मैं कौन हूँ?
Who am I?
संक्षिप्त परिचय
जीवन का सबसे बड़ा प्रश्न “मैं कौन हूँ?” इस प्रश्न को जिसने समझ लिया उसने अपना जीवन ही सफल कर लिया उसका जन्म लेना सार्थक और सफल हो गया| इस लेख में हम देखेंगे इसी से जुड़े अन्य प्रश्नों के उत्तर भी जैसे गीता के अनुसार मन क्या है? या वेद के अनुसार आत्मा क्या है? या अणु आत्मा और शरीर में क्या अंतर है? यह तीनो ही प्रश्न एक गूढ़ रहस्य है जिसको समझने के बाद आपके जीवन में स्पष्टता आ जायेगा|
इसके अलावा वेदों में आत्मा कहां होती है? इन प्रश्नों के उत्तर हमने रमण महर्षि के विचारों के आधार पर बताये हैं महर्षि रमण की ध्यान विधि का भी उल्लेख किया गया है जिससे “मैं कौन हूँ” को समझने में आसानी हो|
यह लेख गहन अध्ययन के बाद प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे पाठकों को यहाँ-वहाँ भटकना न पढ़े और सीधे प्रश्न का उत्तर समझने में आसानी हो प्रश्न को पहले सीधे और स्पष्ट रूप से बताया गया है और दूसरा कहानी के माध्यम से|
हमारा ऐसा विश्वास है की अगर आप इस लेख को धीरे-धीरे रूक कर समझ कर और ध्यानपूर्वक पढ़ते है तो निश्चित रूप से यह शब्द आपकी जीवन की दिशा और दशा दोनों को बदल देगा और आपके अन्दर सिर्फ मंगल और कल्याण की भावना आ जाएगी|
विस्तार से समझें
प्रश्न “मैं कौन हूँ?” को दो तरीकों से समझते हैं:-
पहले भाग में अर्थ और परिभाषा स्पष्ट रूप से समझे:
दुनिया का सबसे बड़ा सवाल है- मैं कौन हूँ आध्यात्मिक (who am I) जिसने इस सवाल को जान लिया वह सब कुछ जान लिया मैं कौन हूं कैसे जाने?
सन 1902 में महर्षि रमण ऋषि से यह पूछा गया की “मैं कौन हूँ रमण महर्षि” इस प्रश्न के उत्तर में जो उन्होंने बताया वह आपके सामने है जिस समय यह प्रश्न पूछा गया उस समय वह विरुपाक्ष्य गुफा में ध्यानावस्थ और मौन स्थिति में थे अतः उन्होंने “मैं कौन हूँ?” प्रश्न का उत्तर लिखकर दिया|
शब्द या धातु से बना यह स्थूल शरीर “मैं” नहीं हूँ आगे गहराई से जाने शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध भी “मैं” नहीं हूँ कर्ण, त्वचा, जीवा, नेत्र और नासिका भी “मैं” नहीं हूँ आगे पांचो ज्ञानेन्द्रिया वाणी, गमन, आनंद, ग्रहण, माल-विसर्जन भी “मैं” नहीं हूँ वक्, पाद, वाणी, वायु और उपस्थ यह पांचो कर्मेन्द्रियाँ भी “मैं” नहीं हूँ| श्वास क्रिया करने वाला भी “मैं” नहीं हूँ संकल्प करने वाला मन भी “मैं” नहीं हूँ विषय से लिप्त कर्म भी “मैं” नहीं हूँ यदि “मैं” इनमे से कोई भी नहीं हूँ तो मैं कौन हूँ?
एक-एक कर सबको अलग करने के बाद जो केवल चेतन्य बचता है वह “मैं” हूँ, हाँ- वह “मैं” हूँ|
रमण महर्षि प्रश्नोत्तरी
उसका रूप और स्वरुप कैसा है? उस जगत का दर्शन कैसे होगा?
जब दृश्य जगत का लोप होता है तो स्वरुप का बोध होता है जो दृष्टा है वह “मैं” हूँ|
क्या दृश्य जगत का बोध प्रतिभास के साथ स्वरुप दर्शन नहीं हो सकता है?
नहीं,
दृष्टा और दृश्य रज्जू और सर्व जैसे है रस्सी और सर्प दोनों को देख लेने के बाद ही दोनों में भेद समझ आता है|
मन जो सभी ज्ञान, अनुभवों और कर्मो का कारण है उसके ख़त्म होने पर खुद का परिचय मिल जायेगा|
दुनिया में सबसे शक्तिशाली क्या है?
दुनिया में सबसे शक्तिशाली चीज मन है इससे बड़ी कोई चीज है ही नहीं यही विचार पैदा करता है फिर हमारी इच्छाओं को जन्म देता है जब हम गहरे नींद में होते हैं तो कोई जगत-संसार नहीं होता है लेकिन जैसे ही हम अपने विचारों में वापस आतें है तो यह जगत अपने आप दृश्य हो जाता है|
मन जब स्वरुप के बाहर आता है तो जगत प्रकट होता है इसलिए जब जगत प्रकट होता है तब स्वरुप प्रकाशित नहीं होता है और जब स्वरुप प्रकाशित होता है तो जगत प्रकट नहीं होता है|
मन अकेला नहीं रह सकता है वह किसी पर आश्रित है इसलिए वह चंचल है|
मन शांत कैसे होगा?
“मैं कौन हूँ उपनिषद” के अन्वेषण के द्वारा ही मन शांत होगा अन्य कोई रास्ता नहीं है मैं कौन हूँ यह एक विचार सभी अन्य विचारों को नष्ट कर देगा इसलिय केवल इसपर चिंतन करें जिस प्रकार चिता जलाने के लिए जिस बांस का प्रयोग किया जाता है अंत में वह स्वयं ही जल जाता है उसी प्रकार यह “मैं” अंत में स्वयं ही ख़त्म हो जायेगा तब वहाँ स्वरुप दर्शन होता है|
जब हम ध्यान करते हैं तो मन बार-बार भागता है नए-नए विचार आतें है उस समय इन्सान को उन विचारों पर ध्यान नहीं देना चाहिए और वापस अपने मूल प्रश्न “मैं कौन हूँ” पर आना चाहिए क्योंकि मन का काम ही है भटकाना और हमारा काम है “अपने आपको जानना” इसलिए अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित रखें इसके बारम्बार प्रयास से मन शांत हो जाता है और अपने श्रोत में रहने की दक्ष्यता विकसित कर लेता है|
मन जब शरीर से बाहर जाता है तो वह स्थूल हो जाता है और वह जब शरीर के अन्दर रहता है तो नाम रूप सब ख़त्म हो जाता है मन को ह्रदय में रोकने को ही अंतर्मुखी कहते है और जब मन शरीर से बाहर जाता है तो वह बहिर्मुखी कहलाता है|
विचार मन का स्वरुप है और यही अहंकार है जहाँ से श्वास प्रारम्भ होता है वहीं से अहंकार भी शुरू होता है इसलिए जब श्वास स्थिर होता है तो मन नियंत्रित हो जाता है श्वास बहुत धीमे गति से (फिर भी) चलता रहता है जो पता नहीं चलता है|
इन्सान को चाहिए की वह मन को सबसे पहले तो सात्विक और शुद्ध रखें दूसरी बात ध्यान के नियमित प्रयास से इसको एकाग्र और स्थिर रखने का प्रयास करना चाहिए हमारा आचरण विनम्र होना चाहिए तभी इन्सान को अधिक से अधिक लाभ मिल सकता है|
निरंतर ध्यान के प्रयास से मन को नियंत्रण किया जा सकता है|
स्वरुप का स्वाभाव क्या है?
यथार्थ में जो स्वरुप है वह केवल आत्म स्वरुप है जगत, जीव और ईश्वर यह तीनो एक ही समय प्रकट होते और लिप्त होते है जहाँ “मैं” का विचार नहीं होता वहाँ “स्वरुप” है वही “मौन” है| स्वरुप ही जगत है स्वरुप ही मैं है स्वरुप ही ईश्वर है सब कुछ शिव स्वरुप है|
भक्तों में श्रेष्ट कौन है?
स्वरुप के रूप में उपस्थित ईश्वर को जो स्वयं को समर्पित करता है वह सबसे उत्तम भक्त है|
वैराग्य क्या है?
जैसे ही विचार उठते है उन्हें उनके जन्म स्थान पर उनका बिना कोई चिन्ह छोड़े तुरंत नष्ट कर देना वैराग्य है| हर इन्सान को अपने भीतर गोता लगाना चाहिए और आत्मा रुपी मोती प्राप्त करना चाहिए|
क्या ईश्वर या गुरु मुक्ति नहीं दे सकतें?
नहीं, ईश्वर या गुरु हमें मुक्ति का मार्ग नहीं दिखा सकते है वे जीव को मुक्ति तक नहीं ले जा सकते क्योंकि यह सृष्टि के नियम के विरुद्ध है गुरु तो मार्गदर्शक है प्रयत्न तो स्वयं ही करना होगा गुरु हमारे मार्ग में आनेवाले बाधा को दूर करते है और मुक्ति तक सहायक होते है|
अन्वेषण और ध्यान में क्या अंतर है?
स्वयं के आत्मा में मन को स्थिर करना अन्वेषण है हम स्वयं ब्रह्म है सच्चिदानंद का यह भाव ध्यान है|
मुक्ति क्या है?
बंधन में पड़े अहम् का अन्वेषण करना तथा बंधन से मुक्त अपने स्वयं के यथार्थ स्वरुप को जानना ही मुक्ति है यही हर मनुष्य का अंतिम लक्ष्य है|
दूसरा भाग कहानी के रूप में समझे:
इस कहानी को ओशो रजनीश के शब्दों में समझते हैं की “मैं कौन हूँ ओशो” कहानी कुछ इस प्रकार है इस कहानी में मेरा जीवन क्या है? इसको भी समझा जायेंगे|
एक बहुत बड़े राजा थे उसके यहाँ जब भी कोई पंडित या साधु-संत प्रवचन देने आते या भगवत कथा करने आते तो वह उनसे एक भी बात कहते महात्माजी मुझे कथा-पुराण से कोई मतलब नहीं है मुझे तो बस परमात्मा से मिला दो यह बात सुनकर साधु-संत कथा-वाचक सब लौट जाते|
एक दिन एक सिद्ध साधु राजा के दरबार में आए “ईश्वर का उपदेश देने” तो राजा ने उस सिद्ध साधु से भी वही बात कहीं- हमें ईश्वर के उपदेश की कोई आवश्यकता नहीं है हमें तो बस ईश्वर से मिलना है इस पर साधु ने कहा कब मिलना है? अचानक पूछे गए इस सवाल से राजा सन्न हो गए और सोचने लगे क्या कहू साधु ने फिर कहा अभी मिलना है? या कल? कब मिलना है? बोल के साधु शांत हो गए अब बारी राजा का था राजा कुछ बोल ही नहीं पा रहा था उनका ज़बान लड़खड़ा रहा था इस पर साधु ने कहा ठीक है मैं कल फिर आऊंगा तब बता देना|
कल फिर साधु आये और उन्होंने राजा से कहा बताओ राजन भगवान से कब मिलना है? इस बार भारी मन से धीरे से राजा ने कहा अभी मिलना है साधु ने कहा ठीक है राजन जिस प्रकार आपके दरबार में कोई आपसे मिलने आता है तो सबसे पहले वह इन्सान अपना परिचय भेजता है की वह कौन है? क्या है? कहाँ रहता है? क्या करता है? उसने कितने युद्ध जीते-हारे हैं? उनकी वंशावली क्या है? उसका नाम क्या है? व्यवसाय क्या है? जाति, धर्म, माँ-बाप और अपना पूरा विवरण देता है उसी प्रकार आप भी अपना परिचय दें राजन यह सारी बात भगवान को जाकर बताना होगा|
राजा ने अपना पूरा विवरण दिया अपना नाम अपने माँ-बाप का नाम (विवरण) अपना आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट विवरण स्कूल से पढाई आदि का पूरा विवरण दिया लेकिन इस बात पर साधु को कोई असर नहीं हुआ|
साधु ने कहा यह सब तो ठीक है राजन! लेकिन आप एक बात बतायें कल जब आप राजा नहीं रहेंगे क्या तब भी आप अपने आप को एक राजा कहकर ही संबोधित करेंगे या एक आम इन्सान कह कर बताएँगे कल जब आपकी रियासत नहीं रहेगी तब क्या कहेंगे? आपका असली परिचय क्या है? मैं यह जानना चाहता हूँ की आपका वास्तविक परिचय क्या है???
मैं भगवान को जाकर क्या बताऊंगा की तुम्हारा क्या परिचय है अपना ठीक-ठीक परिचय दो यह जो परिचय आपने दिया है इससे संसार का काम चलता है लोग तो अपना नाम, जाति धर्म सब कुछ बदल लेते हैं फिर हमारा सही परिचय क्या है?
साधु ने कहा मैं आपको ईश्वर से मिलाने को तैयार हूँ लेकिन आपको अपना ठीक-ठीक परिचय देना होगा|
साधु ने राजा से कहा तुम्हारे उस होने के बारे में बताओ तुम कौन हो? वही तुम्हारा वास्तविक परिचय है| तुम्हारा नाम, स्थान का नाम, देश का नाम यह सब तो इन्सान द्वारा बनाया गया है ईश्वर ने तो पृथ्वी बनाई थी तो ईश्वर ने जो तुम्हारे लिए बनाया है वह परिचय चाहिए|
फिर राजा ने कहा क्षमा करें साधु महात्मा यह तो मुझे नहीं पता तब साधु ने कहा फिर मैं आपको ईश्वर से कैसे मिला सकता हूँ|
राजा ने कहा महात्माजी मैं पता करके बताऊंगा आपको इसी प्रकार वर्षो बीत गए… बात खत्म हो गया…
अगर किसी ने अपना वास्तविक परिचय जान लिया फिर उसको किसी के पास जाने की जरुरत नहीं है जिसने आत्मा को जान लिया खुद को जान लिया यह जान लो की उसने परमात्मा को जान लिया उसके लिए कुछ भी बचा नहीं- सब जान लिया, सब कुछ|
जिसने स्वयं (स्व) को जान लिए उसने सर्व को जान लिया आत्मा को जान लिया तो परमात्मा को जान लिया भगवान महावीर ने तो सिर्फ आत्मा की बात की थी सिर्फ अपने को जानो आगे परमात्मा अपने आप मिल जायेगा भगवान बुद्ध ने भी अपने पर ध्यान देने की बात कही थी|
आप अपने आप से सवाल पूछे कल जब प्रलय आ जाए तब आपके लोग, धर्म, जाति, देश कुछ भी न रहे तब आपका परिचय क्या होगा? जब देश ही ख़त्म हो जायेंगे तो हमारा परिचय भी ख़त्म हो गया इसलिए हमें यह जानने की जरुरत है की मैं कौन हूँ?
एक और महत्वपूर्ण बात यह एक ऐसा प्रश्न है जो इन्सान को खुद ही जानना होता है इसको कोई किसी को बता नहीं सकता है यह तो अनुभव की बात है और अनुभव सबका अलग-अलग होता है|
निष्कर्ष
“मैं कौन हूँ” यह एक ऐसा प्रश्न है जिसको सही रूप से जान लेना ही जीवन का लगभग आधा काम पूर्ण हो गया बाकि का काम इसके अमल पर आधारित है अतः आज आपके पास जीवन का वह चाभी हाथ लगा है जो जीवन के तमाम रहस्यों से पर्दा उठा देगा सही मायने में जीना सिखा देगा इन्सान को इन्सान की पहचान करा देगा और अधूरे मानव को सिर्फ मानव ही नहीं महा मानव बनाने में समर्थ सिद्ध होगा|
हमारे मूल प्रश्न के अलावा हमने इनके सहायक प्रश्नों को भी लिया है जैसे वेदों में आत्मा कहां होती है? इन प्रश्नों के उत्तर हमने रमण महर्षि के विचारों के आधार पर बताये हैं इस अलावा जो सबसे आवश्यक चीज थी वह “महर्षि रमण की ध्यान विधि” क्योंकि इसको समझे बिना हम अपने अंतिम लक्ष्य तक कभी नहीं पहुँच सकते इसलिए उसका उल्लेख ज्यादा जरुरी था|
हमने दो तरीके से इस प्रश्न को समझाने का प्रयास किया है पहला सीधे इसको जानकार-समझकर इसपर अमल करना और दूसरा कहानी के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है|
“मैं कौन हूँ अपने आपको जानो” यह एक विशाल और विस्तृत विषय है जिसको संक्षेप से बताने का प्रयास किया गया है हमारे इस छोटे से लेख में विशाल ज्ञान को संक्षेप से समझाने का प्रयास किया गया है इसी मंगल कामना के साथ की सबका भला हो! सबका कल्याण हो! और सबकी स्वस्थ मुक्ति हो!
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