने पूर्ण अवस्था में आयेंगे तब आप अपने-अपने धाम को लौट सकते है|

इनका वर्णन पुराणों में और महाभारत ग्रंथों में स्पष्ट मिलता है सत युग के एक कथा के अनुसार जब दुर्वासा बड़े हो गए तो वह अपने माता-पिता से आदेश लेकर अपने आध्यात्मिक उन्नति के लिए जंगल में जाकर दुर्वासा ऋषि तपस्या करने लगे जंगल में उन्होंने महर्षि पतंजलि द्वारा बताये आठों नियमों का कड़ाई से पालन करते हुए सारी योग-सिद्धियों को प्राप्त किए और एक सिद्ध योगी के रूप में विद्यमान हुए और यह स्थान दुर्वासा धाम आजमगढ़ में स्थित है|

Durvasa mandir
Durvasa temple in night

दुर्वासा ऋषि मंत्र

महाभारत काल से जुड़ी कथा के अनुसार राजकुमारी कुंती महर्षि दुर्वासा ऋषि का खूब आवभगत और सेवा-सत्कार किया था जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने कुंती को एक मंत्र दिया था|

इस मंत्र का प्रयोग करके वह किसी भी वक्त मन चाहे पुत्र प्राप्त कर सकती थी इस मंत्र के प्रभाव को देखने के लिए शादी से पहले ही उन्होंने पुत्र प्राप्ति सूर्य मंत्र प्रयोग कर सूर्य देव का आह्वान किया और उन्होंने तत्काल कर्ण प्राप्त हुआ जिसको उन्होंने नदी में बहा दिया बाद में कुंती का शादी पांडू से होने के बाद उन्होंने इसी मंत्र का प्रयोग करके पांचों पांडवों पुत्रों को जन्म दिया|

दुर्वासा ऋषि आश्रम

ऐसा मन जाता है की महर्षि दुर्वासा ऋषि इसी आजमगढ़ जिले के निज़ामबाद स्थित दुर्वासा धाम को अपने तपो स्थली बनाए थे इसके तमाम प्रमाण मंदिर, पेड़, नदी, और इसका भौगोलिक स्थिति यह स्थान टौंस नदी और मंजूषा नदी का संगम पर स्थित है|

यहाँ पर स्थित पीपल का पेड़ जो हजारों वर्षों से स्थित है शिव-लिंग अत्यंत ही पौराणिक है मंदिर का नक्काशी भी पुराने भवनों के आधार पर बने है दुर्बासा धाम को दुर्गेश्वर धाम भी कहते है कार्तिक पूर्णिमा (गुरुनानक देव) की जयंती के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है|

स्थानीय लोगों द्वारा कड़ाई चढ़ाने का भी रिवाज है और बड़े धूम धाम से मनाया जाता है जहाँ पूरे भारतवर्ष से मिष्ठान भंडार, खिलौना, खिजला और झुला व रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है पहले लोग स्नान करते है फिर दो दिन लगातार मेला का आनंद लेते है|

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Durvasa mela_2
Durvasa mela_3

दुर्वासा का अर्थ

दुर्वासा ऋषि शिव के अवतार थे इसलिए रुद्र रूप उनके स्वभाव में था अतः दुर्वासा का अर्थ है क्रोधी स्वभाव (रुद्र)जरा सी बात पर गुस्सा होना, श्राप दे देना|

दुर्वासा ऋषि का मंदिर

दुर्वासा धाम आजमगढ़ “दुर्वासा ऋषि का मंदिर” आजमगढ़ जनपद के निज़ामाबाद तहसील के मंजुसा और टौंस नदी के संगम पर बसा है एक छोटा सा गाँव है जिसे दुर्वासा के ही नाम से जाना जाता है यह स्थान महर्षि दुर्वासा जी महाराज की सिद्ध तपो स्थली एवं प्रसिद्ध आश्रम है|

दुर्वासा ऋषि के भाई

महर्षि अत्री मुनि और उनकी पत्नी माता अनुसुइया के कठिन तपस्या के फलस्वरूप त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) उनका पुत्र बनाने के लिए तैयार हुए और उनके आश्रम में शिशु रूप में उपस्थित हुए ब्रह्माजी चन्द्रमा के रूप में, भगवान विष्णु दत्तात्रेय के रूप में और भगवान शिव दुर्वासा के रूप में उपस्थित हुए|

Durvasa inside temple
दुर्वासा ऋषि और श्री कृष्ण

महाभारत काल की एक घटना है एक बार श्री कृष्ण ने महर्षि दुर्वासा को अतिथि रूप में आमंत्रित किया दुर्वासा ऋषि आये और अनगिनत प्रकार से उनकी परीक्षा ली कभी वह दस हजार लोगों का खाना खा जाते, तो कभी वह मौन हो जाते, कभी वह अपना जूठा कृष्ण और रुक्मणी से कहते की अपनी शरीर पर इसका लेप लगाये, तो कभी कुछ कहते करने के लिए अंत में दुर्वासा ऋषि श्री कृष्ण को आशीर्वाद देते है|

और कहते है तुम्हारा जितना भी सामान-वस्तु टूटी या नष्ट हुई है सब पूर्ववत मिल जाये|यह सारी घटना दुर्वासा धाम आजमगढ़ में ही हुआ था ऐसा ग्रंथों में वर्णन मिलता है|   

दुर्वासा ऋषि का श्राप

1) कालिदास द्वारा लिखित अभिज्ञानशाकुन्तलम् ग्रन्थ के अनुसार एक बार ऋषि दुर्वासा भगवान इन्द्र से प्रसन्न होकर उनको पारिजात फूल का माला भेंट की जिसे लेकर इन्द्र ने अपने ऐरावत हाथी को पहना दिया और वह हाथी अपने सूड से उस माला को क्षत-विक्षत कर दिया इससे क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने पूरे स्वर्ग लोक को ही श्रीहीन कर दिया|

2) एक बार रानी शकुंतला अपने प्रेमी दुष्यंत का इंतजार कर रही थे उसी समय दुर्वासा ऋषि वहाँ पहुँचते है और कहते है मेरा सेवा सत्कार करो इस पर शकुंतला मना कर देती है जिससे क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि शकुंतला को श्राप दे देते है की तुम्हारा प्रेमी तुमको भूल जाये| 

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दुर्वासा ऋषि ने कुंती को क्या वरदान दिया था

महारानी कुंती की सेवा भाव से प्रसन्न होकर महर्षि दुर्वासा जी ने उन्हें एक ऐसा मंत्र बताया था जिसके आह्वान से वह किसी भी देवता का और किसी भी समय ध्यान करके पुत्र रत्न की प्राप्ति कर सकती है| इस मंत्र को आजमाने के लिए शादी से पहले सूर्यदेव का आह्वान किया था जिससे उन्हें कर्ण पुत्र के रूप में प्राप्त हुआ था|

Durbasa mela
Durvasa mela
durvasa ganga aarti

FAQ - महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

ऋषि दुर्वासा की पत्नी का नाम “कन्दली” था जो कि एक पतिव्रता स्त्री थी| 

दुर्वासा धाम में दो नदी है एक मंजुसा (मझुई) दूसरा टौंस (तमसा) नदी है| यह दो नदियों का संगम है और तमसा बनकर आगे बढ़ जाती है|

दुर्वासा ऋषि के मृत्यु का कारण था भगवान श्री कृष्ण को श्राप देना जिस कारण उनकी मूर्ति हुई थी|

ऋषि दुर्वासा भगवान श्री कृष्ण को इसलिए श्राप दिया थे क्योंकि उन्होंने उनके अनुमति के बिना पानी पी लिया था|

ऋषि दुर्वासा के पिता का नाम अत्री मुनि था और उनकी माता अनुसूया थी|

ऋषि दुर्वासा जी ने भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी को 12 वर्ष के वियोग होने का श्राप था| और दूसरा श्राप दिया था द्वारका नगर का पानी खारा यानी हो जाये (पीने लायक न रहे) इसका श्राप दिया था|

दुर्वासा शब्द की उत्पत्ति दूब अर्थात् घास से हुआ है यानि उस समय दुर्वासा घास (घास के अग्र भाग को कहते है) खाकर तपस्या करते थे| क्रोधित होना उनका स्वभाव था|

दुर्वासा ऋषि और उनके पूरे शिष्यों को स्नान के उपरान्त पांडवों में सबसे छोटे सहदेव श्री कृष्ण के कहने पर नदी के किनारे ऋषियों को बुलाने गए थे| 

ऋषि भारद्वाज, दुर्वासा, अंगीरा, कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि मुनि आदि ऋषि हुए है|

ऋषि भारद्वाज को सबसे बड़ा ऋषि माना गया है क्योंकि वह देवताओं के गुरु बृहस्पति के पुत्र थे|

ऋषि विश्वामित्र को सबसे शक्तिशाली ऋषि माना गया है क्योंकि उन्होंने गायत्री मंत्र को विस्तार से लिखा था|

ऋषि अगस्त को वैदिक ऋषि माना गया है क्योंकि वह राजा दशरथ के राज गुरु थे वह सप्तर्षियों में से एक थे|

महर्षि गौतम, अगस्त्य, अत्रि, भारद्वाज, जमदग्नि, वशिष्ठ और विश्वामित्र थे|

दो लोगों ने भगवान श्री कृष्ण को श्राप दिया था पहला दुर्वासा ऋषि और दूसरा धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने उनका पूरा साम्राज्य नष्ट होने का श्राप दिया था|

दुर्वासा के पुत्र कोई नहीं थे क्योंकि उनका विवाह नहीं हुआ था लेकिन उनके मंत्र के प्रभाव से कुंती को सूर्य पुत्र प्राप्त हुआ था|

दुर्वासा ऋषि ने कुंती को आशीर्वाद दिया था की वह किसी भी देवता को आह्वान कर उनके जैसा पुत्र प्राप्त कर सकती था|

ऋषि दुर्वासा को भगवान शंकर का अवतार माना जाता है और शिव रुद्र के अवतार थे रुद्र का मतलब ही है रौद्र, गर्जन, भयंकर क्रोधित इसीलिए उनके अवतार के कारण वह अति क्रोधी थे|

दुर्योधन ने दुर्वासा ऋषि से कहा की वह पांडवों का अतिथि बनकर जाए और उनके यहाँ भोजन करें (अपने पूरे शिष्यों के साथ) इसके पीछे दुर्योधन की मंशा थी पांडवों को अपमानित करना क्योंकि उनके पास तो कुछ भी नहीं है न सत्ता न महल वह तो वनवासी है वह उनका स्वागत कैसे कर सकते हैं? सम्मान और भोजन न मिलने पर दुर्वासा ऋषि उनको श्राप दे सकते हैं| यह दुर्योधन की मंशा थी|  

दुर्वासा ऋषि का जन्म भगवान शिव के क्रोध से हुआ था इसीलिए वह बहुत ज्यादा क्रोधी बने|

दुर्वासा का मेला कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर में मनाया जाता है इसी दिन गुरुनानक देव जी का जन्म दिन के रूप में हिन्दू-सीख पर्व भी मनाते हैं| यह महीना नवम्बर में आता है|

दुर्वासा ऋषि के पर कुल लगभग चौबीस हजार शिष्य हुआ करते थे| ऋषि दुर्वासा शिव के अवतार थे और परम शिव भक्त थे|

आजमगढ़ में कार्तिक का मेला दुर्वासा धाम में लगता है जो तीन दिनों का होता है पहले दिन बटोर दूसरे दिन मेला और तीसरे दिन स्थानीय मेला उसके बाद मेला समाप्त|

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निष्कर्ष

“दुर्वासा धाम आजमगढ़” के बारे में जो भी जानकारी आपके काम के लायक है और जिसको जानने की जरूरत है वह सब हमने देने का प्रयास किया है जैसे दुर्वासा ऋषि का रामायण काल से क्या संबंध है? इसको हमने समझा उनके तपस्या के बारे में जाना, उनका शिव से क्या संबंध है? उनके मंदिर और आश्रम के बारे में जानकारी, उनके भाइयों के बारे में हमने विस्तार से समझा महर्षि दुर्वासा से श्रीराम और श्रीकृष्ण से क्या संबंध थे हमने देखा|

दुर्वासा ऋषि के बारे जो सबसे ज्यादा चर्चा का विषय है वह है उनके “स्वभाव के बारे में” वह है उनका हर बात में गुस्सा होना, छोटी-छोटी बातों में श्राप दे देना, उनकी बात ना मानने पर क्रोधित हो जाना, यह सब हमने देखा हमने यह भी देखा दुर्वासा ऋषि द्वारा महारानी कुंती को वरदान देना, जिसके प्रयोग से महारानी कुंती को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी (और यह सब उनके द्वारा दिये मंत्रों के आह्वान से हुआ था)|

दुर्वासा ऋषि का मंदिर और आश्रम में एक भव्य मंडप का निर्माण किया गया है जिसका श्रेय अयोध्या के तपस्वी मौनी बाबा को जाता है उनके अथक प्रयास से बहुत से कार्य किए गए है जिस कारण दुर्वासा का विकास बहुत तेजी से हुआ यहाँ दाह-संस्कार की भी व्यवस्था है यह दो नदियों का संगम है|

“दुर्वासा धाम आजमगढ़” से अयोध्या की दूरी 100 km है और वाराणसी से भी दूरी 100 km है इस कारण भी यह स्थल एक पवित्र स्थान है इस स्थान पर अट्ठासी हजार ऋषियों का तपो स्थली है| दुर्वासा धाम एक तेजी से विकसित होता ऐतिहासिक स्थल है| 

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