जीवन बीमा का महत्व

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जीवन बीमा का महत्व

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Bindu Vishwakarma LIC Agent
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संक्षिप्त परिचय

जीवन बीमा का महत्व में हम इंश्योरेंस से सम्बंधित हर एक चीज के बारे में समझेंगे जैसे सबसे पहले तो इंश्योरेंस क्या है? यह कैसे काम करता है इसका गठन कब हुआ इंश्योरेंस का इतिहास क्या है? यह सब कुछ जानेंगे इसके अलावा इंश्योरेंस से जुड़ा कुछ साधारण शब्द जैसे लाइफ इंश्योरेंस क्या है? जनरल इंश्योरेंस क्या है? हेल्थ इंश्योरेंस क्या है? टर्म इंश्योरेंस क्या है? साधारण बीमा क्या है? टर्म लाइफ इंश्योरेंस क्या है? इसके अलवा हमें जीवन बीमा क्यों करना चाहिए? जीवन बीमा के लाभ हानि को समझेंगे?

इंश्योरेंस लोगों को एक वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है| इन्सान का जीवन अनियमितताओं से घिरा रहता है मनुष्य के जीवन में चोरी-घटना-दुर्घटना, बीमारी, उतर-चढ़ाव आते रहते हैं| ऐसी परिस्थिति में हम दुर्घटना बीमा, स्वास्थ्य बीमा करा सकता है यहाँ पर हम दुर्घटना बीमा के प्रकार, सामान्य बीमा के प्रकार और वाहन बीमा के प्रकार के बारे में विस्तार से समझेंगे|     

इंश्योरेंस विभिन्न प्रकारों में उपलब्ध है बीमा का एक ही मकसद है पालिसी धारक को उसके जोखिम या कोई दुर्घटना होने पर उसके नुकसान की भरपाई करना|

यहाँ हम LIC का महत्व बताते हुए जीवन बीमा के नियम और शर्तों को पालन करना होता है जिससे हम बंधे होते हैं| हमारा उनके साथ अनुबंध होता है जीवन बीमा कितने साल का होता है हमारा उनके साथ कब तक का अनुबंध है यह सब जानेंगे|

आगे चलकर हम देखेंगे “भारतीय जीवन बीमा प्लान, जीवन बीमा के लाभ और हानि विभिन्न वर्गों के हिसाब से समझेंगे ताकि हम अपने जरूरत के मुताबिक जीवन बीमा योजना का लाभ ले सकें| हर प्रकार के बीमा का सामान्य लक्ष्य यही है- निर्धारित समय सीमा तक सुरक्षा देना और आकस्मिक दुर्घटनाओं के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करना|

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विस्तार से समझें

जीवन बीमा का महत्व

लाइफ इंश्योरेंस क्या है?

एक समान जोखिम वाले समूह के द्वारा अपने कुछ दुर्भाग्यशाली सदस्यों को हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई को पूरा करने से है| इसमें अनिश्चित दुर्घटना, जोखिम होना, प्रकृति आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई करने से है|

इस तरह की व्यवस्था का संचालन भारत में मौजूद बीमा कंपनियों द्वारा किया जाता है जिसमें LIC (LIC PLAN) प्रमुख रूप से एक है|

कंपनी ऐसे लोग से प्रीमियम लेती है {प्रीमियम(एक निश्चित रकम) महीना, तिमाही, छमाही या सालीना का हो सकता है}| इससे एक फण्ड का निर्माण होता है जो जोखिम के शिकार व्यक्ति को उसके नुकसान की भरपाई कराई जाती है तो जीवन बीमा क्या है?- इसी भरपाई का नाम बीमा है|     

लाइफ इंश्योरेंस या जीवन बीमा पॉलिसी क्या है?- यह एक वित्तीय सुरक्षा उपाय है जिसका मुख्य उद्देश्य व्यक्ति या उसके परिवार को आने वाले किसी निर्दिष्ट समय पर वित्तीय सहारा प्रदान करना होता है| इसका मतलब है कि यदि बिमित व्यक्ति की मौत होती है तो उसके नायक नॉमिनी (beneficiary) को एक निश्चित राशि मिलती है जो बीमाधारी (Insurance policy) के अंतर्गत तय की गई होती है|

कोई भी इन्सान दो तरह की जोखिम अपने ऊपर लेता है:

प्राथमिक हानि के जोखिम

यह वह हानि होता है जिसमें इन्सान किसी दुर्घटना होने पर स्वयं वहन करता है

पहला उदाहरण जैसे अगर किसी की दुकान है और उमसे चोरी हो जाती है तो उसकी भरपाई वह खुद करता है|

दूसरा अगर किसी की फैक्टरी में आग लग जाती है और सब सामान जलकर राख हो जाता है तो वह खुद से पूरी फैक्टरी अपने दम पर पुनः खड़ा करता है|

तीसरा गंभीर बीमारी होने पर स्वयं के पैसे से इलाज करवाना होता है| 

दूसरी प्रकार की हानि के जोखिम

दुर्घटना और जोखिम होने पर व्यक्ति सीधे-सीधे नुकसान का सामना नहीं करता है बल्कि बीमा कंपनी द्वारा उनके लिए फण्ड का निर्माण करती है|

जिससे वह पुनः (उदाहरण के लिए) आग लगने पर अपनी फैक्ट्री फिर से खड़ी कर सके

या चोरी होने पर सहायता राशि मिल सके

या गंभीर बीमारी होने पर इलाज के लिए पैसे की सहायता हो सके|  

अब लाइफ इंश्योरेंस अनेक प्रकार की हो सकती है उदाहरण के तौर पर:

1 – टर्म इंश्योरेंस प्लान (Term Insurance): टर्म लाइफ इंश्योरेंस क्या है? इसमें बीमित व्यक्ति को निश्चित अवधि के लिए कवर यानी सुरक्षा दिया जाता है| यदि इस अवधि के दौरान पालिसी धारक की मौत होती है तो मौत का भरपूर मुआवजा दिया जाता है| यदि व्यक्ति इस अवधि के बाद भी जीता (जीवित रहता) है तो कोई मुआवजा नहीं मिलता है|

2 – एंडोऊमेंट पॉलिसी (Endowment Policy): इसमें बीमित व्यक्ति को निश्चित अवधि के बाद एक निश्चित राशि जीवन जीने के लिए मिलती है| यदि व्यक्ति उस अवधि के दौरान मर जाता है तो मौत का मुआवजा मिल जाता है यदि वह जीवित रहता है तो अंत में पूर्ण राशि मिल जाता है|

3 – यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (ULIP): इसमें निवेश और बीमा दोनों होता हैं| यह प्लान व्यक्ति को निवेश के लिए एक संदर्भ में इकट्ठा करने का विकल्प देती है साथ ही बीमा का सुरक्षा भी प्रदान करता है|

लाइफ इंश्योरेंस बीमाधारी कंपनियों द्वारा प्रबंधित की जाती है और व्यक्ति बीमित होने के लिए नियमित अवधि में प्रीमियम देना जरूरी होता है| यह एक वित्तीय सुरक्षा उपाय के रूप में कार्य करती है और बीमित व्यक्ति या उसके परिवार को आने वाले किसी भी प्रकार की घटना के खिलाफ सुरक्षित रखने में मदद करता है| “जीवन बीमा का महत्व” में आगे जीवन बीमा का अर्थ, जीवन बीमा के उद्देश्य, बीमा की परिभाषा, जीवन बीमा का इतिहास आदि…

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बीमा की उत्पत्ति कैसे हुई?

बीमा की उत्पत्ति का कोई प्रामाणिक इतिहास या कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है लेकिन इसका प्राचीन काल से सम्बन्ध रहा है| बीमा का मतलब ही है जोखिमों से सुरक्षा देना|

बीमा का विकास प्राचीन काल में ही हो गया था| इसके प्रमाण हमारे धर्म ग्रंथों और नीति शास्त्रों तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है|

कुछ प्रमाण प्रस्तुत किए जा रहें हैं:

1 – अथर्ववेद में “योगक्षेम” शब्द आया है जिसे वर्तमान समय में LIC द्वारा अपने मोनोग्राम में सम्मिलित किया गया है|  

2 – मनुस्मृति के श्लोकों से भी यह आभास मिलता है कि प्राचीन काल में समुद्र से होने वाले व्यापार के सन्दर्भ में बीमा जैसी सुरक्षा विद्यमान थी|

एष नौयायिनामुक्तो व्यवहाररस्य निर्णयः|

दाशा पाराधतस्तोये दैविके नास्ति निग्रहः ||

अथार्त् भृगु ऋषि कहते हैं की नाव से पार जानेवालो के लिए निर्णय लिया गया की नाविकों यानी मल्लाहों की असावधानी से नष्ट हुए सामान के देनदार नाविक होते हैं, लेकिन अगर दैवीय आपदा जैसे आँधी-तूफान आदि में सामान नष्ट होने पर उसके देनदार नाविक नहीं होंगे उसके लिए सामान का स्वामी खुद जिम्मेदार होगा|

उपरोक्त उदाहरण से यह स्पष्ट होता है की सर्वप्रथम बीमा का उपयोग समुद्री बीमा के रूप में हुआ| हमारे पुराने शास्त्रों के अनुसार बीमा सबसे पहले समुद्री रूप में प्रकट हुई थी| अभिलेखों और साक्ष्यों के मुताबिक यह पता चलता है की बीमा का व्यवसाय सबसे पहले बेबीलोनिया तथा भारत में प्रारम्भ हुआ था|

पूर्वकालीन समय में समुद्री तथा भूमि के यात्रियों को अपने जहाजों तथा माल की हानि होने का सबसे अधिक खतरा था क्योंकि खुले समुद्र में डकैती और काफिलों की डकैती बहुत मामूली बात थी| इसके अलावा प्रकृति का भी खतरा बना रहता था|

विशेषज्ञों को विभिन्न समुद्री मार्गों का ज्ञान रहता है उसी के अनुसार वे लोग एक निश्चित रकम के बदले समुद्री बीमा पालिसी करते हैं इस तरह समुद्री बीमा का जन्म हुआ और उसके बाद जीवन बीमा ने इसका अनुसरण किया और बहुत वर्षों बाद आधुनिक व्यापार तथा सामाजिक जटिलता के कारण विभिन्न तरह के बीमा उत्पन्न होते गए|

समुद्री बीमा का इतिहास 13वीं शताब्दी में इटालियन व्यापारियों में देखने को मिलता है| दूसरी तरह इंग्लॅण्ड में इसे लामबर्ड के द्वारा लाया गया था| उस समय बीमा सौदेबाजी के रूप में किया जाता था| यह सौदा दो पार्टी के बीच में होता था एक वह लोग थे जो समुद्री जोखिम लेने को तैयार थे और दूसरा व्यापारी वर्ग जिसका सामान था|

17वीं शताब्दी में लायड्स पॉलिसी के नाम से बीमा बना जो आज तक विद्यमान है यह लंदन शहर से चलता है|  

बीमा का कॉमन लॉ सबसे पहले समुद्री बीमा के निर्णयों के द्वारा ही उत्पन्न हुआ| इसके अलावा असमुद्रीय बीमा सबसे पहले जीवन बीमा तथा अग्नि बीमा के रूप में प्रकट हुआ लेकिन 19वीं शताब्दी में मध्य तक यह तीनों प्रकार के बीमा वास्तविक रूप में व्यवहार में मिले हुए थे| जल्द ही यह दोनों बीमा के विवाद का निस्तारण मध्यस्थता के द्वारा होगा ऐसा कहा गया|

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बीमा का इतिहास

 “इंश्योरेंस की सम्पूर्ण जानकारी” में आगे हम बीमा का विकास और जीवन बीमा का इतिहास क्या है? इसको जानते हैं| जीवन बीमा का इतिहास बहुत लम्बा और प्राचीन है और इसमें विभिन्न समय और स्थानों पर कई परिवर्तन भी हुए हैं| जीवन बीमा की परिभाषा क्या है? बीमा का शाब्दिक अर्थ है “सुरक्षा” या “रक्षा” होता है| जीवन बीमा का उद्देश्य होता है– आपदाओं, हानियों (नुकसान) और जोखिमों से होने वाली नुकसान का निवारण और सुरक्षित करना|

प्राचीन काल: बीमा का सर्वप्रथम प्रारंभ भारत में हुआ था जहां व्यापारिक जगहों और समृद्धि के केंद्रों पर व्यापारी और व्यापारिक जोखिमों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने के लिए समुद्री और नगर बीमा की शुरुआत हुई|

ल्यॉयड्स कॉफी हाउस लंदन: बीमा का संस्थापन लंदन में हुआ था जब 17वीं शताब्दी में (सन 1706) लॉर्ड्स कॉफी हाउस नामक स्थान पर बीमा संस्था की शुरुआत हुई| यहां व्यापारी और जहाजों के माल की सुरक्षा के लिए पहली बार बीमा प्रणाली बनाई गई| भारत की पहली गैर बीमा कंपनी का नाम? भारत की पहली गैर जीवन बीमा कंपनी Tritan Insurance Company बना|

भारत की पहली बीमा कंपनी बॉम्बे मियुचल इंश्योरेंस सोसाइटी 1870 में बम्बई में बना और भारत का सबसे ज्यादा पुराना, प्राचीन काल से चलने वाला जो आज भी चल रहा है उसका नाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड है|

18वीं शताब्दी में विकास: 18वीं शताब्दी में बीमा का विकास यूरोप व अन्य देशों में बहुत तेजी से हुआ और अनेक नए विधाओं में विकसित हुआ जैसे कि जीवन बीमा और आपात कालीन बीमा|

भारत में पहला बीमा सम्बंधित अधिनियम कब आया? – भारत में बीमा सम्बंधित अधिनियम 1912 में पारित हुआ|

बीमा कंपनी और बीमा व्यवसाय को नियंत्रित करने वाले पर एक अधिनियम 1938 को पास किया जो आज भी लागू है|

सन 1993, भारत में बीमा व्यवसाय में सुधार हेतु सिफारिश करने के लिए मल्होत्रा समिति का गठन किया गया इनकी सिफारिशों को मानते हुए बीमा बाजार निजी क्षेत्र और विदेशी निवेशकों दोनों के लिए खोल दिया गया और इनको नियंत्रित करने के लिये Insurance Regulatory and Development Authority of India (IRDAI) बनाया गया जो 1999 सांसद में पारित किया गया लेकिन 2000 में अस्तित्व में आया|

20वीं शताब्दी: 20वीं शताब्दी में बीमा उद्योग ने विशेषकर अमेरिका में जबरदस्त विकसित किया और बड़ी मात्रा में लोगों को स्वास्थ्य बीमा, जीवन बीमा और वाहन बीमा की सुविधा प्रदान करने लगा| इसके अलावा भी विभिन्न प्रकार की बीमा कंपनियों ने अपने उत्पादों की विस्तृत विस्तार किया और यह आगे चलकर यह एक महत्वपूर्ण आर्थिक और सामाजिक जीवन जीने का उपाय बन गया|

आधुनिक काल: वर्तमान समय में बीमा उद्योग विभिन्न प्रकार की बीमा सुरक्षा प्रदान करती है जैसे आपात कालीन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, जीवन बीमा, वाहन बीमा, व्यापार बीमा आदि का प्रबंधन करने के लिए विकसित हो गया है| बीमा कंपनियाँ लोगों को विभिन्न जोखिमों से बचाने के लिए विभिन्न योजनाएं भी प्रदान करता है|

बीमा उद्योग ने समय के साथ समाज-अर्थव्यवस्था और तकनीक के साथ बेहतरीन तालमेल कर नए-नए उत्पादों का विकास किया जिससे लोगों को और भी अच्छी सुरक्षा प्राप्त हो रही है|

Technology इतने आगे निकाल गयी है की हर चीज डिजिटल हो गया है आजकल digital insurance app or digital insurance login portal से स्वयं पालिसी खरीद सकते हैं जैसे policy bazaar से पालिसी ले सकते हैं या अलग-अलग digital insurance platform से लाभ उठा सकते हैं|

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बीमाधारक और बीमाकर्ता की परिभाषा?

बीमा अधिनियम 1938, अधिनियमित के तहत जीवन बीमा का महत्व  LIC PLANS के विभिन्न पहलुओं से सम्बंधित विवाद इन्हीं विधियों के अंतर्गत निस्तारित किए जाते थे|

“बीमाधारक” जो भी व्यक्ति पालिसी को धारण करता है वह पालिसी धारक होता है इन्हें “बीमायोग्य हित” के नाम से भी जाना जाता है|

“बीमाकर्ता” शब्द से ऐसे व्यक्ति से आशय है जो भारत में बीमा व्यवसाय चलाते हैं| बीमा कर्ता की परिभाषा में विदेशी बीमा कंपनियाँ भी समाविष्ट है| सन 1938 में इसे “साधारण बीमा व्यवसाय” General Insurance Business के नाम से जाना जाता था| जीवन बीमा का महत्व में आगे जीवन बीमा क्या है? बीमा के कार्य, बीमा कितने प्रकार के होते हैं, बीमा के सिद्धांत, जीवन बीमा के उद्देश्य और लाभ जानेंगे|    

बीमा की परिभाषा क्या है?

लाइफ इंश्योरेंस (जीवन बीमा) क्या है? बीमा एक वित्तीय सुरक्षा पद्धति है जिसमें व्यक्ति या संस्था एक निश्चित राशि का प्रीमियम भरकर अपनी सुरक्षा का बीमा करवाते है| इसके तहत बीमा कंपनी उन्हें नुकसान के मामले में आर्थिक सहायता प्रदान करते है| बीमा का उद्देश्य आधारित risk को साझा करना है ताकि यदि किसी को नुकसान होता है तो उसे आर्थिक सहायता मिल सके| बीमा विभिन्न प्रकारों में उपलब्ध है जैसे कि जीवन बीमा, सामाजिक बीमा, स्वास्थ्य बीमा और वाहन बीमा आदि|

बीमा अधिनियम 1938 में बीमा शब्द विधि का शब्द नहीं था अतः इसको दो दृष्टि कोणों से समझा गया
पहला बीमा के कार्यों के दृष्टिकोण से और
दूसरा बीमा के संविदा के दृष्टिकोण से|

बीमा का कार्य – “बीमा के कार्य” को इस प्रकार समझा जा सकता है- सहयोग की प्रक्रिया के द्वारा असंख्य लोगों के बीच हानि को बाँटना है|

बीमा के संविदा – दो पक्षों के बीच की गयी एक संविदा है जिसके अंतर्गत एक पक्षकार एक निश्चित प्रतिफल के बदले दूसरे पक्षकार विशिष्ट जोखिमो को ग्रहण करता है और उसे भविष्य में किसी घटना के घटित होने पर एक निश्चित रकम देने का वचन देता है| यही जीवन बीमा की विशेषता है| 

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 में दी गयी संविदा की परिभाषा के अनुसार संविदा करने के लिए “करार को विधि द्वारा परिवर्तनीय होना चाहिए” और एक करार विधि द्वारा प्रवर्तनीय करार उसी परिस्थिति में माना जाता है जब करार द्वारा निम्नलिखित चार शर्तें पूरी होती हो:

1 – संविदा में कोई विधिपूर्ण प्रतिफल हो

2 – पक्षकार संविदा करने के लिए सक्षम हो

3 – पक्षकारों की सम्मति स्वत्रंत हो

4 – संविदा का उद्देश्य विधि पूर्ण हो

जीवन बीमा के प्रकार

जीवन बीमा कई प्रकार के होते हैं जो हमारे अलग-अलग जरूरतों को पूरा करते हैं बीमा की आवश्यकता हमें निम्नलिखित कारणों से होती है:

  • साधारण जीवन बीमा – यह एक निश्चित समय अवधि का बीमा होता है जिसमें अगर व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके परिवार को निर्धारित धनराशि कंपनी द्वारा दे दिया जाता है|
  • नियमित जीवन बीमा – नियमित जीवन बीमा में एक अंतराल के बाद प्रीमियम देना होता है निर्धारित अवधि तक और अंत में जाकर व्यक्ति को उसका लाभ मिलता है|
  • एक्सीडेंटल डिसेबिलिटी बीमा – इस बीमा में अगर व्यक्ति का कोई अंग दुर्घटना में चला जाता है तो कंपनी निश्चित धनराशि देती है|
  • जीवन बीमा सहायक योजना – इस बीमा में जीवन सुरक्षा तो मिलता ही है इसके साथ निवेश करने की भी सुविधा होती है जिससे व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकता है|
  • अत्यधिक जीवन बीमा – इस बीमा में अधिक धनराशि की सुरक्षा होती है आगे चलकर परिवार को अधिक आर्थिक लाभ मिलता है लेकिन इसका प्रीमियम भी अधिक देना होता है| इसके अलावा भी अन्य प्रकार की जीवन बीमा योजना है|

बीमा कितने प्रकार के होते हैं

बीमा कई प्रकार के होते हैं:

  • जीवन बीमा : यह बीमा करवाने से व्यक्ति के जीवन की सुरक्षा होती है मृत्यु होने पर परिवार को धनराशि मिलती है|
  • स्वास्थ्य बीमा : यह बीमा करवाने से एक्सीडेंट होने पर मेडिकल खर्च मिलता है|
  • वाहन बीमा : यह बीमा करवाने से वाहन के चोरी होने, हादसा होने (एक्सीडेंट) होने पर सुरक्षा मिलती है|
  • घर का बीमा : यह बीमा करवाने से चोरी-डकैती से सुरक्षा होती है|
  • व्यावसायिक बीमा : यह बीमा करवाने से व्यापारिक घाटे में गिरावट होने से फ़ायदा होता है|

जीवन बीमा का मुख्य उद्देश्य और लाभ निम्नलिखित है

  • सुरक्षा देना – जीवन बीमा करवा लेने से हमें आपदाओं और अन्य प्रकार से सुरक्षा मिलती है परिवार का भविष्य भी सुरक्षित हो जाता है|
  • वित्तीय सुरक्षा – जीवन बीमा से हमें भविष्य में आर्थिक स्थिति मजबूत होती और आर्थिक रूप से लाभ होता है|
  • बचत और निवेश – जीवन बीमा से सुरक्षा के साथ-साथ बचत भी होता है जिसे निवेश के रूप में देखा जा सकता है|
  • परिवार का सहारा – जीवन बीमा में परिवार पूरी तरह सुरक्षित हो जाता है उनका भविष्य उज्जवल हो जाता है इसलिए जीवन बीमा अपने प्रियजनों के लिए जरूर करवाएं|

बीमा का सिद्धांत:

  • साझा जोखिम – बीमा का एक खूबसूरत सिद्धांत यह है की वह बीमित व्यक्तियों द्वारा दिए गए धन (प्रीमियम) के रूप में एक जगह जमा होता रहता है और संजोग से कुछ लोगों को फ़ायदा होता है जिनके साथ कुछ अनहोनी होती है और ज्यादातर लोगों को नुकसान है| उदाहरण के लिए अगर 100 लोग पालिसी धारक हैं तो 5% लोगों के साथ कोई दुर्घटना होती है कंपनी उनके परिवारों को लाभ देती हैं लेकिन बाकि 95% लोगों को पूरा पैसा के साथ कुछ प्रतिशत जोड़कर दे दिया जाता है| जीवन बीमा मूल रूप से मृत्यु लाभ देती है जिसे risk cover कहते हैं|
  • प्रीमियम भुगतान – सभी बीमित व्यक्ति सही समय पर धनराशि जमा करते हैं जमा न करने पर विलम्ब शुल्क भी लगता है|
  • समृद्धि की सुरक्षा – बीमा कंपनी समूह के सदस्यों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है इसके लिए पालिसी धारक को सही समय पर अपनी प्रीमियम देनी होती है जिससे मुसीबत में वह प्रीमियम पैसा के रूप में आपके काम आ सके|

जीवन बीमा पॉलिसी लेने की प्रक्रिया क्या है:

जीवन बीमा के नियम और शर्तों कुछ इस प्रकार हैं:

  • पहला सही और उपयुक्त जीवन बीमा नीति का चयन करना जो आपकी जरूरतों को पूरा करता हो इसमें प्रीमियम का भुगतान और समय सीमा दोनों मायने रखते हैं|
  • सही कंपनी का चयन करना फिर फॉर्म (आवेदन पत्र) भरना जिसमें व्यक्तिगत जानकारी मांगी जाती है जैसे आधार कार्ड आदि…
  • मेडिकल बीमा में मेडिकल जाँच करवाना होता है|
  • प्रीमियम के भुगतान को चुनना होता है महीना, तिमाही, छमाही और सालाना के तौर पर|
  • पालिसी लेने के बाद आपको आपके घर पर पूरा फॉर्म डाक (पोस्ट ऑफिस) द्वारा भेजा जाता है आप उसको पढ़कर जाँच सकते हैं अगर पसंद न आये तो 15 दिन के अन्दर वापस किया जा सकता है कागज और पोस्ट ऑफिस का खर्चा काटकर आपका पूरा पैसा वापस कर दिया जाता है|
  • कम से कम तीन वर्ष तक पालिसी को चलाना अनिवार्य होता है अगर पालिसी नियमित रूप से चल रही है तो लाभ जारी रहता है| पालिसी के द्वारन मृत्यु होने पर परिवार को लाभ मिलता है| पालिसी पूरी होने पर आपका पैसा ब्याज के साथ वापस हो जाता है|

जीवन बीमा बीमा भी है और निवेश भी कैसे:

जीवन बीमा एक उत्पाद है| जीवन बीमा कंपनी अपने पालिसी होल्डर को आने वाली आपदाओं या अनहोनी से सुरक्षा प्रदान करती है यह मुसीबत में या पालिसी धारक के मृत्यु के उपरान्त उसके परिवार को आर्थिक मदद करता है|

इसके अलावा जीवन बीमा को अगर आप नियमित रूप से चलाते हैं यानी प्रीमियम का भुगतान करते रहते हैं और आपका फण्ड बढ़ता जाता है तो पालिसी के अंत में सब जोड़कर मिल जाता है और इस पर ब्याज भी मिलता है इसलिए जीवन बीमा जीवन को सुरक्षित करता है|

एलआईसी का स्लोगन क्या है?- “जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी”|

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भारतीय बीमा विधि के विकास कि यात्रा

मनु संहिता में समुद्री जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करने हेतु नियम मिलते हैं तथा अथर्ववेद में प्रयुक्त किए गए शब्द “योगक्षेमं वहाम्यहम्” को तो भारतीय जीवन बीमा एलआईसी निगम द्वारा अपने मोनोग्राम में भी सम्मिलित किया गया है|

वर्ष 1872 में सबसे पहला अंडरराइटरों का संगठन बम्बई में स्थापित किया गया|

वर्ष 1885 में लगभग 50 विदेशी कार्यालयों ने अभिकरण संस्थानों के माध्यम से बीमा का व्यापार प्रारम्भ किया| यह सब कार्यालय अधिकतर ब्रिटिश थे और कुछ ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, और यूरोप के थे|  

वर्ष 1850 ने सर्वप्रथम अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता में ट्राइटन इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड का स्थापना किया|

अग्नि व्यवसाय के लिये पहला भारतीय टैरिफ सन 1894 में बनाया गया| उसके बाद बॉम्बे सिटी और मुफसलिल टैरिफ वर्ष 1895 में बनाया गया जिसका अनुसरण वर्ष 1900 में कलकत्ता टैरिफ के द्वारा किया गया|

वर्ष 1909 में भारतीय पूंजी से इंडियन मर्केंटायल इंश्योरेंस कंपनी स्थापित किया गया|

सन 1935 में एक प्रशुल्क बीमा विधि में सुधार पर रिपोर्ट बनाया गया और 26/01/1938 को भारतीय बीमा अधिनियम 1938, पारित किया गया जो 01/07/1939 से प्रभावी किया गया| इस अधिनियम में विदेशी तथा भारतीय दोनों प्रकार के सभी बीमाकर्ताओं पर सरकारी नियंत्रण के एक सामान सिद्धांत बनाये गए| यह भारतीय बीमा विकास की एक महत्त्वपूर्ण और ऐतिहासिक घटना थी|

सन 1950 में बीमा अधिनियम, 1938 में कुछ नए अनुबंधों को जोड़कर उसमें कुछ संशोधन किए गये जो निम्नलिखित हैं:

1 – प्रबंधन मंडल के खर्चो की सीमा निर्धारित करना|

2 – मुख्य अभिकर्ता तथा साधारण अभिकर्ता को देय योग्य कमीशन की सीमा निर्धारित करना|

3 – भारत में बीमा संगठन की स्थापना करना|

01/09/1957 में मुख्य अभिकर्ताओ के अस्तित्व को समाप्त कर दिया गया और इस तिथि के बाद से केवल साधारण अभिकर्ताओ की ही नियुक्ति की जा सकती है|

वर्ष 1951 के बाद विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से बड़े पैमाने पर निरंतर हुए आर्थिक विकास और लोगों के बीच बीमा सम्बन्धी चेतना बढ़ी है  जिसके कारण बीमा व्यवसाय तीव्र गति से बढ़ने लगा|

भारत में कार्यशील बीमा कंपनी और विदेशी कम्पनी दोनों ने पुनः बीमा सुविधा प्रदान करने के लिए इंडिया रि-इंश्योरेंस कारपोरेशन (भारतीय पुनर्बीमा निगम 1956) बनाया जिसमें सभी बीमाकर्ता इस निगम को स्थाई प्रतिशत पर अनिवार्य राशि कटौती देने को बाध्य थे|

वर्ष 1961 में पुनः बीमा बाजार को अन्य पेशेवर बीमाकर्ता – गारंटी एवं जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को और मजबूत किया गया|

जीवन बीमा व्यवसाय का वर्ष 1956 में राष्ट्रीयकरण हुआ और एकाधिकार के आधार पर जीवन बीमा के व्यवसाय का सञ्चालन करने के लिये भारतीय जीवन बीमा निगम निगमित किया गया|

वर्ष 1953 में भारत के रिज़र्व बैंक के निर्देशन में सभी भारतीय जहाज को बीमित किया गया|  

वर्ष 1964 में भारतीय जीवन बीमा निगम ने जीवन बीमा के साथ-साथ सामान्य बीमा के कुछ क्षेत्रों में भी प्रवेश किया|

सन 1968 में बीमा अधिनियम, 1938 में पुनः संशोधन करके बीमा नियंत्रक को विस्तृत शक्तियाँ दी गयी और अभिकर्ता लाइसेंस प्राप्त करने के लिए लगाये जाने वाले शुल्क में भी परिवर्तन किए गए|

13 मई, 1971 को सरकार द्वारा सामान्य बीमा कंपनियों के प्रबंधों को अपने हाथ में लेने के लिए भारत के राट्रपति द्वारा एक अध्यादेश जरी किया गया और तत्पश्चात वर्ष 1972 में भारतीय सांसद द्वारा साधारण बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम 1972 पारित किया गया| इस प्रकार सामान्य  बीमा का राष्ट्रीयकरण 1972 में हुआ| लेकिन जीवन बीमा का राष्ट्रीयकरण सन 1956 में ही हो गया था|

01/01/1973 में इस अधिनियम के अनुबंधों के आधीन भारतीय साधारण बीमा निगम निगमित अपने कार्य को गति के साथ आगे बढ़ाया|

भारतीय साधारण बीमा निगम एवं उसकी चार समनुषंगी कंपनी इस प्रकार है:

1 – नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, कलकत्ता

2 – न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी, बम्बई

3 – ओरियंटल फायर एंड जनरल इंश्योरेंस कंपनी, नई दिल्ली

4 – यूनाइटेड इंडिया फायर एंड जनरल इंश्योरेंस कम्पनी, मद्रास

के द्वारा किया जाता है और यह निगम तथा उसकी कंपनी सार्वजनिक क्षेत्र में बीमा व्यवसाय करती है|

औद्योगिक क्षेत्र में उदारीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुआ| जिसका प्रभाव बीमा व्यवसाय पर भी पड़ा| वर्ष 1993 में बीमा व्यवसाय – जीवन बीमा एवं सामान्य बीमा का निजी करण किया गया जिसमें भारत सरकार ने मल्होत्रा कमेटी का गठन की| इस कमेटी ने 1994 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की| जिसमें बीमा व्यवसाय से जुड़े कर्मचारी संघों के विरोध के बावजूद “बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण, अधिनियम 1999” बना दिया था जिसके परिणाम स्वरूप बीमा व्यवसाय सरकारी क्षेत्र के साथ-साथ पुनः निजी क्षेत्र में भी आ गया| इस प्रकार जीवन बीमा का महत्व  क्रमानुसार उपरोक्त देखा गया|    

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Some Important Insurance act in India

1 – The workmen compensation act 1923

2 – Employee State Insurance act 1948

3 – Life Insurance Corporation act 1956

4 – Deposit Insurance & Credit Guarantee Corporation act 1961

5 – Marine Insurance act 1963

6 – Export Credit Guarantee Corporation act 1964

7 – General Insurance Business Nationalization act 1972

8 – General Insurance Business Nationalization Amendment act 2002

9 – Motor Vehicle act 1988

10 – Public Liability Insurance act 1991

समाज में बीमा का महत्व

देश के विकास में बीमा कंपनियों का अपना विशेष महत्व है बीमा कंपनी पालिसी धारक से फण्ड जुटाती है और उस फण्ड को देश के विकास में लगाती है| बीमा उद्योग व्यापार समाज को विपरीत स्थिति या परिस्थिति होने पर मदद करती है| जिससे समाज मजबूत होता है तो राष्ट्र मजबूत होता है| बीमा से बैंकिंग व्यवस्था मजबूत होती है ऋण देने में आसानी होती है| इसके अलावा बीमा के माध्यम से विदेशों से विदेशी मुद्रा का अर्जन भी होता है भारतीय बीमा कंपनी विश्व के 30 देशों में कार्यरत है|    

जीवन बीमा के तत्व बताइए– जीवन बीमा एक प्रकार का Insurance है जो पालिसी धारक के जान-माल की सुरक्षा के लिए बनाया गया है जिसमें व्यक्ति को एक निर्धारित प्रीमियम का भुगतान करना होता है एक अवधि तक उस द्वारन अगर पालिसी धारक को कुछ अनहोनी घटित होता है तो उसके नॉमिनी को अग्रीमेंट के मुताबिक भुगतान कर दिया जाता है और सब कुछ ठीक रहने पर व्यक्ति को उसका पूरा पैसा ब्याज के साथ वापस कर दिया जाता है|

सामान्य बीमा और जीवन बीमा में क्या अंतर है?

सामान्य बीमा

1 – सामान्य बीमा संविदाएं क्षतिपूर्ति करती है| 

2 – यह अनिश्चित जोखिम से सम्बंधित होता है|

3 – रक्षित जोखिम की संभावना समय बीतने के साथ समाप्त हो जाती है|

जीवन बीमा

1 – सामान्य बीमा संविदाएं क्षतिपूर्ति न होकर मूल्य पर आधारित होती है|

2 – यहाँ जोखिम निश्चित होता है लेकिन संयम अनिश्चित होता है|

3 – रक्षित जोखिम की संभावना आयु बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है| 

Insurance picture

ग्राहक संरक्षक अधिनियम 1986

Some Important Insurance law in India

जीवन बीमा का महत्व  में ग्राहक संरक्षक अधिनियम के बारे में विस्तार से जानें| ग्राहकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए “जीवन बीमा लोकपाल केंद्र” का गठन किया गया और यह अधिनियम बनाया गया है अगर किसी उपभोक्ता को बीमा कंपनी के किसी भी उत्पाद या सेवा पसंद नहीं है या उसके विरुद्ध कोई शिकायत है तो वह उपभोक्ता मंच में अपनी शिकायत दर्ज करवाकर उसका निदान पा सकता है|

1 – उपभोक्ता फोरम जिला स्तर पर 20 लाख तक, राज्य स्तर पर 1 करोड़ तक और राष्ट्रीय स्तर पर 1 करोड़ से अधिक की राशि की सुनवाई होती है|

2 – उपभोक्ता फोरम में कोई भी शिकायत दर्ज करवा सकता है इसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है|

3 – अगर शिकायतकर्ता का दावा सही पाया जाता है तो उसको न्यायालय द्वारा उस कंपनी से उसकी भरपाई कराई जाती है|

4 – बीमा संबंधी समस्याओं के शीघ्र समाधान के लिए बीमा लोकपाल संस्था का गठन किया गया है| पूरे देश में 12 लोकपाल कार्यालय बनाये गए है|

5 – हर मुकदमा का निस्तारण 3 महीने के अन्दर कर दिया जाना चाहिए|

बीमा बाजार का विनियमन

बीमा अधिनियम 1938 को बना और 1 जुलाई 1939 से पूरे देश में प्रभावी हुआ IRDA के अस्तित्व में आने से पहले यह जिम्मेदारी बीमा नियंत्रक की होती थी| इसके कुछ प्रावधान इस प्रकार हैं:

  • सभी बीमा कंपनियों का पंजीकरण और नवीनीकरण की जिम्मेदारी होती है|
  • बीमा कंपनियों पर नज़र होता है|
  • बीमा कंपनियों के फण्ड के निवेश पर नियंत्रण होता है|
  • ग्रामीण और सामाजिक क्षेत्र में बीमा कंपनियों की जिम्मेवारी|
  • पालिसी नामांकन से संबंधित नियम
  • ग्राहक को पालिसी खरीदने के लिए छूट के प्रयोग का निषेध करना|
  • प्रीमियम का अग्रिम भुगतान पर नज़र रखना|
  • होने वाले नुकसान का जायजा लेना और सर्वेक्षण करना|

बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम 1999

  • भारत सरकार द्वारा इरडा की स्थापना वर्ष 2000 में किया गया| इसको बीमा उद्योग को विनियमित करने और विकास करने के लिये एक स्वतंत्र प्राधिकरण के रूप में बना गया|
  • बीमा पालिसी धारकों के हितों की रक्षा करना था|
  • बीमा उद्योग को सुचारु रूप से व्यवस्थित ढंग से चलाना था|

बीमा अभिकर्ता पर लागू विनियम

बीमा अधिनियम 1938 के अंतर्गत धारा 42 में बीमा अभिकर्ता की नियुक्ति संबंधी नियम को परिभाषित करता है इसके अंतर्गत बीमा अभिकर्ता का लाइसेंस बनाये रखना उसका नवीनीकरण करना, सेवा देना उससे प्राप्त कमीशन यह सब चीज उसके अंतर्गत आता है|

बीमा अभिकर्ता 25 घंटे का प्रशिक्षण प्राप्त किया हो यह अनिवार्य है|

लाइसेंस आवेदन के लिए 125 रुपए का शुल्क देना होता है|

लाइसेंस के खोने पर 50 रुपए अतिरिक्त देना होता है|

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बीमा उत्पाद Insurance products

बीमा उत्पाद ही वह वित्तीय सुरक्षा का उपाय है जो विभिन्न प्रकार के जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करता है। बीमा योजना कई प्रकार में उपलब्ध होता है जैसे जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, गाड़ी बीमा, घर का बीमा, व्यापार बीमा आदि-आदि| इन उत्पादों का उद्दीपन कई प्रकार की बीमा कंपनियों द्वारा किया जाता है जो लोगों को आपत्तियों और अनियमितताओं के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है|

बीमा उत्पाद 2 प्रकार का होता है:

1) परम्परागत बीमा योजना (अवधि बीमा, आजीवन बीमा, बंदोबस्ती आदि…)

2) गैर परम्परागत बीमा योजना (यूनिवर्सल लाइफ इंश्योरेंस, वैरियेबल लाइफ इंश्योरेंस, यूनिट लिंक्ड बीमा योजना आदि…)

1) परम्परागत बीमा योजना

परम्परागत बीमा योजना वह बीमा योजना है जो परंपरागत तरीके से प्रदान किया जाता है और उसे विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक आधारों पर संचालित किया जाता है| जैसे किसानों, गाँव के लोगों और सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए भिन्न प्रकार का बीमा योजनाएं शामिल किया गया है| परम्परागत बीमा का मुख्य उद्देश्य वर्गों और समुदायों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है|

  • टर्म इंश्योरेंस एक बीमा योजना है जिसमें बीमा कंपनी पालिसीधारक को एक निश्चित समयावधि के लिए सुरक्षा प्रदान करती है| उदाहरण के लिए अगर बीमा धारक उस समय अवधि के दौरान अगर मृत्यु हो जाता है तो उसके परिवार को बीमा राशि दे दिया जाता है| यदि बीमा धारक समय सीमा के बाद भी जीवित रहता है तो इसका कोई लाभ नहीं होता है, लेकिन उसने बीमा प्रीमियम का भुगतान किया होता है तो यह बीमा योजना एक अच्छा बीमा कवरेज प्रदान करता है यह एक बेहतरीन विकल्प है|
  • टर्म राइडर्स बीमा के साथ अनुबंध होता है जो बीमा योजना के साथ जुड़ा होता है यह पालिसी धारक को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करता है| टर्म राइडर्स बीमा धारक को अधिक लाभ देने के लिए जोड़े जाते हैं जैसे कि असामान्य मौत की स्थिति या चिकित्सा लाभ हो सकता है| यह राइडर्स आमतौर पर अतिरिक्त प्रीमियम के साथ देना होता है और वे व्यक्ति के बीमा योजना को परिवर्तित या संशोधित कर सकते हैं ताकि उसे अधिक सुरक्षा मिले|
  • एबैंडमेंट प्लान एक बीमा योजना है जिसमें पालिसी धारक एक निश्चित समय अवधि के बाद बीमा योजना को बंद कर सकता है और बीमा प्रीमियम का भुगतान नहीं करता है| इस प्रकार की बीमा योजना के अंत में नियमित भुगतान प्राप्त करने के लिए किसी प्रकार की नियमित भुगतान नहीं किया जाता है यदि बीमा धारक समय सीमा के बाद उसकी मौत हो जाती है तो उसके परिवार को बीमा राशि दे दिया जाता है|
  • आजीवन बीमा एक बीमा योजना है जो व्यक्ति को उसको पूरे जीवन भर के लिए सुरक्षा प्रदान करता है| इस योजना के तहत बीमा योग्य व्यक्ति की मृत्यु के उपरान्त उसके परिवार को बीमा राशि भुगतान कर दी जाती है| यह बीमा योजना बीमा कंपनियों द्वारा प्रदान किया जाता है व्यक्ति की आयु सीमा और अन्य अनुमानित लाभों के आधार पर तय किया जाता है की इसको कितना लाभ दिया जाये|

2) गैर परम्परागत बीमा योजना

गैर परम्परागत बीमा योजना वह बीमा योजना है जो राज्य सरकारों या सरकारी संस्थानों द्वारा प्रदान किया जाता है जो असामान्य या अप्रत्याशित दुर्घटनाओं और जोखिमो से सुरक्षा प्रदान करता है| इसमें किसान बीमा आपदा और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं शामिल है| यह योजनाएं उन व्यक्तियों या समूहों के लिए होती है जिनके पास आर्थिक संसाधन की कमी है|

यूनिवर्सल लाइफ इंश्योरेंस

सन 1979 में, अमेरिका में यूनिवर्सल लाइफ इंश्योरेंस को प्रारम्भ किया गया भारत में IRDA द्वारा इसे परिवर्ती बीमा उत्पाद का नाम दिया|

इसमें प्रीमियम भुगतान में परिपकवता लाभ यानी फेस मूल्य मृत्यु लाभ राशि में लचीला पर रहता है इसके मूल्य निर्धारक तत्वों का गैर बंडलीकरण कर दिया गया है| एक सीमा के अंतर्गत प्रीमियम भुगतान में छूट रहता है बस यह करना होता है की उसका फण्ड पर्याप्त हो उसके खाते में|  

 वैरियेबल लाइफ इंश्योरेंस

इस प्रकार के “वैरियेबल लाइफ इंश्योरेंस” योजना आजीवन की सुरक्षा देती है| यहाँ पर मृत्यु लाभ और पालिसी में अर्जित नकद मूल्य पालिसी धारक से प्राप्त प्रीमियम से बनाये गए एक विशेष निवेश खाते के प्रदर्शन के आधार पर घटते बढ़ते रहते है| इस प्रकार की योजनाओं में ब्याज दर या न्यूनतम नकद मूल्य जैसी कोई गारंटी नहीं होती है| इस पालिसी में नकद मूल्य शून्य तक नीचे चले जाने से पालिसी स्वतः समाप्त हो जाती है|    

वेरियबल लाइफ इंश्योरेंस एक प्रकार की बीमा योजना है जिसमें बीमा कर्ता को निवेश करने का विकल्प दिया जाता है वह अपने अनुसार किसी भी कंपनी में लगा सकता है इसमें विभिन्न निवेश विकल्प मौजूद होते हैं जैसे कि शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड्स आदि अन्य वित्तीय उपकरण|

 यूनिट लिंक्ड बीमा योजना

यूनिट लिंक्ड बीमा योजना एक प्रकार की बीमा योजना है जिसमें बीमा प्रीमियम का एक हिस्सा निवेश के लिए निकाल लिया जाता है| इसमें निवेश की गति और प्राप्ति की राशि की धारा निवेश के परिणामों पर निर्भर करता है| यह बीमा योजना अलग-अलग निवेश विकल्पों में पैसे लगाने का एक बेहतरीन अवसर प्रदान करती है- जैसे शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड्स या अन्य वित्तीय उपकरण|

परम्परागत बीमा योजनाओं के सन्दर्भ में IRDA के नए दिशा निर्देश क्या है?

जीवन बीमा का महत्व निर्देश जारी हुए हैं| जानकारी के लिए आपको भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकृति (IRDAI) की आधिकारिक वेबसाइट और उनकी नीतियों और दिशा निर्देशों को देखना चाहिए|

IRDAI लाइसेंस बीमा उत्पादकों को बीमा उत्पादों की बिक्री और प्रचार के लिए दिया जाता है| यह लाइसेंस भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) द्वारा प्रदान किया जाता है|
इसका पालन करना अनिवार्य है यदि कोई व्यक्ति बीमा उत्पादक के रूप में काम करना चाहता है तो उसके कुछ नियम है जैसे एक निश्चित शैक्षिक योग्यता होना अनिवार्य है और परीक्षा का उत्तीर्ण होना आवश्यक होता है| इसके अलावा पर्याप्त प्रशिक्षण लिया हुआ होना चाहिए साथ ही साथ लगातार अपडेट होना भी अनिवार्य है|

1 – नए परम्परागत बीमा उत्पादों में मृत्यु कवर ज्यादा मिलेगा|

2 – एकल प्रीमियम बीमा योजना में न्यूनतम जोखिम कवर प्रीमियम राशि का 125 प्रतिशत होगा|

3 – नियमित भुगतान वाली बीमा योजना में न्यूनतम मृत्यु कवर वार्षिक व प्रीमियम राशि का 10 गुना होगा|

4 – परम्परागत बीमा योजना में न्यूनतम मृत्यु लाभ बीमाधन व अतिरिक्त लाभ/बोनस आदि का भुगतान मृत्यु होने पर किया जायेगा|

5 – इस तरह की योजनाओं के दो स्वरूप है पहला सहभागिता दूसरा गैर सहभागिता|

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Important questions and answers of LIC exam

Bindu Vishwakarma LIC Agent

महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

(click on the question to see the answer)

उत्तर – भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI)

उत्तर – शांतिपूर्वक अपने कारोबार को और अधिक प्रभावी बनाने की योजना करना

उत्तर – व्यक्ति स्वयं ही जोखिम एवं उसके प्रभाव को झेलने का निर्णय लेता है

उत्तर – तृतीय पक्ष के दायित्व के लिए मोटर बीमा

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – मोटर तृतीय पक्ष बीमा

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – नाबालिग

(इंश्योरेंस की सम्पूर्ण जानकारी)

उत्तर – वह व्यक्ति जो पुनविर्क्रय के प्रयोजन के लिए सामानों को खरीदता है|

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – उपभोक्ता संरक्षक अधिनियम 10/04/1986

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जीवन बीमा बिन्दु विश्वकर्मा

उत्तर – बीमा लोकपाल केवल निर्दिष्ट क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर कम करता है|

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उत्तर – शिकायत लिखित रूप में की जाएगी|

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – कोई भी फीस भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है|

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – प्रोफेसर ह्युबनर

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – विभिन्न अस्ति संवर्गो में निधि का निवेश करके

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – दावों का भुगतान के आधार पर

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – बैंकों के माध्यम से पालिसी विक्रय

उत्तर – धूम्रपान एक खतरा है तथा फेफड़ों का कैंसर एक बीमारी है|

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उत्तर – पूर्व राष्ट्रपति Dr.APJ Abdul kalam ने शुरू की थी इसका कमीशन गैर सरकारी संगठन को जाता है इसका साप्ताहिक क़िस्त 15 रुपये है|

उत्तर – नहीं, क्योंकि जीवन में कई प्रकार के जोखिम होते है|

उत्तर – एक व्यक्ति द्वारा शराब पीना|

उत्तर – जब बीमाकर्ता द्वारा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है|

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उत्तर – नामांकन के हितों का हस्तांतरण ही होता जबकि समनुदेशन के हितों का हस्तांतरण हो जाता है|

उत्तर – सेवा नेतृत्व पूर्व व्यक्तियों के लिये

उत्तर – सही, स्वास्थ्य बीमा का सम्बन्ध रुग्णता से है|

उत्तर – मुख्य नियोक्ता पालिसी                                                                                                              

उत्तर – जब पालिसी व्यापता हो तथा उसे पुनः जीवित कराया जा रहा हो|

उत्तर – प्रीमियम से कमाए ब्याज की राशि घटाकर|

उत्तर – उक्त पालिसी को उसके चुकता मूल्य में परिवर्तित कर देंगे क्योंकि तीन वर्षों तक प्रीमियम जमा होने की दशा में चुकता मूल्य लिया जा सकता है|

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उत्तर – कार एवं दिनेश में बीमा योग्य हित तब तक रहेगा जब तक वह कार को दोबारा प्राप्त नहीं कर लेता|

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – सभी प्रकार के जोखिमो का पुल बनाना|

उत्तर – जिला स्तर पर उपभोक्ता फोरम रु 20,00,000 बीमा लाख, राज्य स्तर उपभोक्ता फोरम 1 करोड़ तक|

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उत्तर – सशर्त समानुदेशन व पूर्ण समानुदेशन

उत्तर – 1) अदा की गयी किश्तों के वर्ष 2) अदा की जाने वाली कुल किश्तें 3) बीमाधन

उत्तर – जब चेक की राशि बीमा कंपनी के खाते में जामा हो जाएगी|

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – प्रथम प्रीमियम रसीद जारी की जाती है|

उत्तर – वैल्यू संविदा/कीमती करार  

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उत्तर – बीमाधारक के वैधानिक उत्तराधिकारी|

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – आयु प्रमाण पत्र स्वीकार्य है| परन्तु नान स्टैण्डर्ड|

उत्तर – बीमाकर्ता एवं प्रस्तावक दोनों पर

उत्तर – जब गलत प्लान बेचा गया हो जो की ग्राहक की आवश्यकता को पूरा न करता हो|

उत्तर – समनुदेशित पालिसी में नया नामांकन नहीं कर सकता है|

उत्तर – प्रथम बीमाकर्ता

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – वार्षिक की जाती है|

उत्तर – यूलिप प्लान/यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – भविष्य की आयु की वर्तमान कीमत

उत्तर – मृत्यु दावा राशियों को सुनिश्चित करने के लिए

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – अधिकतम संभावित हानि|

उत्तर – उसके द्वारा प्राप्त किए जा रहे कमीशन पर|

उत्तर – शुल्क सलाहकार समिति T A C धारा 64 U 1938

उत्तर – ग्राहकों के बने रहने को अक्षुणता कहते है| कितने ग्राहक रुकते है| निम्न अक्षुणता उच्च अक्षुणता|

उत्तर – नामित व्यक्ति का आश्रित न होना

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – अंतिम किश्त जारी होने की तिथि

उत्तर – बट्टा दावा परिपक्वता पर लागू होता है यह केवल परिपक्वता से 1 साल पहले ही लिया जा सकता है| बीमा कंपनी 1 साल का अपना निर्धारित ब्याज काटकर भुगतान कर देगी|

उत्तर – अभिकर्ता का शिक्षा प्रमाण पत्र

उत्तर – यह लागत का खतरा है|

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – पुणे के महाराष्ट्र में बीमा अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है|

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – अभिकर्ता बनने का शुल्क 125/- है, 12 वीं पास किया हो, 50 घंटे के ट्रेंनिंग लिया हो और एक परीक्षा उत्तीर्ण होना अनिवार्य शर्त है|

उत्तर – डाकघर (पोस्ट ऑफिस)

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – केन्द्रीय सरकार के पास शक्तियाँ है की वह एक नोटिस के द्वारा निर्देशित करें|

उत्तर – मास्टर पालिसी धारक जैसे किसी भी संस्थान/कंपनी का नियोक्ता तथा बीमा कंपनी

उत्तर – न्यायालय के आदेशों तक प्रीमियम/प्रतिफल/किश्त का भुगतान करना होता है|

उत्तर – बीमा राशि की सीमा तक वास्तविक नुकसान

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – इसमें कितने भी व्यक्ति हो सकते है|

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – एक मुश्त तथा तय सीमा समय के लिए

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – पालिसी अवधि में केवल मृत्यु दावा भुगतान

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – पालिसी अवधि तक जीवित रहने का भुगतान

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – परिपक्वता तथा मृत्यु दावा

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – मृत्यु लाभ के अतिरिक्त जीवित रहने पर परिपक्वता लाभ देता है|

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उत्तर – बीमा प्रशिक्षण संरचना का कार्यान्वयन, निर्माण तथा परिचालन, बीमा अधिकारियों की ट्रेनिंग देना है|

(जीवन बीमा का महत्व)

उत्तर – स्वास्थ्य बीमा योजना|

(जीवन बीमा का महत्व)

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