सद्गुरु के विचार

संक्षिप्त परिचय
“सद्गुरु के विचार” यह एक महत्वपूर्ण विषय है जहाँ सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी ने इन्सान के लगभग हर प्रश्नों का उत्तर दिया है मनुष्य मात्र का ऐसा कोई प्रश्न नहीं जिसपर उन्होंने अपना विचार न रखा हो| लोगों के प्रश्न और सद्गुरु के जवाब से लोग संतुष्ट होकर अपने जीने का तरीका बदलने तक को तैयार हो जाते हैं|
यहाँ हम isha foundation, sadhguru quotes, ईशा के विचारों में बारे जानेंगे साथ ही उनके “सद्गुरु के प्रवचन” और “सद्गुरु की जीवनी” भी जानेंगे इसके अलावा आश्रम से संबंधित जैसे सद्गुरु आश्रम फीस कितना है ईशा योग सेंटर फीस और सद्गुरु का आश्रम कहां है यह सब जानेंगे इसके अलावा उनके परिवार के बारे में जैसे सद्गुरु की बेटी राधे जग्गी (Radhe Jaggi), सद्गुरु जग्गी वासुदेव की पत्नी आदि विषयों पर भी विस्तार से चर्चा किया जायेगा|
सद्गुरु ने मनुष्य के साथ-साथ प्रकृति से जुड़े हर सामाजिक, आर्थिक, व्यक्तिगत, शारीरिक, राजनीतिक, प्राकृतिक और सबसे महत्वपूर्ण आध्यामिक हर तरह के प्रश्नों का उत्तर दिया है जो हमें एक नई दिशा और प्रेरणा देने में समर्थ है|
सद्गुरु की जबरदस्त इच्छा शक्ति सत्य को जानने की अभिलाषा के कारण ही यह असंभव संभव में बदला है उनके अथक प्रयास और तपस्या के वजह से उन्होंने वह सब प्राप्त किया जो वह जानना चाहते थे उन्होंने ब्रम्हाण्ड के हर रहस्य से पर्दा उठा दिया जो अपने आप में अविश्वसनीय, अकल्पनीय और अद्भुत है|
जीवन में हर कोई किसी न किसी तरह के समस्या से ग्रसित है जरुरत है सही मार्गदर्शक की तो यह लेख आपको सही मार्ग दिखने में सहायक सिद्ध हो इसी विश्वास के साथ आगे बढ़ते है…

विस्तार से समझें
लेख उन लोगों के लिए हैं जो जीवन को समझना चाहते है यह जीवन क्या है? ब्रम्हाण्ड या प्राकृत के जटिल संरचना को समझना साथ ही साथ हमारे आपके जीवन से जुड़े हर सवाल जो आपको गहराई से सोचने पर मजबूर कर देते हैं? कुछ गंभीर सवाल जो आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं? या अन्य शब्दों में अगर समझे तो बेहतरीन सवाल जो आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं? साथ ही साथ प्रश्न जो आपको वास्तविकता के बारे में सोचने पर मजबूर करते हैं? अतः ऐसे प्रश्नों के उत्तर समझकर आप अपने जीवन को एक बेहतर दिशा में ले जा सकते है और अपने जीवन को धन्य कर सकते हैं|
लोगों के प्रश्न भी बड़े अजीब होते हैं जैसे जन्म और जीवन क्या है? अगर इस प्रश्न को घुमाकर बोला जायें तो जीवन क्या है मृत्यु क्या है? आदियोगी कौन है? आदि| महाभारत से संबंधित प्रश्न उत्तर हो या रामायण से संबंधित प्रश्न उत्तर हो हर प्रश्न का सही, सटीक और प्रमाणित जवाब जिसे किसी भी रूप में नाकारा नहीं जा सकता आप अपने ध्यान या अंतरात्मा के गहराइयों में जाकर इसको परख सकते है|
यहाँ आपको अपने दोस्तों से पूछने के लिए गहरे सवाल व् उनके उत्तर इसके अलावा जीवन की चुनौतियों के बारे में प्रश्न भी मिल जायेंगे और तो और ब्रह्मांड के बारे में गहरे सवाल जैसे प्रश्न और उनके सटीक जवाब भी पा सकते हैं अतः जो भी जीवन को समझना चाहता है उन लोगों के लिए यह लेख (जीवन को समझने के लिए सिद्ध हो) इसी कामना के साथ चलिए शुरू करते हैं सद्गुरु के विचार…

hard questions to answer about life
प्रश्न 1 : हम पैदा क्यों हुए है? जीवन का मकसद क्या है?
उत्तर 1 : इस प्रश्न के उत्तर में सबका अलग-अलग मत, विचार और भाव हो सकता है लेकिन सही मायने में अगर आपके अन्दर परमानन्द का भाव फुट रहा होता अगर आपके हर कोशिका में राम नाम का विस्फोट हो रहा होता तो आप यह न पूछ रहे होते की जीवन का मकसद क्या है? तो सबसे पहले आपको अपने जीवन के आदर्श को बदलना होगा क्योंकि आपके जीवन का जो अनुभव है वह एक खास तरह का है इस समय मैं बहुत घमण्डी हूँ स्वार्थी हूँ गैर-ज़िम्मेदार हूँ मैं नहीं हूँ लोगों को ऐसा लगता है इसलिए अगर आप इस समय इसका उत्तर खोजेंगे तो गलत दिशा में पहुँच जायेंगे तो सबसे पहले आपको अपना दिशा बदलना होगा|
मेरा जीवन क्या है?
जीवन को किसी मकसद की जरुरत नहीं वह तो अपने आप में ही मकसद है यह सवाल आपके मन में इसलिए आ रहा है क्योंकि आपने जीवन के भव्यता का स्वाद नहीं चखा है क्योंकि इन्सान होने के विशालता का अहसास ही नहीं हुआ है अगर आपको उसका अनुभव हो गया तो आप यह नहीं पूछेंगे की मैं क्यों पैदा हुआ? क्योंकि क्यों का कोई मतलब ही नहीं है यह बेमिसाल है, यह शानदार है, यह जबरदस्त है और यह अद्भुत है|
जीवन का उद्देश्य क्या है?
आप सुबह उठते है नहाते है खाते है ऑफिस जाते है फिर घर आना परिवार में मनोरंजन करना खाना खाके सो जाना फिर अगले दिन वही चक्क्रम पुनः चालू हो जाता है जीवन में कई उतर चड़ाव आते है कभी ख़ुशी मिलता है कभी गम इसी तरह यह जीवन चलता रहता है यह एक भौतिक तुच्छ जीवन है जब तक आपको अन्दर का अनुभव न हो तब तक यह तुच्छ है|
मनुष्य जीवन क्या है?
आप एक बात समझ ले आपके जीवन का कोई मकसद नहीं है अगर आप अपने अस्तित्व के उल्लास को नहीं जान पाते तो वाकई में यह जीवन व्यर्थ है बेकार है आपने इसे बेकार कर दिया मेरा-तेरा-उसका इन सब चक्करों में पड़कर|
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प्रश्न 2 : हमें कड़ी मेहनत यानि (hard work) करने के बाद भी सफलता क्यों नहीं मिलता है?
उत्तर 2 : कड़ी मेहनत से कुछ नहीं मिलता कड़ी मेहनत से सिर्फ गुजारा चल सकता है यानि काम हो सकता है कोई बड़ा तीर नहीं मार सकते हम सबको कड़ी मेहनत से काम करना सिखाया जाता है हर किसी के द्वारा चाहे माँ-बाप हो, शिक्षक हो, अडोसी-पड़ौसी-मौसी कोई भी हो किसी ने यह नहीं बताया खुशी से काम करो, मन से काम करों, दिल लगाकर काम करों या अच्छे से काम करों बस कड़ी मेहनत से काम करों|
ऐसे सवाल जो आपको अपने बारे में सोचने पर मजबूर कर दें
अगर किसी काम में मेहनत लग रहा है तो उसको छोड़ दीजिये क्या फायदा ऐसे काम को करने का जिसमे मेहनत लगे और वो काम के सफलता का कोई गारंटी भी नहीं| अपने आप को दुखी करके जिस काम को करने में ख़ुशी मिले बस वही काम करना चाहिए| जिस काम को करके (अपने को) और (दुसरे को) दुःख मिले ऐसे काम मत करो इससे तो अच्छा है कटोरा लेके भीख मानगो| यह जीवन दूसरों को दुःख देने के लिए नहीं मिला|
ऐसे सवाल जो आपको जवाब के साथ सोचने पर मजबूर कर देते हैं
सुख या ख़ुशी दीजिये और इसको जितना चाहे उतना फैलाइए जससे सबका भला हो सके| अगर आप एक बस या ट्रक को कुत्ते से बंधकर चलाएंगे तो क्या वो चलेगा – नहीं आपको सही काम करना होगा तभी काम होगा दुनिया में जिन भी लोगों ने सफलता पायी है उन लोगों ने काम करने का सही दिशा चुना न की कड़ी मेहनत किया यानि smart-work किया आपको सही दिशा चुनना ही होगा तभी आप सफल हो सकते है अन्यथा मेहनत करने से कोई बड़ा आदमी नहीं बना है|
सवाल जो आपको दो बार सोचने पर मजबूर कर देते हैं
अपने कुल्हाड़ी को धार कीजिये तभी पेड़ की लकड़ियाँ काट पाएंगे|
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प्रश्न 3 : ज्यादा सोचने से कैसे बचे How to stop over thinking?
उत्तर 3 : जीवन के बारे में रोचक प्रश्न इसके लिए आपको अपने बर्ताव में थोडा परिवर्तन करने की जरूरत है अगर आपको दस्त है तो सबसे पहले आपको क्या करने की आवश्यकता है? कुछ समय के लिए भोजन खाना बंद करना होगा क्योंकि दस्त का मतलब ही है की आपने कुछ ऐसा खाया है जो हजम नहीं हुआ है और वह बाहर आना चाहता है उसको बाहर फेंकना चाहता है|
तो सबसे पहले खाना न खाए आप ख़राब खाना खाते है और फिर दवाई लेकर उसको रोकना चाहते है यह गलत है यह ऐसे काम नहीं करता रोकेंगे तो अन्य प्रकार का मर्ज जन्म लेगा यह बिलकुल भी सही नहीं है|
इसी तरह हमारा मस्तिष्क भी है आपने उन चीजों से अपना याददाश्त जोड़ लिया है जो आप नहीं है जिस समय हम उन चीजों से अपना नाता जोड़ लेते है जो हम नहीं है तो हमें मानसिक दस्त होना लाज़िमी है| यह मन ख़राब खाना खाता है और यह कई विचारों को जन्म देता है और दसों दिशाओं में दौड़ेगा आप इसे रोक नहीं पाएंगे फिर आप कितनी भी कोशिश कर लीजिये अपने देवी-देवताओं किसी का भी नाम लीजिये यह नहीं रूकनेवाला क्योंकि आप लगातार ख़राब खाना खाये जा रहे है मन नहीं रूकनेवाला है|
गहरे व्यक्तिगत प्रश्न
आप हर दिन अलग-अलग चीजों से अपनी पहचान बनाये जा रहें है इससे बचने का सिर्फ एक ही रास्ता है आपको यह जानना होगा की आप क्या हैं और क्या नहीं हैं अगर शरीर का तापमान 100 डिग्री से ज्यादा है तो आप जान जाते है शरीर में बुखार है इसी प्रकार लगातार गलत सोच से मन की बीमारी आयी है आपने लगातार अपने मन को कहा मैं डॉक्टर हूँ, मैं इंजीनियर हूँ, मैं अधिकारी हूँ मैं यह हूँ मैं वह हूँ तो आपमें अहंकार आ गया अब इससे आप नहीं निकल सकते|
सवाल जो आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं
अब अगर आप यह नहीं जानते की आप क्या है? तो कम से कम यह करिए की मैं क्या नहीं हूँ? आज रात आप सोने से पहले शांत होकर बैठ जाएँ और अपने आप से सवाल पूँछे? क्या यह शरीर मेरा है? में कितने दिन इस शरीर में रहूँगा, क्या यह घर मेरा है? क्या यह बीबी-बच्चे मेरे है? क्या यह माँ-बाप मेरे है? क्या यह वस्त्र जो मैं पहन रखा हूँ मेरा है? क्या मेरा इन किसी भी चीज पर कण्ट्रोल है?- “नहीं” तो मेरा कैसे हुआ? मेरा विचार मेरा भावना यह मैं हूँ “नहीं” तो जब मैं इनमे से कुछ भी नहीं हूँ| तो मैं हूँ कौन?
आप इन सब चीजों को अपने मन से निकल दें और आराम से सो जाएँ अगले दिन जब आप जागेंगे तो पाएंगे की मन शांत हो गया है कुछ ही दिनों के अभ्यास से आप पाएंगे की आप बिलकुल शांत और स्थिर हो गयें हैं इस तरह आप ज्यादा सोचने से छुटकारा पा सकते है अपने से चीजों को मत जोडिये बस स्थिर और शांत होकर हर काम करिए|
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प्रश्न 4 : जीवन जीने का सही तरीका क्या है?
उत्तर 4 : सुखी मन और स्वस्थ जीवन का रहस्य क्या है? जीवन जीने का सबसे सही तरीका है आप ऐसे जीये – जब तक आप जीये लोगों को आपके साथ रहने में मज़ा आये और जब आप न रहें तो लोगों को आपकी कमी महसूस हो आपको जीवन ऐसे जीना चाहिए|
जब आप जीये तो लोग आपकी मौजूदगी से खुश हो जब आप मरे तो लोग आपको याद करें| इसके विपरीत अगर आप जीते है तो आप गलत तरीके से जीते है| यह है “एक सुखी जीवन कैसे जिया” का रहस्य|
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प्रश्न 5 : असली सफलता किसे कहते है?
उत्तर 5 : हमारे जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए? सवाल यह है की क्या लोग आपको पसंद करते हैं की नहीं| क्या आपने खुद को ऐसा बना लिया है की कोई भी आपको पसंद किये बिना नहीं रह सकता| पसंद और ना पसंद दोनों ही अलग-अलग तरह के बंधन है अगर आप किसी को पसंद करते है तो आप उसकी खूबी बड़ा चडाकर देखेंगे अगर आप किसी को न पसंद करते है तब तो आप निश्चित रूप से उसके नकारात्मक पहलू को खूब बड़े रूप में देखेंगे|
हम यह जरूर देखें की सामने वाले की चाहत क्या है? उसकी सोच क्या है? अपने ऊपर विश्लेषण करें|
दोनों ही मामले में आप बड़ा-चढ़ाकर देखते है इसका अर्थ होता है जो चीज जैसी है उसको हम वैसी नहीं देख रहें है तो आप जीवन को वैसे नहीं संभाल पाएंगे जैसे इसे संभाला जाना चाहिए|
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प्रश्न 6 : क्या मंदिर के पास रहने के फायदे है?
उत्तर 6 : मनुष्य जीवन क्या है? हमें किसी ऐसे स्थान पर नहीं रहना चाहिए जहाँ नकारात्मक उर्जा हो जहाँ हमेशा लड़ाई झगड़ा होता रहता है हमेशा शोरगुल रहता है श्मशान घर हो या अप्राकृतिक घटना घटित होता रहता है| इसे ऐसे समझे अगर आप जमीन में कोई पौधा लगते है वहाँ का जमीन उपजाऊ है पर्याप्त हवा, पानी और सूर्य उस धरती पर आ रहा है अगर वह जमीन उस पेड़ को थामने के लायक नहीं है तो उस जमीन में वह पेड़ कैसे बढ़ेगा उसे कठिनाई होगी|
अगर पौधा निकल भी जायें तो भी वह पूरी तरह से विकसित नहीं होगा इसलिए आप क्या खाते है क्या पहनते है आप कैसे सोचते है और सबसे महत्वपूर्ण किस स्थान पर रहते है उसके आसपास का माहौल कैसा है यह भी महत्वपूर्ण है|
मनुष्य को जीवन में क्या करना चाहिए? इसलिए ज्यादातर लोग गृह प्रवेश करते है रामायण का पाठ कराते है गायत्री जाप कराते है महामृत्युंजय मंत्र का जाप कराते है आदि अनुष्ठान कराते हैं और प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं| देखिये अगर आप अच्छे माहौल में रहते हैं तो एक अच्छे लोगों का पीढ़ी बनेंगी (इसका उलटा भी उतना ही सच है) लेकिन पिछली कुछ पीढ़ियों से मुग़ल आक्रान्ता और अंग्रेज के कारण यह टूटता गया लेकिन इसे फिर से बनाया जा सकता है अपने आसपास के माहौल और अपने सोच को बदल के|
लोग अपने घरों में समय-समय पर अनुष्ठान करके इसे और उन्नत बनाया बनाते है जहाँ सकारात्मक उर्जा बहती है वहाँ विकास ही विकास होती है
मनुष्य के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है?
मनुष्य के जीवन में हर चीज का अपना स्थान है लेकिन स्थान का अपना ही एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि हम अपने जीवन का सबसे ज्यादा समय इसी जगह व्यतीत करते है जहाँ कई प्रकार की ऊर्जा बहती है हमें कोशिश यह करना चाहिए की स्थान ऐसा हो जहाँ सकारात्मक ऊर्जा बहे, तरंगें जो हमें सुकून दें हमारे मैडिटेशन यानि ध्यान में सहायक हो| एक ऐसा स्थान जहाँ शोरगुल ना हो जहाँ आपका हर चीज में मन लगे|
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प्रश्न 7 : खुशहाल जीवन के क्या सूत्र है?
How to live a Happy life? What is the formula for a happy life?
उत्तर 7 : परम पूज्य सद्गुरु जग्गी वासुदेव बतातें है मनुष्य का जीवन कैसा होना चाहिए? खुशहाल जीवन के 7 सूत्र जो इस प्रकार है:-
मानव जीवन का महत्व और एक सुखी जीवन कैसे जियें इस पर गहराई से प्रकाश डाला गया है जिसे Life’s Amazing Secrets जीवन के अद्भुत रहस्य भी आप कह सकते है जो इस प्रकार है :
The Hidden Secret of God भगवान का गुप्त रहस्य
पहला अपने जीवन से एक चीज जो ज्यादा जरुरी नहीं है उसको नष्ट करों उदहारण में लिए मैं अपने गुस्से को ख़त्म कर दूंगा अपने अहंकार को नष्ट करना आदि|
दूसरा है एक ऐसी चीज के बारें में सोचें जिससे आपका जीवन बेहतर होगा चाहे वह कितनी ही छोटी चीज क्यों ना हो और उसपर आप एक ठोस कदम उठाए उदहारण के लिए गुस्सा हो सकता है|
तीसरा अपनी मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक ढांचे में अपने जीवन के सबसे बुनियादी सत्य (नश्वरता) को गूंथना| हम नश्वर है हमें यह बात समझने में पूरी जिंदगी निकल जाती है| हमें अपने जीवन के हर क्षण का आनंद उठाना चाहिए क्योंकि यह जीवन किसी का इंतज़ार नहीं करता कब क्या हो जाए| अगर आप अमर होते तो आपके पास कष्ट में बिताने के हजारों वर्ष होते लेकिन ऐसा नहीं है समय आपके हाथ से निकलता जा रहा है इसलिए आपसी बैर भुलाकर प्रशंता के साथ रहें|
चौथा जीने का समझदारी भरा तरीका अपनाइये आपको सुख कब मिलता है जब आप खुश होते हैं तब या जब आप दुःख से भरे होते है तब| जीवन को बुद्धिमानी से बिताएं अपने जीवन में और औरों के जीवन में सुख लायें जिससे उनके जीवन के साथ-साथ अपने जीवन में भी ख़ुशी भर जायें| आपको करना बस इतना है की आप जो भी काम करें उसे चेतान्तापुर्वक करें जागरूक रहकर करें आप देखेंगे की आपके आसपास अच्छी चीजें घटित होने लगेंगी|
पाँचवा अपनी खुशियाँ अपने पास रखें आप अपने जीवन के मालिक है कोई और नहीं, अपनी खुशियाँ दूसरों के पास गिरवी ना रखें| जीवन का असली गुण तो इससे तय होता है की आप अपने भीतर कैसे है|
छठां विनम्रता बुद्धिमानी है मुर्ख और बुद्धिमान में सिर्फ यही अंतर है की बुद्धिमान व्यक्ति यह जनता है की वह कितना मुर्ख है लेकिन मुर्ख अपने आपको बुद्धिमान समझता है| अपने मुर्खता को पहचानना बहुत बड़ी बुद्धिमानी है इस पूरी दुनिया में आपको ऐसा कोई आदमी नहीं मिलेगा जो यह कह सकता है की वह घास को जनता हूँ या मिट्टी के एक कण को जनता है या एक परमाणु कण को पूरी तरह जनता है कोई नहीं जनता| हम अपने शरीर को पूरी तरह नहीं जानते|
जानते तो ऐसा ही शरीर दूसरा बना लेते इसलिए हमें सबके साथ तालमेल बना के साथ जीना चाहिए हर एक का सम्मान करना चाहिए इस पृथ्वी पर एक छोटी से चींटी का भी अपना ही महत्त्व है वह भी अपने स्थान पर महत्वपूर्ण है इसलिए बुद्धिमानी के साथ जीना सीखें कम से कम प्रेम के साथ जीना सीखें अगर प्रेम नहीं तो कम से कम आश्चर्य के साथ जीना सीखें|
सातवाँ जो जैसा है उसको वैसा देखें और समझे किसी भी चीज पर अपनी राय नहीं बनाना चाहिए हमारे विचार हमारे है उसके नहीं वह जैसा है उसको वैसा देखें आप एक चीज को अच्छा मानते है और दुसरे चीज को ख़राब अच्छे से जुड़ जाते है और ख़राब को छोड़ देतें है ऐसा नहीं करना है| जो चीज जैसी है उसको वैसी ही देखें अगर आप वैसी नहीं कर रहें तो इसका मतलब आप उसमें मिलावट कर रहें और आप इसके तासीर को बदलने की कोशिश का रहें है|
भगवान ने जैसी प्राकृतिक बनाई है उसको वैसी ही समझने का प्रयास करना चाहिए उसमें बदलाव करके देखने की कोशिश नहीं करना चाहिए| जन्म और जीवन क्या है? इसको ठीक से समझना चाहिए इसे अपने रंग में रंगने की कोशिश नहीं करना चाहिए|
Because the truth revealed सच सामने आ गया है….
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सद्गुरु के विचार
प्रश्न 8 : दिमाग की शक्ति क्या है?
what is the power of mind?
उत्तर 8 : दिमाग क्या है? दिमाग की शक्ति क्या है? दिमाग़ की कमजोरी के लक्षण क्या है? दिमाग तेज़ कैसे करें? दिमाग कैसे काम करता है? आदि दिमाग से जुड़े हर सवाल का सही और सटीक जवाब और साथ ही साथ “मैं कौन हूँ अपने आपको जानो” के लिए आगे पढ़िए|
आपके शरीर के सबसे ऊपरी हिस्से (गले से ऊपर) को दिमाग कहते हैं या सिर कहते है इसमें आपका आँख, नाक, कान, मुहँ आदि आता है| पश्चात के देशों ने दिमाग को यानि “अवचेतन मन का विज्ञान” को कुछ ज्यादा ही महत्व दे दिया है उनके हिसाब से मन की शक्ति ही सब कुछ है| उन्होंने मन की शक्ति कैसे बढ़ाएं इसपर ज्यादा जोर दिया है| लेकिन यौगिक विज्ञान में इसका कोई महत्व नहीं है|
आप और हम क्या सोच सकते है जो हमने पढ़ा है, जो हम सीखे है, जो हमारे आसपास घटित घटना होती है इसकी ही हमें जानकारी है उसी के बारें में हम सोचते है इसको दिमाग नहीं कहते है| दिमाग के और भी आयाम है दिमाग का मतलब गहराई है अपने अनुभूति से जानना दिमाग है दिमाग का सबसे उन्दरुनी परत को चित कहते है इसको अवचेतन मन भी कह सकते है|
मनुष्य के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है?
कोई भी इन्सान अगर अपने चित पर नियंत्रण पा ले तो वह किसी पर भी अपनी पहुँच बना सकता है| चेतना न तो भौतिक है न ही यह चुम्बिकीय है और न ही यह विद्युत् ही है| यह अभौतिक है| यही है असली रहस्य जहाँ सब कुछ घटित होता है सब कुछ यहीं से शुरू होता है| अगर कोई इसपर नियंत्रण पा ले तो वह कुछ भी कर सकता है|
असल में इस पुरे ब्रम्हाण्ड में भौतिक का सिर्फ दो प्रतिशत का अस्तित्व है लेकिन अभौतिक का अस्तित्व अट्ठानबे प्रतिशत है| एक शब्द है शि + वा = शिवा अर्थात् वह जो नहीं है हम भगवान शिव की बात नहीं कर रहें है जिसे हम पूजते है मंदिरों में घरों में उस शिव की बात नहीं हो रही है लेकिन पूरा ब्रम्हाण्ड इसी से घटित होता है सब कुछ इसके आसपास और इससे जुड़ा हुआ है एक बार अगर आपका आयाम जागरुक हो गया तो फिर आप चमत्कार कर सकते है किसी को कुछ भी भेजना संभव हो सकता है भौतिक और अभौतिक किसी भी रूप में|
क्या यह संभव हो सकता है? – सिद्धांतिक रूप से यह संभव है और प्रमाणित भी है| आज हर कोई स्मार्ट और चालाक है हमारे स्कूल-कॉलेजों से बच्चे पढ़कर निकलते है वह अपने आपको बहुत स्मार्ट समझते है लेकिन क्या वह स्मार्ट है ज्यादातर लोगों का सिर्फ स्मार्ट-फ़ोन ही स्मार्ट होता है क्योंकि सब लोग जानकारी इकठा करते है किसी का भी अन्तरात्मा की आवाज़ नहीं होती|
अगर आप पूरी दुनिया की किताब भी पढ़ डालते है फिर भी आप कुछ नहीं जानते आप यह नहीं बता सकते की एक घास कैसे काम करता है, फल कैसे निकल आतें है- पेड़ो में| हम एक अणु-परमाणु को भी नहीं जान पायें है इतने विज्ञानिक शोधो के बाद भी|
इससे यह साफ हो जाता है की हम इस ब्रम्हाण्ड के बारें में कुछ नहीं जानते क्या हम इस शरीर के बारें में पूरी तरह जानते है अगर जानते होते तो एक दूसरी शरीर बना लेते इसलिए इस ब्रम्हाण्ड के विषय में हमारी जानकारी शून्य है|
प्रश्न जो आपको जीवन के बारे में सोचने पर मजबूर कर देते हैं इसे आगे समझे और सकारात्मक सुखी जीवन कैसे जिएं?
उपरोक्त प्रश्न को समझने के लिए आपको सबसे पहले एक चीज करनी होगी अपने सारे विचार सारी जानकारी एक बस्ते में भरकर रख दें आप यह सोचे की मैं मुर्ख हूँ अब आप तैयार है अब आपको समझाना आसान हो जायेगा| अब आप शांत बैठ जायें विचार शून्य होके अब यह हाड़ मास का शरीर अपने आप काम करना शुरू कर देगा आपको कुछ सोचना नहीं होगा की क्या करना है क्या नहीं करना है यह आपके लिए जो सबसे अच्छा है वह खुद-ब-खुद आपके लिए प्रकट करने लगेगी यानि जो आपके लिए जरुरी है वह अपने आप घटित होने लगेगी|
ऐसे तमाम उदाहरण है जैसे स्वामी विवेकानन्द, महर्षि दयानंद सरस्वती, रामानुजम, रामकृष्ण परमहंस आदि इन लोगों ने आंख बंद करके प्रकृति के साथ तालमेल बनाया और परिणाम आपके सामने है आपका काम है समय और स्थान को मिटाना तो आप अभौतिक हो जाते हैं ऐसे स्तिथि में तालमेल सहेज ही हो जाता है अर्थात् सारे बंधन ख़त्म| ऐसे स्थिति में जो जीता है उसे फिर किसी भी चीज की जरुरत नहीं होती है|
तो अगर कोई यह पूछता है की मनुष्य को जीवन में क्या करना चाहिए तो इसका सीधा सा उत्तर है ध्यान करना चाहिए ध्यान ही वह तरीका है जिससे हम अपनेआप को शांत कर सकते है और ब्रम्हाण्ड से सीधे जुड़ सकते हैं दूसरे तरीके है लेकिन यह बिलकुल आसान और सहज तरीका है|
सद्गुरु के विचार

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प्रश्न 9 : अगर आप उलझन में हैं परेशान है तो उस परेशानी को कैसे दूर करें?
उत्तर 9 : इस सीरीज़ के अंतर्गत आप उदासी दूर करने के उपाय हो या मानसिक तनाव से होने वाले रोग हो आगे बढ़ते है ….. आप एक बात समझ ले “आत्मा और मन” में अंतर है आत्मा तो एकदम साफ़ होता है मन उलझन में रहता है| मानसिक तनाव के कारण आप और परेशान रहते है इन दोनों शब्दों को ठीक से समझना बहुत जरूरी है आत्मा उलझन में नहीं होती है आत्मा तो बिलकुल साफ़ और पवित्र है|
आपको इसका अनुभव नहीं हुआ है (हो सकता है) इसको वेदों में, पुराणों में कहा गया हो लेकिन अगर आपको इसका अनुभव नहीं हुआ है तो आप इस विषय पर बात ना करें आपको आत्मा या भगवान या ईश्वर के बारे में बात नहीं करना चाहिए क्योंकि यह आपके लिए फिरहाल सच नहीं है आप सिर्फ एक चीज कर सकते है आप न (अपने से) और (न दूसरों से) ही झूट बोले| आप सिर्फ एक चीज करें आप लोगों से मीठा बोलने लगे आप देखेंगे की आपके आसपास का वातावरण बिलकुल बदल गया है लोगों आपसे अच्छे से बात करने लगे है|
लेकिन आप सिर्फ एक व्यक्ति के साथ और वह “आप खुद हैं” कम से कम अपने से – सीधी, साफ़ और सच बोले और बोलना चाहिए|
मन हमेशा उलझन ही पैदा करता है अगर यह बिलकुल साफ़ और स्पष्ट होगा तो इसका मतलब है यह कट्टर है इसलिए इसको उलझन में ही रहना चाहिए भ्रम में रहना ही इसकी सुन्दरता है क्योंकि वह कुछ भी समझ नहीं पता लेकिन यह मन सब कुछ इकठ्ठा कर सकता है और उस पर विचार कर सकता है|
अगर आप चेतन रूप से अपने मन को बढाना जानते है अगर आप जागरूक होकर अपने मन को संभालना जानते है तो यह मन बहुत ही ज्यादा लाभदायक और आश्चर्य रूप से उपयोगी औजार होगा| आप जितने बुद्धिमान होंगे उतने ही हैरानी और भ्रम में होंगे आप जीवन को जितनी गहराई से देखेंगे उतने ही भ्रम में पड़ जायेंगे आप जीवन के हर पहलु को समझे सिर्फ एक दिशा में देखना-सोचना सही नहीं है इससे आप या तो मुर्ख होगे या कट्टर इसलिए भ्रम में रहना अच्छी बात है|
अगर आपका दिमाग भ्रम में नहीं है इसका मतलब आपका दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा है यह रूक गया है तो आपको और सीखना होगा आपको लगातार अधिक से अधिक जानकारी लेते रहना होगा जिससे आपका मन भ्रम में आ जाए इसका मतलब होता है अभी संभावना बाकि है| इसलिए इस समय ऐसी चीजो की कल्पना मत करिए जो सत्य नहीं है|
भ्रम इसलिए होता है क्योंकि आजतक कोई भी इस ब्रम्हाण्ड या इस प्रकृति को समझ नहीं पाया है इसलिए भ्रम होता है आप जीवन बन सकते है और जीवन को जान भी सकते है लेकिन जीवन को कभी समझ नहीं सकते (कभी भी नहीं) लेकिन अगर आप जीवन बन जायें या दुसरे शब्द में अगर आप जीवन को दृष्टा भाव से देखे, हर पल जागरूक रहें तो आप जीवन को असली रूप में जान जायेंगे| तो जीवन को जानने का एक ही तरीका है खुद जीवन बन जाना|
क्या आप जीवन है?– नहीं| आप विचारों, भावनाओं, मोह माया, दुःख और सुखों का एक जंजाल है इसलिए आप जीवन को जीवन के रूप में नहीं देख रहें आप जीवन को अपने द्वारा संचित विचारों और भावनाओं में देखते है यह आपका जीवन है|
जीवन पहले आया की आपका विचार पहले आया? – नहीं जीवन से पहले आपका विचार नहीं हो सकता पहले जीवन है फिर विचार है| आप जीवित है इसलिए आप सोच सकते है|
सद्गुरु के विचार

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प्रश्न 10 : मौन रहने के फायदे या कम बोलने के फायदे और नुकसान क्या है?
उत्तर 10 : “मौन की ताकत” स्पष्ट रूप से मौन का संबंध मजबूरी से चेतनता की और बढ़ने से है जब कोई सचेतन होना सीखता है और मजबूर करने वाले चीजों से दूर होना चाहता है तो वह स्पष्ट रूप से शांत या मौन रहना चाहता है अब मौन का मतलब अपना मुँह बंद करने से नहीं है आप मौन से बोल सकते है, गाना गा सकते है, नाच सकते है, खुशियाँ माना सकते है, अद्भुत चीजो को अनुभव कर सकते हैं मौन एक बुनियादी चीज है यह है मौन की शक्ति और ध्वनि सतह पर है पानी जब किसी चीज से टकराती है तो आवाज होती है गहराई में कोई आवाज नहीं होती है|
उसी प्रकार मौन में कोई ध्वनि नहीं है लेकिन सतह पर ध्वनि का एक मकड़ जाल है ध्वनि नहीं होना मतलब प्रति ध्वनि भी नहीं होगा ध्वनि है तभी जीवन भी है ध्वनि है तभी जीवन भी है तभी यह श्रृष्टि भी है यानि सम्पूर्ण जगत ध्वनि पर आधारित है एक आयाम जो दुनिया से परे है उसे निशब्द कहा जाता है यह किया नहीं जा सकता आप यह बन सकते है|
मुँह बंद कर लेना कुछ नहीं बोलना मौन नहीं है मौन होना और मौन का अभ्यास करना दोनों में अंतर है मौन का धीरे-धीरे अभ्यास करते रहने से आप मौन हो जायें कुछ स्थिति में आप गाते समय भी आप मौन हो सकते है के लेवल पर लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है|
मौन होने का अर्थ है स्थिर हो जाना एक शेर शिकार करते समय स्थिर हो जाता है पढाई भी स्थिर शांत और एकाग्र हुए बिना अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता| जब इन्सान की नज़र जिन्दा रहने से परे की चीज पर पड़ती है तभी वह स्थिर रहने के बारे में सोचेगा| यहाँ वह देखता है की यह अन्दर कितना जटिलता, कितना भयानक रूप लिया हुआ है इस शरीर और मन को स्थिर करने के लिए कुछ कोशिश जरुरी है|
जब आप स्थिर होते हैं तो स्थिरता में आप परे के आयाम से जुड़ जाते हैं एक बार उसके संपर्क में आने के बाद बीमारी, चिंता, मुसीबत, दुःख आदि ऐसा कुछ भी नहीं होता सब दूर हो जाता है| हर इन्सान को स्थिर होने का प्रयास करना ही चाहिए नहीं तो मरने के बाद प्राण बहुत मुश्किल से शरीर छोड़ता है अगर आप स्थिर हो जातें है तो यह बहुत आसान हो जाता है और यह बहुत जरुरी भी है और यह तभी होगा जब आप मौन होंगे|
आप एक काम करें आप एक घंटे में अगर एक हजार शब्द बोलते है तो इसको 500 कर दीजिये आप देखेंगे आपके जीवन में बहुत फर्क पड़ेगा आप एकदम से सतर्क और जागरुक हो जायेंगे| एक घंटे में आप जितना शब्द बोलते हैं बस उसको आधा कर दें आप आश्चर्य रूप से सतर्क हो जायेंगे आपके जीवन में परिवर्तन आने लगेगा यह है शांत रहने के फायदे इसको समझने|
सद्गुरु के विचार

सद्गुरु के विचार
प्रश्न 11 : अच्छे लोगों के साथ ही बुरा क्यों होता है?
उत्तर 11 : कर्मो का फल the law of karma अच्छे लोगों के साथ ही बुरा क्यों होता है? सवाल जो आपको हैरान कर देते हैं लोग सोचते हैं- अच्छा करों तो घूमके हमारे पास आएगा और बुरा करों तो घूमके हमारे पास ही आएगा? ऐसा होता है क्या? क्या कर्मो का फल मिलता है? यह कैसे मिलता है? मेरे साथ ऐसा क्यों होता है? मिलता भी है की नहीं? मैं ही क्यों? या कर्म क्या है यह हमारे भाग्य पर कैसे काम करता है? किस-किस रूप में कहाँ-कहाँ से मिलता है और किस-किस स्तर पर मिलता है? इस बात को समझने की कोशिश करेंगे|
क्या आज हम जो कुछ भी कर रहें है या करते हैं क्या वह हमारे कर्मो के वजह से है? क्या हमारे माँ-बाप के वजह से नहीं है? क्या उसमें अध्यापक का महत्व नहीं है? क्या उसमे समाज का कोई भूमिका नहीं है? सबका भूमिका है अलग-अलग स्तर पर|
नकारात्मक चीज के लिए एक्शन की जरूरत नहीं है लेकिन सकारात्मक चीजों को बढ़ाने के लिए एक्शन की जरूरत होती है| नकारात्मक अपने आप काम करता है सकारात्मक को ढकेलना पड़ता है|
गीता के मुताबित हमें हमारे पिछले जन्मों के कर्मो के मुताबित फल मिलता है अगर ऐसा है तो वह 7-8 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म होता है तो क्या यह उसके पिछले जन्म के कारण है वह छोटी सी बच्ची जो भगवान का रूप है जो बिलकुल नादान और मासूम नहीं है क्या?
इसको ऐसे समझो जो सब करते है उसका असर एक पर आता है और जो एक करता है उसका असर सब पर आता है| क्या हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है? क्या हमारे माँ-बाप की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है? क्या हमारे गुरु-अध्यापक की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है? हमारे नेता विधायक-सांसदों का कोई ज़िम्मेदारी नहीं है क्या वह समाज के निर्माण में योगदान नहीं करते? हम कैसा समाज बना रहें है एक शिक्षित समाज, चोर-उचक्कों का समाज, गुंडों का समाज कैसा समाज बना रहें है हम जैसा बीज बो रहें है वैसा ही फसल काट रहें है|
तो हमें यह समझ में आ गया की यह सब हमारे आसपास के माहौल का परिणाम है अब सवाल उठता है इसको कैसे ठीक किया जाए? क्या आप सबको बदल सकते हो?-No क्या आप खुद को बदल सकते हो? -Yes| आपको देखकर हो सकता है लोग खुद को बदले| जब आप खुद को बदलोगे तभी आप लोगों से बदलने की उम्मीद कर सकते हैं| हम खुद गलत कर रहें है, बेईमानी कर रहें है और झूट बोल रहें है और उस बच्चे को सीखा रहें है झूट नहीं बोलना चाहिए यह ऐसे काम नहीं करता है| हम खुद अपने फायेदे के लिए औरों को नुकसान करते है और दूसरों को सीख देते है ईमानदारी का पाठ पढ़ाते है|
हम जो कुछ भी कर रहें उसके पीछे पूरी की पूरी दुनिया हैं हम सब एक दुसरे पर आश्रित है (जाने या अनजाने रूप में) हम अपने माँ-बाप के साथ जो करते हैं वही हमारे बच्चे हमारे साथ करते हैं क्योंकि वह वही सब देखते हुए बड़े हो रहें है तो उनकी भी मानसिकता वैसी ही बनेगी सब कुछ interconnected है अब इसका हाल क्या है? क्या करें हम?
जैसे ही इस सच को देख लेते हैं आप स्तब्ध और शांत हो जातें है इस दुनिया में हर तरह के लोग है अच्छे-बुरे हर तरह के लोग हैं अगर हम बुरा रास्ता चुनते है तो क्या यह दुनिया और बुरी नहीं हो रही है? हम आसपास का माहौल और गन्दा नहीं कर रहें है इसको ऐसे समझो जो सब करते है उसका असर एक पर आता है और जो एक करता है उसका असर सब पर आता है प्रश्न जो आपको वास्तविकता के बारे में सोचने पर मजबूर करते हैं
यानि एक अध्यापक पढ़ता है तो सारे बच्चों पर इसका असर पड़ता है क्या वह पूरी दुनिया नहीं बदल रहा? दुसरे तरफ से एक गन्दी मछली पुरे तालाब को नहीं ख़राब कर रही है|
मतलब पूरा माहौल ख़राब होता है इसका असर सब पर होता है क्योंकि हम सब उसी तालाब या समाज का एक हिस्सा हैं| सवाल जो आपको दो बार सोचने पर मजबूर कर देते हैं इसलिए अगर आपको अलग परिणाम चाहिए तो अलग रास्ता अपनाना ही होगा अगर हम अपनी दिशा नहीं बदलेंगे तो अपनी दशा नहीं बदलेगी|
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प्रश्न 12 : मंत्रोच्चारण का हमारे मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर 12 : मंत्रोच्चारण का हमारे मन पर क्या प्रभाव पड़ता है? इस सवाल का उत्तर बहुत सीधा सा है – मन्त्रों का हमारे मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है| यह मंत्र क्या है? – यह ध्वनि है “लयबद्ध आवाज़” शब्द और ध्वनि में अंतर होता है ध्वनि ब्रह्मांड के सबसे शक्तिशाली मंत्र है ध्वनि से हम ब्रम्हाण्ड को छु सकते हैं शब्दों से हम मनुष्य के मनोवैज्ञानिक संरचनाओं में प्रवेश करते हैं मंत्र ध्वनियों का मेल है अगर आप मंत्र उच्चारण की विधि को समझकर बिलकुल शुद्ध रूप से मन्त्रों का उच्चारण करतें है तो यह आपके लिए श्रृष्टि का प्रवेश द्वार खोल देगा|
एक सवाल है क्या मंत्र उच्चारण का हमारे मन पर क्या प्रभाव पड़ता है? तो इसका उत्तर है मंत्र उच्चारण का हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है इस प्रश्न के साथ आप एक और प्रश्न का उत्तर भी आप समझ जायेंगे मैं कौन हूँ अपने आपको जानो यह प्रश्न भी इससे ही जुड़ा हुआ है|
असल में मन्त्रों का कोई अर्थ नहीं होता है लेकिन लोगों को अर्थ के बिना मंत्र ही नहीं समझ में आता इसलिए मंत्रो को अर्थ दे दिया गया है| असल में मंत्र का कोई अर्थ नहीं होता है यह तो “शुद्ध ध्वनि होता है” शब्दों का अर्थ मनुष्य के दिमाग में बनी है और ध्वनि श्रृष्टि का सार है पूरी ब्रम्हाण्ड ही ध्वनि है कंपन है जिसे गूंज कह सकते है ध्वनि श्रृष्टि का एक मूलभूत पहलु है अगर ध्वनि पर आपकी पकड़ अच्छी है तो इसका मतलब है आपकी पकड़ पुरे ब्रम्हाण्ड पर है|
श्रृष्टि क्या है? श्रृष्टि ध्वनिओं का एक जटिल सम्मलेन है| यह श्रृष्टि का खाका है इसको सिर्फ अनुभव किया जा सकता है अपने आत्मा के गहराइयों में जाकर, इसे विश्व का सबसे बड़ा मंत्र कौन सा है? भी कह सकते है| लेकिन शब्द मनुष्य द्वारा बनाया गया है इसके कई अर्थ हो सकते है अलग-अलग भाषा में और एक ही शब्द के पर्यायवाची शब्द, विलोम शब्द और कई चीज हो सकते है|
क्योंकि शब्द इन्सान द्वारा बनाया गया है आपस में तालमेल बनाने के लिए, लेकिन ध्वनि तो प्राकृतिक है यह पुरे ब्रम्हाण्ड में व्याप्त है यह श्रृष्टि का हिस्सा है अगर आप ध्यान में जायें तो आप पाएंगे की पूरी श्रृष्टि स्पंदित हो रही है इसका अनुभव सिर्फ एक ध्यानी या ऋषि मुनि ही कर सकते है|
अगर आप जीवन को समझना चाहते है तो ध्यान देना सीखे जिन्गुर की आवाज को सुनिए, चिड़िये के चेहचाहट को सुने, बदल के गर्जना को ध्यान से सुने, अपने शरीर में हो रहे कंपन को ध्यान से सुने अगर आप यह एक चीज़ करने लगे तो आपकी पूरी जिन्दगी बदल जाएगी| यह आपको अभिभूत कर देगी|
इन्सान अधिकतर समय बोलना चाहते है वह हर चीज़ का अर्थ निकलना चाहता है वह ध्यान नहीं देना चाहता इसीलिए लोग परेशान रहते है क्योंकि वह शब्दों के जाल में उलझ जाते है वह इससे निकल ही नहीं पाते जो ज्यादा बात करते हैं उसको यह बात समझना चाहिए की अर्थ निरर्थक है लेकिन ध्वनि स्थिर है यह श्रृष्टि का मूल है यह श्रृष्टि का आधार है|
बिना माला के जप कैसे करें? मंत्र को बोलना नहीं है बस इसका जाप करना है इसका मतलब है जाप ध्वनि का होता है अर्थ का नहीं भाषण का अर्थ होता है वाक्य का अर्थ होता है लेकिन जाप से अर्थ का कोई संबंध नहीं है जाप तो बस एक ध्वनि है गूंज है कंपन है| किसी भी मंत्र को कोई अर्थ नहीं देना चाहिए इसको तो बस प्राकृत से तालमेल बनाने के लिए बोला जाता है ताकि इन्सान ब्रम्हाण्ड से संपर्क बना सके| मंत्र का मतलब है अपने आपको ध्वनि में शामिल करना यही मंत्र का मतलब है|
मंत्र क्या है? मंत्र एक क्रम है श्रृष्टि का द्वार खोलने का एक जरिया है अगर आप इसको बिना अर्थ को समझे बार एक लय से लगातार बोलते जाते हैं तो कुछ समय के बाद आप श्रृष्टि से तालमेल बना लेंगे| अर्थ पर ध्यान नहीं देना ये इन्सान का दिया हुआ एक शब्द है याद रखें हम जो भी बोलते है उसका श्रृष्टि से कोई लेना-देना नहीं है यह शब्द सिर्फ इन्सान को समझने के लिए है| इसका ब्रम्हाण्ड से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है ध्वनि ही इस पुरे ब्रम्हाण्ड में व्याप्त है हर जगह ध्वनि ही ध्वनि है गूंज ही गूंज है कंपन ही कंपन है जरूरत है सिर्फ अनुभव करने की|
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प्रश्न 13 : जन्म और जीवन क्या है?
उत्तर 13 : यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है जन्म और जीवन क्या है? जीवन जीना यह तो हर प्राणी में है लेकिन मनुष्य जीवन का सार क्या है? या मनुष्य के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है? या जीवन क्या है परिभाषा क्या है? जीवन का अर्थ क्या है? हमें जीवन जीने का तरीका समझना होगा अगर हम नहीं समझते तो हम जीवन जीने के लिए अयोग्य हो जायेंगे यानि अपनी जीने की काबिलीयत खो देंगे|
हम जानते है पूरी दुनिया में हर दिन लगभग हजारों करोड़ो लोग मारते होंगे और हजारों करोड़ो लोग जन्म भी लेते हैं और हर इन्सान जो मरता है वह किसी न किसी का प्रिय होता है तो क्या हमें किसी के मरने पर दुःख नहीं होना| होना चाहिए| समझने की बात यह है की यह जीवन ऐसे ही चलता है हमने जीवन से अपने भाव को जोड़ दिया है इसलिए यह टूटेगा जब कोई मरेगा| अगर हमारे दोस्त-यार सब अमर हो जायें तो हम उन्हें कभी नहीं झेल पाएंगे इसलिए प्रकृति के नियम के मुताबित मरना तो हर हाल में है|
हम बस यह चाहते है की हर कोई अपने जीवन का चक्र पूरा करके मारें लेकिन जीवन का पूरा चक्र क्या है? या मनुष्य जीवन क्या है?
मनुष्य का जीवन अनमोल है और इसे अपनी प्राकृतिक (उम्र) तक ही जीना चाहिए जो भी उम्र हमारा निर्धारित उम्र है 60-70-80-90-100 आदि उससे ज्यादा नहीं, नहीं तो हम अकेले पड़ जायेंगे हमें कौन झेलेगा इसलिए हमें प्रकृति के खिलाफ नहीं जाना चाहिए अब मेरा जीवन क्या है? हम कितने साल हम जीयेंगे? यह सब हम नहीं निर्धारित करेंगे हमारे जीवन का अस्तित्व क्या है? या किस हिसाब से रहेगा|
हो सकता है हमारा मृत्यु बीमारी से हो? अकाल मौत हो? गोली से हो, जाने में हो अनजाने में हो या अन्य किसी भी प्रकार से हो जैसे ही यह जीवन शरीर छोड़ता है हमें उस फैसले का सम्मान करना चाहिए यह नहीं की गुर्दा बदल दीजिये लीवर बदल दीजिये (उम्र पूरी होने के बाद भी) अगर कम उम्र है तो आप बिलकुल बदल दें| यह जीवन जीने का बुनियादी चीज है इसको प्रकृति के साथ ही घटने दें|
हम क्यों रोते है? किसी के मरने से हम दुखी नहीं होते “हम दुखी इसलिए होते है जो आपका था अब नहीं रहा” जैसे पिता का पेंशन हो सकता है प्रोपर्टी, जायदाद लेके या सामान लेके हम दुखी होते है देखिये जो बच्चा अभी आपका है आप उसको अपना मत मनो क्योंकि वह अपना जीवन लेके आया है अपना कर्म करेगा और चला जायेगा फिर दुसरे के लिए क्या रोना? हैं न| वह तो अपने दुसरे योनि में चला जायेगा अतः हमें इसपर दुखी या ख़ुशी नहीं जाहिर करनी चाहिए रिश्ते के रूप में यह सही है लेकिन प्राकृतिक तालमेल के हिसाब से यह सही नहीं है|
श्रृष्टि का यही नियम और तरीका है या तो आप प्रकृति के साथ तालमेल बनाके चलिए या अपना ही रोना रोइए और दुखी होइए यह दो ही तरीके से लोग जीते है| “इन्सान का सबसे जरुरी चीज़ है अपने परम प्रकृति तक पहुँचना” यही सबसे जरुरी चीज है बाकि सब बेकार है बकवास है| तो सवाल है मनुष्य जन्म किस कर्म के कारण सर्वश्रेष्ठ है इसका सीधा सा जवाब है अगर इन्सान अपने मुक्ति को प्राप्त कर ले तो यह उसका जीवन सफल माना जायेगा|
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प्रश्न 14 : अध्यात्म क्या है?
उत्तर 14 : सद्गुरु के सब्दों में अगर आप एक लाइन में समझना चाहें की अध्यात्म क्या है – “बस जीवन के प्रति सतर्क हो जाओ” इस एक पंक्ति में पुरे ब्रम्हाण्ड का रहस्य छिपा है इसी में अध्यात्म के लाभ भी छिपे हैं अध्यात्म तत्व क्या है? या अध्यात्म विद्या क्या है? इसके रहस्य क्या हैं और आध्यात्मिक जीवन क्या है? इसके बारे में भी विस्तार से समझा जा सकता है|
एक बात तो निश्चित है की हम सब जीवन के बकवास विचारों से घिरें है चारों तरफ हर तरफ हर जगह फालतू बातें, अनुपयोगी विचार, मार-काट, लड़ाई-झगडा, अशांति और भय का वातावरण है हमारा दिमाग कोलाहल से भरा है इसको शांत करने की जरूरत है अशांत मन से आप कहीं नहीं पहुँच पाएंगे इससे छुटकारा पाने का सिर्फ एक रास्ता है आप जीवन या प्रकृति के संपर्क में आ जाइए यही अध्यात्म है यही जीवन है|
सकारात्मक विचार हो या नकारात्मक विचार दोनों ही बेफिजूल है जो दोनों से परे है वह जीवन है जीवन का मतलब है “प्रकृति से जुड़ जाना” प्रकृति से जुड़ने का मतलब है सब मोह माया के जंजाल से मुक्ति| जीवन के हर दुःख-सुख से मुक्ति ही अध्यात्म है कितना पवित्र और कितना आसान चीज है लेकिन इसको लोग कितना जटिल बना दिये हैं लोग अध्यात्म को पता नहीं क्या-क्या बना दिये है जिसे दर्शन-शाश्त्र, संस्कृति, जन्म-मरण, आत्मा, परमात्मा, जीव, वेद-पुराण, मुक्ति, स्वर्ग, सृजन-प्रलय, ब्रम्हाण्ड, जीव, ईश्वर इत्यादि ना जाने क्या-क्या बताया गया है|
लेकिन positive thoughts यानि सही सकारात्मक विचारों से छोटी-बड़ी चीजो को बदला जा सकता है व्यकित्व बदलना अपने कपड़े बदलने जैसा ही है और यह सब संभव है अपने विचारों के ख्याल से लेकिन अगर आप अपने मौजूदा विचारों से परम तत्व को प्राप्त करने की कोशिश कर रहें तो यह समय की बर्बादी है क्योंकि विचार उसको गढ़कर एक दूसरा रूप दे सकता है सत्य को बनाया नहीं जा सकता अगर आप उसको बना रहें है तो आप उससे झूट बोल रहें हैं| सत्य तो सत्य है उसको किसी सहारे की जरुरत नहीं है ना ही उसको गढ़ा जा सकता है या बनाया जा सकता है|
हम अपने मन में कल्पना से बहुत कुछ गढ़ लेते है जैसे चित्र-आकृति-रूप-रंग इत्यादि इसलिए हम सत्य से दूर हो रहें है| जीवन क्या है? जीवन एक सराय है जहाँ हम कुछ समय के लिए ठहरने आये हैं फिर अगले जन्म में चले जायेंगे जब तक की हमें अपना लक्ष्य न मिल जाए यानि “मुक्ति”| मुक्ति का मतलब क्या है? या आत्मा को मोक्ष कब मिलता है? मुक्ति का अर्थ है जन्म-मरण से छुटकारा इसी को मोक्ष दर्शन भी कहते हैं|
हर कोई जीवन को गहराई से जीना चाहता है इस विषय पर सबका अलग-अलग विचार है कोई सोचता है ज्यादा पैसे से ज्यादा अच्छा जीवन जिया सकता है या एक अच्छा परिवार होने से जीवन को अच्छे ढंग से जिया जा सकता है या कुछ लोग सोचते है सफलता मिलने से अच्छा जीवन जिया जा सकता है सबका दृष्टिकोण अलग-अलग है लेकिन सभी जीवन का एक बड़ा हिस्सा पाना चाहते है और जीवन का बड़ा हिस्सा वहाँ नहीं है जहाँ हम खोज रहें है|
जीवन का बड़ा हिस्सा तो अपने अन्दर है मौन में है जहाँ शांति ही शांति है ऐसा शांति जो आपको जन्म-जन्म से मुक्ति दिला दे| आप अचल हो जायें स्तिर हो जायें बस यही एक मात्र अचल तरीका है परम तत्व से तालमेल बनाने का हर किसी को जीवन को गहराई से अनुभव करना सीखना ही चाहिय| तभी यह जीवन सफल हो सकता है|
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प्रश्न 15 : सांस से जीवन का क्या संबंध है?
उत्तर 15 : यह जीवन क्या है? यह एक गंभीर विषय है मनुष्य के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है? जीवन हमारी साँस से जुड़ा है जब तक साँस आ जा रही है तब तक ठीक है जैसे ही यह रूक जाती है हमें लोग मिट्टी कहने लगते है हमारे जीवन में साँस का एक महत्वपूर्ण स्थान है यह साँस हमारे शरीर के अन्दर चल रहें हर क्रिया-भाव और विचारों से सीधा संबंध होता है|
हमारे शरीर के अन्दर और बाहर कोई भी हल्की सी भी परिवर्तन आने पर सबसे पहले इसका असर हमारे साँस पर पड़ता है इसको सिर्फ देखते रहने से हम इस जीवन को पूरी तरह जान जायेंगे और परम ज्ञान को प्राप्त हो सकते हैं|
हमारे जीवन का हर घटना का सीधा संबंध हमारे सांस से है| भगवान बुद्ध ने भी यही सिखाया है अपने विपस्सना में यह 100 प्रतिशत सत्य है|
इसको उद्धहरण से समझते है जब भी आपको बहुत अधिक गुस्सा आता है तो आपका श्वास तेज हो जाता है लेकिन ठीक उसी समय अगर आप अपने साँस को देखते रहें तो कुछ ही समय में आपका गुस्सा शांत हो जाता है अगर आप साँस को आधा कर लें (एक मिनट में 30 के जगह 15 कर लें) तो आप प्रकृति में हो रहें घटनाओं को समझने लगेंगे|
इस स्थिति में आने पर आप जानवर के भाव-विचारों को समझने लगेंगे साँस के और सूक्ष्म होने पर पेड़ो के भाव को समझने लगेंगे सांसो के बिलकुल कम हो जाने पर हम प्रकृति के बेजान चीजो को समझने लगते हैं मसलन पत्थर, मिट्टी, पहाड़, नदी हर चीज़ को समझने लगते है और फिर ब्रम्हाण्ड का हर चीज़ हर रहस्य खुलने लगता है| निरंतर और नियमित प्रयास से आप अपने श्वास पर नियंत्रण पा सकते है|
जब आप ध्यान में जाते है तो आप धीरे-धीरे शांत होने लगते है शरीर को कम उर्जा की जरुरत होती है इसलिए श्वास भी कम होती जाती है यह प्रकृति रूप से होना चाहिए निरंतर प्रयास से इसे प्राप्त किया जा सकता है एक बार साँस शांत हो जाती है तो विचार भी शांत हो जाती है सब रूक जाता है उसी समय आप प्रकृति से जुड़ने लगते है और आपको उसका बोध होने लगता है|
जीवन स्तर क्या है? और इसको कैसे ऊपर उठाया जा सकता है?
अध्यात्म के नज़र से ज्ञान कोई पाने की चीज़ नहीं है यह तो अनुभव करने की चीज़ है यह हमारे अन्दर सो रहा है “ज्ञान को” जगाने की जरुरत है यही ज्ञान है जो भी इन्सान अपने आप को समर्पण के साथ इसमें लगके इसको प्राप्त करने का कोशिश करता है वह निश्चित रूप से सफल होता है और ब्रम्हाण्ड से जुड़कर अपने जीवन को सफल करता है फिर प्रकृति ही गुरु के रूप में काम करने लगता है|
जितने भी महान गुरु-संत-महात्मा-अवधूत हुए हैं सबकी उर्जा इस जगत में विद्यमान है और जब कोई ध्यानी ध्यान करता है तो उनको यह अवधूत उनका मार्ग दर्शन करते है और ऊपर से और ऊपर उठाते है|
प्रकृति से जुड़कर अपने सारे प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने का जैसे अचानक मौत कैसे होती है?, मौत कैसे आती है?, समय से पहले मौत हो जाना?, क्या मृत्यु का समय निश्चित है?, मृत्यु के बाद का सत्य?, सांस से जीवन का संबंध? आदि हर प्रकार का प्रश्न और उसका उत्तर अपने आत्मा के गहराई में जाने से प्राप्त किया जा सकता है| यह ही deep questions about life है|
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प्रश्न 16 : कुंडलिनी चक्र क्या है?
उत्तर 16 : क्या इन्सान पूरी तरह इन्सान है? एक पूरी तरह का इन्सान वह होता है जो अन्दर बाहर दोनों तरह से पूरी तरह खिला हुआ हो अपनी पूरी क्षमता के साथ| लेकिन इन्सान को पूरी तरह इन्सान बनने के लिए एक अच्छा माहौल बनाना होगा| अगर इन्सान में कुण्डलिनी जागरण के लक्षण
नहीं दिख रहें तो वह इन्सान “इन्सान” ही नहीं|
कुण्डलिनी जागरण में कितना समय लगता है? और कुंडलिनी चक्र क्या होता है?
सदगुरुदेव जग्गी वासुदेव बताते है शरीर में कुल 114 चक्र होते है मुख्या रूप से (और भी चक्र है जिस पर काम किया जा सकता है) लेकिन यह चक्र शरीर के अन्दर मौजूद नाढ़ी या उर्जा मार्ग का मिलन बिंदु है यह जो मार्ग है वह हमेशा त्रिकोण मार्ग में ही मिलते है लेकिन है गोल “ध्यान रहे उर्जा हमेशा गोल आकर में ही फैलता है” जैसे उदहारण के लिए अगर आप पानी में किसी भी आकर का पत्थर डाले पानी हमेशा गोल आकर में ही चारो दिशाओं में फैलेगा|
गुरूजी आगे बताते हैं 114 चक्रों में 2 चक्र शरीर के बाहर होते है शरीर में 112 चक्र होते है इनमे से 4 के बारे में ज्यादा कुछ नहीं करना होता है मतलब अगर बाकि के चक्रों पर काम करें तो यह चार चक्र अपने आप जागृत हो जाते है इसपर काम करने की जरूरत नहीं होती तो मुख्य रूप से 108 चक्रों पर ही काम किया जा सकता है|
मूलाधार चक्र जागरण के लक्षण
कुंडलिनी जागरण का आसान तरीका है आपके मूलाधार चक्र से है इसके जागृत होने पर शरीर में सकारात्मक उर्जा बहने लगाती है स्फूर्ति और ताजगी और उत्साह उमंग में शरीर बहने लगता है मूलाधार ही मूल चक्र है यहीं द्वार है ब्रम्हाण्ड में प्रवेश करना का प्रकृति से तालमेल बनाने का यहीं से योग शुरू होता है योगाभ्यास से इसको जगाया जा सकता है प्राणायाम के नियमित अभ्यास से इसको जगाया जा सकता है अन्य भी रास्ते हैं|
ध्यान के 114 तरीके है लेकिन आदियोगी ने ज्ञान प्राप्त करने के 112 तरीके बताए हमें सिर्फ इन्हीं पर काम करना होता है बाकि अपने आप खुल जाते है यानि हमें सिर्फ 108 पर ही काम करने है बाकि 4 चक्र अपने आप होंगे|
अब समझिये ब्रह्मांड की संरचना या ब्रह्माण्ड का रहस्य इस 108 संख्या से कैसे जुड़ा है| 1) सूर्य से पृथ्वी की दुरी सूर्य के व्यास की 108 गुना है 2) चाँद और पृथ्वी की दुरी चाँद के व्यास की 108 गुना है और भी कई अनुपात है 108 इस श्रृष्टि के रचना में यही कारण है हमारे शरीर में 108 चक्र होते है अगर हम किसी और ग्रह पर होते तो यह संख्या कुछ और होते|
आदियोगी शंकराचार्य ने स्पष्ट रूप सा कहा है अगर इन्सान को और विकसित होना है तो हमें अपने चक्रों पर काम करना ही होगा तभी बड़े बदलाव हो सकते है|
मूलाधार चक्र जागृत होने के फायदे
अगर इन्सान सिर्फ अपने 21 चक्रों पर ठीक-ठीक काम करके जागृत कर ले तो आप पूर्ण इन्सान कहलाएंगे आपमें कोई कमी नहीं है बाकि का जो चक्र है वह प्रकृति के अन्य-अन्य बोध खोलती है जैसे आप उड़ने लगेंगे, पानी पर चलना या अन्य अद्भुत, अकल्पिनीय, अविश्वनीय प्रतीत होगा लगेगा तो सही रूप में सिर्फ 21 चक्रों को खोलने की जरूरत है एक पूरा जीवन और सम्पूर्ण जीवन जीने के लिए|
इसके ऊपर के आयामों पर अगर काम किया जा रहा है इसका मतलब है आप इन्सान नहीं है आप देवता के श्रेणी में आ जाते है| इन्सान अपने शरीर के इस अन्दर के आयामों में तबतक नहीं खिलेंगे जबतक जब तक आप एक सही वातावरण नहीं बनाते हैं|
63 सक्रिय होने का मतलब है आप संत बनाने लगे है अगर आपमें 84 चक्र सक्रिय है इसका मतलब है आप मानव से कहीं ऊपर हो गए है आप महामानव हो गए है अगर आप 114 चक्रों तक पहुँच गए इसका मतलब आप सम्पूर्ण हैं मतलब आप और ईश्वर एक हो गए है कोई फर्क नहीं है आप श्रीष्टिकर्ता हो गए हैं|
कुंडलिनी जागरण के फायदे और नुकसान
कुंडलिनी जागरण के नुकसान
- कुंडलिनी जागृत होने पर शरीर में इतना ज्यादा उर्जा प्रभावित होता है जो असहनीय होता है इसलिए इसको नियंत्रित करना जरूरी होता है|
- उर्जा को नियंत्रित नहीं करने पर यह एक खतरनाक रूप धारण कर सकती है जिससे मृत्यु तक हो सकती है|
- शरीर के अन्दर की उर्जा जब तक सुषुप्ति अवस्था में हैं तब तक यह कोई नुकसान नहीं करती लेकिन जैसे ही इसे जागा दिया जाए यह भयंकर रूप ले लेती है|
- इस असाधारण उर्जा को सिर्फ योग्य गुरु द्वारा ही नियंत्रित किया जा सकता है|
- मूलाधार चक्र खुलने का मतलब 21 चक्रों का खुलना|
- मूलाधार चक्र खुलने का मतलब जीवन में असंतुलन आना|
- बिना तैयारी के कुंडलिनी जागृत का अभ्यास मौत को दावत देने का बराबर है लेकिन ध्यान के अभ्यास से धीरे-धीरे इसपर विजय प्राप्त किया जा सकता है और यह अत्यन्तं ही लाभदायक है|
कुंडलिनी जागरण के फायदे
- सब पहले तो कुंडलिनी जागृत होने पर इतनी उर्जा बहती है की इसको नियंत्रित करना बहुत बड़ी बात होती है|
- लेकिन अगर एक बार जागृत कुंडलिनी को नियंत्रित कर लिया जाए तो दुनिया में इससे बड़ा आनंद और सुख दूसरा कोई नहीं|
- इसमें पुरे ब्रम्हांडीय शक्ति समाई हुई है|
- मन स्थिर और शांत हो जाता है|
- इन्सान अपने पांचो तत्व पर नियंत्रित पा लेता है जिससे यह शरीर बना है|
- इस स्थिति में साधक श्रृष्टि से सूक्ष्म स्तर पर जुड़ जाता है|
- यहाँ से मानव महामानव बनने की अपनी यात्रा प्रारंभ करता है|
- इन्सान की बुद्धि बहुत तेज हो जाती है स्मरण शक्ति कुशाग्र हो जाती है|
- कुल मिलकर साधक मानव से महामानव की और अग्रसर होता है|
कुण्डलिनी जागरण के समय शरीर में दर्द क्यों होता है?
कुंडलिनी जागरण के समय शरीर में उर्जा प्रवाह होता है जो मुख्य रूप से मूलाधार चक्र से प्रविष्ट करता है और ऊपर चढ़ते हुए सरे चक्रों को भेदते हुए सहश्त्र चक्र तक पहुँचता है इसलिए हमें शरीर में दर्द का एहसास होता है प्रचण्ड गर्मी का एहसास होता और एक अलग ढंग का अनुभव मिलता है| मन शांत हो जाता है शरीर आत्मा मन पूरी पवित्र हो जाता है सारी नकारात्मक भावना दूर हो जाती है और शरीर का एक अद्भुत आभा मंडल बन जाता है|
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प्रश्न 17 : सफलता पाने के लिए क्या करें है?
उत्तर 17 : सफलता पाने के लिए सिर्फ एक चीज करें “ध्यान दे” ध्यान से चीजो को देखें जब आप किसी चीज को देखें तो ध्यान से देखो इतना ध्यान लगा दो की आपको उसका एक-एक चीज समझ में आ जाए उसका विचार पढ़ लो वह क्या कहने वाला है क्या सोच रहा है इतना ध्यान दो|
यहाँ हम सफलता के लिए आवश्यक गुण सीखेंगे साथ ही साथ सफलता के मूल मंत्र और करियर में सफलता के उपाय लेकिन जो सबसे जरूरी है “लाइफ में सफल होने के लिए क्या चाहिए” इसको ध्यान से समझेंगे|
दुनिया में ऐसा कुछ नहीं जो आप नहीं जन सकते जरूरत है सिर्फ ध्यान देने की| लोग बहुत कुछ जानते हैं इसलिए वह कुछ नहीं जानते चूँकि वह जानते हैं इसलिए वह ध्यान नहीं देते, तर्क देते है अगर आप यह मन लो की आपको कुछ नहीं पता तो ध्यान देना आसान हो जाता है अब आप चीजो को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे|
जो नेतृत्व करते है जो मार्ग दर्शक होते है उनमें और सामान्य लोग में क्या अंतर है? जो अगुआ होता है वह कुछ ऐसा देख रहा होता है जो बाकि नहीं देख पा रहें होते है| सिर्फ ध्यान दो किसी भी चीज पर नहीं बस ध्यान दो ध्यान का अभ्यास करना ही पर्याप्त है जो केन्द्रित ना हो लेकिन जब आप केन्द्रित करें तो सब समझ में आ जायें अपने ध्यान को ऊपर उठाने और तेज बनाने पर ध्यान देना चाहिए|
आप चीजो को याद करने के लिए ध्यान मत दीजिये ध्यान दीजिये उसमें घुस जाने के लिए उसका सब कुछ जान जाने के लिए ध्यान दीजिये| आपके आस्तित्व का आधार ही ध्यान है अगर आप का ध्यान तेज है और बहुत तेज है तो आप उसमें सफलता पा सकते है यह ध्यान की ताकत है|
ध्यान को अगर हम तेज कर लेते है तो चाहे कंपीटीटिव एग्जाम में सफलता के उपाय हो या व्यापार एवं नौकरी में सफलता के उपाय या “किसी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए क्या करना पड़ता है” इस लक्ष्य को हम आसानी से प्राप्त कर सकते हैं|
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प्रश्न 18 : हम आत्महत्या क्यों करते है?
उत्तर 18 : यह जीवन आत्महत्या करने के लिए नहीं मिला है यह जीवन खुद को जानने के लिए मिला है|
आज पूरे दुनिया में हर मिनट 1 आत्महत्या होता है और यह बढ़ रहा है इसके पीछे का कारण जानने की जरूरत है| आत्महत्या के कई पहलू है सबसे महत्वपूर्ण कारण है “इन्सान का अन्दर से टूट जाना” जिसका कारण डिप्रेशन या बीमारी हो सकता है जिस वजह से वह टूट जाता है और आत्महत्या करता है|
लेकिन जीवन फिर भी चलता जाता है इसके पीछे का कारण क्या है? इसके कई कारण है सबसे बड़ा कारण है जीवन का अनुभव सुखद नहीं है जैसे हम अपने जीवन में कई बन्धनों में बंधे है पैसो का बंधन, परिवार का बंधन, नौकरी का बंधन, बच्चों के शादी का बंधन, उनके रोजगार का बंधन, शिक्षा का बंधन आदि कई चीजो का बंधन है इनमें से कुछ भी होता है वह आत्महत्या कर लेते है हम सब इससे घिरें हुए है यही मूल कारण है आत्महत्या है|
जो हमारे अन्दर है वह जीवन है और वह अपने आधार पर और प्रकृति के नियम के आधार पर चलता है और जो हमारे आसपास का समाज है वह अपने सिद्धांत पर चलता है| हम समाज के बिना नहीं जी सकते लेकिन जब समाज हमारे खिलाफ काम करता है तो हम दुखी होते है| और जब हमारे पक्ष में होता है तो हम आनंदित होते है|
हमारे पास एक मन है और यह सारा कुछ हमारे मन में चल रहा होता है अगर मन ही न हो, न कोई यादें हो तो कोई दुःख ही न हो| मन ही अपने आपको जीवन समझ बैठा है जबकि जीवन का दूर-दूर से मन का कोई संबंध नहीं है मन तो एक कल्पना है नाशवान चीजो को देख रहा है लेकिन जीवन तो जीवंत है वह हकीकत है उस पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता इसलिए हम दुखी होते है| बस जरूरत है अपने मन के घोड़े को अपने काबू में रखने की|
यह जो जीवन हम है यह अमीर होने के बारे में नहीं सोच रहा है यह अच्छा शान-औ-शौकत पाने के बारे में नहीं सोच रहा है यह मास्टर या डॉक्टर बनने के बारे में भी नहीं सोच रहा है यह एक मूलभूत जरूरत जरूर चाहता है| उसको चाहिए एक अच्छा पोषण मिले|
हम जीवन में सिर्फ अपने लिए ख़ुशी खोज रहें है दूसरों को दुःख पहुंचाकर जीवन ऐसे नहीं काम करता है गलत हम हैं और हम दूसरों को ठीक करना चाहते है हम अपने मन के कल्पना से जीवन को जी रहें है हमारी मानसिक प्रक्रिया पूरी तरह से जीवन पर हावी हो गई है| जीवन को जीवन के रूप में नहीं देख रहें है इसीलिए आत्महत्या हो रहा है|
जीवन को अपने कल्पना से ऊपर उठकर देखने की जरूरत है यानि जीवन को जीवंत रूप में या वर्तमान में जीना आ गया तो आत्महत्या करने का सवाल ही नहीं पैदा होता क्योंकि तब वह प्रकृति से अपने आपको जोड़ लेता है|
सद्गुरु के विचार

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प्रश्न 19 : मानव शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग कौन सा है?
उत्तर 19 : हम जीवन में कैसा महसूस करते हैं कैसे काम करते है? कैसा रहन-सहन है? हमारे विचार, हमारी भावना सब कुछ हमारे शरीर के रीड की हड्डी से जुड़ा है वह हमारे सारे गतिविधियों को संचालित करते है नियंत्रित करते है जो हमें परिणाम के रूप में दिखते हैं|
हम जो कुछ भी जानते है वह अपने अनुभव से किताब से या किसी से जानकारी प्राप्त किये है| क्या आप जानते है की रीड की हड्डी ही एक ऐसी चीज है जो हमें ब्रह्मांडीय तत्व से जोड़ता है आप जो कुछ भी जानते है वह सब कुछ रीड से संचालित हो रहा है|
हमारा पूरा सौर मंडल एक छोटा सा भाग है इस पुरे ब्रम्हाण्ड का, हमारे जैसे लाखो-करोड़ो सौर मंडल है इस ब्रम्हाण्ड में| जिसमें भारत एक छोटा सा देश है उत्तर प्रदेश एक छोटा सा राज्य है वाराणसी एक छोटा सा स्थान है जिसमें हम एक बालू के कण से भी छोटे जीव है|
अगर कोई इस प्रकृति को समझना चाहता है? या अपने आपको समझना चाहता है? तो उसको अपने रीड के हड्डी पर काम करना होगा|
हम जीवन को दो भागो में बाँट देते है एक अच्छा और दूसरा बुरा ऐसे में जीवन को समझना मुश्किल हो जाता है क्योंकि हम अपनी सीमा निर्धारित कर रहें होते है जो कल्पना पर आधारित होता है हमारा ज्यादातर ध्यान अच्छाई, प्रेम, सुख, सफलता, न्याय सकारात्मक चीजो के तरफ रहता है दूसरी तरफ नकारात्मक चीजो पर हम ध्यान नहीं देते है जो की पूरी तरह गलत है हमें इन दोनों से परे देखना है|
अपने नज़र में दुनिया को न बांटे- यह मेरा है यह मेरा नहीं है ऐसा ना करें इसके बजाय आप यह कहें यह सब कुछ मेरा है या कुछ भी मेरा नहीं है|
हमारे अनुभव(जो दुसरे पर आधारित है) हमें सुख और दुःख की अनुभूति देतें है यह मुख्य रूप से जीवन को चलाने का तरीका है दूसरी तरफ जब हम खुद के अनुभव(जो ध्यान पर आधारित है) के आधार पर जीवन को अनुभव करते है तो वह सही मायने में सुखद अनुभव होता है जिसमें कोई मिलावट नहीं होता है यह शुद्ध और पवित्र होता है|
लोग हमारे जीवन के बाहरी रूप में नफरत-द्वेष फैला सकते है लेकिन हमारे अन्दर कभी नहीं| हर चीज का एक सही सिस्टम होता है जिस प्रकार मोबाइल सिग्नल अपने नजदीकी टावर से जुड़कर आपके फ़ोन को जोड़ता है उसी प्रकार हमारे शरीर का रीड भी यही काम करता है यह एक माध्यम है शरीर को प्रकृति से जोड़ने का
अगर इसपर पर्याप्त ध्यान दिया जाए तो आप बेहतर जीवन के तरफ अग्रसर होंगे और कुण्डलिनी जागरण के लाभ और कुण्डलिनी जागरण के नुकसान को समझ पाएंगे साथ ही साथ कुंडलिनी जागरण के लक्षण और कुण्डलिनी शक्ति के चमत्कार जान पाएंगे यही है जीवन जीने का सबसे सही तरीका|
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प्रश्न 20 : मनुष्य के शरीर का बनावट ऐसा क्यों है?
उत्तर 20 : मनुष्य के शरीर का बनावट ऐसा क्यों है? इसको समझने के लिए कुछ बातों को जानना जरूरी है शरीर का बनावट सिर्फ जीवन का बाहरी हिस्सा है और कुछ नहीं अगर आप पुराने मंदिरों को ध्यान से देखें तो पाएंगे की बहुत सारी कला कृतियाँ मंदिर के बाहरी दीवारों पर लगी होती है जिससे लोग आकर्षित होते हैं शरीर भी यही चीज है इससे लोग आकर्षित होते है लेकिन महत्वपूर्ण यह है की आपके अन्दर क्या है? यह मायने रखता है| यह तो मानव शरीर का सामान्य परिचय है|
पुरुष के शरीर की जानकारी और स्त्री के शरीर की जानकारी या यह कहा जाए की मानव शरीर का निर्माण कैसे हुआ? या यह कहा जाए की मानव शरीर का सामान्य परिचय क्या है? तो यह “शरीर” जीवन का बाहरी चीज है इसको जानना और जीवन के गहराई में जाने की कोशिश करना बस यही इस शरीर का काम है ना ही अपने शरीर को नकारे ना ही इसका गुण गये जैसा है वैसा ही इसको देखें|
अगर आप शरीर और जीवन को समझना चाहते है तो इसके लिए आपको बायोलॉजी पढ़ने की जरूरत नहीं है क्योंकि इससे आपको शरीर के कुछ बेसिक चीज ही समझ आयेंगे इससे आपको मानव शरीर का सामान्य परिचय ही प्राप्त हो पायेगा जीवन नहीं समझ पाएंगे| जीवन समझने के लिए आपको अन्दर जाना होगा प्रकृति के संपर्क में आना होगा वर्तमान में रहना होगा तभी चीजो को अनुभव कर पाएंगे|
मानव शरीर का आधार क्या है?
जानवर का दिमाग और उनका शरीर सिर्फ दो चीजो के लिए ही बना है पहला भोजन कैसे पाया जाए? और दूसरा अपना साथी कैसे पाया जाए? बस जानवर का यही मूल मकसद है|
लेकिन मनुष्य का शरीर के अन्दर चीजों को समझने के शक्ति है इसलिए मनुष्य जीवो में श्रेष्ठ है
मनुष्य के शरीर का एक भूख है जिसे सेक्स कहते है इसको आपको पूरा करना है लेकिन किस हद तक पूरा करना है यह आपको चुनना है यह आपके जीवन का मुख्य हिस्सा नहीं होना चाहिए मुख्य हिस्सा तो मनुष्य का विकास करना है|
स्त्री शरीर के रहस्य क्या है?
इन्सान लड़कियों के मासिक स्थिति को अशुद्ध मानते है अगर वह अशुद्ध है तो आप भी अशुद्ध हुए यह तो जीवन का एक सिस्टम है इसके अशुद्ध और विशुद्ध का प्रश्न ही नहीं उठता है| यह हमारे जीवन का एक प्रक्रिया है जिससे जीवन चलता है|
अध्यात्म के नज़र में, भगवान शिव ने जब तीसरी आँख खोली (अपने अन्दर) तो भगवान ने देखा की अन्दर कुछ है जो आपको अधुरा महसूस करता हैं आप सोचते है कुछ कमी है, वह कमी क्या है? – किसी भी चीज का लगाव ही वासना है यह एक जबरदस्त चाह है जैसे योगी को भगवान का वासना है, भोगी को औरत की वासना है, बच्चे को अपने सामान की वासना है, आदमी को अपने ऊँचे पद की वासना हो सकता है आदि हर इच्छा वासना है|
वासना का मतलब है आपके अन्दर कुछ कमी है जिसको पूरा करना जरूरी है|
लेकिन एक गुरु का आपसे कोई शारीरिक संबंध न होते हुए भी आपका अपने गुरु से एक जबरदस्त लगाव और संबंध होता है|
इन्सान अपने शरीर को अपनी सर्वोच्च चीज मानता है इसलिए विपरीत लिंग की तलाश करता है वह कभी भी अपने शरीर की खूबसूरती को नहीं देख पता अगर देख पता तो दूसरों पर ध्यान देने की जरूरत ही नहीं होती जब ऐसी स्थिति आ जाए तभी आप जान पाएंगे की एक बार अगर आप उस परम तत्व को छु लेते है तो मुझे आपको बताना नहीं होगा की क्या सही है? क्या करना चाहिए? क्या नहीं करना चाहिए? यह सब कुछ|
अगर आप अपने जीवन में “ध्यान को, योग को” अपना ले तो सेक्स अपने आप ही ख़त्म हो गायेगा और यह सेक्स से लाखो-करोड़ो गुना आनंदमय तत्व जिसको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है|
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प्रश्न 21 : जीवन के नियम?
उत्तर 21 : सद्गुरु बताते है जीवन के नियम क्या है? जीवन जीने का रहस्य क्या है? और मनुष्य के जीवन का रहस्य क्या है? और सबसे बड़ी बात मनुष्य के जीवन का उद्देश्य हम कैसे प्राप्त करें?
तो जीवन में सफल होने के लिए एक व्यक्ति को चाहिए की वह जीवन में सफलता के सूत्र का पालन करें इसके लिए आपके पास सफलता के वह कौन से गुण होने चाहिए जो हमें जीवन में सफलता के सूत्र के रूप में काम आ सकें|
इस दुनिया में हर कोई हर चीज प्राप्त कर सकता है बस जरूरत है जागरूक रहने की यह चिंतन करने की इसको समझने की जरूरत है|
इसके लिए “ध्यान” से शुरू करना होगा ध्यान क्या है?– ध्यान एक गुण है इसको किया नहीं जा सकता यह तो गुण है| “गुण” एक निश्चित प्रक्रिया का परिणाम होता है| आप प्रक्रिया का संचालन कर सकते है लेकिन आप गुण का संचालन नहीं कर सकते है गुण तो एक परिणाम है|
अगर आपको ध्यान करना है तो आपको ध्यान पर ध्यान नहीं देना होता है आपको स्थान, वातावरण, माहोल आदि चीजो पर ध्यान देना होता है तभी आप ध्यान में जा सकते है उदाहरण के लिए अगर आपको बगीचे में फूल का पेड़ लगाना है तो आपको सबसे पहले मिट्टी, खाद, पानी, हवा, धुप का प्रबंध करना होता है तभी आपको परिणाम के रूप में फूल प्राप्त होगा उसी प्रकार ध्यान के संबंध में भी ऐसा ही है|
आपको जिस चीज पर सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए वह है “हमारा जीवन जो हमारे शरीर के अन्दर धड़ख रहा है” बाकि सब हमारे द्वारा बनाया गया यह व्यवस्था है जो भी आराम या उपयोगी-अनुपयोगी चीज हो सब हमने-आपने बनाया है लोग इसपर अपना ध्यान देते है अपने अन्दर ध्यान नहीं देते इस उम्मीद में की यह व्यवस्था हमारे जीवन को ऊपर उठाएगी जैसे नौकरी, शादी, व्यापार, पैसा आदि चीजे असल में यह सब चीजे हकीकत से कोसो दूर है “जीवन के नियम” से “जीवन के सच्चाई से” सच्चाई तो कुछ और ही है|
अगर जीवन ही नहीं रहेगा तो धन-दौलत-रुपया-पैसा यह सब बेकार हो जायेगा किसी भी तरह से काम नहीं आएगा| अगर कोई अपने मन, शरीर, भावनाओं, ऊर्जाओं को एक साथ ला सके एक निश्चित स्तर तक ले जा सके तो वह निश्चित रूप से और ज्यादातर समय ध्यानशील रहेगा|
मनुष्य के जीवन का उद्देश्य या मनुष्य के कार्य सिद्धि का मूल मंत्र क्या है? और सबसे बड़ी बात यह है की हमारे दुखों का अंत कैसे हो? इसका सीधा सा उत्तर है अगर आप अपने मन और शरीर की दूरी को काम कर ले इसको एक कर ले तो यह आपके सारे दुखो का अंत कर देगा| इन दोनों का विपरीत दिशा में जाना ही हमारे दुखो का कारण है और इसको नियमित ध्यान के अभ्यास से कम किया जा सकता है|
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प्रश्न 22 : क्या भोजन में मांस खाना चाहिए?
उत्तर 22 : तो आइये जानते है शीर्षक में क्या भोजन में मांस खाना सही है या नहीं? जब हम भोजन करते है तो इसका मतलब है हम एक जीवन को चुनते है| भोजन का मतलब है “सरल भोजन करना”| यह एक software की तरह है जितना हल्का software होगा उतना यह(शरीर) hardware तेज काम करेगा software भारी होगा तो प्रोसेस होने में समय लगेगा और यह शरीर धीरे काम करेगा|
आप जितना हल्का भोजन करेंगे यह शरीर उसे आसानी से पचा पायेगा मसलन फल-अनाज आदि जैसे-जैसे यह भोजन जटिल होता जाता है जैसे मीट-मछली आदि तो हमारा शरीर उसे पचाने में समय लेता है विशेष रूप से अगर वह एक जानवर है और उसमे एक भावना है तो उसे पचाना बहुत ही मुश्किल है दूसरी बात अगर हम जानवर खाते है तो हमारा व्यवहार भी जानवर जैसा ही बनने लगेगा|
भोजन वही खाना चाहिए जो शरीर के लिए ठीक हो|
मनुष्य को हर काम जागरूक होके करना चाहिए खाना भी जागरूक होके ही खाना चाहिए क्योंकि जो भी इन्सान जागरूकता के साथ जो भी काम करता है वह इन्सान सभ्य और अच्छा बन जाता है| शरीर को automatic machine मत बनाइये यह एक सिस्टम की तरह चलता है और उसे अपने ही तरह से चलने दीजिये|
भोजन ऐसा हो जो शरीर के लिए उपयुक्त हो क्योंकि भोजन से ही शरीर का निर्माण होता है| एक प्रयोग करें अपने भोजन के साथ आज आप जो भी भोजन करें एक घंटे बाद आपको कैसा महसूस होता है अगर शरीर में फुर्ती आ गया है तो यह भोजन हमारे लिए उपयुक्त है अगर सुस्ती, आलस्य या निद्रा आता है तो इसका मतलब है यह भोजन हमारे लिए ठीक नहीं है|
इन्सान और जानवर का मुँह ध्यान से देखें तो आप पाएंगे जानवर का जबड़ा-दांत बड़ा होता है नुकीले होते है और इन्सान का दांत देखें यह शाकाहारी के लिए बना है| इन्सान जिन्दा रहने के लिए मांसाहारी हो गया है| जानवर दो प्रकार के है एक मांसाहार जैसे शेर, कुत्ता और दूसरा हिरण, बकरी, खरगोश आदि| मांसाहारी जानवर भोजन को काटने का प्रक्रिया करते है शाकाहारी जानवर काटने और चबाने का काम करते है|
अगर आपको माँस खाना ही है तो मछली सबसे अच्छा भोजन है उसमें मनुष्य की तरह भावना नहीं होती बाकि हर जानवर में इन्सान की तरह मिलता-जुलता भावना होता है मछली ही मांसाहारी में सबसे उपयुक्त भोजन है जिसे खाया जा सकता है|
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प्रश्न 23 : इनर इंजीनियरिंग क्या है?
उत्तर 23 : सद्गुरु जी ने बहुत ही खूबसूरत तरीके से इस पर विस्तार से बताया है| आज इन्सान अपने बेहतरीन इंजीनियरिंग के बल पर दुनिया के हर क्षेत्र पर विजय प्राप्त किया है आज हर तरह की सुविधा मौजूद है सुई से लेकर हवाई जहाज-राकेट तक उपलब्ध है|
इन्सान की खुशहाली सुख की वस्तुओं या बाहरी दुनिया को ठीक करने से नहीं आएगी अगर आप बाहरी चीजों को ठीक करेंगे तो आपको बहुत आराम मिलेगा, सुविधा मिलेगा और आप आलसी हो जायेंगे लेकिन सुख नहीं मिलेगा सुख के अलावा सब कुछ मिल जायेगा|
सुख तो इनर इंजीनियरिंग में है|
खुशहाली के लिए आपको अपने आपको ठीक करना होगा तभी खुशहाली मिलेगी नहीं तो कोई दूसरा उपाय नहीं है|
हम हालात को ठीक करना चाहते है खुद नहीं बदलना चाहते हैं हम जैसे हैं वैसे ही रहें लोग अपने आपको बदले हमारे मुताबित ऐसा नहीं होनेवाला है हम किसी को भी 100% नहीं बदल सकते हैं कुछ प्रतिशत बदल सकते है हमारा कुछ प्रतिशत दुसरे पर कण्ट्रोल होता है थोडा हमारा थोडा उनका मिलकर गाड़ी चलता रहता है आज हमारी जो सबसे बड़ी समस्या है वह यह है की हमारा मन हमारे हिसाब से काम नहीं कर रहा है|
आज अगर हमारा खुद का मन ही हमारे कण्ट्रोल में नहीं है तो हम दुसरे को क्या कण्ट्रोल करेंगे| तो सारा कुछ संयोग से चल रहा है स्थिति-परिस्थिति हमारे कण्ट्रोल में नहीं है बल्कि वह हमको कण्ट्रोल कर रही है और यही दुःख का कारण है| आप शादी क्यों करते है? बच्चे क्यों बनाते है? मंदिर क्यों जाते हैं? डांस पार्टी में क्यों जाते है? क्लब क्यों जाते है? – अपने ख़ुशी के ही खोज में…
जो इन्सान मंदिर जाता है और जो इन्सान डांस पार्टी जाता है दोनों ही सुख के लिए जाता है अपने खुशहाली के लिए जाता है ऐसा है क्या?…
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है की मैं खुश कैसे रहूँ?
इस सवाल का जवाब है इनर इंजीनियरिंग|
अगर आपका बाहरी माहोल ख़राब भी है (जो आपके वातावरण के वजय से हो रहा है) तो कम से आप अपने भीतरी माहोल को सही रखें यह तो आपके कण्ट्रोल में हैं| इस एक चीज़ को आपके हिसाब से होना चाहिए|
हम दुनिया के इंजीनियरिंग को बाद में करें पहले खुद के इनर इंजीनियरिंग को ठीक करें अपने भीतर जायें और इसे ठीक करें|
हम इस दुनिया में एक इन्सान के रूप में आयें है तो हमारी कुछ ज़िम्मेदारियाँ भी है सिर्फ खाना-सोना-शादी-बच्चे ही नहीं है हमारी ज़िम्मेदारी है की हम यह जाने|
इन्सान का जबतक पेट भरा नहीं होता तबतक सिर्फ एक समस्या होता है “पेट भरो” जब पेट भर जाता है तो सैकड़ों समस्या शुरू हो जाती है इन्सान हर बात में संतुष्ट होना चाहता है लेकिन वह कभी भी संतुष्ट नहीं हो पता एक पूरा होता है दूसरी इच्छा जाग जाता है दूसरा पूरा होता है तीसरी चौथी और यह निरंतरता में फँस जाता है|
आज हमारे अन्दर जो कुछ भी हो रहा है वह संजोग से नहीं होना चाहिए इसे अपने इच्छा से होना चाहिए|
इन्सान को अपने भीतर ध्यान देने की जरूरत है जिसे हम इनर इंजीनियरिंग कहते है एक बार आप अपने भीतर मुड़कर भीतर का लगाम थाम ले तो जिन्दगी आपके कण्ट्रोल में हो जाएगी फिर किसी को आपको यह बताने की जरूरत नहीं की सुख क्या होता है? क्योंकि आप इसका अनुभव कर चुके है|
आज हम इसके विपरीत हो रहें है इसका सिर्फ और सिर्फ एक कारण है की हमने इस शरीर को नहीं समझा है इसका यूजर मैन्युअल नहीं पढ़ा है|
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प्रश्न 24 : अपनी हर मनोकामना पूरी करने का तरीका?
उत्तर 24 : इस धरती पर इंसान ने जो कुछ भी बनाया है चाहे वह कार, बस, हवाई जहाज, राकेट या कुछ भी वह मूल रूप से पहले हमारे मन में बना था वह सब जो आप देखते हैं इस धरती पर, सब इंसान ने बनाया है और वह पहले हमारे मन में बना फिर वह बाहरी दुनिया में बना| इस धरती पर जो अद्भुत चीज या भयानक चीज हुई है वह दोनों ही इंसान के मन से आए हैं|
तो मन महत्वपूर्ण है अगर हम अपने मन को नियंत्रित कर लें तो हम उस शक्तिओं का सही इस्तेमाल कर सकते हैं|
अगर हम अपने मन को अपने तरीके से रखने की शक्ति नहीं रखते तो दुनिया में हम जो भी बनाते हैं वह बहुत सहयोग से और उल्टा-सीधा होगा तो अपने मन को अपने तरीके से बनाना ही दुनिया को अपने तरीके से बनाने का आधार है|
चार्ल्स डार्विन ने एक बार कहा था की हम सब बंदर थे आगे चलके हमारी पूछ गिर गई और हम इन्सान बन गए पीठ सीधी हो गई लेकिन बंदर की तरह हमेशा हिलते-डुलते रहना मन चंचल रहना यह स्वभाव हमारा आज भी बना हुआ है बन्दर को मर्कट भी कहते हैं|
अगर आप अपने मन को संगठित और व्यवस्थित कर सके तो आपका शरीर, आपकी भावना, आपकी ऊर्जा सब कुछ उसी दिशा में व्यवस्थित हो जाती है जब आपके चारों आयाम आपका भौतिक शरीर आपका मन आपकी भावना और मौलिक जीवन एक हो जाता है तो आपका हर काम अपने आप बनने लगता है जीवन से जुडी अदृश्य शक्तियां आपके लिए काम करने लगाती है यही पूरे जीवन का आधार है| और आपकी हर मनोकामना पूरी हो इसी भावना के साथ मगल हो!
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प्रश्न 25 : बीमारी से बचने के उपाय?
उत्तर 25 : बीमारी से मुक्ति या इसको अगर हम दुसरे शब्द में कहे तो मनुष्य बीमार क्यों पड़ता है? इसका सबसे बड़ा कारण है हमारा पाचन तंत्र हम जो कुछ भी खाते हैं उसको सही तरीके से पचना ज्यादा जरूरी है| खाना, खाना उतना जरुरी नहीं है जितना खाना हजम होना ताकि उस भोजन से जो रस प्राप्त हो उससे खून और अन्य मास-मशा, हड्डी बन सके|
थायराइड इंबैलेंस भी बहुत ज्यादा जरुरी होता है मेडिकल की दृष्टि से यह सब यह तय करता है कि कितना पाचन होना चाहिए कितनी ऊर्जा पैदा होनी चाहिए कितनी मांसपेशी बनी चाहिए हर चीज आपकी शारीरिक संरचना को संतुलित करने की कोशिश करता है|
आपके शरीर की संरचना आपके मनोवैज्ञानिक संरचना से गहरा संबंध रखता है आज आपको यह दिखाने के लिए पर्याप्त प्रमाण मौजूद हैं कि अगर आप यहां बैठकर पहाड़ के बारे में सोचते हैं तो आपकी ग्रंथियां एक तरह से काम करेंगे अगर आप शेर के बारे में सोचते हैं तो यह किसी और तरीके से काम करेंगे अगर आप समुद्र के बारे में सोचते हैं तो यह किसी और तरीके से काम करेंगे|
अगर आप किसी आदमी या औरत के बारे में सोचते हैं तो यह किसी और तरीके से काम करेंगे बस एक विचार और कुछ नहीं पहाड़ से कोई संपर्क नहीं शेर से कोई संपर्क नहीं आदमी औरत या समुद्र से कोई संपर्क नहीं बस एक विचार ही ग्रंथियों के काम में उतार-चढ़ाव ला सकता है|
इस शरीर का सिस्टम इतना शानदार और सटीक है कि इससे आप पूरी तरह अपने अनुसार नियंत्रित कर सकते हैं बस शर्त हैं की क्या आपने शरीर का (यूजर मनुयुल) पढ़ा है|
हमें इंसानों के अलावा दूसरे सभी जीवों के प्रति हमेशा जागरूक रहना होगा ज्यादातर लोग इंसानों के प्रति जागरूक नहीं होते| सिर्फ इन्सान ही नहीं किसी भी चीज के प्रति जागरुक नहीं होते| हमें पेड़-पौधे-घास का तिनका और आपके पास से गुजरने वाले लोग जिन्हें हम पसंद नहीं भी करते हो उसके प्रति भी जागरुक होना होगा|
एक बार अगर आप जागरुक होना सीख लेते हैं तो आप अपने जीवन के साथ अपनी शारीरिक क्षमता को समझ जायेंगे|
दूसरी बात इन्सान को शारीरिक काम करना चाहिए आज इन्सान आलसी हो गए है इन्सान को मेहनत करने की जरुरत है मेहनत करिए लेकिन ख़ुशी के साथ यही जीवन को जीने का सही तरीका है|
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प्रश्न 26 : शादी से पहले क्या करे?
उत्तर 26 : क्या शादी-विवाह करना जरूरी है और मुझे कैसे पता चलेगा कि यह मेरे लिए सही रास्ता है की नहीं?
तो इसका जवाब है “हाँ” शरीर की कुछ जरूरतें होती हैं जब आप एक इंसान के रूप में होते हैं तो शारीरिक जरूरतें होती हैं भावनात्मक जरूरतें होती हैं मानसिक जरूरतें होती हैं सामाजिक जरूरत होती है|
शादी में बंधने के बाद शरीर का एक याददाश्त बन जाता है पति-पत्नी के बीच, बच्चों के बीच के भाव बन जाता है जो मरने के बाद भी जन्म-जन्म तक बना रहता है और जब तक यह टूटेगा नहीं इन्सान की आत्मा इससे आजाद नहीं होगा| याद रहे भावना से ज्यादा याददाश्त शरीर का होता है इसी वजह से लोगों को ऐसे स्थानों में जाना चाहिए जहाँ वह प्रकृति के साथ घुल-मिल सके अपने आपके लिए एकांत में कुछ समय बिता सकें|
तो शारीरिक नजदीकी को एक ऋण अनुबंध के रूप में समझा जा सकता है कहा जाता है यह शरीर याददाश्त का एक गहरा भाव विकसित कर लेता है| जो लोग अपने जीवन के साथ लापरवाह है वह सही मायने में आनंद को कभी नहीं जान पाएंगे|
जो लोग अपने शरीर को लेकर अनुशासित नहीं है वह कभी पूरी तरह से हंस नहीं सकते न ही खुल कर जी सकते है| अपनी इन जरूरतों को पूरा करने के लिए आप या तो शादी कीजिए या शादी मत कीजिए या आप इन जरूरतों से परे चले जाइए लेकिन यह ऐसी चीज है जिसे आपको निजी तौर पर देखना होगा कि मेरी जरूरत कितनी तीव्रता से और समाज से प्रभावित हो रहा है|
इस पर गौर करना चाहिए सबसे अच्छा यह होगा कि आप एक महीने की छुट्टी लेकर किसी आश्रम चले जाए और ध्यान करें जब आपको यह स्पष्ट हो जाये की मुझे क्या करना चाहिए तब आप निर्णय लें| (किसी गुरु या किसी और से प्रभावित होकर नहीं खुद से प्रभावित होकर ही निर्णय लेने चाहिए)|
एक बार जब आपने फैसला कर लिया तो सिर्फ उसी दिशा में जाए फिर कोई बदलाव नहीं करना चाहिए| आपने जो भी चुना है उसे पूरे शिद्दत से पूरा करना चाहिए| अगर आपका निर्णय गलत भी हैं तो भी उसी पर डटें रहें सिर्फ अपने काम पर ध्यान केन्द्रित रखें सफलता निश्चित है|
सद्गुरु के विचार

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प्रश्न 27 : अमीर कैसे बने?
उत्तर 27 : इसको एक कहानी से समझते हैं क्या आप एंड्रयू कार्नेगी के बारे में सुना है जब एंड्रयू कार्नेगी जब अपना उद्यम शुरू कर रहें थे तो थोड़े ही समय बाद वह बहुत सफल हुए और उन्होंने बहुत पैसा कमाए वह समय गूगल, फेसबुक या ट्विटर का नहीं था यहाँ तो लोग youtube से 2 साल में अरबपति बन जाते हैं लेकिन उन दिनों लोगों को निर्माण के लिए उद्योग वगैरह लगाने के लिए बहुत मेहनत करना होता था|
आज की तरह संसाधन नहीं होते थे जब वह अपने व्यवसाय में सफल हुए तो अमरीकी सरकार को शक हुआ कि वह कुछ तो गलत कर रहा है तो उन्होंने जांच के लिए एक कमेटी बनाई और कार्नेगी से हर संभव सवाल पूछे और उन्हें पता चला कि उसके बिजनेस में कुछ भी गलत नहीं है फिर उन्होंने पूछा आपने इतना पैसा कैसे कमाए और इतने सफल कैसे हुए तो एंड्रयू ने कहा यह तो बहुत ही साधारण सी बात है|
उन्होंने कहा देखिए मैं अपने दिमाग को किसी चीज पर पांच मिनट तक लगातार केंद्र सकता हूं क्या आप में से कोई ऐसा कर सकता है सभी सीनेटर सोचने लगे पांच मिनट क्या मुश्किल है और उसने प्रयोग किया सबने अपना ध्यान टिकाने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई भी एक सेकंड के लिए भी अपना ध्यान टिका पाने में सफल रहा नहीं हो पाया तब एंड्रयू कार्नेगी ने कहा आपको अमेरिका का शासन नहीं चलाना चाहिए|
इस वाकया से एक चीज तो स्पष्ट होता है की सबसे पहले हमें अपने ऊपर काम करने की जरुरत है अपने चित्त को एकाग्र करने की जरुरत है उसके बाद ही कोई काम करना चाहिए|
हमें जानकारी को बुद्धिमता के साथ लेने की जरूरत है बस जानकारी की जानकारी थोड़ी उपयोगी हो सकती है लेकिन उस जानकारी का सही इस्तेमाल यह ज्यादा जरुरी है| अगर आप यह सोचते हैं की मुझे कार लेना है और मेरे जेब में सौ रूपए है मैं नहीं ले पाऊंगा और कर भी चाहिए यह दोनों बात एक साथ काम नहीं करेगा|
जेब में पैसा होना अच्छा है अगर वह आपके सिर में घुस जाता है तो यह विकृति बन जाता है ज्यादातर लोगों के लिए यह उनके सिर में घुस गया है और एक विकृति बन गया है पैसे को अपनी जेब में रखना जीवन को आसान और अच्छा बनाता है आप बैठकर कहीं ध्यान कर सकते हैं कहीं घुमने जा सकते हैं|
सबसे पहले तो आपको यह सोचना चाहिए की मैं इस जीवन के साथ क्या कर सकता हूं? आपको सोचना चाहिए इस जीवन के साथ सबसे बड़ी चीज में क्या कर सकता हूं? क्योंकि एक दिन मैं मर जाऊंगा| यह
सबसे बड़ा सवाल है?
पैसा कमाना कोई बड़ी चीज नहीं है यह तो आप अपने उंगलियों से कमा सकते हैं फिर जीवन चलाना भी कोई बड़ी चीज नहीं है यह तो छोटी से चींटी भी चला लेती है अंडमान निकोबार आइलैंड के आदिवासी भी चला ले रहें है|
क्या आपको यह सोचना चाहिए की हम अमीर कैसे बनेंगे या अमीर कैसे बनना है या अमीर कैसे बना जा सकता है वानस्पत इसके की अपने जीवन को कैसे बेहतर बना बनाना है?
सद्गुरु के विचार

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प्रश्न 28 : बैठने का सही तरीका क्या है?
उत्तर 28 : बैठने का एक सही तरीका है इसको जानना बहुत जरूरी है क्योंकि हम सब बैठते है, खड़े होते हैं, चलते हैं आदि क्रिया करते हैं लेकिन बैठना और वह भी सही तरीके से यह क्यों जरूरी है?
इंसान अपना सारा जीवन एक खास तरीके से बैठने की कोशिश में क्यों बताएगा लेकिन अगर आप ठीक से बैठना सीख लेते हैं अपने शरीर को बस ठीक तरह से रखना सीख लेते हैं तो इस ब्राह्मण में हर वह चीज जिसे जाने की जरूरत है आप उसे जान सकते हैं इसे आसन सिद्धि कहते हैं इसलिए सही तरीके से बैठना बहुत जरूरी है|
अगर आप किसी भी आसन में, मुद्रा में आराम से बैठ सकें (ढाई घंटे तक) तब इसे कहते हैं आसन सिद्धि प्राप्त कर लेना तो आपको जो भी जानने की जरूरत है आप उसे अपने भीतर से जान सकते हैं| ऐसा कैसे हो सकता है केवल बैठने से हर चीज जान सकते हैं|
तो अगर आप सही तरीके से आसन में बैठते हैं अगर आपका लाइनमैन सही है और अगर यह किसी तरीके से ब्रह्मांड की गणितीय से मिलता है या मेल खाता है तो यह अद्भुत होगा क्योंकि शरीर के साथ काम करना सबसे आसान होता है अगर आप अपने मन के साथ कुछ करने की कोशिश करते हैं तो यह कई तरीके से अपने तर्क देगा और आपको भटका देगा| इसलिए शरीर पर काम करना आसन है|
अगर आप अपने शरीर के एलाइनमेंट पर खास ध्यान देते हैं तो यह स्वाभाविक रूप से अच्छी सेहत, प्रसन्नता, आनंद और सबसे बढ़कर संतुलन प्रदान करता है|
अगर आपके पास जरूरी संतुलन नहीं है तो आप सफल नहीं होंगे अपने जीवन में बहुत आगे तक नहीं जाएंगे सफलता चाहने वाले लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज हैं चाहे वह कॉरपोरेट सेक्टर में काम कर रहे हो या वह राजनीति में हो या विद्यार्थी हो कोई भी, संतुलन अपने बाहर और अपने भीतर बहुत जरूरी है|
सद्गुरु के विचार

सद्गुरु के विचार
प्रश्न 29 : ब्रह्मांड की शक्तियां?
उत्तर 29 : इस लेख में हम ब्रह्मांड के रहस्य, ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई, ब्रह्मांड कितना बड़ा है, ब्रह्मांड किसे कहते है इससे जुड़े सारे सवालों का जवाब जानेंगे|
सद्गुरु बताते हैं की चौरासी (84) एक महत्वपूर्ण संख्या है आज हमारे जीवन में चाहे उसके बारे में जागरूक हो या ना हो लेकिन (84)बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए क्योंकि यह सृष्टि (84) बार गुजर चुकी है हम (84) बार पर हैं इसके पहले (83) घटनाएँ हो चुकी है|
आज विज्ञान भी मानता है की श्रृष्टि में कंपन है|
श्रृष्टि के शुरुआत में जो सबसे पहली चीज हुई वह – वह ध्वनि थी वैज्ञानिक भी सहमत हैं कि बिगबैंग हुआ था| और इस जगत के एकमात्र ईश्वर जो दुनिया के इस हिस्से में मौजूद थे उन्हें रुद्र कहा गया इसका मतलब है वे जो गरजते हैं (गरजने वाले) यही से सृष्टि की शुरुआत हुई है क्योंकि यह गर्जन है वैज्ञानिक इसे बैंग कहते है| अब वैज्ञानिक बैंक के सिद्धांत को वापस ले रही हैं और अब कह रहें हैं कि एक नहीं कई बैंग हुए थे|
भौतिक विज्ञानी यह मानते हैं की जिसका शुरुआत हुआ है उसका अंत भी होगा लेकिन योगी प्रणाली में हमेशा एक निरंतर खेलते हुए ब्रह्मांड की बात की गई है| पहली बार शीर्ष स्तर के भौतिक विज्ञानी मानने लगे हैं कि कोई शुरुआत नहीं है और न ही अंत है|
सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी अपने अंतरात्मा में देखकर बताते है कि यह सृष्टि ने 84 बार गर्जन किया है और यह आगे भी कई गर्जन करेगी कुल मिलाकर 112 बार गर्जना करेगी जब यह आखिरी बार गर्जन करेगी तो कोई शुरुआत और कोई अंत नहीं होगा यह शाश्वत सृष्टि होगी वह दिन बहुत दूर है|
जीवन एक यात्रा है “पुनः रपि जननम पुनरपि मरणम”|
जब तक आप इसे तोड़ते नहीं यह यात्रा चलता ही रहेगा और हम कहीं नहीं पहुंचेंगे वह घूमते हुए उसी स्थान पर वापस आ जायेगा मतलब हर बार रूप बदल-बदल कर जन्म लेना|
तो पूरी आध्यात्मिक साधना इसी पर आधारित है कि आप मुक्त होना चाहते हैं मुक्ति का मतलब यह नहीं है कि आपको भूलना होगा लेकिन आपको उस याददाश्त से मुक्त होना होगा जो आपको चलाती (जन्म-मरण के चक्रम में) है और यह याददाश्त आपके मन में नहीं है आपके शरीर की हर कोशिका में है वंश विज्ञान और अन्य चीजों से यह हमारे लिए बिल्कुल स्पष्ट है कि आपने अपने पूर्वजों की याददाश्त और आप आज भी उनकी तरह बर्ताव कर रहे हैं आपकी आंखें आपके पूर्वजों के ही जैसे हैं इस चक्करम को तोडना ही जीवन का मुख्य उद्देश्य है|
सद्गुरु के विचार

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प्रश्न 30 : मन की उलझन कैसे सुलझाएं?
उत्तर 30 : लोग कहते हैं हम उलझन में हैं? क्या हम वाकई में एक समस्या है? क्या आप कंफ्यूज हैं या आपका मन कंफ्यूज है मन की शांति के उपाय क्या हैं? तो इसे समझने की जरुरत है|
देखिये इस शब्द को ठीक से समझने की जरुरत है अगर आप इन दोनों में फर्क नहीं समझेंगे तो आप अपना गलत इलाज कर लेंगे| मान लीजिए कि आप अपने डॉक्टर के पास गए चूँकि आपको ह्रदय समस्याएं और आपने कहा डॉक्टर मेरे लिवर में कुछ परेशानी है वे किसी और चीज का इलाज कर देंगे|
इसलिए बहुत जरूरी है की आप सही जानकारी दें| न किसी से झूठ बोलना है न किसी को गलत जानकारी दें सही जानकारी ही सही ईलाज है एक इन्सान (खुद) से तो बिलकुल भी नहीं बोलना चाहिए वह अपने आप से 100% सीधी बात करें कोई बकवास नहीं यह व्यक्ति इसका अधिकारी है और कम से कम इसके लिए इतना करना आपका फर्ज बनता भी है|
मुझे नहीं पता कि आप किस तरह की सामाजिक व अन्य परिस्थितियों में है मुझे नहीं पता कि आप दूसरों से झूठ बोलना बंद कर सकते हैं या नहीं अगर आप ऐसा कर पाए तो आपके आसपास के जीवन में भी जबरदस्त सुधार आएंगे अगर आप अपने आसपास ऐसा कर पाते हैं तो बढ़िया है| और न हो पायें तो अपने आप से ईमानदार रहें|
पुराने युग में जब ऋषि-मुनि रहते थे तो आध्यात्मिक ऊर्जा वातावरण में विद्यमान रहता था आज वह तो चली गई लेकिन वह सारे शब्द आज भी मौजूद हैं आप जहां भी जाते हैं लोग अंतरात्मा-आत्मा-परमात्मा की बातें करते हैं शब्द-अभियान-भाषा और सामान्य वातावरण में चल रहे हैं पर वह आग बुझ गई है एक तरह से यह एक सकारात्मक प्रभाव भी हो सकता था लेकिन यह एक नकारात्मक प्रभाव भी है क्योंकि आप सबसे ऊंची चीजों के बारे में सांसारिक तरीके से बात कर रहे हैं|
आज लोग चाय की दुकान में गीता के बारे में बात करते हैं चाय की दुकान में खराबी नहीं है लेकिन उसमें वह पवित्रता नहीं है पवित्रता का मतलब है अगर आपको दूध या घी में हाथ डालना है तो पहले हाथ साफ कर लेना चाहिए इसलिए इस चीज का ध्यान रखना चाहिय|
अगर आप ऐसा नहीं करते तो आप एक कन्फ्यूज्ड आत्मा बन जाएंगे अगर आप अपने मन को संभालना जानते हैं अगर आप अपने मन को व्यवस्थित करना जानते हैं अगर आप चेतन रूप से अपने बदन की मात्रा को जबरदस्त रूप से बढ़ाना जानते हैं अगर आप जागरूक होकर अपने को संभालना जानते हैं तो मन एक बहुत ही उपयोगी औजार है जागरुक होना ही सारे उलझनों का सही और सटीक इलाज है|
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प्रश्न 31 : नशा ऐसा करो जो कभी उतरे नहीं?
उत्तर 31 : प्रश्न हैं- क्या नशा करना पाप है?- नशा ऐसा करो जो कभी उतरे नहीं इस प्रश्न को समझने के लिए सबसे पहले “जीवन” को समझना होगा|
जीवन का मतलब क्या?- जीवन का मतलब पूर्ण विकसित होना| जीवन का हर रूप एक पूर्ण विकसित जीवन बनने की इच्छा रखता है एक कीड़ा पूर्ण विकसित कीड़ा बनना चाहता है एक पतंगा पूर्ण विकसित पतंगा और एक पेड़ पूर्ण विकसित पेड़ बनना चाहता है और बेशक इंसान भी एक पूर्ण विकसित इंसान बनना चाहता है|
लेकिन क्या हम जानते हैं की पूर्ण विकसित कीड़ा कैसा होता है? एक पूर्ण विकसित पतंगा कैसा होता है? एक पूर्ण विकसित पेड़ कैसा होता है? लेकिन हम यह नहीं जानते कि पूर्ण विकसित इंसान कैसा होता है?
आप जो भी बन जाए तब भी आपके अंदर कुछ और बनने की इच्छा होती है स्पष्ट है कि आप नहीं जानते कि पूर्ण विकसित इंसान कैसा होता है अगर आप नशा (दारू, ड्रग्स आदि) करके जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं तो इसका मतलब है आप नशे से जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं क्या ऐसा संभव है? हरगिज नहीं|
अगर आप नशे में हैं इसका मतलब है आप जीवन को दबा रहे हैं जो इंसान जानता है कि अपने विचारों और भावनाओं को कैसे संभालना है वह जीवन को भरपूर आनंद में जीयेगा लेकिन जिसके विचार और भावना ही उसके विपरीत हो तो उसके जीवन में अन्धकार और गलत भावना का जन्म लेना स्वभाविक है|
अगर दुनिया की 90% आबादी (मान लीजिए) शराब और ड्रग्स लेने लगे तो आप यह देखेंगे हम अगले 15 से 20 सालों में 90% आबादी किसी तरह का रसायन ले रही होगी| अमेरिका की 70% आबादी दवाइयां लेती है 30% पीछे गलियों से खरीदते हैं|
दुनिया के तीन प्रमुख उद्योग है सबसे पहला शस्त्र और दूसरा युद्ध का सामान और तीसरा दवाइयां| यह तीन सबसे फायदे के धंधे है सबसे पहले “अस्त्र” और “युद्ध का सामान” उद्योग मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा है तीसरा है “ड्रग्स एंड केमिस्ट” है आज भोजन से ज्यादा महंगा दवाइयां हो गई है और भोजन भी केमिकल से पैदा किये जा रहें हैं|
आप जीवन का आनंद लेना चाहते हैं शराब के साथ तो आप उसके नशे में डूब सकते है लेकिन आप जीवन का आनंद नहीं ले पाएंगे क्योंकि जीवन का आनंद बाहरी नहीं है यह तो भीतरी है “अन्दर की यात्रा” है जो इन्सान जागरुक है सतर्क है वह जीवन को भरपूर ढंग से जीयेगा और जो मनुष्य द्वारा आविष्कार किये चीजो में सुख खोज रहें है तो इनको समझना चाहिए यह नश्वर है जो एक न एक दिन ख़त्म हो जायेगा|
तो नशा करना ही है तो अन्दर की यात्रा करें- डूब जाओ उस अनंत यात्रा के सफ़र में अगर आप वह नहीं करना चाहते तो जो भी काम करें जागरुक होकर करें जागरूकता से किया गया हर कार्य आपको सत्य और सुख के तरफ ले जायेगा|
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प्रश्न 32 : अपने आप को मजबूत कैसे बनाएं?
उत्तर 32 : इंसान के रूप में हम (जीवों में) सबसे ऊपर हैं सभी जीवों में हम सर्वश्रेष्ठ हैं शायद थोड़ा और करने की जरूरत है| अपने आप को मजबूत कैसे करें? मगर फिलहाल हम सबसे ऊपर हैं मगर क्या यह भी सच है कि जब लोग कहते हैं (इंसान) तो हमेशा उनका मतलब होता है देश, मजहब, जाति, पन्त, समुदाय, धर्म आदि चीजो से जोड़ दिया जाता है बहुत कम लोगों ने मैं इंसान हूं का उपयोग इंसान की विशालता बताने के लिए किया है|
इस धरती पर हर जीव एक कीड़ा, एक चिड़िया, एक जानवर, जिनका दिमाग हमसे कई गुना छोटा है वह अपनी जीवन प्रक्रिया को बहुत अच्छे ढंग से चलाते हैं| उनको खाने की कोई दिक्कत नहीं रहने का कोई दिक्कत नहीं किसी भी चीज की कोई दिक्कत नहीं है वहीं इंसानों को देखो हमें हर चीज की दिक्कत है|
हमने बच्चे पैदा किए उमसे दिक्कत, पैसे कमाने में दिक्कत, घर बनाने में दिक्कत, पड़ोसी से दिक्कत, लोगों से दिक्कत, अपनों से दिक्कत, दुश्मनों से दिक्कत हर जगह समस्या और परेशानी ही परेशानी दिखता है| हर चीज के लिए हम बड़ा हंगामा करते हैं जीने मरने की तमाम प्रक्रिया किसी झमेले के साथ करते हैं हम हर चीज बड़े झमेले के साथ करते हैं क्या यह बुद्धिमता का सबसे ऊंचा स्तर दिखाता है|
हम खुद को सबसे बुद्धिमान मानते हैं और इसमें कोई शक नहीं कि हमारी न्यूरोलॉजिकल प्रक्रिया धरती पर सबसे ज्यादा विकसित है हमारे पास सबसे विकसित न्यूरोलॉजिकल सिस्टम है जो हमें बेहतरीन तरीके से महसूस करना अनुभव करना और व्यक्त करना सीखता है| मगर धरती पर अभी कोई दूसरा इंसान की तरह संघर्ष नहीं कर रहा ऐसा इसलिए है क्योंकि आपको एक सुपर कंप्यूटर (आपका दिमाग) मिला है क्या आप मुझ से सहमत हैं कि यह धरती का सबसे परिष्कृत यंत्र है|
अब सवाल यह है कि क्या आपने इस शरीर का यूजर मैनुअल पढ़ा है बस लोगों ने यूजर मैनुअल ही नहीं पड़ा है यह शरीर धरती की सबसे जटिल मशीन है आज हर इंसान दुखी है अगर वह गरीब है तो गरीबी से दुखी हैं, अगर उसको अमीर बना दीजिए टैक्स से दुखी हैं, अगर पढ़ना-लिखना नहीं आता है तो दुखी हैं, उन्हें स्कूल में डाल दीजिए तो दुखी, शादी नहीं हुई तो दुखी है, उसकी शादी करा दीजिए तो दुखी, बच्चे नहीं है तो दुखी बच्चे हैं हर रोज दुखी तो आप जीवन के हर पहलू से दुखी लगते हैं|
तो अगर हम मौत दे दें क्या आप खुशी-खुशी जाएंगे-नहीं आप दुखी हो जाएंगे तो मुझे एक चीज बताइए जिससे हम दुखी नहीं है अब लोग फिलॉसफी बनाते हैं जीवन दुख है| नहीं-नहीं जीवन दुख नहीं है तो जीवन क्या है? जीवन न ही आनंद है न ही दुख है यह तो बस मौजूद है यह शानदार प्रक्रिया है अगर आप इस की सवारी करते हैं तो यह शानदार है अगर आप इससे कुछ ले जाते हैं तो यह भयंकर लगता है तो क्या आप जीवन की लहर पर सवार हैं या इससे कुछ ले जा रहे हैं|
यानी हमारे सोचने और महसूस करने का तरीका ही दुख का कारण है| देखिये अभी आप मुझे कहाँ देख रहें है बाहर या अन्दर?-अपने भीतर अभी आप मुझे कहां सुन रहे हैं-अपने भीतर आपने सारी दुनिया कहां देखी है-अपने भीतर हर चीज जो आपको हुई है पीड़ा और सुख आपके भीतर हुआ है| खुशी और गम आपके भीतर हुए हैं| व्यथा और परमानंद आपके भीतर हुआ है| यहां तक की रोशनी और अंधेरा भी असल में आपके भीतर ही हो रहा है|
दुनिया में जो होता है वह भले ही आपकी मर्जी से हुआ है या नहीं सब आपके भीतर ही होता है और उसे तो आपके हिसाब से होना चाहिए है| असल में हम अपने अस्तित्व की बुनियादी चीजों को समझे बिना ही जीने की कोशिश कर रहे हैं|
इसका मतलब यह है की हमें अपने अन्दर को मजबूत बनाना होगा “अपने आपको मजबूत करने के उपाय” पर काम करना होगा| हम परिवार के लोगों को अपने हिसाब से नहीं बदल सकते लेकिन अपने आपको जरूर बदल सकते हैं हमें देखने का नजरिया बदलना होगा नज़र बदलेंगे तो नज़ारे बदल जायेंगे तो हमें दूसरे पर नहीं अपने पर काम करने की जरूरत है|
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प्रश्न 33 : जिंदगी का मकसद क्या है?
उत्तर 33 : सद्गुरु कहते है क्या अच्छा नहीं है कि अगर कोई मकसद ही ना हो| तो आपको कुछ भी न करना हो बस जी सकते हैं-नहीं, पर आपको एक मकसद चाहिए और कोई आसान सा मकसद नहीं बल्कि भगवान का दिया हुआ मकसद यह बहुत खतरनाक है लोग जो यह सोचते हैं कि भगवान ने उन्हें मकसद दिया है वह धरती पर तबाही मचा देंगे वह सबसे भयानक काम करने के लिए आयें है या सबसे अच्छा काम करने वह दोनों ही गलत है|
अगर आपका कोई मकसद होता है और आप उसे पूरा कर लेते हैं उसके बाद आप क्या करते हैं? क्या आप बोर नहीं हो जायेंगे या कोई और मकसद नहीं बना लेंगे?
जिंदगी की सबसे बड़ी बात यही है कि जीवन का कोई मकसद नहीं है|
लोग लगातार ऐसे झूठे मकसद बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं अब वह काफी खुश और अच्छे भले थे अचानक उनकी शादी हो गई अब दूसरा इंसान मकसद बन गया फिर उनके बच्चे हो गए अब एक दूसरे से दुखी हो जाते हैं पूरा मकसद यह है कि मैं सुखी हो जाऊँ लेकिन हम सब काम दुखी वाला कर रहें है|
असल में इन्सान “इंसान की जिंदगी” और भगवान को अलग-अलग नहीं किया जा सकता है दोनों एक ही हैं असल में हम परेशान है इसलिए हम जीवन में मकसद खोज रहें है
हमने अपने आसपास खुद ही मुसीबत बना रखा है और हम इससे आसानी से बाहर आ सकते हैं अगर हम थोड़ा सा ध्यान दें|
जिंदगी का मकसद है-जीना और पूरी तरह से जीना इसका मतलब यह नहीं कि रोज रात को पार्टी करो| इसका मकसद है कि मरने से पहले जिंदगी के हर पहलू को देखा जा चुका है कुछ भी अनदेखा नहीं रहा| इससे पहले कि हमारी मृत्यु होती है और अगर मैं पूरे ब्रह्मांड को नहीं देख पाता हूँ तो कम से कम जिंदगी को तो पूरी तरह से जान लेना चाहिए|
आपको अपने साथ इतना तो करना ही चाहिए की पूरी तरह जीने का मतलब यही है कि आपने इसे (शरीर को) पूरी तरह से अनुभव कर लिया इसके हर आयाम को जान लिया आप बस इतना कर ले यह मकसद काफी है जिंदगी को समझने का|
तो हमने देखा जिंदगी जीने का मकसद, जिंदगी जीने का मकसद क्या है और मेरी जिंदगी का मकसद क्या होना चाहिए?
सद्गुरु के विचार

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प्रश्न 34 : असली सफलता क्या है?
उत्तर 34 : असली सफलता क्या है? या सफलता की असली कुंजी? इस प्रश्न का उत्तर छिपा है आपके जीवन के खुशियाली और प्रशांता में|
असली सफलता यह है की लोग आपको कितना पसंद करते है| सवाल यह है कि आपके आसपास का हर कोई आपको पसंद करता है या नहीं? क्या आपने खुद को ऐसा बना लिया है कि कोई भी आपको पसंद किए बिना कोई नहीं रह सकता|
हमें खुद को ऐसा बनाना चाहिए की लोग हमें पसंद करें बल्कि आसपास मौजूद हर प्राणी आपकी उपस्थिति पसंद करें यहां तक कि फूल पौधे और पेड़ भी आपको पसंद करें|
पेड़ पौधे मुझे कैसे पसंद कर सकते हैं? वह इस बात को लेकर काफी संवेदनशील होते हैं कि आप कौन हैं हमारे बर्ताव से वे बहुत संवेदनशील होते हैं वह उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं अगर आप खुद को ऐसा बना लें कि जिस धरती पर आप चलते हैं वह आपको पसंद करने लगे तो आप देखेंगे कि आपके जीवन में सब कुछ एक वरदान बन जाएगा अगर आपके आसपास के हर चीज आपको ना पसंद करती है तो आप देखेंगे कि आपके आसपास के हर चीज जो वरदान बन सकती थी एक अभिशाप बन जाएगी|
अगर आप खुद को ऐसा बनाने के लिए मेहनत करें कि कोई भी आपको पसंद किए बिना न रह सके तो जीवन खिल उठेगा हर चीज अपने सबसे अच्छे रूप में आपके सामने आएगी सबसे बुरे रूप में नहीं लेकिन अगर आप अपनी पसंद के हिसाब से चलते हैं तो जीवन हमेशा अपने सबसे अच्छे रूप में आपके सामने नहीं आएगा हो सकता है कि आपके पास सब कुछ हो या फिर कुछ भी ना हो|
तो आध्यात्मिक प्रक्रिया अपनी पसंद की चीजें पाने के बारे में नहीं है यह खुद को ऐसा बनाने की कोशिश है कि पक्षी भी आपको पसंद करें| हर परमाणु आपको पसंद करें आपके लिए खुद को उपलब्ध करें अगर अस्तित्व आपके लिए खुद को उपलब्ध नहीं करता तो आप जो चाहे कर ले उससे कुछ भी काम नहीं होने वाला|
आप इस तरह से खड़े होना बैठना चलना और सांस लेना सीखें कि आपके आसपास के पत्थर भी आपको पसंद करें मुझे कैसे पता चलेगा कि वह मुझे पसंद करते हैं या नहीं आपको जरूर पता चल जाएगा अगर आप वैसा बनने के लिए संवेदनशीलता है तो आपने यह बात जानने की संवेदनशीलता भी होगी अगर आप उन चीजों को लेकर कभी संवेदनशील नहीं हैं तो आप में जानने की संवेदनशीलता भी नहीं होगी वरना आप को सब पता चल जाएगा|
यह आपको कृपा के एक बिल्कुल अलग स्तर पर पहुंचा देगी जहां हर पत्थर, हर कंकड़, हर चट्टान, हर पेड़ और हर परमाणु आपसे ऐसी भाषा में बात करेगा जिसे आप समझ पाएंगे वरना इस विशाल ब्राह्मण में अकेले होंगे और हमेशा असुरक्षा अस्थिरता और मानसिक उथल-पुथल महसूस करेंगे|
प्रकृति हर किसी के साथ न्याय करती है मैं चाहता हूं (सद्गुरु) यह किसी को नहीं छोड़ता यह सामाजिक धातु की तरह नहीं है कि कुछ लोग गलत काम करके भी बच निकलते हैं इस अस्तित्व में यह किसी को नहीं छोड़ता इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं अगर आप छत से कूदे तो धरती आपके टांग तोड़ देगी यह निश्चित होना है कोई नहीं बचा सकता इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं किसी को छूट नहीं मिलती| हर गलत-सही काम का हिसाब होता है|
अगर आप दुखी हैं तो इसे (अपने को) ठीक करने की जरूरत है न की सामने वाले को, हमारे सुख और दुख दोनों हमारे अंदर से उठते हैं तो इसका इलाज यहाँ करना होगा कहीं और नहीं जितनी जल्दी आप यह सीख जाएंगे आपका जीवन उतना ही सुंदर और अद्भुत बन जाएगा क्या यह सफलता नहीं है|

सद्गुरु के विचार
प्रश्न 35 : अगर अपना कोई मर जाए तो क्या करना चाहिए?
उत्तर 35 : मृत्यु का मतलब क्या है? मृत्यु बस यही है कि जो व्यक्ति आपके पास था वह अब मौजूद नहीं है (बस यही) एक जीवन गायब हो गया आप उसके लिए नहीं रो रहे हैं बात बस इतनी है कि एक व्यक्ति जो आपके लिए इतना करीब था आपके जीवन का एक हिस्सा था अब मौजूद नहीं हैं| यह आपके जीवन में एक खाली जगह छोड़कर चला गया है बस हम उस खली जगह से परेशान है|
अगर कोई दूर का रिश्तेदार या कोई दोस्त एक परिचित व्यक्ति मर जाएं तो आप एक घंटे तक बुरा महसूस करेंगे फिर सब ठीक हो जायेगा| लेकिन अगर कोई अपना प्रिय इंसान चल बसे तो वह एक बड़ी खाली जगह छोड़ कर चला जाता है|
समस्या यह है कि आप एक खाली जगह भरना चाहते हैं जो आप में हैं इस खाली जगह से हम दुखी है|
अब इस बात को समझने की जरुरत है की अगर कोई अपना मर जाये तो ऐसे स्थिति में क्या करना चाहिए?
आपको यह समझना चाहिए की आज यह मरा है कल वह मरेगा परसों मैं मरूँगा तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता लोग मरते रहते हैं क्योंकि हम मरने वाले लोग हैं| हम (मनुष्य) नश्वर है सबसे पहले हमारे मन में यह पता होना चाहिए कि हम एक दिन मरेंगे तो हमें समझना चाहिए कि दुख कई स्तरों पर होता है जैसे मानसिक दुख होता है विचारों और भावनाओं में उस व्यक्ति की कमी महसूस होती है पर एक और चीज यह है कि आपने उस व्यक्ति की अपने शरीर में कितनी याददाश्त बनाई है|
मान ले कि अगर वह आपका बच्चा या पति या पत्नी या कोई बहुत करीबी रिश्ता हो मर जाता है तो आपके शरीर में कुछ याददाश्त होगी इसे पारंपरिक रूप से योग संस्कृति में रुणानुबंध कहते हैं यानी शरीर में एक बंधन बनाया है शरीर में एक बंधन बनाया है|
अगर कोई आपका प्रिय अचानक बीमार हो जाये और फिर कुछ घंटों में उस व्यक्ति की मृत्यु की जानकारी मिलती है तो ऐसा महसूस होगा जैसे शरीर का ऊर्जा कम हो गया है| 21 साल और उससे काम उम्र का लड़का अगर मर जाता है तो उसके माता-पिता का रुणानुबंध बहुत मजबूत होता है इससे अधिक आयु पार होने पर यह धीरे-धीरे कम होने लगता है|
कम उम्र का बच्चा मर जाए तो परेशानी सिर्फ विचारों भावनाओं में नहीं शरीर में भी होता है| सात साल से कम उम्र के बच्चों में ज्यादा ऋण अनुबंध होता है|
इसलिए जब भी ऐसे लोग जो समय से पहले चले गये हैं उनका पूरी विधि विधान से कर्म कांड और अंतिम संस्कार करना चाहिए दूसरी बात मन हमेशा उथल-पुथल में रहता है इसका कारण है उनका भौतिक याददाश्त है जो आपको एक अलग स्तर पर पीड़ा देगा भले ही आप मानसिक और भावनात्मक रूप से संतुलित हो फिर भी आपके अंदर एक दर्द बना ही रहेगा|
ऐसे मानसिक पीढ़ा से बचने के लिए हमें ध्यान योग केंद्र जाना चाहिए जहाँ हमें मानसिक शांति मिल सके| कम से कम 3 दिन तक अलग रहकर साधना करना चाहिए इसके लिए आप महामंत्र ओम नमः शिवाय का जितना हो सके उतनी तीव्रता से जाप करें या विपश्यना ध्यान कर सकते हैं या किसी और ध्यान क्रिया को किया जा सकता है|
जब आप के जीवन से कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति चला जाए तो यह जरूरी है कि आप सामाजिक चीजों से खुद को बहलाने के बजाय अकेले रहकर अपने साथ कुछ करें यह सामाजिक चीजें हैं लोगों का दुख संभालने का तरीका है मूवी देखना, किताब पढ़ना या फिर टीवी देखना दिल बहलाने की कोशिश ना करें हमें अपने अंदर की परेशानियों का सामना करना चाहिए (अपने डर का सामना करें) अपना ध्यान भटकाने की कोशिश ना करें ध्यान भटकाना समाधान नहीं है उसका सामना करना समाधान है|
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प्रश्न 35 : अगर अपना कोई मर जाए तो क्या करना चाहिए?
उत्तर 35 : मृत्यु का मतलब क्या है? मृत्यु बस यही है कि जो व्यक्ति आपके पास था वह अब मौजूद नहीं है (बस यही) एक जीवन गायब हो गया आप उसके लिए नहीं रो रहे हैं बात बस इतनी है कि एक व्यक्ति जो आपके लिए इतना करीब था आपके जीवन का एक हिस्सा था अब मौजूद नहीं हैं| यह आपके जीवन में एक खाली जगह छोड़कर चला गया है बस हम उस खली जगह से परेशान है|
अगर कोई दूर का रिश्तेदार या कोई दोस्त एक परिचित व्यक्ति मर जाएं तो आप एक घंटे तक बुरा महसूस करेंगे फिर सब ठीक हो जायेगा| लेकिन अगर कोई अपना प्रिय इंसान चल बसे तो वह एक बड़ी खाली जगह छोड़ कर चला जाता है|
समस्या यह है कि आप एक खाली जगह भरना चाहते हैं जो आप में हैं इस खाली जगह से हम दुखी है|
अब इस बात को समझने की जरुरत है की अगर कोई अपना मर जाये तो ऐसे स्थिति में क्या करना चाहिए?
आपको यह समझना चाहिए की आज यह मरा है कल वह मरेगा परसों मैं मरूँगा तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता लोग मरते रहते हैं क्योंकि हम मरने वाले लोग हैं| हम (मनुष्य) नश्वर है सबसे पहले हमारे मन में यह पता होना चाहिए कि हम एक दिन मरेंगे तो हमें समझना चाहिए कि दुख कई स्तरों पर होता है जैसे मानसिक दुख होता है विचारों और भावनाओं में उस व्यक्ति की कमी महसूस होती है पर एक और चीज यह है कि आपने उस व्यक्ति की अपने शरीर में कितनी याददाश्त बनाई है|
मान ले कि अगर वह आपका बच्चा या पति या पत्नी या कोई बहुत करीबी रिश्ता हो मर जाता है तो आपके शरीर में कुछ याददाश्त होगी इसे पारंपरिक रूप से योग संस्कृति में रुणानुबंध कहते हैं यानी शरीर में एक बंधन बनाया है शरीर में एक बंधन बनाया है|
अगर कोई आपका प्रिय अचानक बीमार हो जाये और फिर कुछ घंटों में उस व्यक्ति की मृत्यु की जानकारी मिलती है तो ऐसा महसूस होगा जैसे शरीर का ऊर्जा कम हो गया है| 21 साल और उससे काम उम्र का लड़का अगर मर जाता है तो उसके माता-पिता का रुणानुबंध बहुत मजबूत होता है इससे अधिक आयु पार होने पर यह धीरे-धीरे कम होने लगता है|
कम उम्र का बच्चा मर जाए तो परेशानी सिर्फ विचारों भावनाओं में नहीं शरीर में भी होता है| सात साल से कम उम्र के बच्चों में ज्यादा ऋण अनुबंध होता है|
इसलिए जब भी ऐसे लोग जो समय से पहले चले गये हैं उनका पूरी विधि विधान से कर्म कांड और अंतिम संस्कार करना चाहिए दूसरी बात मन हमेशा उथल-पुथल में रहता है इसका कारण है उनका भौतिक याददाश्त है जो आपको एक अलग स्तर पर पीड़ा देगा भले ही आप मानसिक और भावनात्मक रूप से संतुलित हो फिर भी आपके अंदर एक दर्द बना ही रहेगा|
ऐसे मानसिक पीढ़ा से बचने के लिए हमें ध्यान योग केंद्र जाना चाहिए जहाँ हमें मानसिक शांति मिल सके| कम से कम 3 दिन तक अलग रहकर साधना करना चाहिए इसके लिए आप महामंत्र ओम नमः शिवाय का जितना हो सके उतनी तीव्रता से जाप करें या विपश्यना ध्यान कर सकते हैं या किसी और ध्यान क्रिया को किया जा सकता है|
जब आप के जीवन से कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति चला जाए तो यह जरूरी है कि आप सामाजिक चीजों से खुद को बहलाने के बजाय अकेले रहकर अपने साथ कुछ करें यह सामाजिक चीजें हैं लोगों का दुख संभालने का तरीका है मूवी देखना, किताब पढ़ना या फिर टीवी देखना दिल बहलाने की कोशिश ना करें हमें अपने अंदर की परेशानियों का सामना करना चाहिए (अपने डर का सामना करें) अपना ध्यान भटकाने की कोशिश ना करें ध्यान भटकाना समाधान नहीं है उसका सामना करना समाधान है|
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प्रश्न 36 : अपने दिमाग को तेज कैसे करें?
उत्तर 36 : ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न है- अपने दिमाग को कैसे बढ़ाएं? ज्यादातर लोगों का मन पढ़ने में नहीं लगता है क्या करें? अपने दिमाग की क्षमता को कैसे बढ़ाएं? यह ऐसे कुछ प्रश्न है जिनको जाने बिना अगर कोई मेहनत करता है तो वह निश्चित रूप से भटक जायेगा इसी से जुड़ा एक सवाल यह है कि पढ़ने में मन नहीं लगता है क्या करें? और परीक्षा आने के टाइम पर ही खेलने कूदने में ध्यान अनायास ही चला जाता है| ऐसा क्यों हो रहा है?
इसको वैज्ञानिक रूप से समझने की जरुरत है| जब भी हम काम करते हैं तो दिमाग में दस तरह के ख्याल आतें हैं सबके दिमाग में आतें हैं अमीर-गरीब सबके दिमाग में आते हैं| इसके पीछे का कारण क्या है?
देखो हमारे दिमाग में डोकोमिन होता है जब हम सोचते हैं दिमाग से डोकोमिन निकलता है (दिमाग के अन्दर ही) जब हम अच्छा सोचते हैं उदाहरण के लिए गेम खेलते हैं या एक सिगरेट पीते हैं तो मज़ा आता है फिर एक बार करते हैं, फिर एक बार करते हैं, बार-बार करतें हैं इससे हमें मज़ा आने लगता है और इस डोकोमिन के खेल में हम फंस जाते हैं ज्यादा से ज्यादा डोकोमिन रिलीज़ होने लगता है अब हमारा यह आदत बन जाता है और हमें उमसे मजा आने लगता है|
कहा जाता है की परीक्षा के द्वारन हमें वह काम नहीं करना चाहिए जिसमें हमें मजा आता है (जैसे विडियो गेम, मूवी देखना या पार्टी करना आदि ) हमें वह काम नहीं करना चाहिए जिसमें हमें मज़ा आ रहा है उसको बंद करने की जरूरत है हमें लगता है की हमारा तनाव कम हो रहा है लेकिन हो उलटा रहा है| हमें यह सब फालतू का काम बंद करने की जरूरत है|
पहली बार जब डोकोमिन निकलता है तो उतना मज़ा नहीं आता फिर थोडा और खेलते हैं थोडा और इस तरह मज़ा आने लगता है यानि थोडा और डोकोमिन निकलना फिर थोडा और, फिर थोडा और और हम इस खेल में फंस जाते हैं इसी को बोलते हैं लत लगाना|
परीक्षा के समय अपना mindset एक दम स्पष्ट होना चाहिए बिलकुल साफ़ होना चाहिए- पढ़ना है तो पढ़ना है और कुछ नहीं अपने दिमाग को divert नहीं करना है बिलकुल focus रखना है|
इसके पीछे का कारण है अगर आप पढाई के समय दूसरा कोई मनोरंजन वाला काम करते हैं तो डोकोमिन रिलीज़ होने लगता है और आपका मन पढाई से हट जाता है इसलिए अपने मन को केन्द्रित रखें उसको भटकने न दें| डोकोमिन का खास बात यह है की एक बार रिलीज़ होने के बाद वह बार-बार उसका डिमांड करता है और हम उसके चक्कर में पड़ जाते हैं और अपना समय बर्बाद कर देते हैं|
तो आपको करना क्या है आपको अपने परीक्षा के एक महीने पहले हर तरह का खेल त्याग देना है और सिर्फ पढाई पर ध्यान देना है अगर पढाई में मन नहीं लग रहा है तो कोई बात नहीं है आप शांति से बैठ जाओ आधे एक घंटे में आपको पढाई भी अच्छा लगाने लग जायेगा, सिर्फ किताब उठाकर देखने लग जाओ बस|
इसके अलावा आप थोड़े देर के लिए सो सकते हैं आराम कर सकते हैं ध्यान कर सकते हैं थोडा देर के लिए बाहर टहलने जा सकते हैं इस तरह के हलके काम कर सकते हैं| उपरोक्त उत्तर आपके प्रश्न अपने दिमाग को कैसे तेज करे? दिमाग को कंट्रोल कैसे करें? और सबसे बड़ी बात दिमाग को शांत कैसे रखें से जुड़ा है|
सद्गुरु के विचार

सद्गुरु के विचार
प्रश्न 37 : सुख और दुख क्या है?
उत्तर 37 : विकास के मामले में हम सबसे ऊपर है इंसान के रूप में हम सबसे ऊपर हैं सभी जीवों में हम सर्वश्रेष्ठ हैं शायद थोड़ा और करने की जरूरत है मगर फिलहाल हम सबसे ऊपर हैं लेकिन क्या यह सच नहीं है की जब लोग कहते हैं मैं इंसान हूं का उपयोग इंसान की विशालता बताने के लिए किया है|
इस धरती पर हर एक कीड़ा, एक चिड़िया, एक जानवर जिनका दिमाग हमसे कई गुना छोटा है वह भी अपनी जीवन प्रक्रिया बड़े अच्छे ढंग से चलाते हैं क्या ऐसा है जब मैं (सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी) जीवन प्रक्रिया कहता हूं जैसे हम पैदा हुए हैं वैसे बाकि पशु-पक्षी भी पैदा होते हैं बड़े होते है| जैसे हम जीवन चलाते हैं हमने बच्चे पैदा किये वे भी बच्चे पैदा करते हैं हम यह सब काम बड़े झमेले के साथ करते हैं लेकिन पशु-पक्षी बड़े आराम से कर रहे हैं जीने-मरने की तमाम प्रक्रिया कर रहे हैं हम हर चीज बड़े झमेले के साथ करते हैं|
क्या यह बुद्धिमता का सबसे ऊंचा स्तर दिखाता है हम खुद को सबसे बुद्धिमान मानते हैं और इसमें शक नहीं कि हमारी न्यूरोलॉजिकल प्रक्रिया धरती पर सबसे ज्यादा विकसित है हमारे पास सबसे विकसित न्यूरोलॉजिकल सिस्टम है तो हमें बेहतरीन तरीके से महसूस करना अनुभव करना और व्यक्त करना चाहिए मगर धरती पर अभी कोई दूसरा इंसान की तरह संघर्ष नहीं कर रहा ऐसा इसलिए है क्योंकि आपको एक सुपर कंप्यूटर मिला है क्या आप मुझ से सहमत हैं कि यह धरती का सबसे परिष्कृत यंत्र नहीं है|
अब सवाल यह है कि क्या आप अपने शरीर का यूजर मैनुअल पढ़ा है यह धरती की सबसे जटिल मशीन है इसको चलने का यूजर मैनुअल पढ़ा है| आज इंसान दुखी क्यों है अगर वह गरीब है तो गरीबी से दुखी हैं आप उन्हें अमीर बना दीजिए तो बेटे से दुखी हैं अगर पढ़े-लिखे नहीं है तो दुखी हैं उन्हें स्कूल में डाल दीजिए भारी दुख शादी नहीं हुई तो दुख है उनकी शादी करा दीजिए तो दुखी है|
बच्चे हैं हर रोज दुखी है तो आप जीवन के हर पहलू से दुखी लगते हैं तो अगर हम मौत दे दें क्या खुशी-खुशी आप जाएंगे नहीं आप दुखी हो जाएंगे तो मुझे एक चीज बताइए जिससे हम दुखी नहीं है|
अब लोग फिलॉसफी बनाते हैं जीवन दुख हैं नहीं-नहीं जीवन दुख नहीं है, न ही आनंद है यह तो बस मौजूद है यह शानदार प्रक्रिया है अगर आप इस की सवारी करते हैं तो यह शानदार है अगर आप इससे कुचले जाते हैं तो यह भयंकर लगता है तो क्या आप जीवन की लहर पर सवार हैं या इससे कुचले जा रहे हैं यही सवाल है|
लोगों के जीवन में ज्यादातर दुख असल में अन्दर से आ रहा है और थोड़ा का दुख बाहर से आ रहा है ज्यादातर दुख हम खुद पैदा कर रहें है अगर वह बैठे हैं तो दुख, खड़े होते हैं तो दुख, चलते हैं तो दुख हर चीज में दुख हमारा दुख हमारी ही मनोप्रक्रिया से है| आपके अपने ही विचार और भावनाएं यानी आपके सोचने और महसूस करने का तरीका इतना बड़ा दुख बन गया है|
आप कैसे सोचते और महसूस करते हैं क्या यह आपको तय नहीं करना चाहिए? आपके भीतर क्या होता है क्या उसे आपकी मर्जी से नहीं होना चाहिए? क्या आप मुझे देख सकते हैं? इसका बताइए मैं कहां हूं?
अभी आप मुझे कहां देख रहे हैं? अपने आँखों के अन्दर अभी आप मुझे कहां सुन रहे हैं अपने अन्दर अभी तक आपने सारी दुनिया कहां देखी है? अपने भीतर| हर चीज जो आपको हुई है पीड़ा और सुख आपके भीतर हुआ है| खुशी और गम आपके भीतर हुए हैं और आनंद-परमानंद आपके भीतर हुआ है| यहां तक की रोशनी और अंधेरा भी असल में आपके भीतर ही हो रहा है| दुनिया में जो होता है वह भले ही आपकी मर्जी से ना हो पर कम से कम आप के भीतर जो होता है उसे तो आपके हिसाब से होना चाहिए|
तो आपके अंदर जो होता है वह अगर आपकी मर्जी से नहीं हो रहा तो बुनियादी रूप से हमने जीवन की प्रकृति को नहीं समझा उसे बिना समझे अपने अस्तित्व की बुनियादी चीजों को समझे बिना हम जीने की कोशिश कर रहे हैं|
क्या यह सच है कि पीड़ा और सुख दोनों आपके भीतर पैदा होते हैं उसे बाहर से उकसाया जा सकता है मगर सारा इंसानी अनुभव आपके भीतर से ही आता है जो आपके भीतर से आ रहा है उसे आपके मुताबिक होना चाहिए वरना खुद के काबू से बाहर होंगे|
अगर आप खुद पर नियंत्रण रखें तो आप अपने लिए खुशी पैदा करेंगे या दुख? ज्यादा से ज्यादा खुशी| अगर पीड़ा और आनंद में से एक चुनना हो तो आप अपने लिए क्या चुनेंगे- सर्वाधिक खुशी|
तो समस्या बाहर की नहीं है कुछ हमारे मन मुताबित होंगे कुछ नहीं होंगे लेकिन कम से कम जो आपके भीतर होता है उसे तो पूरी तरह आपकी मर्जी से होना चाहिए अगर अभी आपके भीतर जो हो रहा है वह आपकी मर्जी से हो रहा होता तो आप खुद को सुख के सर्वोच्च स्तर पर रखते- यह ही हमारे सुख और दुख के कारण है|
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प्रश्न 38 : विचार क्या है?
उत्तर 38 : “विचार इन हिंदी” में अगर समझे की विचार क्या है? सद्गुरु के शब्दों में एक पंक्ति में अध्यात्म क्या है-बकवास नहीं, बस जीवन|
फिलहाल आप चारों ओर से बकवास से गिरे हुए हैं इससे आप कहीं नहीं पहुंच पाएंगे आप बकवास हटा कर सीधे जीवन के संपर्क में आ जाइए यही अध्यात्म है अगर आप कुछ नहीं समझे तो बस इतना समझिए बकवास नहीं बस जीवन| सकारात्मक और नकारात्मक से ऊपर उठकर बस जीवन|
सकारात्मक विचारों से ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता है लेकिन सही विचारों से अपने जीवन की छोटी चीजों को जरूर बदल सकते हैं|
लेकिन अगर आप अपने विचारों से परम को छूने की सोच रहे हैं तो यह समय की बर्बादी है क्योंकि विचार उसे गढ़ने लगेंगे यह आपकी कल्पना पर आधारित है जो सत्य नहीं है|
व्यक्तित्व तो वैसे ही गढ़ा गया है तो आप उसे दूसरा रूप दे सकते हैं सत्य तो सत्य है उसको कल्पना से न जोड़े| तो जीवन कई आयामों में मौजूद है किसी एक आयाम से सामना होने पर खुद को भूल जाएं जीवन के अलग-अलग पहलू हैं यह एक शरीर है आपको इसे एक तरीके से चलाना होता है|
व्यक्तित्व एक सामाजिक चीज है यह सामाजिक है सामाजिक रूप से आपका मानसिक ढांचा बहुत महत्वपूर्ण है यह बहुत महत्वपूर्ण है आपके जीवन के विभिन्न पहलू हैं अगर आप परम तत्व को अपने मन में तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं तो आप जीवन बर्बाद कर रहे हैं|
जीवन जीते हुए आप सरल को बहुत जटिल बना सकते हैं या आप जटिल को सरल बना सकते हैं आपका लक्ष्य क्या है?
इंसान की बुनियादी इच्छा है कि वह मूल रूप से जीवन को गहराई से जीना चाहता है शायद कोई सोचता हो कि पैसा मिलने से ऐसा होगा कोई सोचता है परिवार मिलने से ऐसा हो सकता है या सत्ता मिलने से ऐसा होगा पर सभी बस जीवन का एक बड़ा हिस्सा पाना चाहते हैं| लेकिन यह सब केवल विचार है विचारों के चक्कर में न पड़े बस जीवन को दुख-खुशी, अच्छा-बुरा सबको मिलकर जीना ही जीवन है| जीवन में जो सामने आये उसका सामना करो और सचेत होकर जिओ यही जीवन है|
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प्रश्न 39 : जीवन क्या है?
उत्तर 39 : आपको एक प्रेरित व्यक्ति नहीं होना चाहिए आमतौर पर जब हम किसी को प्रेरित हुआ कहते हैं तो इसका मतलब होता है उनका अपना कोई एजेंडा है जीवन का कोई एजेंडा नहीं है यह आपके लिए एक पूर्ण विकसित जीवन होना है|
एक झींगुर पूर्ण विकसित झींगुर होने की कोशिश कर रहा है एक केंचुआ पूर्ण विकसित होने की कोशिश कर रहा है| एक पक्षी पूर्ण विकसित पक्षी होने की कोशिश कर रहा है| एक पेड़ पूर्ण विकसित पेड़ होने की कोशिश कर रहा है| एक मनुष्य को भी पूर्ण विकसित मनुष्य होने के लिए प्रयास करना चाहिए हमारा बस यही काम है|
हम बस जीवन का एक टुकड़ा हैं जीवन को ज्यादा गंभीरता से मत लीजिये हम बहुत ही थोड़े समय के लिए जीवित हैं
आपको अकेली चीज यही करनी है कि आप उठे हैं और एक पूर्ण विकसित जीवन के रूप में प्रकाशित हो|
इसलिए अपने बच्चों को किसी चीज से प्रेरित होना मत सिखाइए यह सारी बकवास पश्चिम से आ रही है यह सभी सेल्फ हेल्प किताबें खुद को प्रेरित कीजिए आत्मविश्वास पैदा कीजिए अपने आप पर यकीन कीजिए आपने भगवान पर यकीन किया और इस दुनिया को इस हद तक नष्ट कर दिया अब आप खुद पर यकीन करते हैं आप क्या करेंगे आपको प्रेरित होने की जरूरत नहीं है आपको बस इतना देखना है कि अभी यह अपने पूर्ण संभव स्तर पर कैसे हो बस इतना ही देखना है|
अगर यह पूर्ण रूप से जीवित है तो यह वह सब करेगा जो यह कर सकता है|
आपको बस एक पूर्ण विकसित जीवन बनना है आपको बहुत ज्यादा दर्शनों मान्यताओं के विचारों और भावनाओं से बांधना नहीं है
हमें अपने बच्चों को किसी से प्रेरित मत कीजिये यह जरुरी नहीं है आपको देखना है कि वह कैसे आनंदपूर्ण और जीवंत रहते हैं इसमें उनका शरीर और उनकी बुद्धि सबसे अच्छे तरीके से काम करेगा| याद रहे आपको पूर्ण विकसित होना है उससे कम मत होइए|
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प्रश्न 40 : भक्ति क्या है?
उत्तर 40 : भक्ति का मतलब है बिना शर्त का प्रेम हम भगवान को एक वस्तु के रूप में इसीलिए स्थापित करते हैं ताकि आप प्रेम करने की प्रक्रिया में उलझकर ना रह जाएं|
हम अपने बगल में बैठे इन्सान से प्रेम कर सकते हैं जब हम अपने बगल के किसी लड़का-लड़की से प्रेम करने लगते हैं तो हम उसमें उलझ जाते हैं लेकिन जब किसी वस्तु के साथ प्रेम करते हैं तो हम उससे उलझते नहीं है वह हमारे लिए एक प्रतिक बन जाता है|
तो भक्ति चाहे आपके आसपास के लोगों के लिए हो आपके चारों और के संसार के लिए हो या आपके आसपास एक व्यक्ति के लिए हो या आपके गुरु के लिए या आपके भगवान के लिए हो| भक्ति की वस्तु महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण है आपकी भावनाओं की तीव्रता यह इस बारे में है कि आप कितनी तीव्रता महसूस कर सकते हैं भक्ति का अर्थ है विलीन हो जाना|
भक्ति का मतलब है अपना जीवन किसी दूसरे को दे देना| बहुत से लोग एक से ज्यादा लोगों से प्यार करते-करते वह किसी दूसरे को खोज लेते हैं क्योंकि वे अपना खुद का जीवन चाहते हैं तो इस तरह का प्रेम प्रसंग बहुत ज्यादा समय के लिए नहीं चलता है और ज्यादा भलाई नहीं करता है|
इसलिए आप एक गुरु या भगवान को चुनते हैं ताकि आप उससे उलझ न सकें उसमें बंध न सके यह एक सुरक्षित प्रेम प्रसंग है क्योंकि अगर आप उलझने की कोशिश भी करते हैं तो भी वह आपके साथ नहीं हो जाएंगे इसलिए गुरु या भगवान की और अपना ध्यान ले जाना बस यही है यह बहुत ही सुरक्षित प्रेम प्रसंग है आप अपनी पूर्ण तीव्रता के साथ महसूस कर सकते हैं|
हम अपने कुत्ते से प्रेम करें या भगवान से यह दोनों अलग नहीं है यह आपकी भावनाओं की गहराई है जो महत्वपूर्ण है आप किस से प्रेम करते हैं यह मुद्दा बिल्कुल भी नहीं है आपकी भावना में जबरदस्त तीव्रता लाने के लिए आपको एक वस्तु की जरूरत है जिसकी ओर आप देख सके| कुछ ऐसा जिसको आप अपने से ऊंची भावना में देखें सिर्फ तभी आप अपने आप में उस तरह की तीव्रता ला सकते हैं|
उसी समय अगर यह (गुरु, भगवान) बहुत ऊंचा हो जाता है तो कोई प्रेम नहीं करेगा सिर्फ श्रद्धा होगी|
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प्रश्न 41 : शारीरिक बीमारी या मानसिक बीमारी / मानसिक डर का इलाज / मानसिक रोग / मानसिक रोग के लक्षण
उत्तर 41 : अंग्रेजी में प्राण शब्द के लिए कोई शब्द नहीं है पर हमें इसे (Vital energy) बुनियादी ऊर्जा कह सकते हैं जिसे हम जीवन ऊर्जा कहते हैं वही प्राण हैं| प्राण दस अलग-अलग रूपों में शरीर में मौजूद है पर समझने के लिए हम बस पांच पर ध्यान देंगे| इन पांचों को पंच वायु कहते हैं यह प्राण वायु, समान वायु, उदान वायु, अपान वायु , और बयान वायु है मानव तंत्र में मौजूद|
इनका काम मानव तंत्र में मौजूद विभिन्न आयामों की देखरेख करना है अगर इस विषय की गहराई में जाएं तो वह अंतहीन हो जाएगा मैं कम से कम शब्दों में इसे समझाने की कोशिश कर रहा हूं देखरेख करना यानी यम मतलब नियंत्रण करना प्राणायाम मतलब वह विधि जिससे आप इन पांचों को कंट्रोल करना चाहते हैं क्योंकि आपका शरीर कैसे काम करता है आपका मन कैसे काम करता है पूरा शारीरिक ढांचा कैसा है यह मानव तंत्र कैसे काम करता है यह प्राण ऊर्जा से तय होता है|
यह एक ऊर्जा है एक बुद्धिमान ऊर्जा है यानी इसमें एक खास मात्रा में याददाश्त है हर इंसान के कर्मों की याददाश्त इस ऊर्जा पर छपी होती है तो हर इंसान में प्राण अलग तरीके से काम करता है हर व्यक्ति के लिए बिल्कुल अलग| यह बिजली की तरह नहीं है बिजली स्मार्ट नहीं होती उसमे रोशनी होती है रोशनी से बल्ब और कैमरा चल सकता है इससे पंखे टीवी आदि चल सकते है यह लाख चीजें कर सकती है पर अपनी बुद्धि के कारण नहीं एक ऊर्जा के कारण ही काम करती है|
लेकिन भविष्य में आपके पास स्मार्ट बिजली होगी क्योंकि विज्ञानिक उसमे याददास्त डाल सकेंगे आनेवाले पचास वर्षो में यह संभव होगा यानि बिजली हमारे सोच से चलेगा|
हमारा शरीर एक बुद्धिमान ऊर्जा है इसमें एक निश्चित मात्रा में छाप है इस वजह से यह हर व्यक्ति में अलग तरीके से काम करता है तो एक सामान्य प्राणायाम बहुत जरुरी है जिससे उसमें ऊर्जा का प्रवाह हो सकें जो पांचों वायुओं का ध्यान रखेगा|
इन पांचों प्राण वायुओं पर अगर महारत हो तो मानसिक बीमारी (mental health or mental energy) और शारीरिक बीमारी हो ही नहीं सकती हैं| अगर कोई अपने प्राणों को अपने हाथों में ले लेता है तो बाहरी वातावरण जो भी हो कंपन-तरंगे भावनाएं या दूसरे कोई भी दबाव हो कोई फर्क नहीं पड़ता उस व्यक्ति के मानसिक संतुलन की 100% गारंटी है जो अपने प्राणों को संभाल लेता है| इस तरह प्राणों को अपने हाथो में लेकर योगी इतने ठण्ड में भी बिना खाए-पिए निर्वस्त्र रहकर भी अपनी साधना जारी रखते हैं|
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प्रश्न 42 : डार्क एनर्जी क्या है और डार्क मैटर का रहस्य क्या है?
उत्तर 42 : इस पूरे ब्रह्मांड में सिर्फ एक शक्ति है जिसके तीन आयाम हैं हम उसे ब्रह्मा-विष्णु-महेश कह सकते है|
अगर हमारे ग्रंथों के अनुसार, ब्रह्मा सृजन की शक्ति है क्या अस्तित्व में (सृजन) है?- बेशक|
विष्णु रखरखाव (देखभाल) कर रहें है क्या ऐसा है?- बेशक ऐसा ही है|
फिर आता हैं विनाश क्या श्रृष्टि में (विनाश) हो रहा है?- बेशक हो रहा है|
अभी हमारे शरीर में करोड़ों कोशिकाय मर रही है और अरबों का रखरखाव किया जा रहा है तो यह इन तीन शक्तियों की अभिव्यक्ति हैं और यही पूरे ब्रह्मांड का आधार है| यह धरती, आकाश, पूरा सौर्यमंडल सब इसी तीन शक्तियों का खेल है| (श्रृजन, रखरखाव और विनाश)
यह तीन शक्ति ही पूरे ब्रह्मांड का आधार है| स्थूल में भी यही तीन शक्तियां हैं और सूक्ष्म में भी यही तीन शक्तियां है| परमाणु में भी यही तीन शक्तियां हैं और ब्रह्मांड में भी यही तीन शक्तियां है| यह एक बहुत ही सरल सी श्रृष्टि है बस यह तीन शक्ति इतना बड़ा खेल कर रहें हैं|
अगर आप त्रिशूल को समझे तो यह सतह पर तीन हैं लेकिन गहराई में बस एक हैं| यह प्रतीक है ब्रह्मांड की शक्ति का|
लेकिन यह तीन शक्तियां सृष्टि के सभी पहलुओं में साफ-साफ मौजूद हैं- प्रोटॉन न्यूट्रॉन इलेक्ट्रॉन से लेकर कई दूसरे स्तर की अभिव्यक्ति में यह हमेशा मौजूद है|
यह असल में तीन देव है जब एक होकर काम करें तो यह महादेव कहलाते हैं| महादेव के गोद में शुन्यता है अर्थात् खाली स्थान जहाँ श्रृष्टि बनती है और गायब हो जाती है| यह सब शिव के गोद में होता है शिव (शी + व) अर्थात् वह जो नहीं है| तो वह जो नहीं है वही असल है और उसी के आगे हम अपना सिर झुकाते हैं| इसी को डार्क एनर्जी कहते है| यानि काली शक्ति कह सकते है|
शिव को dark one भी कहते हैं| क्योंकि वह सबसे ऊपर है उससे ऊपर कोई नहीं है इसलिए उसको डार्क मैटर कहते है| अगर आप ऊपर आसमान में देखे तो आपको क्या दिखेगा बदल, तारें…. लेकिन यह सच नहीं है ऊपर पूरा खाली है जहाँ तक हमारी आँख देख पाती है देखती है लेकिन उसके आगे सब खाली है बिलकुल काली रात की तरह|
आज आधुनिक वैज्ञानिक भी कहता है कोई तो है जो हर चीज को एक साथ थामे हुए हैं अब, वह कौन है? इसका कोई ठोस प्रमाण मौजूद नहीं विज्ञान के पास अब ऊपर किसी आदमी की कल्पना न करें|
ऊपर जो खाली अंधकार स्थान है जिसे आकाशगंगा कहते है आप वहां देखते हैं वह तो बस छोटे-छोटे बिंदु हैं बाकी तो विशाल विस्तार है और ऊपर कई सौरमंडल है जहाँ कई आकाशगंगा मौजूद है जिनको हम अपनी आँखों से देख भी नहीं पाते यानि ऊपर तो सिर्फ असीम शून्यता है जिसका कोई अंत नहीं है|
कोई तो है जो इन सबको थामे हुआ है जिसे हम शिव कहते है वह ही सृष्टि के स्त्रोत है सृष्टि के हर कण में धड़क रहे है और कोई भी इसे नकार नहीं सकता है मॉडर्न साइंस भी नहीं नकार सकती कि सृष्टि का जो स्त्रोत है वह एक छोटे से अदृश्य शक्ति के रूप में कार्य कर रहा है| इस तरह हमने देखा की डार्क एनर्जी क्या होती है और इसका dark energy definition and dark energy meaning को समझा|
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प्रश्न 43 : क्या भगवान होते हैं?
उत्तर 43 : इस प्रश्न का उत्तर सद्गुरु एक कहानी से देते हैं एक बार गौतम बुद्ध (असली नाम गौतम सिद्धार्त है) वह बुद्ध बन गए थे|
एक दिन सुबह-सुबह गौतम बुद्ध एक बड़े समूह के बीच बैठे थे उसी समय एक आदमी आया और एक पेड़ की आड़ में खड़ा हो गया| वह आदमी श्री राम का बहुत बड़ा भक्त था वह राम का भक्त है उसके मन में थोड़ा सा संदेह पैदा हुआ की क्या राम है की नहीं? वह जनता है की राम है बस एक छोटा सा संदेह है| तो उन्होंने गौतम बुद्ध से पूछ लिया गुरूजी क्या भगवान हैं? गुरूजी ने स्पष्ट कहा नहीं भगवान नहीं है|
यह सुनकर सबने बड़ी गहरी साँस ली और राहत महसूस करने लगे चलो भगवान नहीं है अब गुरूजी कह रहें हैं तो बात सही है| अब कोई ऊपर बैठकर हमारे कर्मो का हिसाब नहीं रख रहा है सब आजाद है अपने कर्मों को लेकर पूरे दिन जश्न मनाये गए|
शाम को फिर सभा बैठी एक और आदमी आया वह भी दूर एक पेड़ के आड़ में खड़ा था वह आदमी चरवाहा था| यह कौम सिर्फ अपने आँखों पर ही विश्वास करते थे उसकी भी उम्र बीत रही है उसके अन्दर थोड़ा सा संदेह आ गया| मान लो अगर भगवान है तब क्या होगा मैं तो पूरी जिंदगी भगवान को नहीं माना जब मैं ऊपर मरकर जाऊंगा तो क्या वह मुझे छोड़ देगी उसने गुरूजी से पूछा गुरूजी क्या भगवान होते है? उत्तर आया हैं भगवान है|
एक बार फिर खलबली मच गयी की भगवान है तो गौतम यह कौन सा खेल खेल रहें हैं एक बार गौतम कहते है भगवान नहीं दूसरी तरफ कहते हैं भगवान है यह क्या माजरा है? देखिये अगर आप विश्वास करते हैं की भगवान हैं और विश्वास करते हैं की भगवान नहीं है दोनों एक ही चीज है| आप ऐसी चीज पर विश्वास कर रहें है जिसे आप नहीं जानते मैं इसपर विश्वास करता हूँ तुम उस पर विश्वास करते हो दोनों ही सत्य है इसका सच्चाई से दूर-दूर तक कोई लेने देना नहीं है|
अगर आप यह स्वीकार करें कि मैं नहीं जानता तो जाने की चाहत पैदा होगी अगर चाहत पैदा होगी तो खोज शुरू होगी और अगर खोज शुरू होगी तो जानने की संभावना भी होगी| उपरोक्त बात से यह पूरी तरह से यह सिद्ध होता है की “क्या भगवान है या नहीं”|
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प्रश्न 44 : अघोरियों की रहस्यमय दुनिया का अनसुना सच?
उत्तर 44 : क्या अघोरी की शक्ति होती है? क्या अघोर मार्ग साधना होता है? निश्चित रूप से है और अभी भी यह बहुत सक्रिय आध्यात्मिक प्रक्रिया है|
कुछ प्रणालियां ऐसी है जिसका इस्तेमाल करके एक “अघोरी बाबा” वाकई में मुर्दे को जिंदा कर सकता है| अघोरी का मतलब है “घोर” अघोरी का मतलब है जो भयानक से परे हो|
अगर आप मुर्दे को जिन्दा होते देखना चाहते है तो यही वह लोग हैं जो मुर्दे को भी जिन्दा कर सकते हैं|
ताजे शव में कुछ सम्भावना होती है उसे जीवित करने की, अघोरी लोग कुछ आध्यात्मिक प्रक्रिया और प्रणालियां का इस्तेमाल करके उस मरे हुए शरीर में प्राण डाल सकतें है|
वाराणसी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट में अघोरी देखते रहते हैं की कोई नवयुवक का शव आये तो वह उसपर काम (तंत्र-मंत्र) करके उसको जिन्दा किया जाये| जब मुर्दे को जलाया जाता है तो शरीर से प्राण जल्द से जल्द बाहर निकलना चाहता है उसी प्राण (ऊर्जा) को अघोरी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते है इसे अघोरी की शक्ति कहिये या अघोरी बाबा का चमत्कार कहिये यह भी एक विज्ञान है यह हर किसी के लिए नहीं है लेकिन यह भी एक विज्ञान है|
अघोर एक स्वीकार्य मार्ग नहीं है क्योंकि वह लोग जो करते हैं वह सामाजिक प्रक्रिया से बिलकुल उलट है यह एक घिनोना मार्ग भी है यहाँ आपको हर काम समाज के विपरीत करना होता है तंत्र शक्तियां अर्जित करके बहुत कुछ किया जा सकता है| इसके लिए आपके पास हिम्मत होना अनिवार्य है क्योंकि इस मार्ग में आपका जान भी जा सकता है| यह सबसे मुश्किल, घिनोना और साहसिक लोगों द्वारा ही किया जाता है|
यह ब्रह्मांड को गले लगाने का एक तरीका है|
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प्रश्न 45 : सद्गुरू के दिमाग पर होई रिसर्च (Sadhguru’s brain scan report)
उत्तर 45 : सद्गुरु बताते हैं की अमेरिका की एक इंस्टिट्यूट है उन्होंने कहा की हम आपके दिमाग की (गामा रे) का अध्ययन करना चाहते है वह एक साइंटिफिक संस्थान थी|
मैंने कहा ठीक है मुझे क्या करना होगा उन्होंने आप यहाँ ध्यान कीजिए मैंने कहा मुझे ध्यान नहीं आता उन्होंने कहा लेकिन आप लोगों को ध्यान सिखाते हैं मैंने कहा हाँ में लोगों को ध्यान करना सिखाता हूँ क्योंकि वह शांति से बैठ नहीं सकते इसलिए मैं उनको कई तरीके से शांति से बैठना सिखाता हूँ|
अगर आप यह चाहते हैं की मैं कुछ ना करूं बस शांति से बैठू तो ठीक है फिर उन्होंने मेरे पुरे दिमाग पर 14 इलेक्ट्रोड्स लगाये पंद्रह मिनट बाद उन्होंने एक धातु की वस्तु से मेरे ठुगनी पर चोट करने लगे मैं शांत बैठा रहा फिर थोड़े समय बाद वह मेरे सिर पर हथोड़े के बेंट से मरने लगे मैंने सोचा यह उनके प्रयोग का हिस्सा होगा| फिर वह और ज़ोर-ज़ोर से मरने लगे दर्द लगातार बढ़ता जा रहा था|
फिर जब मैंने अपनी आँखें खोली तो वह लोग मुझे अजीब नजरों से देख रहे थे मैंने कहा, क्या मैंने कुछ गलत किया उन्होंने कहा हमारी मशीनों के अनुसार आप मर चुके हैं| मैंने कहा यह तो आपने गजब निष्कर्ष निकाला है और फिर वह आपस में बोले हो सकता है कि आपका दिमाग मर गया हो|
मैं आपको यह सब क्यों बता रहा हूँ अगर आप अपने अन्दर सब कुछ संभाल सकते हैं तो कोई समस्या नहीं है| यह सबसे अच्छा तरीका है यही योग है|
अगर आप इस पूरी मशीन (शरीर(मन)) को कैसे संभालना है आपके विचार, आपकी भावनाएं, आपकी ऊर्जा हर चीज जो आपको पता है कि इन्हें अंदर से कैसे संभालना है तो आपके लिए कोई रस्म नहीं है|
अगर मैं अपनी आंखें बंद कर लेता हूं तो अपने जीवन के भीतरी और बाहरी दोनों चीजों से निपट सकता हूं| मैं इसे ठीक करना चाहूं तो मैं आंखें बंद कर लेता हूं अगर मैं उसे ठीक करना चाहूं तो मैं अपनी आंखें बंद कर लेता हूं अगर आप यह एक साधना करते हैं तो आप ऐसे बन सकते हैं यह पहुँच से बाहर नहीं है यह हर इंसान के लिए उपलब्ध है बस पर्याप्त ध्यान देने की जरूरत है|
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प्रश्न 46 : जग्गी वासुदेव कैसे बने सद्गुरु
उत्तर 46 : सद्गुरु जग्गी वासुदेव के अपने शब्दों में- एक दिन दोपहर मैं (सद्गुरु) बस एक छोटी सी पहाड़ी पर जाकर बैठा जो उस शहर में है जहां मैं बड़ा हुआ था उस पल तक मैंने हमेशा यही सोचा था कि यह मैं हूँ और वह कोई और है|
मुझे किसी और से कोई परेशानी नहीं थी पर वह कोई और है यह मैं हूँ पहली बार मैं यह नहीं जानता था कि मैं क्या हूँ? और क्या नहीं हूँ? मैं जो था वह हर जगह फैला हुआ था मुझे लगा यह पागलपन पांच दस मिनट तक चला लेकिन जब मैं अपने होने के सामान्य तरीके पर वापस आया तब साडे चार घंटे बीत चुके थे मैं वहीं बैठा था पूरी तरह से चेतन आंखें खुली मैं वहां दिन में करीब 3:00 बजे बैठा था और शाम के 7:30 बज तक रहा सूरज डूब चुका था और मुझे लगा बस दस मिनट हुए हैं|
जीवन में पहली बार इतने आंसू बह रहे थे कि मेरी शर्ट पूरी गीली थी मुझे आंसू आना संभव था मैं ऐसा था मैं हमेशा खुश रहा हूं यह मेरे लिए कभी मुद्दा नहीं रहा मैं अपने काम में सफलता में युवा था और कोई परेशानी नहीं थी मैं खुश था पर मुझ में एक अलग तरह के परम आनंद का विस्फोट हो रहा था जो वर्णन से परे है मेरे शरीर की हर कोशिका परम आनंद से सराबोर थी मेरे पास कोई शब्द नहीं थे|
जब मैंने अपना सिर हिलाया और अपने शक्की दिमाग से पूछने की कोशिश की कि मुझे वह क्या रहा है तू मेरा दिमाग मुझे सिर्फ एक चीज बता पाया कि मैं कुछ बहुत अजीब कर रहा हूं मुझे इसकी परवाह नहीं थी कि वह क्या था लेकिन मैं उसे खोना नहीं चाहता था क्योंकि इससे खूबसूरत चीज मुझे कभी नहीं मिली थी और मैंने कभी सोचा नहीं था कि एक इंसान अपने अंदर ऐसा महसूस कर सकता है|
तो जब मैं अपने सबसे करीबी दोस्तों के पास गया और बताया कि मेरे साथ कुछ ऐसा हो रहा है बातें करते करते मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं और लोग कहते हैं क्या तुमने कुछ किया था? कुछ खाया था? तुमने क्या किया था? मुझे पता था कि किसी को कुछ कहने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि अगर मैं बस आसमान को देखता हूं तो आंसू आ जाते, पेड़ को देखता तो आंसू आ जाते हैं, आंखें बंद करता तो आंसू आ जाते, मैं बस सराबोर था|
छह महीनों में मेरी हर चीज जबरदस्त तरीके से बदल गई और मैंने समय का बोध खो दिया जब यह अगली बार हुआ तब बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि मेरे आस-पास लोग थे मैं अपने परिवार के साथ बैठा था खाने की टेबल पर मुझे वाकई लगा 2 मिनट में पर 7 घंटे बीत गए मैं वहीं बैठा था पूरी तरह सचेत पर मुझ में समय का कोई बोध नहीं था|
यह मेरे साथ कई बार हुआ एक दिन में बस अपने खेत में बैठा था और मुझे लगा कि मैं 25 मिनट के लिए बैठा लेकिन मैं 13 दिन तक बैठा था तब तक भीड़ जमा हो गई भारत ऐसा देश है कि मेरे आस-पास बड़ी-बड़ी मालाएं थी|
कोई पूछ रहा है कि उसका कारोबार कैसे चलाएं? कोई पूछ रहा है कि उसकी बेटी की शादी कब होगी? उस सारी बकवास जिससे मुझे नफरत थी मेरे आस-पास हो रही थी और मुझे वाकई लगा 25-30 मिनट हुए है पर वह लोग कह रहे थे 13 दिन से यह बैठा है यह समाधि में यह, यह है वह है मैंने यह शब्द भी नहीं सुने थे मैं यूरोपियन किताबें पढ़कर बड़ा हुआ था|
मैं और आध्यात्म अलग अलग दुनिया थी वहां जाने का कोई सवाल ही नहीं था तो मेरे अंदर यह शब्द ही नहीं थे समाधि और वह लोग कह रहे थे अरे वह इस तरह की समाधि में वह उस तरह की समाधि में आप उन्हें छू लेंगे तो यह होगा और लोग मुझे पकड़ना चाहते थे तो मैं बस यही कर सकता था मैंने वह जगह छोड़ी और सफर पर निकल गया सिर्फ इससे बचने के लिए क्योंकि मैं समझ नहीं पाया कि मेरे आस-पास क्या हो रहा है|
मैं आपको यह कहानी इसलिए बता रहा हूं क्योंकि यह हर इंसान के लिए संभव है यह मेरी कामना और मेरा आशीर्वाद है यह आपके साथ होना चाहिए चाहे आप माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना ना चढ़े धरती के सबसे अमीर आदमी बने या ना बने इस धरती पर आपके जीवन का अनुभव अच्छा होना चाहिए आपको आनंद में जी कर जाना चाहिए यह हर इंसान के साथ होना चाहिए हर कोई इसका अधिकारी है और हर किसी में यह काबिलियत है|
इन सब चीजों को आप जग्गी वासुदेव की किताबें में भी पढ़ सकतें है जिसे a yogi’s guide to joy के नाम से जाना जाता है|
सद्गुरु के विचार

सद्गुरु के विचार
प्रश्न 47 : इनर इंजीनियरिंग क्या है?
उत्तर 47 : सद्गुरु द्वारा खोजा गया एक नायब तकनीक जिसे इनर इंजीनियरिंग इन हिंदी में बताने जा रहें हैं और यह inner engineering course online उपलब्ध है , इस संसार में इंजीनियरिंग के बल पर हमारे पास हर तरह की सुविधा आ गई है पर इंसान की खुशहाली इंजीनियरिंग या बाहरी दुनिया ठीक करने से नहीं आएगी| अगर आप भारी हालत ठीक करते हैं तो यह सुविधाजनक बन जाएगा लेकिन खुशहाली तभी मिलेगी जब आप इसे (शरीर) ठीक करेंगे वरना यह नहीं होगा|
बाहरी हालात के साथ आप चाहे जो भी करें आप उन्हें 100% वैसा कभी नहीं बना सकते जैसा आप चाहते हैं जीवन में एक भी काम 100% आपके मुताबिक नहीं होता है बस थोड़ा आपके हिसाब से होता है कुछ मेरे हिसाब से होता है इसी तरह चलता रहता है|
क्या आपके माता-पिता, आपके बच्चे, आपके पति, आपकी पत्नी, आपके दोस्त क्या कोई भी 100% आपके जैसा है आपका कुत्ता भी आजकल जैसा हम चाहते है वैसा व्यवहार नहीं करते वह भी मनमानी करते हैं कोई भी आपके हिसाब से नहीं हो रहा| यह समस्या नहीं है समस्या यह (शरीर) यह आपके हिसाब से नहीं हो रहा यही समस्या है?
अगर यह (शरीर (मन)) आपके हिसाब से हो रहा हो तो आप इसे कैसे रखना चाहेंगे| खुशी या दुखी? बिलकुल खुश है न| लेकिन यह सब संयोग से चल रहा है अगर आप सहयोग से जीने वाले प्राणी हैं तो आप कभी भी मुसीबत में पड़ सकते हैं|
सबसे पहले वह क्या है जिसे आप मैं कहते हैं जब आप कहते हैं मैं तो आप किन चीजों की बात कर रहे हैं आप अपने घर अपनी कार अपने कपड़ों की बात नहीं कर रहे हैं| जब आप कहते हैं (मैं) तब आप इसकी (स्वयं) बात करते हैं| चलिए मन लेते हैं सब कुछ वैसा हो रहा है जैसा आप चाहते हैं लेकिन यह एक चीज वैसी नहीं हो रही जैसी आप चाहते हैं बस यही दुख का कारण है|
आज हर आदमी जो भी काम करते हैं जैसे आपका बिजनेस आपने बिजनेस क्यों शुरू किया, आपने परिवार क्यों बनाया, आप कैरियर क्यों बनाना चाहते हैं, आप जो कुछ भी कर रहे हैं उसे क्यों कर रहे हैं? आप मंदिर क्यों जाते हैं? या बार क्लब क्यों जाते हैं? अपने खुशहाली की खोज में है सही है न|
जो आदमी मंदिर जाता है उसे लगता है खुशहाली वहीं पर हैं| जो आदमी डांस क्लब जाता है उसे लगता है खुशहाली वहीं पर हैं| जो आदमी सिनेमा देखने या पार्क में जाता है उसे लगता है खुशहाली वहीं पर हैं हर कोई सुखद अनुभव की तलाश में है लेकिन असल में यह सब गलत है खुशहाली वहीं नहीं जहाँ हम खोज रहें है खुशहाली तो अपने अन्दर है|
अगर आपका बाहरी माहौल ख़राब है तो और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है कि आप अपने भीतर और खुशी कायम रखें क्योंकि बाहरी खुशी के लिए आपको लोगों की जरुरत होगा इलेक्ट्रॉनिक मोबाइल, कंप्यूटर आदि कई चीजों का सहयोग और जरूरत होगी| लेकिन भीतरी खुशी के लिए सिर्फ और सिर्फ एक व्यक्ति पर निर्भर है वह है आप|
हम इस शरीर की बुनियादी बातों को समझे बिना इसे चलने की कोशिश कर रहें है इसका एक सिस्टम है एक तरीका है जिसे इनर इंजीनियरिंग कहते है और inner engineering online भी उपलब्ध है जिसे a yogi’s guide to joy के नाम से भी जाना जाता है|
आपके भीतर जो हो रहा है उसे संयोग से नहीं होना चाहिए इसे आपकी इच्छा से होना चाहिए| तभी जीवन में खुशहाली आ सकती है|
सद्गुरु के विचार

सद्गुरु के विचार
प्रश्न 48 : मरने से पहले के लक्षण / बहुत बीमार होने से पहले अपने माता-पिता से यह एक काम करवाएं
उत्तर 48 : जब कोई बीमार होता है और अगर दुर्भाग्य से उन्हें वाकई कभी इसका एहसास न हो कि जीवन नश्वर है तो उन्हें अपने भीतर के लिए तैयारी कर लेना चाहिए| अब आप मरने वाले हैं तो यह भयानक होने वाला है तो सारे रिश्ते जरूरत पर आधारित रिश्ते हैं समाज ऐसे ही विकसित हुए हैं तो अचानक उन्हें बताना कि आप मरने वाले हैं यह एक बहुत अच्छा उपाय नहीं होगा|
जिस समय माता-पिता ऐसे मुकाम पर आ जाते हैं (65-70 वर्ष पर) और उनके लड़के (बेटे) की शादी हो जाती है तो बेटे की एक जिम्मेदारी यह है कि वह माता-पिता को धार्मिक यात्रा पर लेकर जाए तीर्थ स्थानों की यात्रा पर यह घूमने फिरने के लिए नहीं है|
उनको याद दिलाने के लिए है की उनका समय करीब आ रहा है अब समय आ गया है कि अपने आंतरिक कल्याण में निवेश करें इससे पहले कि वह चलने फिरने में असमर्थ हो जाए उन्हें तीर्थ यात्रा पर ले जाना चाहिए तीर्थ यात्रा घूमने फिरने के लिए नहीं बल्कि उन्हें याद दिलाने के लिए भीतर की ओर मोड़ना चाहिए|
यह बहुत महत्वपूर्ण है (हर इंसान के लिए) कि जब हम अपने समय के अंत तक पहुंच रहे हो तो हम इसका सामना समझदारी और जागरूकता के साथ करें जहां तक संभव हो सके अगर आप पूरी तरह से जागरूक हैं तो इसके बारे में कहने के लिए कुछ भी नहीं है|
आपको एक बात समझना चाहिए की आपको अपनी शारीरिक चिंताओं को कम करना चाहिए|
भोजन की, आराम की और कपड़ों की आपको इसे नीचे लाना चाहिए और इसे बहुत स्पष्ट करना चाहिए| अगर शब्दों से नहीं तो एक वातावरण स्थापित करना चाहिए कि हमारा समय करीब आ रहा है यह समय हम सब के लिए आएगा|
एक साधारण चीज जो आप कर सकते हैं वह यह की एक तेल या घी का दिया जलाकर सिरहाने रखना चाहिए रात में सोते समय|
यह माता पिता के प्रति उनके बच्चों का एक मौलिक कर्तव्य है कि जब उनका समय आए तो वह अच्छी तरह से जाएं उम्र बढ़ रही है और उनमें इतनी समझ नहीं है तो आपको उन्हें समझाना चाहिए|
आपके माता-पिता आप से भी ज्यादा करीब है यही जीवन की सच्चाई है अगर आप सच को भूल जाते हैं तो आप एक मूर्खतापूर्ण जीवन जीयेंगे|
इसलिए एक बेटा होने के नाते आप का एक सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है उन्हें याद दिलाना कि उनके जीवन में यह बहुत महत्वपूर्ण है वह अपने अंदर देखें समय आ गया है कि वह कुछ समय और ऊर्जा अपने भीतरी कल्याण पर लगाएं क्योंकि अगर वह यह एक चीज नहीं करेंगे तो निश्चित रूप से उनकी मौत दुखदायक होगी| इसलिए ऐसे समय ज्यादा से ज्यादा ध्यान करना चाहिए| मृत्यु के बाद कर्मकांड तो करना ही है लेकिन उसके पहले की तैयारी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है|
सद्गुरु के विचार

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प्रश्न 49 : THE POWER OF MEDITATION IN HINDI
उत्तर 49 : मैडिटेशन का मतलब क्या होता है? Benefits of meditation and the power of meditation and prayer पर विस्तार से चर्चा करेंगे| सबसे पहले तो इसको समझना होगा की यह काम कैसे करता है? हम सब जानते हैं की मैडिटेशन में शांति से बैठना होता है (एक ही मुद्रा में) कई घंटों तक बैठे रहना अपने साँस पर ध्यान देना या विपश्यना ध्यान करना या जैन मैडिटेशन (जिसमें आपको सिर्फ बैठना होता है) में अपने चित्त को एक तरफ लगाना होता है|
जब हम चलते-फिरते हैं कोई काम करते हैं तो हमारे शरीर में मौजूद ऊर्जा खर्च होता रहता है लेकिन जब हम एक जगह शांत होकर बैठ जाते हैं और लगातार महीनों-महीनों शांत बैठने का अभ्यास करते हैं शांत बैठने से हमारा अभिप्राय अपने पांचों इन्द्रियों को बंद करना जैसे सुनना बंद, देखना बंद, स्पर्श बंद अपने क्रिया को बंद कर दिया उस समय हमारे विचार अपने आप चालू हो जाते हैं तरह-तरह का विचार आने लगते हैं जब हम इसको नियंत्रित कर लेते हैं तो यह ऊर्जा धीरे-धीरे ऊपर उठने लगता है|
इससे शरीर में खुजली, जलन, दर्द, घबराहट, फुसफुसाना आदि अनगिनत तरह का अनुभव होता है और यह अनुभव हर ध्यानी को अलग-अलग तरह का होता है शरीर के पिछले और निचले हिस्से में दर्द महसूस करना फिर शरीर के अलग-अलग हिस्से और जगहों में दर्द जलन आदि चीजों का होना शुरू हो जाता है|
अधिक से अधिक अभ्यास से आपका ऊर्जा और ध्यान जब एक हो जायेगा तो वह ऊपर उठने लगता है मेरुदंड के निचले हिस्से से ऊपर की तरफ इसी को कुंडलिनी जागरण कहते हैं| अगर आप लगातार ध्यान करते रहते हैं तो एक समय आएगा जब यह आपके सिर के ऊपर से निकल जायेगा फिर आपको ऐसा लगेगा जैसे आप ब्रह्मांड की यात्रा कर रहें हैं या किसी गुफा से गुजर रहें हैं या किसी गुप्त अँधेरे में हैं या तरह-तरह का रंग दिखाई देना|
यह जो ऊर्जा है यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा है इसको हम नियंत्रित नहीं कर सकते हैं इसको एक दिशा दे सकते हैं लेकिन इसको पूरी तरह नियंत्रित करना असंभव है ऊर्जा का मतलब हैं बिजली को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है|
ध्यान करना नहीं होता है ध्यान देना होता है जब भी किसी जानवर का पेट भर जाता है तो वह क्या करता है वह बस एक जगह बैठकर देखता रहता है हमें भी यह समझना होगा की हमें हर क्षण सजग (जागरूक) रहना होगा यही ध्यान है| जैसे-जैसे आप जागरूक होते जायेंगे अब यह सवाल आएगा “मैं कौन हूँ?” यह सबसे महत्वपूर्ण सवाल है इसको जानने की कोशिश करनी चाहिए यही असल में मैडिटेशन (ध्यान) हैं|
यह सारी बातें the power of meditation book में स्पष्ट रूप से दिया हुआ है| यही the scientific power of meditation है|
सद्गुरु के विचार

सद्गुरु के विचार
प्रश्न 50 : रिश्ते टूटने के दर्द से कैसे निकलें?
उत्तर 50 : जब कोई रिश्ता टूट जाता है तो इतना दर्द क्यों होता है? मैं इसे आगे नहीं बढ़ पा रहा हूँ या पा रही हूँ इसके लिए क्या करना चाहिए? इसने मेरे अंदर एक खालीपन सा छोड़ दिया है इससे कैसे निज़ात पाया जाएँ? या आसान शब्दों में रिश्ते टूटने के दर्द से कैसे बाहर निकलें?
सद्गुरु बताते हैं- हमारे शरीर की कुछ भौतिक बुनियादी प्रक्रिया है जो कुछ चीजों पर निर्भर होती है यह होना स्वभाविक है जैसे आपको भोजन खाना है| आपको पानी पीना होता है इसके अलावा अपना स्वयं का काम करना होता है| इन कामों में किसी और की सहायता की जरुरत नहीं होती है|
अगर आपको इस शरीर के अन्दर जीवन की बुनियादी प्रक्रिया दिखाई दे रहा है, अगर दिखाई दे रहा है तो इसे बस यही चाहिए और कुछ नहीं चाहिए इसे खालीपन ही चाहिए और कुछ नहीं बस यही चाहिए यही जीवन है|
लेकिन वह जो इस जीवन को पैदा कर रहा है वह अपने आपमें एक सम्पूर्ण प्रक्रिया है इसे किसी और की सहायता की जरूरत नहीं है|
तो ऐसा क्या है जो आपको किसी दूसरे की इतनी ज्यादा जरूरत महसूस कराता है?
यह आपके विचार का स्वभाव है उदाहरण के लिए अगर आप कोई मनोरंजन किताब पढ़ रहें हैं या कोई फिल्म देख रहें हैं तो आपका ध्यान दूसरे चीजों से हटकर केवल फिल्म पर ही टिक जाएगी इसका मतलब यह है की यह आपकी भावना से जुड़ा है|
आपको अपनी मानसिक ढांचे को जागरूकता के साथ ऐसे जीना चाहिए की अगले किसी भी पल मरने के लिए तैयार रहें (रहना चाहिए) लेकिन अगर ऐसा हो भी जाये तो आपको शालीनता के साथ जीवन में आगे बढ़ना चाहिए अगर आप अपने शरीर के मनोविज्ञान को समझ गए और सामनेवाले के शारीरिक मनोविज्ञान को समझ गए तो आपका जीवन सफल है फिर आपको कोई विशेष फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि आप इस जीवन के प्रकृति को समझते हैं|
सद्गुरु के विचार

सद्गुरु के विचार
प्रश्न 51 : what is God? What would be the definition of God?
उत्तर 51 : देखिये हर मजहब, पन्त, जाति, धर्म का अपना एक (भगवान के प्रति) सिद्धांत होता है| सबका अलग-अलग होता है और सभी ने उसे ही सही माना है क्योंकि उन्हें इस ब्रह्मांड के बारे में कुछ नहीं पता है| जब हम जन्म लेते हैं और दुनिया को देखते हैं और सोचते हैं की यह दुनिया किसने बनाई है? क्या मेरी माँ ने बनाई है?- नहीं| क्या मेरे पिता ने बनाया?- नहीं| अपने गुरुओं को देखते हैं क्या उन्होंने इस संसार को बनाया?- नहीं, कोई उस योग्य ही नहीं है फिर किसने बनाया? फिर सब एक साथ कहते हैं ऊपर भगवान, गॉड या अल्लाह ने बनाया है| क्या ऐसा है? एक और झगड़ा है क्या वह आदमी या औरत?
यह जो मान्यता है भगवान के बारे में वह हर धर्म का अपना-अपना संस्कृति और सामाजिक मान्यता है इससे ज्यादा और कुछ नहीं, किसी ने भी इस ब्रह्मांड के बारे में कुछ नहीं जाना है| अफ़्रीकी लोगों के लिए उनका भगवान काला है अंग्रेजों के लिए गोरा हो सकते हैं आदि… अलग-अलग हो सकते हैं| हम भारतीयों के लिए भगवान कई रंग-रूप के हैं जैसे श्री राम सांवले, कृष्णा गोरे, माँ काली-काली रंग की, पार्वती गोरी आदि अलग-अलग तरह का मान्यता है| हम बस इसी में फँसे हुए हैं हमें ब्रह्मांड के श्रोत का कोई ज्ञान नहीं है उसके उत्पत्ति की कोई जानकारी नहीं है| एक बेकार के बहस में लगे हुए हैं|
हम सब इन्सान है इसलिए हम सबके पास सोचने-समझने और कल्पना करने की शक्ति है इसलिए हम कुछ भी सोच सकते हैं मान लेते हैं आप एक जानवर में शेर हो तो आप क्या सोचेंगे भगवान भी एक शेर होगा इसी तरह अन्य प्राणी अपने जैसा ही भगवान को समझेंगे हैं की नहीं?
लेकिन आपको यह समझना होगा की यह सब हमारी ना-समझी है इसके अलावा और कुछ नहीं क्योंकि हममें से कोई भी श्रृष्टि को नहीं जनता है इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? कैसे यह बना है? आगे क्या होने वाला है? हममें से कोई कुछ भी नहीं जनता है| अगर आप श्रृष्टि में मौजूद एक छोटे से चींटी को देखें आप पाएंगे की उसमें भी समझ है| नहीं दिखने वाले वायरस-बेक्टेरिया कैसे अपना उत्पत्ति कर रहें हैं| यह सब अपने आप हो रहा है हममें से कोई भी इनके विज्ञान को आज तक सही से समझ नहीं पाया है|
एक और उदाहरण से समझे एक गुलाब के पौधे को अगर नियमित रूप से निराई-गोड़ाई, पानी और धुप मिलता रहे तो कुछ ही दिनों में उसमें कलि निकल आएगी फिर फूल बनकर महकेगा, क्या आपने इसमें खुशबु-इत्र डाला हैं नहीं इसका मतलब इसमें जबरदस्त बुद्धिमत्ता या समझ है| आप कुछ भी खाते हैं जैसे फल-सब्जी-मांस वह आपका शरीर बन जाता है इसका मतलब क्या है की उसमें जबरदस्त बुद्धिमत्ता है|
उसी तरह हम सब इस प्रकृति से आयें हैं और उसी में मिल जाएंगे| अगर आपको भगवान को समझना है तो आपको पर्याप्त ध्यान देना होगा अगर आप जागरुक होकर अपने जीवन को जीते हैं और हर चीज के प्रति जागरुक होते हैं तो धीरे-धीरे आपमें समझ विकसित होने लगेगी| अगर आप पर्याप्त ध्यान देते हैं तो आप प्रकृति से जुड़ने लगेंगे और आप पाएंगे यह एक जबरदस्त बुद्धिमता है|
मेरा निवेदन है आप अपने-अपने मान्यताओं को एक तरफ रखें और इस प्रकृति पर ध्यान देना शुरू करें आप पाएंगे आपका जीवन नाटकीय रूप से खिल जायेगा|
सद्गुरु के विचार

निष्कर्ष
उपरोक्त लेख से यह सिद्ध होता है की “सद्गुरु के विचार” लेख पर सद्गुरु ने हर तरह के प्रश्नों का जवाब दिया जो पूरी तरह विज्ञान, सत्य और तर्क पर आधारित है जिसको किसी भी तरह से नकारा नहीं जा सकता है इसीलिए पूरी दुनिया से लोग उनसे जुड़े है और सबका कल्याण सुनिश्चित हुआ है इसके अलावा उनके द्वारा स्थापित शिवलिंग में ध्यान करने से निश्चित रूप से लाभ होता है यह दुनिया का एक मात्र जीवित शिवलिंग सद्गुरु द्वारा स्थापित किया गया है|
सद्गुरु के आश्रम के बारे में कहा जाता है की “सद्गुरु आश्रम केंद्र” पुरे दुनिया में 300 से अधिक हैं जिसमे 7 करोड़ स्वयंसेवक लोग उनसे जुड़कर कार्य करते हैं संस्था से 200 करोड़ लोगों को लाभ हुआ है उनके जीवन को ऊपर उठाने में मदतगार सिद्ध हुआ है|
संस्था का योग क्रिया केंद्र है बच्चो के लिए विद्यालय है हर तरह की शिक्षा दी जाती है जिससे बच्चो का शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी हो सकें इसके अलावा उनको अंदर से मजबूत होना सिखाया जाता है| जिससे वह अकेले रहते हुए भी अपने पैरों पर खड़ा हो सके और स्वाभिमान के साथ जी सके|
संस्था द्वारा पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत से कार्यक्रम चलाया जाता है जैसे जल संरक्षण, पेड़ संरक्षण, वन संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता है जिसके वजह से संस्था को कई पुरुस्कार से नवाज़ा गया भारत सरकार और यूनाइटेड नेशन द्वारा प्रशास्ति पत्र से सम्मानित किया गया है|