चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है

चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है

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Why we celebrate chaitra navratri?

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संक्षिप्त परिचय

सबसे पहला सवाल यह आता है की चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है? और चैत्र नवरात्रि का महत्त्व क्या है? इन दोनों प्रश्नों को विस्तार से जानेंगे|

चैत्र नवरात्रि कब से स्टार्ट है (होता है) और चैत्र नवरात्रि कब से कब तक है? यह सब आगे समझेंगे| नवरात्रि के समय हमें किन-किन बातों का पालन करना चाहिए| क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, नवरात्रि उपवास के लाभ हमें कैसे मिल सकते हैं| इस द्वारन हमें नवरात्रि व्रत में क्या खाना चाहिए नवरात्रि व्रत के नियम को कैसे पालन करना चाहिए| इसके अलावा निर्जल उपवास के नियम को भी विस्तार से जानेंगे|

chaitra navratri 2023 के उपवास के नियम को जानेंगे साथ ही यह भी जानेंगे नवरात्रि उपवास में क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिए और जब हम उपवास करते है तो “उपवास के चमत्कार” या उपवास के फायदे और नुकसान हमारे शरीर पर किस प्रकार से असर दिखा सकते है इसको जानेंगे|

चैत्र नवरात्रि क्या है? यह समय मौसम परिवर्तन का समय है इस दिन से मौसम में परिवर्तन आने शुरू हो जाते है और गर्मी का एहसास होने लगते है|

एक और महत्वपूर्ण बात नवरात्रि व्रत क्यों किया जाता है? और नवरात्रि में पूजा के नौ दिन ही क्यों होते है? इसपर भी विस्तार से जानेंगे और प्रत्येक देवी के बारे में वर्णन किया गया है तो पूरे श्रद्धा और विश्वास से आगे पढ़े…

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विस्तार से समझें

Ram Lakshman Sita

चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

पुराणों में चैत्र नवरात्र को आत्मशुद्धि और मुक्ति का आधार माना गया है| चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही हिन्दू नववर्ष शुरू होता है| (इसी दिन सेठ महाजन अपने बही लेखा नए रूप से शुरुआत करते हैं) तीसरे चैत्र नवरात्र को भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी| इसके अलावा भगवान विष्णु का भगवान राम के रूप में अवतार भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था इसलिए इस दिन का और अधिक महत्त्व बढ़ जाता है|

गर्मी का चैत्र नवरात्रि कब है?

गर्मी का चैत्र नवरात्रि कब आएगी? और चैत्र की नवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

तो यह मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है| इसको दो तरह से मनाया जाता है|

पहला इस नवरात्रि में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है| इस दिन 9 देवियों की पूजा-अर्चना की जाती है|

दूसरा इसे श्री राम के जन्म दिन के रूप में भी देखा जाता है| वाल्मीकि रामायण के अनुसार 10 जनवरी 5114 को भगवान राम का जन्म हुआ था| चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में माता कौशल्या जी ने श्री राम को जन्म दिया था|

माघ महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से गुप्त नवरात्रि आरंभ होता है और इसका समापन नवमी तिथि को होता है| चैत्र नवरात्रि अष्टमी कब है? यह नवमी से एक दिन पहले होता है|

चैत्र नवरात्रि का महत्त्व क्या है?

एक बार बृहस्पति जी ने ब्रह्माजी से पूछा हे भगवन! चैत्र व् आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? इस व्रत का क्या फल है इसे किस प्रकार करना उचित है? नवरात्रि व्रत क्यों किया जाता है? पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहिये|

बृहस्पति जी का ऐसा प्रश्न सुन ब्रह्माजी ने कहा हे बृहस्पते| प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है| जो मनुष्य सबका मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं| यह नवरात्र व्रत सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है| इस व्रत के करने से पुत्र की कामना वाले को पुत्र धन प्राप्त होता है| धन-विद्या की चाहत रखने वाले को उनकी चाहत पूर्ण होती है| विद्या और सुख की इच्छा वाले को सुख मिलता है|

इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है| मनुष्य की सम्पूर्ण विपत्तियाँ दूर हो जाती है और घर में समृद्धि की सिद्ध हो जाता है| बाँझ औरत (बंध्या) को पुत्र प्राप्त होता है| प्राणी समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है और मन का मनोरथ सिद्ध हो जाता है| यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करें और दस दिन अपने बांधवों सहित नवरात्र व्रत की कथा का श्रवण करें|

हे बृहस्पते! जिसने पहले इस महाव्रत को किया है वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूँ तुम सावधान होकर और पूरे धैर्य से इसे सुने| इस प्रकार ब्रह्मा जी का वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले – हे मनुष्यों का कल्याण करने वाले| इस व्रत के इतिहास को मेरे लिय कहीए, मैं सावधान होकर सुन रहा हूँ| आपकी शरण में आये हुए मुझ पर कृपा करें| इसलिए चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है? इसका संक्षिप्त रूप देखा आगे पूरे विस्तार से समझते है|

Jai Shri Ram

चैत्र नवरात्रि की कथा

ब्रह्माजी बोले – प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठ्त नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था, वह भगवती दुर्गा का भक्त था| उसके सम्पूर्ण सद्गुणों से युक्त सुमति नाम का एक अत्यन्त सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई| वह कन्या सुमति अपने पिता के घर बाल्यकाल में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की कला बढ़ती है| उसका पिता प्रतिदिन जब दुर्गा की पूजा करके होम किया करता, वह उस समय नियम से वह कन्या वहां उपस्थित रहती|

एक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेल में लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई| उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और वह पुत्री से कहने लगा अरी दुष्ट पुत्री| आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ठ रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूँगा|

पिता का ऐसा वचन सुन सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी- हे पिता! मैं आपकी कन्या हूँ तथा सब तरह आपके अधीन हूँ जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करें| राजा से, कुष्ठ रोगी से, दरिद्र से अथवा जिसके साथ चाहें मेरा विवाह कर दें, पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है, मेरा तो अटल विश्वास है जो जैसा कर्म करता है उसको कर्मो के अनुसार वैसा ही फल प्राप्त होता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के अधीन है पर फल देना ईश्वर के अधीन है|

जैसे अग्नि में पड़ने से त्रिष्णादी उसको अधिक प्रदीप्त कर देते है| इस प्रकार कन्या के निर्भयता से कहे हुए वचन सुन उस ब्राह्मण ने क्रोधित हो अपनी कन्या का विवाह एक कुष्ठ रोगी के साथ कर दिया और अत्यन्त क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा – हे पुत्री! अपने कर्म का फल भोगो, हम भी देखते है भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो|

पिता के ऐसे कूट वचनों को सुन सुमति मन में विचार करने लगी- अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला| इस तरह अपने दुःख का विचार करती हुई वह कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने कुशायुक्त उस निर्जन वन में उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की|

उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रगट हो सुमति से कहा- हे दीन ब्रम्हाणी! मैं तुझसे प्रसन्न हूँ, तुम जो चाहो सो वरदान मांग सकती हो| भगवती दुर्गा का यह वचन सुन ब्रम्हाणी ने कहा “आप कौन हैं?” ब्रम्हाणी का ऐसा वचन सुन देवी ने कहा की मैं आदि शक्ति भगवती हूँ और मैं ही ब्रह्मविद्या व् सरस्वती हूँ| प्रसन्न होने पर मैं प्राणियों का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूँ|

हे ब्रम्हाणी मैं तुम पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूँ| तेरे पूर्व जन्म का वृतांत सुनाती हूँ, सुन! तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी|

एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की| चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर बंदी बना दिया| उन लोगों ने तुझको और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया| इस प्रकार नवरात्र के दोनों में तुमने न तो कुछ खाया और न जल ही पिया| इस प्रकार नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया| हे ब्रम्हाणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ, इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूँ, तेरी जो इच्छा हो सो मांग|

इस प्रकार दुर्गा के वचन सुन ब्रम्हाणी बोली – अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे, मैं आपको प्रणाम करती हूँ| कृपा करके मेरे पति का कुष्ठ दूर करो| देवी ने कहा उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य पति का कुष्ठ दूर करने के लिए अर्पण करो, उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कुष्ठ से मुक्त हो जायेगा|

ब्रह्मा जी बोले इस प्रकार देवी के वचन सुन वह ब्रम्हाणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से जब उसने तथास्तु! ऐसा वचन कहा तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ठ रोग से रहित हो अति कांतिवान हो गया|

वह ब्रम्हाणी पति की मनोहर देह को देख देवी की स्तुति करने लगी हे दुर्गे! आप दुर्गति को दूर करने वाली तीनों लोकों का संताप हरने वाली समस्त दुखों को दूर करने वाली रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली प्रसन्न हो मनोवांछित वरदान देंने वाली और दुष्टो का नाश करने वाली जगत की माता हो| हे जगत माता अम्बे! मुझे निरपराध अबला को मेरे पिता ने कुष्ठ रोगी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया|

पिता से तिरस्कृत निर्जन वन में विचर रही हूँ| आपने मेरा इस विपदा से उद्धार किया है| हे देवी! आपको प्रणाम करती हूँ| मेरी रक्षा करो| ब्रह्मा जी बोले हे बृहस्पते! उस ब्रम्हाणी की ऐसी स्तुति सुन देवी बहुत प्रसन्न हुई और ब्रम्हाणी से कहा हे ब्रम्हाणी! तुझे उदालय नामक अति बुद्धिमान धनवान कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीघ्र प्राप्त होगा|

ऐसा वर प्रदान कर देवी ने ब्रम्हाणी से फिर कहा कि हे ब्रम्हाणी! और जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मांग ले| भगवती दुर्गा का ऐसा वचन सुन सुमति ने कहा की हे भगवती दुर्गे! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि, नवरात्रि उपवास के नियम और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें|

Shri Ram Photo

नवरात्र व्रत की विधि

शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिनभर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करें| विद्वान ब्राम्हणों से पूछकर घट स्थापन करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचे| महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की मूर्तियाँ स्थापित कर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें|

बिजोरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है|

जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति,

दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है|

आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति और

केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है|

इस प्रकार पुष्पों व् फलों से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवें दिन तथा विधि पूर्वक हवन करें| खांड, घी, गेहूँ, शहद, जौ, तिल, बेल के पत्ते, नारियल, दाख और कदम्ब आदि से हवन करें|

गेहूँ से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है,

खीर एवं चम्पा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों से तेज व सुख की प्राप्ति होती है|

आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की,

कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है|

खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल तथा फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है|

व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे|

इस प्रकार बताई हुई विधि के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है| इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है| इस नवरात्र व्रत को करने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है|

हे ब्रम्हाणी! इस सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में विधि पूर्वक करें| ब्रह्मा जी बोले हे बृहस्पते! जो इसे भक्तिपूर्वक करता है वह इस लोक में सुख प्राप्त कर अंत में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता है|

हे बृहस्पते! यह इस दुर्लभ व्रत का महात्मय है| जो मैंने तुम्हें बतलाया है| यह सुन बृहस्पति जी आनंद से प्रफुल्लित हो ब्रह्माजी से कहने लगे कि हे भगवन! अपने मुझ पर अति कृपा की जो मुझे इस नवरात्र व्रत का महात्म्य सुनाया| ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पते! यह देवी भगवती शक्ति सम्पूर्ण लोकों का पालन करने वाली है| इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है? बोलो देवी भगवती की जय|

इस तरह चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है? इस पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है|

Valmiki ashram

नवरात्रि व्रत की विधि:

प्रातः नित्यकर्म से निवृत होकर स्नान आदि क्रिया से निवृत होकर मंदिर में या घर पर ही नवरात्र में दुर्गा जी का ध्यान करके यह कथा करनी चाहिए| कन्याओं के लिए यह व्रत विशेष लाभदायक है| श्री जगदम्बा की कृपा से सब विघ्न दूर हो जाते है सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है|

जप मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे इस मंत्र को 108 बार या सुविधा अनुसार जाप करें|

नवरात्रि में जौ उगाने की विधि

  • सबसे पहले अपने पूजा स्थल को साफ़ करें|
  • गाय के गोबर से लेप करना चाहिए|
  • फिर उस स्थान पर कुछ चावल के दाने छीट दें|
  • मिट्टी का बर्तन लें|
  • उमसे बालू या मिट्टी भर दें
  • फिर उस बालू में जौ के कुछ दाने डाल दें|
  • फिर उसको ढक दें उसी बालू से पानी डाल दें|
  • बगल में कलश की स्थापना करें|
  • जौ पर नियमित रूप से जल डालते रहें जिससे वह बढ़ता रहें|

रामनवमी का महत्व

रामनवमी का त्योहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है| इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था| हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनः स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम रूप में अवतार लिया था|

श्रीराम चन्द्र जी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशल्या की कोख से राजा दशरथ के घर में हुआ था|

राम नवमी के त्योहार का महत्व बहुत बड़ा है क्योंकि इस पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है| हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है| रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और लेपन चढ़ाया जाता है इसके बाद मूर्तियों पर मुटठी भर के चावल चढ़ाये जाते है| पूजा के बाद आरती की जाती है| इस शुभ तिथि को भक्त लोग रामनवमी के रूप में मनाते है एवं पवित्र नदियाँ में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते है|

पूरे भारतवर्ष में हिन्दू परिवार राम का यह जन्म महोत्सव मनाता है| प्रत्येक राम मंदिर में भक्तों द्वारा राम का गुणगान किया जाता है| श्रीराम को पंचामृत में स्नान कराके धुप-दीप-नैवेद्य इत्यादि के द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है|

अयोध्या में इस तिथि पर बड़ा मेला लगता है| सुदूर अंचलों से आये सरयू में स्नान कर राममूर्ति दर्शन करते है इस अवसर पर “रामचरित मानस ” का पाठ करके दोपहर के समय भगवान की आरती उतारी जाती है|

गणगौर का इतिहास

हिन्दू समाज में चैत्र शुक्ल तृतीय का दिन गणगौर पर्व के रूप में मनाया जाता है| यह पर्व विशेष तौर पर केवल स्त्रियाँ के लिए ही होता है| इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था| इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती है| स्त्रियाँ नाच-गाना करती है, पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से गणगौर पूजा मनाया जाता है|

चैत्र नवरात्रि में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए

  • अगर आपने नवरात्रि के दौरान अपने घर में अखण्ड ज्योति जलाई है तो अपने घर को छोड़कर बिलकुल भी न जाएँ घर में कोई न कोई जरूर रहें|
  • नवरात्रि में मास-मदिरा का सेवन बिलकुल न करें|
  • नवरात्रि के समय तामसिक भोजन जैसे लहसुन-प्याज का सेवन न करें|
  • नवरात्रि के समय सिर के बाल, दाढ़ी व नाखून न काटे|
  • नवरात्रि के समय काले वस्त्र का प्रयोग न करें न ही पहने|
  • मंत्रो का उच्चारण के समय किसी से बात न करें अपना ध्यान एकाग्र रखें|
  • कोई भी नशा का प्रयोग न करें|
  • पति-पत्नी दोनों को संयम और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए|

चैत्र नवरात्रि में शक्तिशाली साधना कैसे करें|

सद्गुरु के अनुसार चैत्र नवरात्रि में अगर कोई माँ भैरवी की साधना करता है तो उसे वह सब कुछ मिल जाता है जो वह चाहता है| हर वह चीज जिसे लोग खुशहाली मानते है वह उसे मिल जाएगा अगर वह सिर्फ स्वयं को माँ भैरवी का पात्र बना ले| भैरवी साधना एक तीव्र साधना है जिसका उद्देश्य है अपने भीतर से भक्ति पैदा करना और लिंग भैरवी की कृपा का आह्वान करना| यह साधना हर कोई कर सकता है|

इस साधना का शुरुआत उत्तरायण से होगा यह समय देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए बहुत अनुकूल होता है| भारत ऋषियों का देश था और आज भी है भारत के जितने भी वैज्ञानिक, चिकित्सक, गणितज्ञ यह सभी महान भक्त रहें थे| भक्त होने का मतलब है “बोध”| जिसके पास बोध आ जाता है वह एक अलग स्तर पर चला जाता है| उसके लिए हर काम आसन हो जाता है भक्ति अपने अन्दर सभी सीमाओं को तोड़ने का एक साधन है| सीमा भावनाओं की कर्म की रूकावट की, मानसिक दायरे की, भक्ति से इन सभी रुकावटों को आसानी से तोड़ा जा सकता है|

आप अपने आपको स्थिर करें बिना कुछ विचार मन में लाए बस शांत बैठे अगर आप शांत नहीं बैठ सकते तो मंत्र का जाप कर सकते है, यंत्रों की पूजा कर सकते है, स्त्रोत पढ़ सकते है बस आप ध्यानपूर्वक हर कार्य करें अगर आप यह कर सकते है तो सकारात्मक ऊर्जा से आप भर जायेंगे| ब्रह्मांड की शक्तियां आपके अनुसार काम करने लगेगी और आपके हर कार्य सिद्ध होते चले जायेंगे|

प्रभु श्री राम

शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि में क्या अंतर है?

शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि दोनों समय में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है| लेकिन ऐसा क्या है की दोनों नवरात्रि एक दूसरे से अलग है|

क्यों हम एक वर्ष में दो नवरात्रि मानते है? गुप्त नवरात्रि का रहस्य क्या है? गुप्त नवरात्रि कब आते हैं? आदि प्रश्नों के उत्तर जानेंगे| गुप्त नवरात्रि माघ और आषाढ़ माह में पड़ने वाली नवरात्रि है इसके अलावा चैत्र और आश्विन माह में भी नवरात्रि आती है|

चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

  • चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में चैत्र नवरात्रि मनाया जाता है|
  • चैत्र नवरात्रि, गुड़ी पड़वा, और उगाडी के रूप में मनाया जाता है|
  • इसे सृष्टि रचना का पहला दिन भी माना जाता हैं|
  • इस दिन हिन्दू नववर्ष शुरू होता है|
  • गृहस्थ और पारिवारिक लोगों के लिए सिर्फ चैत्र और शारदीय नवरात्रि ही मनाने का विधान है|
  • चैत्र नवरात्रि में नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है|
  • कन्याओं की पूजा की जाती है|
  • महिषासुर को वर प्राप्त था की उसे देवता और दानव कोई भी परास्त नहीं कर सकता था इसलिए देवताओं ने माता पार्वती से अनुरोध किया| माता रानी ने अपने आप को नौ रूपों में परिवर्तित कर लिया यह क्रम चैत्र के महीने से 9 दिनों तक चला तब से इन दिनों को 9 दुर्गा के रूपों में मनाया जाने लगा|
  • इन 9 नौ दिनों में माँ दुर्गा का नौ रूपों का जन्म हुआ था|
  • चैत्र नवरात्रि में कठिन साधना और व्रत का विधान है|
  • चैत्र नवरात्रि का महत्त्व महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलन्गाना में अधिक है|
  • चैत्र नवरात्रि के अंत में राम नवमी आता है|
  • एक मान्यता के अनुसार श्री राम का जन्म इसी दिन हुआ था|
  • चैत्र नवरात्रि की साधना आपको मानसिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है|

शारदीय नवरात्रि क्यों मनाया जाता है?

  • आश्विन माह में आनेवाला नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कहलाता है|
  • क्या आप जानते है की पौष और आषाढ़ महीने में आनेवाला नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है|
  • गुप्त नवरात्रि में तंत्र साधना किया जाता है इसलिए गृहस्थ लोगों यह नवरात्रि नहीं मनाते|
  • शारदीय नवरात्रि में भी नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है|
  • ऐसा माना जाता है की देवी दुर्गा ने आश्विन माह में महिषासुर पर आक्रमण कर उससे 9 दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया इसलिए इन नौ दिनों में शक्ति की आराधना किया जाता है|
  • आश्विन माह में शरद ऋतु का प्रारम्भ होता है इसलिय इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है|
  • इस दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और प्रभु श्री राम ने रावण का वध किया था इसलिए शारदीय नवरात्रि में शक्ति का आराधना किया जाता है|
  • शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन को विजय दशमी मनाया जाता है|
  • शारदीय नवरात्रि में सात्विक साधना, नृत्य उत्सव का चलन है|
  • शारदीय नवरात्रि का महत्त्व पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात में अधिक है|
  • इस दिन दुर्गा पूजा मनाया जाता है|
  • गुजरात में गरबा आदि का आयोजन होता है|
  • शारदीय नवरात्रि सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने वाली माना जाता है|

गणगौर के अवसर पर किसकी पूजा की जाती है?

महादेव शिव और माता पार्वती की पूजा के रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता है|

इसे गौरी तृतीया भी कहते है| होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो कुमारी और विवाहित बालिकाएँ अर्थात् नवविवाहिता प्रतिदिन गणगौर पुजती हैं चैत्र शुक्ल सिंधारे के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दुसरे दिन सांयकाल के समय उनका विसर्जन कर देती है| यह व्रत विवाहिता लड़कियों के लिए पति का अनुराग उत्पन्न करने वाला और कुमारियों को उत्तम पति देने वाला है| इससे सुहागिनों का सुहाग अखण्ड रहता है|

नवरात्रि में कितनी बार खाना चाहिए?

नवरात्रि व्रत में कितनी बार खाना चाहिए तो इसका बहुत सीधा सा उत्तर है सिर्फ एक बार खाना चाहिए अब सवाल उठता है नवरात्रि उपवास में क्या खाना चाहिए और नवरात्रि उपवास कब खोले (खोलना) चाहिए? इसके लिए संध्या का समय पूजा-आरती के उपरान्त आप अपने व्रत को खोल सकते है| इस प्रकार नवरात्रि व्रत पारण का समय आप ठाकुर प्रसाद पंचांग से भी जानकारी प्राप्त कर सकते है|

इस दिन नवरात्रि में सिलाई करनी चाहिए या नहीं तो आप बिलकुल कर सकते है अपने हर कार्यों का करते हुए अपने हर रोजगार को कर सकते है इसमें कोई रोकटोक नहीं है| इस समय को बहुत ही साधारण और सात्विक होकर बिताना चाहिए नवरात्रि में पति-पत्नी को क्या करना चाहिए? इन दिनों संयम से साथ एक दूसरे के प्रति आदर भाव के साथ बिताना चाहिए और अधिक से अधिक ध्यान करना चाहिए जिससे इस समय का अधिक से अधिक लाभ उठाया जा सकें|

shri ram jai ram jai jai ram
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निष्कर्ष

उपरोक्त लेख में हमने देखा चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है? गर्मी का चैत्र नवरात्रि कब से हैं (प्रारंभ होता है) या गर्मी का नवरात्रि कब है इसके लिए हिन्दू पंचांग में ग्रहों के चालों से गणना किया जाता है ताकि यह पता लगाया जा सके की गर्मी का राम नवमी कब है या अन्य त्यौहारों की सठीक जानकारी मिल सकें|

नवरात्रि में क्यों किया जाता है कन्या पूजन इस पर भी हमने जाना इसका क्या महत्त्व है इस महत्वपूर्ण नौ दिन के नवरात्रि उपवास के नियम को पूरे श्रद्धा से पालन करने पर हमें अभीष्ट की प्राप्ति होती है मन संतुलित होता है एकाग्र होता है और हमारे हर कार्य बड़े ही आसानी से पूर्ण होते जाते है|

नवरात्रि में मृत्यु होना यह एक दुखद घटना माना जाता है इससे पूरा परिवार सुधक माना जाता है अतः परिवार को किसी भी प्रकार का पूजा नहीं करनी चाहिए और न ही व्रत रखें| मृत्यु से तेरह दिनों तक नियम से सुधक मनाया जाना चाहिए ताकि मृतक के आत्मा को शांति मिल सकें|

नवरात्रि एक बहुत ही पवित्र दिन होता है इस दिन औघड़, ओझा, तांत्रिक या साधकों द्वारा मन्त्रों की साधना करते है उसे जगाने का काम करते है जिसे “नवरात्रि के टोटके” द्वारा अपने मनोरथ को सिद्ध करते है|

एक सवाल आता है की नवरात्रि में क्या खरीदें क्या नहीं ख़रीदे तो इस दिन सभी को सात्विक खानपान करना चाहिए कपड़े आदि की खरीदारी कर सकते है क्योंकि इस दिन मेला भी खूब लगते हैं झूले आदि का आनंद ले सकते है|  

क्यों रखे जाते हैं नवरात्र पर उपवास इस सवाल पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है उम्मीद है की चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है? आपके प्रत्येक सवालों का जवाब मिल गया होगा फिर भी अगर कोई सवाल रह गया है तो आप हमें ईमेल कर सकते है|

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