कर्म ही पूजा है और

कर्तव्य पालन भक्ति है

सत्य साईं बाबा

अपना कर्म ही मनुष्य को

संसार में गौरव अथवा 

पतन की और ले जाता हैं

पंडित नारायण

फल मनुष्य के कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढनेवाली है,

तथापि विद्वान् और महात्मा लोग अच्छी तरह विचारकर ही कोई काम करते हैं|

आचार्य चाणक्य

जैसे तेल समाप्त हो जाने से

उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो

 दीपक बुझ जाता है,

जाने पर देव नष्ट हो जाता है|

महर्षि वेदव्यास

निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और

ईश्वर उसे सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है|

स्वामी रामतीर्थ

फल को सामने रखकर ही कर्म

में प्रवृत्ति होनेवाले एक प्रकार में

दीन होते हैं|

महाभारत

कार्य की अधिकता से उकताने

 वाला व्यक्ति कभी कोई बड़ा

कार्य नहीं कर सकता|

अब्राहम लिंकन

आदमी काम की अधिकता से नहीं,

उसे भार समझकर अनियमित रूप से करने पर थकता है|

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य