चन्द्रमा ऋषि आश्रम आजमगढ़

चन्द्रमा ऋषि आश्रम आजमगढ़

चन्द्रमा ऋषि आश्रम आजमगढ़
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संक्षिप्त परिचय

चन्द्रमा ऋषि आश्रम आजमगढ़एक सिद्ध पीठ है जहाँ भगवान चन्द्रमा ऋषि ने तपस्या किया था यहाँ सावन के पवित्र महीने में हजारों के संख्या में भक्तजन आते है|  इस लेख में चन्द्रमा ऋषि के बारे में जानकारी के साथ-साथ जो कहानियाँ प्रचलित है इसको भी जानेंगे|    

हमारे पुराने ग्रंथों में जो भी साक्ष्य उपलब्ध है उनका बारीकियों से अध्ययन के आधार पर जो तथ्य सामने निकलकर आयें है उनको विस्तार से और सरल भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है जैसे-जैसे आप आगे पढ़ते जायेंगे श्रृष्टि के अद्भुत रहस्य से पर्दा उठता जायेगा चूकि यह बात आज से हजारों-हजारों साल पहले की है इसलिए केवल ग्रंथों का ही सहारा है|

लेकिन आप जैसे-जैसे चन्द्रमा आश्रम के बारे में जानकारी प्राप्त करते जायेंगे आपके मन के सारे प्रश्नों का समाधान होता जायेगा आप जान पाएंगे की चन्द्रमा ऋषि के पुत्रों के नाम? चन्द्रमा का जन्म कैसे हुआ? चन्द्रमा के माता-पिता का क्या नाम था? वह अन्य महत्वपूर्ण जानकारी|

यह सारी जानकारी विभिन्न ग्रंथों से लिया गया है जिसको बहुत ही सरल भाषा में बताने का प्रयास किया गया है ताकि पाठक को चन्द्रमा ऋषि आश्रम आजमगढ़ को समझने में आसानी हो|

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विस्तार से समझें

Chandrama Rishi Azamgarh

चन्द्रमा आश्रम

चन्द्रमा ऋषि आश्रम आजमगढ़ की दूरी दत्तात्रेय धाम आश्रम से मात्र 20 किलोमीटर पर स्थित है जिले मुख्यालय से इस स्थान की दूरी मात्र 5 किलोमीटर है और दुर्वासा धाम से इसका दूरी 40 किलोमीटर हो जाता है सबसे मजेदार बात यह है की यह तीनों स्थानों का महत्व और अभी अधिक बढ़ जाता है जब प्रत्येक स्थान दो नदियों के संगम पर स्थित है और तीसरे नदी का उद्गम स्थान बना तमसा नदी तीनों स्थानों की मुख्य नदी है ओर एक अलग नदी के संगम से एक नया स्थान का निर्माण हुआ यह स्थान तमसा नदी और कुंवर नदी का संगम है|

दुर्वासा धाम में भी तमसा नदी और मंजुसा नदी का संगम है और आगे तमसा नदी ही मुख्य नदी बनकर आगे बढ़ती है दत्तात्रेय धाम होते हुए चन्द्रमा धाम जाती वहां भी तमसा नदी और सिलानी नदी मिल कर तमसा ही आगे बढ़ती है इसका पाट बड़ा होने के वजह से इसको ही मुख्य मना गाया है| इस स्थान पर अकसर मेला लगता रहता है लेकिन मुख्य रूप से रामनवमी के दिन मनाया जाता है इस दिन दुर्गा पूजा का भव्य पंडाल भी बनाया जाता है साथ ही साथ कार्तिक पूर्णिमा पर भी ऐतिहासिक मेला लगता है|

सरकार द्वारा समय-समय पर करोड़ों रुपया का अनुदान देकर मंदिर निर्माण, सीढ़ी निर्माण, सुन्दरी करण शौचालय का निर्माण आदि फूल-फुलवारी का महत्वपूर्ण कार्य समय-समय पर कराया जाता है जिसमें स्थानीय लोग और विधायकों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है|

चन्द्रमा ऋषि आश्रम

चन्द्रमा की कहानी

पुराणों और ग्रंथों के अनुसार ब्रह्माजी जो तीनों ही भाइयों में सबसे बड़े माने गए है उनके ही नाम से चन्द्रमा ऋषि का स्थान प्रसिद्ध हुआ है एक बार अत्री मुनि और उनकी पत्नी माता अनुसुइया को ब्रह्मा, विष्णु, महेश को पुत्र रूप में प्राप्त करने की इच्छा हुई उन्हें प्राप्त करने के लिए माता तपस्या करने लगी तपस्या के द्वरान लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती देवी माता अनुसुइया की परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों को भेजी इसपर इनका शर्त था माता आप हम लोगों को नग्न अवस्था में भिक्षा देंगी तो हम स्वीकार करेंगे|

इसपर माता अनुसुइया अपने अंतर्ध्यान से सब कुछ समझ गई थी उन्होंने तुरंत तीनों देवों को शिशु रूप में परिवर्तित कर स्तन पान कराया इससे सभी देवी-देवता प्रसन्न हुए|

इससे माता की तपस्या की मान भी रह गई और देवी-देवता का परीक्षा भी पूर्ण हुआ| आगे चल के जब तीनों बालक बड़े हुए तो अपने माता-पिता से आज्ञा प्राप्त कर तीनों तीन स्थान चले गए और जहाँ-जहाँ इन्होंने अपनी तपस्या पूरी की उस-उस स्थान का नाम उनके नाम पर पड़ गया|

चन्द्रमा के पुत्र का नाम

चन्द्रमा (Rishi Chandrama Muni) के पुत्र का नाम है अभिमन्यु और बुध है|

चन्द्रमा के कितने पुत्र थे

चन्द्रमा के पुत्र का नाम है अभिमन्यु और बुध है|

चन्द्रमा का जन्म कैसे हुआ

चन्द्रमा को ब्रह्मा जी भी कहते है उनका जन्म अत्री मुनि और माता अनुसुइया के पुत्र के रूप में जाना जाता है चन्द्रमा के अन्य दो भाइयों का नाम दुर्वासा ऋषि और दत्तात्रेय था और उनका जन्म स्थली चन्द्रमा ऋषि आश्रम आजमगढ़ में ही रहा था|

चन्द्रमा के माता-पिता का क्या नाम था

चन्द्रमा के माता-पिता का नाम अत्री मुनि और माता अनुसुइया था| इनके तीन पुत्र थे पहला दुर्वासा जो भगवान शिव के अवतार थे दूसरा दत्तात्रेय जो भगवान विष्णु के अवतार थे और चन्द्रमा भगवान ब्रह्मा के अवतार थे|

Chandrama Rishi Dham

चन्द्रमा की पत्नियों के नाम

महाराज दक्ष के 27 पुत्रियों के साथ चन्द्रमा का विवाह हुआ था पुराणों के अनुसार उनकी 27 पत्नी 27 नक्षत्र ही थे चन्द्र जी नक्षत्र में होते है वह नक्षत्र ही उनकी पत्नी मानी जाती है पूरी दुनिया में 27 नक्षत्र के मुताबित ही समय का निर्धारण होता है चन्द्रमा के पत्नियों के नाम इस प्रकार है तारा, अश्विनी, भरणीं, रोहिणी, आर्द्रा, मूला, कृत्तिका, मृगशिरा, पुनर्वसु, आश्लेषा, मघा, पूर्वफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, श्रवणा, धनिष्ठा,  पूर्वभाद्रपदा, उत्तरभाद्रपदा, रेवती, पुष्या है|   

महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

ऋषि चन्द्रमा की माँ अनुसुइया है|

पुराणों और ग्रंथों के अनुसार ब्रह्माजी जो तीनों ही भाइयों में सबसे बड़े माने गए है उनके ही नाम से चन्द्रमा ऋषि का स्थान प्रसिद्ध हुआ है एक बार अत्री मुनि और उनकी पत्नी माता अनुसुइया को ब्रह्मा, विष्णु, महेश को पुत्र रूप में प्राप्त करने की इच्छा हुई उन्हें प्राप्त करने के लिए माता तपस्या करने लगी तपस्या के द्वरान लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती देवी माता अनुसुइया की परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों को भेजी इसपर इनका शर्त था माता आप हम लोगों को नग्न अवस्था में भिक्षा देंगी तो हम स्वीकार करेंगे|

इसपर माता अनुसुइया अपने अंतर्ध्यान से सब कुछ समझ गई थी उन्होंने तुरंत तीनों देवों को शिशु रूप में परिवर्तित कर स्तन पान कराया इससे सभी देवी-देवता प्रसन्न हुए|

इससे माता की तपस्या की मान भी रह गई और देवी-देवता का परीक्षा भी पूर्ण हुआ| आगे चल के जब तीनों बालक बड़े हुए तो अपने माता-पिता से आज्ञा प्राप्त कर तीनों तीन स्थान चले गए और जहाँ-जहाँ इन्होंने अपनी तपस्या पूरी की उस-उस स्थान का नाम उनके नाम पर पड़ गया|

चन्द्रमा के कुल 27 पत्नियाँ थी जिसमें वह रोहिणी से अत्यधिक प्रेम करते थे इससे उनकी अन्य पत्नियाँ दुखी रहती थी इससे तंग आकर सबने अपने पिता दक्ष प्रजापति से चंद्रमा की शिकायत की इससे क्रोधित होकर उन्होंने चन्द्रमा को श्राप दिया दे दिया जिससे चन्द्रमा क्षयरोग से ग्रसित हो गए| 

ऋषि चन्द्रमा के माता-पिता भगवान अत्री मुनि और माता अनुसुइया है|

चन्द्रमा के बेटे का नाम था वर्चा (इन्द्र के अंश से पैदा हुए) जिसे अभिमन्यु (अर्जुन का पुत्र) भी कहा जाता है जिसने अपने माँ के गर्भ में ही युद्ध कला, चक्रव्यूह सीख लिया था लेकिन अंतिम द्वार भेदना उनके पिता अपनी पत्नी को नहीं बता पाए थे जिस कारण वह गर्भ में नहीं सुन पाए और महाभारत के युद्ध में वीर गति को प्राप्त किए|

हिन्दू धर्म में चन्द्रमा शीतलता, शांति, रोमांस, दोस्ती, अकेलापन, मिलान का प्रतीक माना गया है|

चन्द्रमा मन का प्रतीक है इसका सीधा संबंध मन से है लेकिन इससे जुड़े भाव, बुद्धिमता, मस्तिष्क, प्रेमी संबंध से भी है|

भगवान श्री गणेश ने चन्द्रमा को श्राप दिया और क्रोधित होकर कहा था गणेश चतुर्थी की रात जो कोई भी इन्सान चन्द्रमा को देखेगा वह बिना गलती के भी अपराधी बना जाएगा|

चन्द्रमा को अपने श्वेत (गोरे) होने का गुमान था तो श्री गणेश ने गुस्से में चन्द्रमा को श्राप दिया था की तुम काले हो जाओ| 

भगवान शिव ने चन्द्रमा का मान सम्मान बनाये रखने के लिए, उनका गौरव पहला जैसा बना रहा इसके लिए उन्होंने अर्धचंद्र को अपने शीश पर धारण कर लिया|

चन्द्रमा के पत्नी का नाम तारा, अश्विनी, भरणीं, रोहिणी, आर्द्रा, मूला, कृत्तिका, मृगशिरा, पुनर्वसु, आश्लेषा, मघा, पूर्वफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, श्रवणा, धनिष्ठा,  पूर्वभाद्रपदा, उत्तरभाद्रपदा, रेवती, पुष्या है| इस प्रकार इनकी 27 पत्नियाँ थी|

चन्द्रमा के ससुर का नाम राजा दक्ष था|

विज्ञान के अनुसार अरबों वर्ष पहले एक बहुत बड़ा ग्रह या उल्का पिंड चाँद से टकराया था जिस कारण चाँद अस्तित्व में आया| 

ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम: अर्थात् – दुग्ध सागर मंथन के समय जन्म| यह एक बीज मंत्र है इसका जाप करने से सोचने की क्षमता में वृद्धि होती है| भावनाओं में नियंत्रण आता है| जातक में कला-संगीत के प्रति प्रेम बढ़ता है|

चन्द्र देव का वाहन रथ है जिसमें दस घोड़े जुड़े है जो मन के गति से तेज चलने वाला है| 

लक्ष्मी जी को हम माता का दर्जा देते हैं उनको लक्ष्मी माता कहते है और चाँद उनका भाई है दोनों भाई-बहन है इस लिहाज से यह रिश्ता बना है| इसी लिए चन्द्रमा को चंदा मामा कहा जाता है| 

अपने मन के शांति के लिए चन्द्र मंत्र का जाप कर सकता है| अगर राशि में चन्द्रमा नीच का है उसको उच्च का बनाने के लिए उनका जाप किया जा सकता है|

वैज्ञानिकों के मुताबिक चाँद पर आक्सीजन, हाइड्रोजन, आयरन, अलुमिनियम आदि महत्वपूर्ण धातु मिल सकता है|  

विज्ञान के अनुसार चन्द्रमा एक ग्रह है जो अरबों वर्ष पहले एक दूसरे ग्रह या उल्का पिंड से टकराकर बना है| पुराणों के मुताबिक यह एक देवता है जिनका 27 कन्याओं से विवाह हुआ था राजा दक्ष उनके ससुर थे| इस तरह दोनों एक दूसरे के विरोधाभास है|

चन्द्रमा का असली नाम बिराज है|

Chandrama Rishi Dham Ashram
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निष्कर्ष

चन्द्रमा ऋषि धाम” के बारे में हमें जानकारी पुराने ग्रंथों से प्राप्त हुआ उसको आपके लिए बहुत ही साधारण ढंग से प्रस्तुत किया गया है| 

उपरोक्त लेख में हमने चन्द्रमा की कहानी के बारे में पढ़ा, पुराणों में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा-विष्णु-महेश के बारे में विस्तार से जाना| उसको समझा उनके तपस्या के बारे में जाना, उनके अवतार के बारे में जाना तथा उनके मंदिर और चन्द्रमा ऋषि आश्रम आजमगढ़ के बारे में जानकारी प्राप्त किया|

प्रशासन द्वारा चन्द्रमा ऋषि आश्रम आजमगढ़ के बारे में बहुत कुछ किया गया जैसे विश्रामगृह, शौचालय या पौधा रोपण का कार्य हो जिससे यह स्थल हरा-भरा और अपने मूल प्रकृति में बने रहें हलांकि इसको और विकसित करने की जरूरत है जिससे आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) के इस स्थान को एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल के रूप में स्थापित किया जा सके|

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