जीव ईश्वर का अंश है

गोस्वामी तुलसीदास 

ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति को

इमर्सन

 सच और झूठ में एक को 

 चुनने का अवसर देता है|

ईश्वर कोई वाह्य सत्य नहीं है

की अंतिम चेतनावस्था है

वह तो स्वयं के ही परिष्कार

वही हो जाने के अतिरिक्त

उसे पाने का अर्थ स्वयं

और कुछ नहीं है|

आचार्य रजनीश ‘ओशो’

जिसे ईश्वर की

अनुभूति हो जाती है,

उसका हृदय दया,

से सराबोर हो जाता है

मैथिलीशरण गुप्त

करुणा तथा सेवा-भावना

भगवान निराकार है

और साकार भी फिर वे

इन दोनों अवस्थाओं से परे हैं,

जानते हैं की वे क्या है?

केवल वह स्वयं

स्वामी रामकृष्ण परमहंस

इस सत्य को धारण

करो की भगवान न 

पराये हैं न तुमसे दूर है 

और न ही दुर्लभ है

महात्मा गाँधी

स्वयं को जान लेना ही

ईश्वर को जान लेना है

राधा रमण