जय गुरुदेव का जीवन परिचय
जय गुरुदेव का सम्पूर्ण विवरण
संक्षिप्त परिचय
“जय गुरुदेव का जीवन परिचय” विषय पर हमने विस्तार से लिखा है उनकी हर महत्वपूर्ण रचना का उल्लेख किया गया है जय गुरुदेव संस्था का शुरुआत अपने जीवन को सफल बनाने के लिए किया गया था इन्सान का जो परम लक्ष्य है उसको प्राप्त करना|
गुरुदेव जी का सम्पूर्ण जीवन सादगी में बिता इसी प्रकार गुरुदेव भी लोगो को अपने जीवन में सादगी सिखाते है जय गुरुदेव आश्रम मथुरा के बारे में बताया गया है, जय गुरुदेव का जीवन परिचय पर प्रकाश डाला गया है, जय गुरुदेव का जन्म और जयगुरुदेव की मृत्यु कब हुई, जय गुरुदेव के विचार और जय गुरुदेव के माता-पिता कौन थे आदि अन्य चीजों पर प्रकाश डाला गया है|
जैसे-जैसे आप संस्था के बारे में आगे पढ़ते जायेंगे आप संस्था के बारे में धीरे-धीरे गहराई से जानते जायेंगे और हमें उम्मीद है आपके सारे प्रश्नों के उत्तर मिलते जायेंगे और संस्था के हर बारीकियों को समझते जायेंगे जिससे संस्था के प्रति आपकी रूचि प्रगाढ़ होगी जाएगी और संस्था के प्रति आपकी निष्ठा और झुकाव बढ़ेगी|
बहुत से लोगों के मन में यह सवाल आता है की इस संस्था के बारे में जानकारी कहाँ से प्राप्त करें ताकि इस संस्था से जुड़कर अपने आध्यात्मिक सफ़र को आगे बढ़ाया जा सकें इसी प्रश्न के उत्तर के लिए हमने गहन रिसर्च और अध्ययन किया जिससे लोगों को संस्था के बारे में सही जानकारी प्राप्त हो सकें और अपने जीवन को बेहतरी के मार्ग पर आगे बढ़ा सकें जय गुरुदेव संस्था उनमें से एक हैं|
अतः विस्तार से जानने के लिए आगे पढ़े …
विस्तार से समझें
बाबा जय गुरुदेव का जीवन परिचय
बाबा जी का असली नाम श्री तुलसीदास यादव जी था| बाबा जयगुरुदेव का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के खिटोरा गाँव में हुआ था| उनकी छोटी उम्र में ही उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था जिस कारण उनके जन्म का कोई निश्चित तिथि किसी को भी याद नहीं है क्योंकि उस समय के हालत और परिस्तिथि भिन्न थी| माँ-बाप के देहान्त के उपरांत वह सन्यासी बन गए थे और निकल पड़े घर द्वार छोड़ के मोक्ष की खोज में| अपने सन्यासी जीवन में उन्होंने संत घूरेलाल जी को अपना गुरु मन लिया था|
अपने गुरु के स्वर्गवास होने के बाद वह आगरा-दिल्ली राज्यमार्ग पर उन्होंने अपने गुरु के नाम पर एक भव्य आश्रम का निर्माण कराया| बाबा जय गुरु देव जी अपने आश्रम से समाज सेवा का काम किया करते थे जिसमे निशुल्क चिकित्सा, शिक्षा, शादी के लिए अनुदान, गरीबो की सहायता, गरीबो को भोजन आदि अन्य प्रकार की सहायता किया करते थे|
बाबाजी शराब के सख्त खिलाफ थे उनका मानना था की शराब और मांसाहारी ही सभी रोगों का जड़ है इसलिए वह लोगों को हमेशा शाकाहारी भोजन करने के लिए प्रेरित करते थे और भजन में ध्यान लगाने की सलाह देते थे|
जयगुरुदेव की मृत्यु कब हुई? बाबाजी का स्वर्गवास दिनांक 18 मई, दिन शुक्रवार 2021 अपने आश्रम में ही हुआ वही पर उन्होंने अंतिम साँस लिया|
जय गुरुदेव नाम किसका - “प्रभु का”
आप सभी लोग के लिए बाबाजी का कहना है – “जीव हिंसा मत करो, शाकाहारी हो जाओ” हर किसी को जीने का अधिकार है अगर हम किसी को जी..ला..(जिंदा) नहीं कर सकते तो मारने का भी ह़क नहीं है इसलिए शाकाहारी बनो शुद्ध और सात्विक भोजन खाओ|
पहले हम सब शाकाहारी थे सतयुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और यहाँ तक की कलयुग में भी हम सब शाकाहारी ही थे लेकिन अपने स्वाद के लिए हम जीव-जन्तु-पशु-पक्षियों का शिकार करने लगे और उन्हें मार कर खाने लगे जिससे उनके शरीर के अन्दर मौजूद रोग को भी हम खाने लगे जिस कारण से हम अस्वस्थ और बीमार होने लगे| पशु को मारते वक्त वह जिस तड़प के साथ मृत्यु को प्राप्त होता है (फिर उसको पका कर खाना) उसका भी असर हमारे जीवन में पड़ता है इसलिए अशुद्ध आहार, खान-पान और आचार-विचार इन सबका हमारे जीवन पर प्रतेक्ष या अप्रतेक्ष रूप से असर पड़ता ही है| इसलिए जय गुरुदेव के वचनों का पालन करें|
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बाबाजी का कहना है: कृपया कोई भी नशा मत करो, ये बुद्धिनाशक है
केवल उस गुरु(भगवान) का नशा छोड़कर बाकि हर नशा वर्जित है गुरु यानि जय गुरुदेव धोनी का नशा तो वह नशा है जिससे हम इस भाव सागर से तर सकते हैं|
सभी बुराइयों का मूल “शराब” है इसलिए इससे जितना दूर रहो उतना अच्छा है एक बार शराब का लत लग जाने से बाकि नशा जैसे सुर्ती, पान, गुटखा आदि का लत अपने आप पड़ने लगता है धीरे-धीरे आगे बढ़ते-बढ़ते ये नशा हिरोइन-ड्रग्स और कोकीन तक पहुँच जाता है और फिर मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन नष्ट कर देता है| इसलिए इसका परहेज़ करें, दूर रहें और स्वस्थ रहें|
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“जय गुरुदेव” स्वामी जी के अनमोल वचन:
- अच्छे काम हमेशा अच्छे होते हैं और बुरे काम हमेशा बुरे होते हैं| किसी का भी विवेक अच्छे काम को तो पकड़ता है लेकिन बुरे काम के लिए अन्दर डरता है| लेकिन विवश और मजबूर होकर वह बुरे काम करता है|
- मैंने बार-बार कहा है और फिर कह रहा हूँ की आगे समय बहुत ही ख़राब आ रहा है| उस भयंकर समय में लोगों को सिर्फ महात्माओं की ही तलाश होगी|
- अच्छाई का प्रचार धीरे-धीरे होता है, जबकि बुराई का प्रचार जल्दी होता है| पहले के लोग अच्छाइयों को जल्दी समझते थे, पर अब इसका उल्टा हो गया| अपने ही परिवार में, अपनी ही जाति में, अपने ही समाज में, भाइयों-भाइयों में, बाप-बेटे में इस तरह का दुखमय व्यवहार हो गया की सब अशान्त हो गए| अब सब शांति चाहते हैं पर वह कहीं मिलती नहीं वह तो महात्माओं के पास ही मिलेगी|
- दया करने वाला यह नहीं देखता है कि यह बड़ा है, यह छोटा है, यह अमीर है, यह गरीब है, यह जानवर है या पशु-पक्षी है| वह तो सब पर समान रूप से दया करता है| जो सब पर दया करते हैं वो प्रार्थना करते हैं की हे भगवन! हे खुदा! तुम सबको अच्छा बना दो|
- सब प्रेमी को जिन्होंने नाम दान पाया है उनको मालूम होना चाहिए कि गुरु कृपा होने लगी हैं| जुग-जुग के शुभ संस्कारों से गुरु मिलते हैं| गुरु कृपा होती है तब नामदान मिलता है| तुम नाम दान आसान मत समझो| सच्चे मालिक का भेद है सच्चे प्रीतम का जब भेद गुरु द्वारा पा लिया जाता है तभी गुरु और मालिक की दया का परिचय मिलता है| गुरु समर्थ हैं, सब जानते हैं, उन्हें अँधा मत समझो कितनों पर गुरु कृपा तुम्हें देखने को मिल रही है| गुरु बाहर भी संभाल करते है, गुरु अंतर में भी संभालते हैं, बड़े-बड़े संसारी काम भी करा देते है| संसारी प्रीत देने के लिए होशियार रहो चुस्त और सतर्क रहो| गुरु वचन जय गुरुदेव, जय गुरुदेव को याद करते रहो ध्यान गुरु का ही करते रहो|
- दो धारा उतारी गई एक NEGATIVE और एक POSITIVE एक धार खींचती हैं दूसरा फेंकती है अगर तुम ऊपर जाना चाहते हो तो धार को पकड़ लो जो खींचती है| फेंकने वाली धार तुमको न जाने कहाँ फेंक दे| अभी तुमको सत्संग नहीं मिल रहा है, अभी तो सत्संग की इच्छा जगाई जा रही है जब भूख लगती है तब खाना रुचिकर लगता है, प्यास लगती है तब पानी का स्वाद आता है| बिना भूख के खाना खा लिया तो अजीर्ण हो जायेगा| अब थोड़ा-थोड़ा महौल बनाया जा रहा है और थोड़ी-थोड़ी भूख लग रही है| भूख लगेगी, सत्संग सबको मिलेगा सत्संग में बैठे-बैठे लोग स्वर्ग और बैकुण्ठ में नारद की तरह जायेंगे और फिर मृत्युलोक में वापस लौट आयेंगे यह है जय गुरुदेव अंतर्धवानी|
- जो लोग नाम दान प्राप्त कर चुके हैं उन लोगों को हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए की मन किन-किन चीजों में जाता हैं जब तक आप मन को रोकेंगे नहीं, भजन नहीं होगा न ही भजन में रस आएगा मन तरंग में बहेगा तो साधना कौन करेगा? मन साथ नहीं देगा तो जीवात्मा कुछ नहीं कर सकती है|
- थोड़ी सी मन की निरख परख करते रहें सत्संगी यही गलती करते है की मन को रोकते नहीं हैं| – मन को रोको| थोड़ा आप मेहनत करो, थोड़ा गुरु मेहनत करें थोड़ा मालिक करे| आप मेहनत नहीं करेंगे तो कुछ नहीं होगा| जब वह कृपा करेगा तो ऊपर मालिक बैठा है उसकी दया होगी|
- जो लोग संत महात्माओं की आलोचना करते हैं और मखौल उड़ाते है उनको पता नहीं की आगे क्या होने वाला है ऐसा वक्त आ रहा है की गाँव के गाँव उजड़ जायेंगे|
- टैक्स, मंहगाई और मुसीबत ऐसी आ रही है की लोगों को दिन में ही तारे नज़र आने लगेंगे|
- सत्संगी बिना नागा किये सुमिरन-ध्यान करते चलें जायें| उछल कूद करेंगे तो छूट जायेंगे जैसे समुन्द्र में ज्वार भाटा आता है और बड़े-बड़े जहाजों को किनारे लगा देता है उसी तरह से प्रतीक्षा में रहो| जब दया का ज्वार भाटा आयेगा और तुम दरवाजे पर बैठे रहोगे तो एक बार तुम्हारी दिव्य आँख खुल जायेंगी और यही से बैठकर तुम नित्य नारद की तरह स्वर्ग में बैकुण्ठ में आने जाने लगोगे| इसलिए दया के घाट पर नित्य बैठो और आँखों के ऊपर चलो जहाँ प्रकाश ही प्रकाश है अँधेरा का नामोनिशान नहीं है|
- आपके पास चीज है तो दुसरे को क्यों श्रेय देते हो कलयुग जायेगा सतयुग आएगा तुम अपना काम करो, आनेवाला अपना काम करेगा, जानेवाला अपना काम करेगा| करने वाला तो क्षणों में काम कर देगा फिर तुमको श्रेय क्या मिलेगा| राम रावण को मार देते तो हनुमान को श्रेय क्या मिलता और किस बात का इतिहास बनता|
- स्वार्थ परमार्थ की टक्कर हो रही है| बीच में रुई रख दो आग लग जाएगी| पत्थर से पत्थर टकराएगा तो एक चिनगारी निकलेगी पर आग नहीं बनेगी| बीच में रुई रखो तो वही चिंगारी आग बन जाएगी महात्मा जगत में बड़े खिलाड़ी होते है| ऐसे-वैसे नहीं होते है जैसे तुम समझते हो| उनको समझना बहुत गहन है|
- महात्माओं के यहाँ कभी नुकसान नहीं होता है| तुम्हारा कर्म शूली का कांटा बन जाता है| महात्मा से लेना न लेना तुम्हारी बात है| मालिक के नाम पर बर्दाश्त करना यह भक्त का काम है, भक्त को सर पर रखना यह भगवान का काम है|
- सभी सत्संगी समय निकलकर हर रोज भजन करें जय गुरुदेव जी महाराज का क्योंकि भजन से आत्म कल्याण होगा| कर्म से शरीर स्वस्थ रहेगा|
- आगे महात्माओं की जरुरत सबको पड़ेगी| किसान, मजदुर, व्यापारी, कर्मचारी, नवयुवक सबका भला केवल महापुरुष ही करेंगे और कोई करने वाला नहीं है| जो उनको ठण्डक और शांति दें|
- जो लोग आश्रम आते हैं उन्हें आश्रम के नियमों का पालन करना चाहिए आश्रम के सामान चुराकर ले जाने वाले अपना ही नुकसान करते है वैसे बगैर पूछे आश्रम का एक पत्ता भी नहीं छूना चाहिए|
- तुम रास्ता बना लो| रास्ता बनाने की जरुरत है जिन्होंने आज्ञा का पालन किया उन्हीं को कहते है भक्त और सेवक| हनुमान जी की कोई सुन्दर शक्ल(चेहरा) नहीं थी जो आप उनपर रीझ जाओगे पर वास्तविकता तो है उनकी पूजा होती है झगड़े-झंझट से अलग रहना चाहते हो तो भजन करों, अच्छा समाज बनाओ, अच्छे मित्र बनाओ|
- कलयुग में लगे रहो- ये “करयुग” है| करो और प्राप्त करो धीरे-धीरे सब हो जायेगा| आप लोग एक-एक बातें परमार्थ की ओर लेकर जाओं| लोगों के कानों में डाल दो तुम अपनी बात कहते रहो| कान में डाल दो वह काम करता रहेगा|
- जय गुरुदेव नाम धोनी लेते रहो अपना काम करते करो| चमत्कार को नमस्कार| तुम घमण्ड मत करो| क्षणों में बदल दिए जाओगे किसी को पता भी नहीं लगेगा इसलिए घमण्ड मत करो मैं कहाँ से बोल रहा हूँ कहाँ से लिख रहा हूँ तुम्हे पता नहीं| मेरा उपदेश सबके लिए है|
- जो हुकुम मिल जाय उसे पालन करो| तुमने देखा फ़ौज में हुकुम मिलता है मरो या मारो फ़ौज चल पड़ती है| महापुरुषों का आदेश काम का होता है आदेश नहीं मानोगे तो तुम्हारे लिए घातक हो जायेगा| तुम वीर बनो नपुंसक, कायर और हिजड़ा मत बनो|
- महात्मा जब सीधा डमरू बजाते हैं तब भीड़ इकट्ठी होती है| महात्मा उल्टी डमरू बजाना भी जानते है जब वे उल्टी डमरू बजाते हैं तब छटनी हो जाती है|
- तुम यहाँ सेवक बनने आये हो मालिक बनने नहीं, तुम मेरे ठेकेदार मत बनो| मेरा ठेकेदार केवल भगवान है|
- मैं चाहता हूँ की सब लोग घर में, परिवार में, समाज में, जातियों में सुमति से रहें| सुमति से रहेंगे तो किसी के साथ मारपीट, झगड़ा, लुट, धोखा, खून-खराबा, चोरी आदि चीजे नहीं होगी| हम चाहते है की सबमें सुमति आ जाये|
- जय गुरुदेव मथुरा के वचनों को हमेशा याद रखो| वचन याद रहेंगे तो काम और माया का जोर नहीं चलेगा|
- वक्त आ गया है जब लोग बदल जायेंगे ऐसे वक्त में बड़ी होशियारी से सबको रहना चाहिए|
- जब कोई वस्तु मिलती नहीं वह मन को अच्छी लगती है| जब वो मिल जाती है तो कई प्रकार के संकटों और दुखों का कारण बन जाती है| कुंवारी कन्या को वर चाहिए और वर को कन्या चाहिए, निर्धन को धन लाने की चिंता है तो धनवान को धन सँभालने की, जिनके पास संतान नहीं है वे संतान के लिए तड़प रहे हैं और जिनके संतान है उन्हें संतान के कारण अनेक प्रकार के दुःख झेलने पड़ रहे हैं| यह संसार अधूरा और नाशवान है किसी को सुख नहीं दे सकता इसलिए गुरु के शरण में चलो|
- तुम्हारे जीवन का एक-एक दिन कम हो रहा है इसलिए तुम हमेशा सोचते रहो की हमें जय गुरुदेव भजन आरती करना है| भजन से ही आत्मा जगेगी उसे होश आएगा और उलट कर अपने घर सत्तलोक की तरफ चल पड़ेगी|
- महात्माओं के किताबों का अर्थ तो तब समझ में आएगा जब तुम भजन करोगे|
- संत जब सत्तलोक से उतर कर शरीर में आए तो वही सत्-पुरुष हैं गुरु जगा हुआ है और गुरु रूप में सत्तपुरुष ही आया हुआ है उनकी महिमा ईश्वर, ब्रह्मा, पारब्रह्म, देवी-देवता कोई नहीं कर सकता|
- सत्संग सुनते-सुनते जब उदासीनता होने लगे तो समझ लो की दया हो रही है यह शरीर, यह सामान और यह देश सब कुछ छोड़कर तुम्हें यहाँ से जाना है| इस पाठ को बराबर याद करते रहो|
- संसार में दो चीजें हैं एक संग और दूसरा कुसंग| महात्माओं का संग कर लो तो काल के जाल से निकल जाओगे|
- इन्सान को हमेशा डर और खौफ बना रहता है इस समाज, परिवार, जाति, छोटे-बड़े, दुःख-भय आदि का यहाँ तक की नरक लोक का भी भय बना रहता है लेकिन सत् लोक का कोई भय नहीं रहता वह स्थान निर्भय स्थान है तो हमें ऐसे स्थान के लिए तैयारी करनी चाहिए|
- जो सत्संगी हैं उनको नाम कमाई में लगाना चाहिए| जो दिखाई पड़ रहा है वह समय अच्छा नहीं है आप लोग संभल जाओ|
- संत जय गुरुदेव जीवों को माफ़ करें तभी कुछ हो सकता है तकलीफ और परेशानियाँ दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है| काल तो अपने दोनों काम करता है दया भी करेगा, सजा भी देगा लेकिन महात्मा और संत केवल दया काम में लेते हैं| यह बात लोग समझ नहीं पाते|
- तुमसे बार-बार कहा जाता है की भजन करो, भजन करो| तकलीफे और परेशानियाँ तो आएगी ही और भजन ही उनका इलाज है| भजन से कर्म कटेंगे फिर आराम मिलेगा|
- लड़ाई-झगड़े से थोडा बचकर रहो घर में चुप रहकर खराब समय को निकल दो| जो-जो कर्म तुमने किये है उनका हिसाब तो देना ही होगा| महात्मा से उसे थोड़े में आसानी से चुकता करवाना चाहते है|
- आप जो भी काम-धन्धा कर रहे हो उसे करते रहो| उसमे तुमको बरक्कत मिलेगी इधर-उधर चक्कर मारोगे तो कुछ अधिक मिलने वाला नहीं है| अपने प्रारब्ध पर भरोसा रखो| दया बराबर मालिक की हो रही है|
- टूटे हुए दिलो को महात्मा ही जोड़ सकते है| रहम और दया का खजाना फकीरों के पास होता है| ऐ इन्सान! सुकून और शांति फकीरों के पास ही मिलेगी| अब देश का भला धार्मिक लोगों के द्वारा ही होगा|
‘जय गुरुदेव’ नामदान सच्चे मालिक का भेद है
एक बात स्पष्ट समझ लो शराब मत पीना और हिंसा मत करो| खेती, दुकान और दफ्तर जाओ बच्चो की सेवा करो, आये-गये का सत्कार करो, बड़ो का आदर और छोटो से प्यार करो और जब भी समय मिल जाये तो 10-15 मिनट, आधा घंटा भजन, ध्यान, सुमिरन कर लो| यह कोटा तुमको पूरा करना है| भजन, ध्यान और सुमिरन में तुमको जो कुछ भी मिले यह किसी से कहना नहीं है, उसको हजम करना, छुपा कर रखना| रूपया पैसा छुपा कर रखते हो, किसी से कहते नहीं हो बिलकुल ऐसे ही आत्माओं का यह धन छुपाकर रखना यह है जय गुरुदेव नाम दान| यह पैसे से नहीं मिलता है| यह प्रभु की कृपा से मिलता है|
तुम चाहो की हम पैसे देकर खरीद ले तो तुम पूरा राज्य चाहे दे दो लेकिन यह नहीं मिलेगा| अगर ऐसे ही मिल जाता तो महात्माओं का इतिहास खतम हो जाता यह तो उसकी दया न्यामत या कृपा है वह जब वर्षा कर दे तो पैसे और हीरे जवाहरात मिल जाये लेकिन यह ऐसे नहीं मिलेगा| जय गुरुदेव नाम दान मंत्र सर्वोपरि है| इससे बढ़कर और कोई दान नहीं है| इसको छोटी-मोटी चीज आप मत समझना| वैसे पुराने शब्दों में इसे गुरमत और दीक्षा कहते हैं| पर न यह गुरमत है और न ही दीक्षा है यह नामदान है|
उस गुरमत और दीक्षा की क्रिया अलग है और इस नामदान की और भजन की क्रिया बिलकुल अलग है यह सच्चे मालिक का भेद है|
क्या आपको मालूम है की नामदान के बाद गुरु-शिष्य के अंग संग रहते है और उसको सम्हालते है उसका देखभाल करते है लेकिन इस बात को शिष्य नहीं जनता| जब सत्संगी अनंत में जाकर तारा मण्डल, सूर्य, चाँद को पार करके नूरानी रूप का दर्शन करेगा उस समय गुरु आपसे बातचीत करेंगे वह सदा आपके साथ रहेंगे और आपके सभी सवालों का जवाब देंगें|
अपना कल्याण करो
यहाँ किसी का कुछ नहीं है| सब कुछ एक धोखा है एक भ्रम है| यह असली माया भी नहीं है यह माया की छाया है| न किसी के काम आई है न किसी के काम आएगी| जहाँ तक हो सके दुसरे की भलाई का काम करो और जीवात्मा का कल्याण करो| यही सार बात हमको बताई गई थी|
जब हम लोग महात्माओं के पास आते-जाते रहते थे तो यह सब बातें हमको याद कराई जाती थी जब से हम लोगों ने महात्माओं का साथ छोड़ दिया उनकी शिक्षाओं को भूल गए तब से संसार के कचड़े में पड़कर हमने अपना सत्य, आदर्श, सेवा, प्यार सब कुछ विस्मृत कर दिया| यही मनुष्य जो अपने मानव धर्म और सद्गुणों के कारण सर्वोच्च समझा जाता था आज पशुओं की तरह से खाने-पीने के लिए आपस में ही लड़ने-झगड़ने लगा|
महात्माओं की शिक्षा इस देश में सदैव सर्वोपरि रही है और हमेशा रहेगी यह अकाट्य सत्य है असत्य एक धोखा है, एक अज्ञान है| हमें ऋषियों-मुनियों की शिक्षा का अनुसरण करना होगा उनका अर्थ समझते हुए अपने जीवन में उतारते हुए अपने जीवन को सफल करना होगा|
सबको प्रणाम करो
आप सब लोग मेरे कहने से अधिकारियों-कर्मचारियों का सम्मान करो, बुजुर्गो को प्रणाम करो, उनका आशीर्वाद लो| आशीर्वाद कई तरह से लिया जाता है| यही सब चीजें मानव धर्म और आत्मिक धर्म में काम आती है| अंतरात्मा की चीजों को संग्रह करो दूरदर्शी वालों को यह सब चीजें अनुभव में लानी है|
प्रणाम एक प्रेम है
प्रणाम में शीतलता है
प्रणाम आँसू धो देता है
प्रणाम क्रोध मिटाता है
प्रणाम हमारी सभ्यता है
प्रणाम हमारी संस्कृति है
प्रणाम एक अनुशासन है
प्रणाम झुकना सिखता है
प्रणाम आदर सिखाता है
प्रणाम अहंकार मिटाता है
प्रणाम से सुविचार आते है
जिंदगी में अपने से बड़ों को ‘प्रणाम’ करना सीखिए क्योंकि कहा जाता है की ‘प्रमाण’ परिणाम बदल देता है|
गुरु भक्ति पहले करो
बाबा जय गुरुदेव जी ने कहा की संत मत में गुरु भक्ति सर्वश्रेष्ठ है| गुरु की आज्ञा मानना ही कलयुग में सर्वश्रेष्ठ साधना है और यही प्रथम सीढ़ी परमार्थ में चढ़ने के लिए खुल गई है| प्रीत परतीत और विश्वास साधक को गहराई में प्रवेश करेगा साधना अच्छी होगी| सूरत के ऊपर बहुत से परदे कर्मो के चढ़े हैं| जुग जुगान का मैल जमा हो गया तो साधक को गुर के सन्मुख आकर जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए|
जल्दबाजी साधना में बाधक बनेगी क्योंकि परदे धीरे-धीरे उतरेंगे| साधक चाहेगा की जल्दी प्राप्ति हो ऐसा न होने पर साधक को गुरु की समर्थता में अविश्वास पैदा होगी, प्रीत परतीत से साधक हट जायेगा साधक को चाहिए की धीरज के साथ साधना में लगा रहे| दया अवश्य होगी कमी हममें है गुरु की तरफ से नहीं|
साधकों का मन माया में फंस कर साधना भजन में सुस्ती आ गया है मन में अभाव पैदा हो जाता है मन खिन्न होकर विकल्प की तलाश करता है और कहता है की मुझसे अब और साधना नहीं होगा मन दब जाता है| तब गुरु की कृपा मांगता है और साधन में रुझान होने लगता है| साधक के मन को दबाने के लिए दुनिया के तमाम परेशानी है| गुरु की समर्थता को साधक बार-बार भूलता है| साधक को प्रीत-परतीत विश्वास, गुरु वचन की याद, गुरु प्रेम के साथ-साथ मालिक के दर्शन प्यास व् तड़प जरुरी है|
बिन गुरु भक्ति मोह जग कभी न काटा जाय
यह जय गुरुदेव का सत्संग है और सत्संग एक पारस की तरह है जिस तरह पारस लोहे से मिल जाये तो लोहा सोना हो जाता है पर जिस लोहे में जंग लग जाये तो वह सोना नहीं होगा| इसी तरह निष्कपट और प्रेम के साथ सत्संग करोगे तो पारस काम करेगा| सोने की तरह आत्मा जग जाएगी हीरे की तरह निकल आएगी, कपट भाव से सत्संग सुनोगे उसका असर नहीं होगा और सब व्यर्थ हो जायेगा|
‘शब्द’ की ताकत को समझे (शब्द एक चुम्बक है)
असल में देवदूत ही जमदूत है यह ही हमें पकड़ कर ले जाते है (मरने के बाद) लेकिन जब हम साधना करते है तो इसके पार हो जाते हैं| साधना वह शक्ति है जिसको करके इनसे परे हो जायेंगे तब न तो जमदूत का काम, न देवदूत का काम| इनकी धार टूट जाएगी फिर कोई जरुरत नहीं|
उस समय पर “गुरु” काम करते है ले जाने का| उधर से जन्म दिलाने का भी काम गुरु करते है| रास्ता छूट जायेगा, तुम भटक जाओगे इसलिए तुम शब्द में लय हो जोओं| इतने लय हो जाओ कि वह सूरत को पकड़ कर खींच ले| एक शक्ति है शक्ति काम करती है| जब तक सूरत कि लय नहीं होगी खीचने का काम शब्द नहीं करेगा|
बिना लय हुए वह खीचेगा भी तो साधक घबरा कर साधन छोड़ देगा| कभी मौत का भय हो जायेगा, कभी बच्चों का मोह उसे हो जायेगा| वह खींचता है और छोड़ देता है क्योंकि आप में वासना है, काम, क्रोध, मोह है|
मन तरंगों की वासना कम करो इससे जब साधना में बैठोगे तो मन तरंगो में नहीं जायेगा| उस समय पर काम-क्रोध-लोभ-मोह जागृत होता हैं| उस समय सत्संग की जरुरत होती है या फिर ऊँचे साधक की जरुरत होती है जो हर दम सत्संग की बातें करते हैं| सत्संग के वचनों की याद दिलाता रहे नहीं तो साधना छुट जाता है इसलिए शब्दों को समझे…
गुरुदेव शरणं गच्छामि
“गुरुदेव शरणं गच्छामि” का अर्थ होता है हमें अपने गुरु के शरण में जाना चाहिए जिससे हमारा कल्याण हो सके|
बाबा जय गुरुदेव जी जैसे महान संत और महानत्माओं के पास हम सबको जाना चाहिए और उनके वचनों का अनुसरण करना चाहिए|
स्वामी जी ने अपने भक्तों से कहा आदेश पालन को गुरु भक्ति कहते है| काम, क्रोध, मोह, अहंकार यह भयंकर शत्रु हैं और इनसे बचने के लिए हमें बुराइयों को छोड़ना होगा और अच्छाइयों को अपनाना होगा साथ ही बुद्धि को साफ और निर्मल करना होगा रोज नियम से सुमिरन ध्यान भजन करोगे तो जीवात्मा जगेगी, ज्ञान मिलेगा और अन्धकार दूर होगा सबसे पहले भक्ति करनी होगी इसके लिए हमें गुरुदेव शरणं गच्छामि यानि गुरु के शरण में जाना होगा तभी हमारा कल्याण होगा|
मोटे बंधन जगत के, गुरु भक्ति से काट |
झीने बंधन चित के, कटे नाम परताप ||
बाबा जय गुरुदेव जी महाराज ने आगे कहा संसार के मोटे बंधन गुरु भक्ति से कटेंगे| चित्त के बंधन बहुत ही बारीक़ है और वे दिखाई नहीं देते उसको साबुन से या पानी से धोया नहीं जा सकता| जयगुरुदेव सत्संग और जय गुरुदेव भजन को सुनने से, करने से बंधन कटेंगे| और सबसे बड़ी बात यानि (सौ बात की एक बात) गुरु के शरण में जाने से ही हमारे हर दुःख दूर होंगे, हर कस्ट कटेंगे, हर समस्या का निवारण होगा|
बाबा जी के कहने पर एक करोड़ लोगों ने टाट पहन लिया
क्या आप जानते है:
- टाट की झोली में बाबा जय गुरुदेव ने रतन भर दिया है और उसका जलवा देखने को मिलेगा|
- टाट पहने वाले लोग त्यागी और तपस्वी है वह अपना जीवन धन्य कर लिए है|
- जटा जुट पहना है राम ने, जूट को पसंद किया और मोहम्मद साहब ने तुम्हे क्या पता की इसमें क्या छिपा हुआ है|
- टाट धारियों का इतिहास बनेगा और सदियों तक उनकी गाथा गाई जाएगी|
- टाट धारियों द्वारा एक बहुत बड़ा परिवर्तन होने जा रहा है|
क्या खानपान का असर होता है?
खानपान का बड़ा असर होता है “जैसा खाये अन, वैसा होए मन” हम जिस प्रकार का खाना खाते है उसी प्रकार का हमारा मन भी हो जाता है फिर वैसे ही हमारी बुद्धि भी हो जाती है जिस वजय से हमारे क्रिया कलाप में परिवर्तन आ जाता है| खानपान और संग दोष का बहुत ज्यादा प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर पड़ता है|
संग दोष अच्छे का हो या बुरे का दोनों का भयंकर प्रभाव पड़ता है| हमारे जैसे संग होते है उसी प्रकार के हमारे संस्कार बन जाते है और संस्कारों में बदलाव लाना काफी मुश्किल है इसलिए महात्माओं ने समय समय पर आकर अपनी शिक्षा लोगों को दी और लोगों को जगाया| इसलिए सादा जीवन उच्च विचार रखें|
देखो और अनुभव करो
क्या आपको पता है नामदान क्यों दिया जाता है? नामदान इसलिए दिया जाता है की बराबर उससे काम लेंगे इसका मतलब है- आँखों से, ध्यान-पूजा करना, मुख से पांचो का सुमिरन करना और कान से आकाश वाणी सुनना| “एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाये”|
जय गुरुदेव के 5 नाम – संत मत में उपासना पांच(5) नामो की है यह पिण्ड है इसमें गुरु की महिमा है, अंड में निरंजन की महिमा है, पार ब्रम्हाण्ड में पार ब्रह्म की महिमा है लेकिन गुरु जो यहाँ पर है वह हर लोक में मिलता है पांच नामो के बाद कोई उपासना नहीं है|
अलख, अगम और अनामी लोक इतना बड़ा है की इसका न कोई रूप है न कोई रंग है वह लिखने पढने में नहीं आता उसकी उपासना नहीं की जा सकती| यह सब अनुभव की चीज है|
कर्म प्रधान है
बड़े भाग्य से यह जन्म मिला है अपना कर्म करो| अब सवाल उठता है कौन सा कर्म किया जाये सारे लोग कर्म ही तो करते है कोई धन जुटाने का कर्म करता है, कोई बईमानी का कर्म करता है, कोई दूसरो को लूटने का, चोरी का कर्म करता है, कोई समाज सेवा का कर्म करता है, कोई पूजा पाठ का कर्म करता है, कोई समाज के उत्थान के लिए कर्म करता है कोई पतन के लिए कर्म करते है आतंकवादी भी अपना कर्म ही कर रहें लेकिन सवाल है सही कर्म क्या है?
सही कर्म है आत्मा का विकास कैसे हो? हमें मोक्ष कैसे मिले? मुक्ति कैसे मिले? हमारी सदगति कैसे हो? हमारा कल्याण कैसे हो? उत्तर बहुत आसन है अपने गुरु के शरण में जाओ वही तुम्हारा कल्याण करेंगे|
मानव जीवन अनमोल
जीवन का सिर्फ एक ही लक्ष्य होना चाहिए और वह है परमार्थ का| जब तक जन-जन में सादगी का सन्देश नहीं पहुंचेगा लोग जागेंगे नहीं| आपको अपनी जगह पर अटल रहना है इसी से आपका यह लोक और परलोक दोनों सुधरेगा हजारों लोग सही मार्ग पर चलने का फैसला ले तो लेते है और चलते भी है लेकिन उसपर कायम नहीं रह पाते|
महात्माओं के सत्संग में आप को असली ज्ञान होता है| लोग संसार में रत है, मस्त है उनको पता ही नहीं की मानव जीवन कितना अनमोल है लोग व्यर्थ का समय यहाँ-वहाँ व्यतीत कर रहें है दारू-शराब या अन्य व्यसनों में बिता रहें है उन्हें मालूम नहीं की यह मनुष्य जीवन बड़े मुश्किल से हमें प्राप्त हुआ है इसको सवारें, सजाएँ और निखारें और यह सब संभव है एक सही मार्ग दर्शन से… और वह मिलता है जय गुरुदेव का सत्संग सुनने से और उनके शरण जाने से…
गुरु करो जानके, पानी पियो छानके
एक कहानी सुनाते है- जंगल में एक महात्मा रहा करते थे और उस महात्मा के पास राजा जाया करते थे एक दिन राजा ने महात्मा जी से प्रार्थना कि की वह महल में चलकर रहे सारी व्यवस्था कर दी गयी खाने बनाने के लिए महाराजिन रखा दिया गया कुछ दिन बाद कानाफूसी शुरू हो गई| बात फैली तो राजा ने रानी से कहा अब से तुम खाना बना दिया करो और महाराजिन का विदाई पैर छुकर सम्मान के साथ कर दो| वैसा ही महारानी ने किया|
कुछ दिन बाद महात्मा जी ने एक व्रत रखा एक महीने का उन्होंने कहा महाराज मेरा यह व्रत समाप्त होगा जब आप एक फल लाके देंगे अपने गुरु का आदेश पाकर राजा वह फल लेने चले गए जंगल में मार्ग बहुत ही कठिन और बीहड़ था|
गुरु जब कोई आदेश देते हैं तो वह सँभालते भी है अपने सच्चे भक्त की लाज भी रखते है ताकि अपने सच्चे भक्त पर कोई आँच न आने पाये राजा तो फल लेने जंगल की तरफ चल दिये महात्मा राजा की जगह-जगह हर संकट में रक्षा करते रहे| आखिर में सब रास्तो को पार करते हुए उस फल को प्राप्त किया और फल लेके गुरु की सेवा में हाजिर हो गए|
गुरु को ऐसे शिष्य पर गर्व होता है गुरु ने मुग्ध भाव से कहा राजन! ये फल तुम अपने हाथ से काटो और मुझे दो राजा ने फल के दो टुकटे किये और गुरु के आगे बढ़ाया उसमे कुछ दाग नजर आये महात्मा जी ने कहा राजन! यह दाग कैसा है देखो तो| राजा ने गौर से देखा उस पर लिखा था- “ तुम्हारी भक्ति पूरी हुई मैं तुमसे बहुत खुश हूँ”| राजा ने महात्मा जी के चरण पकड़ लिए बाबा ने कहा तुम्हारा काम पूरा हुआ अब मुझे जंगल वापस चले जाने दो और महात्मा जी जंगल वापस चले गए|
स्वामी जी ने एक बार कहा था की “गुरु करो जानके, पानी पियो छानके”| एक बार गुरु को ठोंक बजाकर कर लो फिर उनपर विश्वास करों और लग जाओ उनके आदर और सम्मान में| यही होगा असली सम्मान उनके प्रति, उनका पूजा-गुणगान करो|
जब तक गुरु अपने शिष्यों को तपोबल से अर्जित ज्ञान का साक्षात्कार नहीं करता उसे सदगुरु नहीं मानना चाहिए सदगुरु वह है जो हमें मुक्ति का रास्ता दिखाएँ, परमात्मा का रहस्य बतायें और उस तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करें वह ही असली गुरु है|
गुरु की महिमा और सत्संग की महिमा
जितने भी संत, गुरु, स्वामी, आचार्य, बाबा, ऋषि या महर्षि आये सबने सत्संग, ध्यान, भजन और स्वध्याय के तरफ प्रेरित किया है| इनमे से सत्संग से ही सब बातें समझ में आयेंगी हम यह भी सोचते है की नामदान तो मिल गया है अब घर बैठे सुमिरन ध्यान करेंगे सत्संग की क्या जरुरत है|
नामदान आध्यामिक विज्ञान का एक सूत्र मात्र है इसको करना होता है इसी सूत्र को आधार मानकर इस मनुष्य जीव की गुत्थी को हल करना होता है| इसके लिए हमें हर कदम पर गुरु यानि जय गुरुदेव की दया की जरुरत पड़ेगी| सत्संग तुम्हारे अन्दर एक आग, एक तड़प पैदा करेगा| स्वाभाव में बदलाव आएगा, ध्यान में मन लगेगा, नाम सुमिरन में मन लगेगा, आत्मा जागेगी, सबके प्रति कल्याण की भावना का उदय होगा इसलिए बिना सत्संग के तुम ध्यान-भजन-सुमिरन नहीं कर सकते|
जय गुरुदेव जी महाराज तो अब यह कहते है की सिर्फ नामदान ले लेने में जल्दबाजी मत करो, सत्संग सुनो उसको समझो उस पर विचार करो फिर उसपर काम करो नामदान तो जब चाहो मिल जायेगा|
सत्संग से हमारा परमार्थ की जड़ को मजबूती मिलता है| निरंतर सत्संग करते रहें आपके शंका का निवारण करने में कुछ समय तो लगेगा ही इसके लिए सत्संग में महापुरुष की वाणियों का अनुसरण करते रहें|
सत्संग काम कैसे करता है? यह नये लोगों में विचार पैदा करता है और पुराने लोगों को झकझोरती है कुछ करने के लिए आगे बढ़ने के लिए सत्संग की महिमा अपरम्पार है सत्संग की हर वाणी खुली किताब की तरह है जहाँ हर किसी के प्रश्नों का उत्तर मिलता है और सबकी समस्याओं का निदान होता है यहाँ सबके कपट का पर्दाफाश होता है|
सत्संग में हमें गुरु की महिमा का गान करना चाहिए, जय गुरुदेव दयानिधि आरती, जय गुरुदेव चालीसा का पाठ करना चाहिए, जय गुरुदेव के भजन, जय गुरुदेव की प्रार्थना करना चाहिए जिसको भी हमने अपना गुरु माना है उनके सत्संग में बराबर जाना चाहिए सेवा भाव से सहायता और मदत करना चाहिए| गुरु बहुत दयालु होते है और वह सबका कल्याण करते है|
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जय गुरुदेव भजन
मुक्ति दिवस प्रार्थना जय गुरुदेव
आओ मुक्ति दिवस मनाएं
आओ मुक्ति दिवस मनाएं, जय गुरुदेव ध्वजा फहराएं |
इस तिथि को गुरु दर्शन पाया, कारी रात समूल नशाया |
आओ हम सब दीप जलाएं, जय गुरु देव ध्वज फहराएं |
आपात काल की अंधियारी में, गुरु को पकड़ा हत्यारों ने |
अब वो दिन प्रभु कभी न आये, आओ मुक्ति दिवस मनाये |
बेड़ी और हथकड़ी डाला, लालच का फन्दा भी डाला |
पर गुरु संकल्प न मिटा मिटाये, आओ मुक्ति दिवस मनायें|
नाना कष्ट गुरु ने झेला, जीवों के हित लीला खेला |
ऐसे गुरु को धन्य मनायें, आओ मुक्ति दिवस मनाये |
जेल तिहाड़ से निकले स्वामी, दिए दीदार सबन को स्वामी|
प्रेमी फुले नांहि समाये, आओ मुक्ति दिवस मनाये |
आने वाले हर शासन से, लिखित निवेदन अभिवादन से |
ऐसा दिन वो कभी न लायें, आओ मुक्ति दिवस मनाये |
इस दिन जो भी ध्वज फहराएं, सतयुग स्वागत लाभ होए |
जन्म मरण उसका छुट जाये, आओ मुक्ति दिवस मनाये |
पुनि-पुनि बंदन गुरु प्यारे की, सूरत बसे ह्रदय प्यारे की |
गुरु की दया कृपा हम पायें, आओ मुक्ति दिवस मनाये |
जय गुरुदेव प्रार्थना
मन लागो मेरो यार फकीरी में, जो सुख आवे नाम भजन में|
जो सुख आवे गुरु के भजन में, सो सुख नाहिं अमीरी में|
बुरा भला सबकी सुनि लीजे, कर गुजरान गरीबी में|
हाथ में लोटा, बगल में सोंटा, सारी मुलकजगीरी में|
आखिर यह तन खाक मिलेगा, कहा फिरत मगरुरी में|
कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब मिलिहें सबुरी में|
जय गुरुदेव आरती
जयगुरुदेव जयगुरुदेव, जय जय गुरुदेव जय जय गुरुदेव |
मेरे माता पिता गुरुदेव, जय गुरुदेव जय जय गुरुदेव ||
सब देवन के देव गुरुदेव जय गुरुदेव जय जय गुरुदेव |
जिनके चरण कमल मन सेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव ||
जीव काज जग आये गुरुदेव, जय गुरुदेव जय जयगुरुदेव |
अपना भेद बताये गुरुदेव, जय गुरुदेव जय जयगुरुदेव ||
सत्य स्वरूपी रूप गुरुदेव, जय गुरुदेव जय जय गुरुदेव |
अलख अरूपी रूप गुरुदेव, जय गुरुदेव जय जय गुरुदेव ||
अगम स्वरूपी रूप गुरुदेव, जय गुरुदेव जय जय गुरुदेव |
पुरुष अनामी आप गुरुदेव, जय गुरुदेव जय जय गुरुदेव ||
सबके स्वामी आप गुरुदेव, जय गुरुदेव जय जय गुरुदेव |
उनके शरण मेरे मनसेव, जय गुरुदेव जय जय गुरुदेव ||
जय गुरुदेव आरती, जय गुरुदेव प्रार्थना, जय गुरुदेव भजन, गाने MP3
उबारो मुझ पतित को नाथ
सतगुरु बीना जीवन क्या
पिया चलो सत्संग माई
मेरी नियन को पार लगाओ
करो मत नशा तुम बनो शाकाहारी
माफ मेरे गुनाहों को
जीवन का सहारा
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निष्कर्ष
“जय गुरुदेव” संस्था का शुरुआत ही हुआ था आध्यात्मिक उद्देश्य के लिए आगे चलकर लोग जुड़ते गए और कारवाँ बनता गया आज संस्था से लाखों-करोड़ो लोग जुड़कर अपनी सेवा भी दे रहे हैं और लाभ भी उठा रहें है और अपने जीवन को आध्यात्मिकता की दिशा में आगे बढ़ रहें है|
संस्था से लोग इतने प्रभावित हुए की वह अपने पारंपरिक वस्त्र को त्याग कर टाट का वस्त्र पहन लिए लोगों की आस्था अद्भुत है अपने गुरुदेव के प्रति|
उपरोक्त लेख में हमने देखा जय गुरुदेव के पांच नाम क्या है? जय गुरुदेव किस जाति के थे? महाराज जी का असली नाम तुलसीदास यादव था हलांकि संत जनों की जाति नहीं पूछी जाती लेकिन पाठकों की सुविधा के लिए और उनके प्रश्नों के उत्तर और उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए ही बताया गया है जिससे लोग पूरी तरह संतुष्ट हो इसीलिए बताया गया है|
गुरुदेव जी का कहना है सब शाकाहारी हो जाओ और भगवान का भजन करों इसी में हमारा-आपका-सबका कल्याण है गुरुदेवजी महाराज लोगों को नामदान देते थे जिससे वह भगवान का भजन कर सकें और परमात्मा से जुड़ सकें|
आपने जय गुरु देव महाराज जी को जाना और समझ अब बारी आपके निर्णय लेने की – जय गुरुदेव|