ऋषिकेश

ऋषिकेश

ऋषिकेश का इतिहास

Reads book

संक्षिप्त परिचय

ऋषियों का देश ऋषिकेश में ऋषि और भगवान का स्वयं वास रहता है एक प्रचिलित कथा के अनुसार ऋषिकेश में देवदत्त नामक ब्राम्हण ने घोर तपस्या की लेकिन वह विष्णु और शिव को अलग-अलग मानता था इसी करण इंद्र एक अप्सरा के द्वारा उनकी तपस्या भंग करना चाहते थे और वह करने में सफल भी हो गए बाद मे उन्होंने पुनः भगवान शिव की कठोर तपस्या के उपरांत भगवान शिव को प्रकट कर लिया|

भगवान ने कहा की तुम मुझे विष्णु ही समझो मुझे और विष्णु को जब तुम सामान नज़र-भाव से देखोगे तो तुम्हे सिद्धि मिलेगी तुमने मुझमें और विष्णु में भेद समझा, तभी तुम्हारी तपस्या भंग हो गई और कोई फल न निकल सका|

उसके बाद देवदत्त की लड़की रूस ने भी बहुत कठिन और घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन कर लिया जब भगवान ने वर मांगने को कहा तो उन्होंने भगवान से हमेशा के लिए यहीं अवस्थित होने की प्रार्थना की जिसे भगवान ने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया और इसी वजह से भगवान यहाँ हमेशा से निवास करते है| इस स्थान पर ध्यान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है|

Reads book

विस्तार से समझें

ऋषिकेश का महत्व

एक प्रचलित कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय तो विष निकला था उसे भगवान शिव ने इसी स्थान पर पिया था और पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया था इसीलिए उन्हें नीलकंठ भी कहते है अन्य कथा के अनुसार इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान यहीं के जंगलो में अपना कुछ समय ठहरने का निवास स्थान बनाया था|

ऋषिकेश का अर्थ

जिनका इन्द्रियों पर नियंत्रित होता है वह – ऋषि और देवताओं के देश को ऋषिकेश कहतें है|

ऋषिकेश नाम

ऋषिकेश नाम कैसे पढ़ा? यह एक प्रसिद्ध कहानी है एक समय इस स्थान पर एक महान संत रिहाना ऋषि रहते थे जिन्होंने गंगा के किनारे घोर तपस्या की इसी तपस्या से प्रसन्न होके भगवान विष्णु ने उनको ऋषिकेश नाम से अलंकृत किया और उन्ही के नाम से इस स्थान का नाम भी ऋषिकेश पढ़ा| यह एक संस्कृत शब्द है “हृषीकेश” है और यह ऋषिकेश का प्राचीन नाम है|

Rishikesh-ऋषिकेश-Sadhu

ऋषिकेश में घूमने की जगह

यहाँ ऐसे बहुत से घुमने योग्य और पर्यटन स्थल है जैसे लक्ष्मण झुला, त्रिवेणी घाट, स्वर्ग आश्रम, महादेव मंदिर (नीलकंठ), राम मंदिर, वरहा मंदिर, चंद्रशेखर मंदिर आदि अनेक मंदिर स्थित है| मन के शांति के लिए click here करें| 

ऋषिकेश कहाँ है?

ऋषिकेश उत्तराखंड के देहरादून जिले का एक प्रमुख तीर्थ नगरी है इसे देवताओं का गढ़ भी कहा जाता है जहाँ हजारों ऋषिमुनि तपस्या किये थे आज भी पहाड़ों के कंदराओं में बहुत से ऋषि मुनि रहते है जो समाज में सामने नहीं आते लेकिन अपने स्थान पर रहकर ही तपस्या करते रहते है| यह स्थान समुद्र तल से 1360 फीट की ऊँचाई पर स्थित है जोकि पुरे भारत में सबसे ऊँचा और सबसे पवित्र तीर्थस्थल है|हिमालय का प्रवेश द्वार ऋषिकेस ही है जहाँ पहुँचकर माता गंगा समतल धरातल के तरफ आगे बढ़ जाती है|

ऋषिकेश से हरिद्वार की दुरी

ऋषिकेश से हरिद्वार की दुरी मात्र 20 किलोमीटर है जो नेशनल हाईवे NH7/34 के मदत से मात्र 30 मिनट में पहुँचा जा सकता है दिल्ली से ऋषिकेस की दुरी 250 किलोमीटर है वाया नेशनल हाईवे NH334 से और रेलवे की भी सुविधा है जो लगभग 10-11 घंटे में पहुँचा देगी|  

Reads book

निष्कर्ष

ऋषिकेस वह स्थान है जहाँ तीन नदियों का संगम हुआ है गंगा, यमुना और सरस्वती यह एक अति पवित्र घाट है| यहाँ हर जगह मंदिर आश्रम और मठ मिल जाते है योग साधना के लिए|

ऋषिकेस के यात्रा लक्ष्मण झूले से प्रारंभ करते हैं लक्ष्मण झुला एक पुल है जिसको सन 1929 में बनवाया गया था| यहाँ के प्रतेक होटल में शुद्ध शाकाहारी भोजन ही परोसा जाता है मांसाहारी पर पूरी तरह रोक है|

ऋषिकेस प्रशासन द्वारा बहुत अच्छा यातायात का प्रबन्ध किया गया है अगर आप हवाई मार्ग से आना चाहते है तो देहरादून से आ सकते है टैक्सी और बस का व्यवस्था भी है जो समय-समय पर चलते है रेल द्वारा भी यहाँ तक पहुंचा जा सकता है रेल सफ़र के द्वारन आप पहाड़ियों का मनोरम दृश्य आपको दिखेगा|

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

0